जलवायु

क्यों हीट चेतावनियों को और स्थानीय होने की ज़रूरत है

जिस तरह शहर असमान रूप से गर्म हो रहे हैं, विशेषज्ञों का कहना है कि लोगों की जान बचाने के लिए हीट चेतावनियों को और बारीक होना पड़ेगा.
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<p><span style="font-weight: 400;">दिल्ली, भारत, में उमस भरी गर्मी के दिन छांव में झपकी लेता मज़दूर (फोटो: नवीन शर्मा/सोपा इमेजेस/सिपा यूएस/ अलामी)</span></p>

दिल्ली, भारत, में उमस भरी गर्मी के दिन छांव में झपकी लेता मज़दूर (फोटो: नवीन शर्मा/सोपा इमेजेस/सिपा यूएस/ अलामी)

अमेरिका के शहर बोस्टन को आमतौर पर हीट वेव नहीं बल्कि जमा देने वाली सर्दियों के लिए जाना जाता है। लेकिन जैसे-जैसे दुनिया जलवायु वरिवर्तन के कारण गर्म हो रही है, यह शहर अब बेहद गर्म भविष्य का सामना कर रहा है। 20वीं सदी के अंतिम दिन दशकों में, औसतन साल के 11 दिन ऐसे थे जब बोस्टन का तापमान 32 डिग्री सेल्सियम से ऊपर चला गया था। ऐसा अनुमान है कि 2030 तक ऐसे दिनों की संख्या बढ़कर 40 हो जाएगी। और 2070 तक 90 भी हो सकती है।

यह एक CATCH स्टोरी है

यह स्टोरी Dialogue Earth के कम्युनिटी एडेप्टेशन टू सिटी हीट (CATCH) प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जो बोस्टन यूनिवेसिटी के साथ साझेदारी में चलाया जा रहा है। यह प्रोजेक्ट Wellcome द्वारा वित्त-पोषित है. डायलॉग अर्थ की सारी सामग्री संपादकीय रूप से स्वतंत्र है.

पिछले साल, बोस्टन ने दो हीट इमरजेंसी की घोषणा की, यानी कि तापमान स्वास्थ्य को खतरा पहुंचाने वाले स्तर पर पहुँच गया। लेकिन शहरी गर्मी की जटिल रूप के कारण, शहर के कुछ इलाके इन चेतावनियों से भी अधिक गर्मी झेल रहे हैं।

पैट्रिशिया फैबियन बोस्टन यूनिवर्सिटी में हीट और स्वास्थ्य पर काम करती हैं। उन्होंने पाया कि सिर्फ़ कुछ ब्लॉक की दूरी से ही तापमान में बेहद बड़ा अंतर हो सकता है। उनकी टीम ने जून 2021 के एक सप्ताह में चेल्सी और ईस्ट बोस्टन का तापमान मापा जो कि बोस्टन के नेशनल वेदर स्टेशन द्वारा बताए गए तापमान से 3.3C (6F) अधिक था। यह मौसम केंद्र लोगन एयरपोर्ट पर है, जिसकी दूरी इन जगहों से बेहद मामूली है, पर तापमान में भारी अंतर है. टीम ने वेदर स्टेशन की तुलना में 5.6C (10F) से अधिक शिखर तापमान मापा। 

फैबियन कहती हैं, “ऐसे भी मोहल्ले थे जहाँ गर्मी ‘हीट एडवाइजरी या इमरजेंसी की सीमा को 10 दिनों से ज़्यादा पार कर रही थी, लेकिन शहर ने सिर्फ़ चार दिन ही हीट एडवाइजरी या इमरजेंसी की घोषणा की। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि गर्मी की सीमाएँ नेशनल वेदर स्टेशन के डेटा से अनुमानित तापमान पर आधारित होती हैं, जो कि एयरपोर्ट पर मापा जाता है.”

तापमान का अंतर

दुनिया भर में, मौसम से संबंधित मौतों को सबसे बड़ा कारण गर्मी से उत्पन्न तनाव या हीट-स्ट्रेस है। गर्मी और स्वास्थ्य के मामले में तापमान में सिर्फ कुछ डिग्री का अंतर ही बहुत बड़ा असर डाल सकता है। भीषण गर्मी खुले में रहने वाले और कमजोर लोगों की जान ले सकती है और इसका संबंध किडनी की बीमारी, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसी लंबे समय तक चलनेवाली स्वास्थ्य समस्याओं से भी है। साथ ही, इससे मच्छरों और कीड़ों से फैलने वाली बीमारियों (वेक्टर-जनित रोगों) का खतरा भी बढ़ रहा है.।

शहर में रहने वालों के लिए भीषण गर्मी और उससे उपजी समस्याओं का जोखिम ज़्यादा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि या अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव के कारण शहर आमतौर पर अपने आसपास के ग्रामीण इलाक़ों से ज़्यादा गर्म होते हैं। दूसरा कारण यह है कि शहरों में बुजुर्ग, गरीब और वंचित वर्ग के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं, जो गर्मी से अधिक संवेदनशील होते हैं।

अर्बन हीट आइलैंड या नगरीय ऊष्मा द्वीप प्रभाव क्या है?

