समुद्रतल से करीब 2,745 मीटर ऊंचाई पर बसे हर्षिल के लोगों ने भी कुछ वर्ष पहले तक हिम तेंदुए के किस्से ही सुने थे। लेकिन अब सर्दियों में हिम तेंदुए उन्हें उनके घरों के ही पास दिखने लगे हैं। उत्तरकाशी के हर्षिल ग्राम सभा में करीब 250 परिवार रहते