शहर आमतौर पर अपने आसपास के ग्रामीण इलाकों से ज़्यादा गर्म होते हैं। ऐसा कई वजहों से होता है: शहरों में छाया और ठंडक देने के लिए पेड़ कम होते हैं, कंक्रीट और ईंटों से बनी ऐसे इमारतें बेहद बड़ी संख्या में होती हैं, जो गर्मी सोखती हैं और ज़्यादा बिजली का इस्तेमाल करती हैं, जिससे और अतिरिक्त ऊष्मा का उत्पादन होता है। इस प्रभाव को अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव कहा जाता है।

नेशनल वेदर सर्विस की पब्लिक प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर जेसिका ली कहती हैं कि नेशनल वेदर सर्विस “मानती है कि ऑब्जर्वेशन स्टेशन (निगरानी केंद्र) हमेशा आसपास के क्षेत्रों के विविध ‘माइक्रोक्लाइमेट’ (सूक्ष्म जलवायु) का सही प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते।”

सेवा सेंसरों के साथ अन्य डेटा और सूचनाएँ इकट्ठा करती है तथा मौसम और इसके प्रभावों की “ज़्यादा पूरी” तस्वीर बनाने की कोशिश करती है। ली बताती हैं कि सेवा गर्मी की घटनाओं की भविष्यवाणी करने और चेतावनियां जारी करने की कोशिश करने के लिए पूर्वानुमानों का उपयोग करती है, और साथ ही स्थानीय सामुदायिक समूहों और जन स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ “विशिष्ट इलाकों के लिए उपयुक्त हीट-अलर्ट मानदंड तय करने” के लिए काम करती है. 

बोस्टन अकेला ऐसा शहर नहीं है जो इस समस्या से जूझ रहा है। मिआमी के आसपास के शहरी क्षेत्र में काम कर रहे शोधकर्ताओं ने पाया कि उनके हाइपर-लोकल या अति-स्थानीय अवलोकन के अनुसार अधिकतम तापमान नेशनल वेदर सर्विस साइट से 3.3C अधिक था, और अधिकतम “हीट-इंडेक्स” तो 6.1C से अधिक था। मिआमी का यह मौसम केंद्र भी बोस्टन की तरह ही क्षेत्र के अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर ही है.

हीट इंडेक्स या ताप सूचकांक क्या है?

हीट इंडेक्स (ताप सूचकांक), जिसे आभासी तापमान भी कहा जाता है, वह तापमान है जो सापेक्ष आर्द्रता और वायु तापमान को मिलाने पर मानव शरीर को महसूस होता है। स्रोत: एनडबल्यूएस

ठीक यही चीज़ एक समुदाय-संचालित मौसम अवलोकन प्लेटफार्म आईसीचेंज के काम के माध्यम से न्यू ओर्लींस में भी पाई गई है। अमेरिका से बाहर के शहर भी कुछ ऐसा ही अनुभव कर रहे हैं।

दिल्ली भी अब ‘लोकल’ सोच रही है

दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक दिल्ली में पिछले कुछ सालों में गर्मियां काफ़ी गर्म और पहले से अधिक उमस भरी हो गई हैं। दिन और रात दोनों समय के तापमान बढ़ रहे हैं और 2011 से सापेक्ष आर्द्रता में 9% तक की वृद्धि हुई है। 

एक ग़ैर-लाभकारी संगठन हीटवॉच के अध्ययन के अनुसार, मार्च और जून 2024 के बीच, भारत के 17 राज्यों में हीट-स्ट्रोक यानि लू लगने से 733 मौते हुईं, जिनमे से 193 मौतें सिर्फ़ दिल्ली में हुईं।

लेकिन पूरा शहर एक समान रूप से गर्म नहीं होता है। शहर की आधिकारिक तापमान रीडिंग सफदरगंज के मौसम केंद्र से आती हैं, लेकिन अन्य क्षेत्र जैसे नरेला, नजफगढ़ और उत्तर-पूर्वी दिल्ली के इलाक़ों में आमतौर पर अधिक स्थानीय तापमान दर्ज होता है। इन इलाकों में औद्योगिक गतिविधियों अधिक हैं, वृक्ष आवरण कम है, कंक्रीट की सतहें अधिक हैं और और बिजली के पंखों और एयर कंडीशनिंग तक पहुँच सीमित है, जिसके कारण ये इलाके ‘अर्बन हीट हॉटस्पॉट’ बन गए हैं। 

सस्टेनेबल फ्यूचर्स कॉलेबोरेटिव के विजिटिंग फेलो और शोधार्थी आदित्य वालिएथन पिल्लई कहते हैं, “पॉश मोहल्लों और कच्ची बस्तियों के मकानों के सरंचनाओं में बड़े अंतर हैं। पॉश मोहल्लों में बिजली और हवा का प्रवाह है इसलिए वहाँ गर्मी कम क़ैद होती है। दूसरी तरफ़, कच्ची बस्तियों में टिन की छतें हैं, सीमेंट ब्लॉक की दीवारें है और स्टील के दरवाज़े हैं। अति-स्थानीय हीट मैपिंग समझने के लिए हमें इन स्थानिक असमानताओं को ध्यान में रखना होगा।”

गर्मी से निपटने के लिए भारत का जवाब हीट एक्शन प्लान रहे हैं, जिन्हें भारत मौसम विज्ञान विभाग और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा लागू किया जाता है. इनका उद्देश्य हीटवेव के लिए तैयारी में शहरों का मार्गदर्शन करना है. 

भारत की पहली ऐसी योजना 2013 में अहमदाबाद में शुरू की गई थी, और उसे जल्द ही गर्मी से जुड़ी मौतें कम करने का श्रेय मिला था। लेकिन शुरुआती सफलता के बाद भी विशेषज्ञ बताते हैं कि अधिकांश योजनाओं में हीट-इंडेक्स, या लोगों को असल में कितनी गर्मी लग रही है , जैसी सूचनाओं और स्थानीय स्तर पर निर्धारित तापमान की सीमाओं की कमी है, और ये योजनाएँ पर्याप्त रूप से स्थानीय नहीं हैं। 

भारत मौसम विभाग की मौजूदा हीट अलर्ट, जो इन हीट एक्शन प्लान के तहत बनाई गईं थीं, पूरे शहर के लिए एक समान होती हैं, और ऐसे तापमान सीमाओं पर आधारित होती हैं जो अलग अलग इलाक़ों के मौसम (माइक्रो-क्लाइमेट) नहीं पकड़ पातीं। दिल्ली ने 2023 में अपना हीट एक्शन प्लान शुरू किया पर इसमे वार्ड-स्तरीय योजनाओं की बहुत कम जानकारी है और इसमें स्थानीय हीट-मैपिंग सिस्टम भी नहीं है।

भीषण गर्मी के इतने असमान प्रभाव के चलते कुछ विशेषज्ञ अब मांग कर रहे हैं कि बढ़ती गर्मी के खतरों, लोगों के जोखिम और विभिन्न आबादी की कमजोरियों को समझते हुए अधिक सटीक और स्थानीय स्तर की जानकारी का उपयोग किया जाए।

सबसे कमजोर लोगों को चेतावनी कैसे दें?

बोस्टन और दिल्ली दोनों जगहों के विशेषज्ञ कहते हैं कि केवल तापमान से आगे बढ़कर अन्य कारणों की समझ के साथ हीट चेतावनियां जारी करने की ज़रूरत है। 

दिल्ली में कुछ ही किलोमीटर के भीतर के असर और संवेंदनशीलता में काफ़ी अलग हो सकती है। एक बड़ा अनदेखा वर्ग प्रवासी मजदूरों का है, जिनमें से कई शहर के सबसे गर्म हिस्सों में काम करते हैं और रहते हैं।

पिल्लई का कहना है, “हीट चेतावनियों के साथ दिक्कत ये है कि ये उन सभी लोगों तक नहीं पहुंच पाती हैं जिन्हें इनकी ज़रूरत होती है। हम उन लोगों तक जानकारी कैसे पहुंचाएं जो सबसे ज्यादा जोखिम में हैं?” बारीक स्तर की योजनाएँ वास्तविक बदलाव ला सकती हैं। ”उदाहरण के लिए, किसी अधिक जनसंख्या और निम्न-आय वाले क्षेत्र में, पब्लिक लाउडस्पीकर एसएमएस से ज़्यादा प्रभावी हो सकता है। फिर भी, मौजूदा हीट एक्शन प्लान ऐसी समुदाय स्तर की बारीकियों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।“
पिल्लई कहते हैं, “मुझे नहीं लगता कि नौकरशाही को इस बात की समझ है कि अति-स्थानीय स्तर पर गर्मी क्या है, यही वजह है कि समन्वय की ऐसी समस्याएं देखने को मिलती हैं.”

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लोगों के पास इन चेतावनियों पर अमल करने की क्षमता भी होनी चाहिए। दिल्ली के ज्यादातर प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए काम करने के अधिकतम तापमान की सीमा जैसे लागू होने वाले नियम भी नहीं हैं। मौजूदा सरकारी सलाह आराम के लिए ब्रेक, पानी और छांव जैसे उपाय सुझाती हैं पर ये लागू होने वाले अधिकार नहीं हैं।  

पिल्लई कहते हैं, “क्या ऐसी सामाजिक सुरक्षाएँ हैं जो लोगों को इस योग्य बनाती हैं कि वो इन सूचनाओं पर अमल कर सकें? जब सामाजिक सरंचना ही लोगों को इस बारे मे कुछ करने नहीं देती, तो उन्हें सिर्फ़ गर्मी की सूचना देना पूरी तरह व्यर्थ हैं। 

ऊपर से नीचे तक

अमेरिका में, नेशनल वेदर सर्विस से जुड़ी ली कहती हैं कि और अधिक स्थानीयकृत होने के लिए काम चल रहा है।“एनडबल्यूएस और अधिक स्थानीयकृत अलर्ट के लिए तकनीकी समाधान खोज रहा है। इससे पूर्वानुमानकर्ता ज़ोन और काउंटी जैसी भू-राजनीतिक सीमाओं से परे जाकर, भीषण गर्मी की अधिक संभावना भरे क्षेत्रों को टारगेट कर पाएंगे। 

View from a rooftop with a solar panel, overlooking a city skyline
अमेरिका के बोस्टन में एक स्कूल की छत पर लगा यह सोलर पैनल सिस्टम, वायु गुणवत्ता और तापमान सेंसर से लैस है जो बढ़ती शहरी गर्मी को ट्रैक करने के लिए हाइपर-लोकल डेटा इकट्ठा करता है (फोटो: पैट्रिशिया फेबियन)

ली बताती है कि चेतावनियों की बारीकी बढ़ाने के लिए गर्मी के और अधिक अवलोकन की ज़रूरत होगी, साथ ही यह भी बताना होगा कि क्यों कुछ क्षेत्रों को चेतावनी मिल रही है और दूसरों को क्यों नहीं। वह कहती हैं, “सिर्फ़ हीट चेतावनियां ही नहीं बल्कि अलर्टों को भी और अधिक स्थानीयकृत करने की एजेंसी-व्यापी कोशिशें जारी हैं।” वह यह भी कहती हैं कि इन कोशिशों में एक शहरी हीट-मैपिंग प्रयास जारी है जो यह समझने में मदद करेगा कि कौन से इलाक़ों में भीषण गर्मी का खतरा ज़्यादा है।

एनडबल्यूएस के पास हीटरिस्क नाम का एक टूल भी है जो तापमान पूर्वानुमानों, जलवायु सूचनाओं और स्वास्थ्य डेटा का उपयोग करके गर्मी के संभावित प्रभावों को हरे से लेकर मैजेंटा तक के एक रंग-कोडित पैमाने पर दिखाता है, जिसमे हरे का अर्थ अनुमानित गर्मी से है, जिसका बिल्कुल असर नहीं या मामूली असर है वहीं मैजेंटा का अर्थ “भीषण: दुर्लभ और/या दीर्घकालिक भीषण गर्मी से है जिसका असर बिना कूलिंग/हाइड्रेशन वाले किसी भी व्यक्ति के साथ-साथ हेल्थ सिस्टम, इंडस्ट्री और इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी होता है. ये टूल पूरे अमेरिका के लिए स्थानीय हीट जोखिम संबंधी सूचना प्रदान करता है।

जूलिया कुमारी ड्रैपकिन न्यू ओर्लींस की निगरानी करने वाले आईसीचेंज की सीईओ और संस्थापिका हैं। वह कहती हैं कि हीट चेतावनियों को ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर दोनों तरह से देखने की ज़रूरत है.

गर्मी के जोखिम पर संगठित संवाद करना टेक्नोलॉजी की कमी से नहीं बल्कि दायित्व और गवर्नेंस की कमी की वजह से काफ़ी चुनौतीपूर्ण है।
जूलिया कुमारी ड्रैपकिन, आईसीचेंज की सीईओ और संस्थापिका

आईसीचेंज का एआई-संचालित प्लेटफार्म स्थानीय निवासियों, सेंसर नेटवर्कों और ऐतिहासिक डेटा द्वारा मिले अवलोकनों को इकट्ठा करता है। यह शहरों, उपयोग सेवाओं और इंजीनियरों को मौसम के भीषण प्रभावों जैसे बाढ़ और भीषण गर्मी से कुशलतापूर्वक निपटने में मदद करता है। इस प्लेटफार्म का उपयोग करने वाले शहरों में मिआमी, न्यूयॉर्क और न्यू ओरलींस भी शामिल हैं। 

ड्रैपकिन बताती हैं, “हो सकता है लोग एक ऐसी जगह की तस्वीर लेंगे जहाँ उन्हें गर्मी, बाढ़ या किसी समस्या महसूस हो रही है, और तब हम वह डेटा सीधे उन लोगों तक पहुँचाते हैं जिन्हें उसकी ज़रूरत है, ये लोक निर्माण विभाग भी हो सकता है, स्वास्थ्य विभाग हो सकता है, इमरजेंसी रिस्पांडर, या रिज़िलीअन्स प्लानर भी हो सकता है.

इस सिस्टम के उपयोगकर्ता निवासियों से सूचनाओं का अनुरोध भी कर सकते हैं जैसे उन्हें हीटवेव्स या अन्य घटनाएँ कैसी महसूस हो रही हैं, जिससे तस्वीरों से डेटा भी जुड़ जाता है।

ड्रैपकिन बताती हैं कि ISeeChange ही मिआमी शहर और साउथ फ्लोरिडा के अन्य क्षेत्रों का बाढ़ रिपोर्टिंग टूल है, और न्यू ओर्लींस का सीवेज और वाटर बोर्ड है। ऐसे सिस्टम बनाने के लिए पैसे और ताक़त वाले लोगों का गर्मी की समस्या से जुड़ने की जरूरत है।

वह कहती हैं, “लेकिन गर्मी को वास्तव में शहर, काउंटी या संघीय स्तर पर किसी एक विभाग द्वारा अपनी समस्या नहीं माना गया है। यहां तक कि ‘चीफ हीट ऑफिसर्स‘ को भी विभागीय बजट का अधिकार नहीं दिया जाता है, इसलिए हम पाते हैं कि गर्मी के जोखिम पर संगठित संवाद करना टेक्नोलॉजी की कमी से नहीं बल्कि दायित्व और गवर्नेंस की कमी की वजह से काफ़ी चुनौतीपूर्ण है। 

बदलती जलवायु से कदम मिलाना

जैसे-जैसे दिल्ली और अन्य भारतीय शहर निवासियों को जानलेवा गर्मी से बचाने में संघर्ष कर रहे हैं, उनके एक्शन प्लान को सिर्फ प्रतिक्रियात्मक होने से आगे बढ़ना होगा। 

सस्टेनेबल फ्यूचर्स कलेक्टिव से जुड़े पिल्लई कहते हैं “हीट प्लान उस चीज़ का जवाब दे रहे हैं जो पिछले साल हुई थी। वातावरण में पहले से ही पिछले साल की तुलना में अधिक कार्बन है। इन प्रतिक्रियाओं में जलवायु परिवर्तन को बिल्कुल भी शामिल नहीं किया गया है।

वैश्विक स्तर पर, जैसे-जैसे शहर बड़े होते जाएंगे और दुनिया गर्म होती जाएगी, अति-स्थानीय हीट चेतावनियों का मुद्दा और भी महत्वपूर्ण होता जाएगा।बोस्टन यूनिवर्सिटी से जुड़ी फैबियन कहती हैं, “ज्यादातर लोग शहरों में रहते हैं जहाँ अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव के बारे में हमें पहले से पता है, अब हमें स्थानीय हीट आइलैंड प्रभावों के बारे में भी पता चल गया है। शहरों को इस जानकारी का लाभ उठाना होगा और कहना होगा, “ठीक है हम जानते हैं हमारे शहर में अंतर हैं, पर हम अपने संसाधनों को अलग-अलग तरीके से कैसे तैनात करें?”

“सही जानकारी का उपयोग कर नागरिकों को सुरक्षित रखने में अभी कमी है.”

जब तक गर्मी की रणनीतियां पूर्वानुमानित और समावेशी नहीं बन जातीं, तब तक जोखिम यह है कि सबसे कमजोर लोग असुरक्षित रहेंगे, चाहे वह बोस्टन हो, न्यू ऑरलियन्स हो, दिल्ली हो या कहीं और।

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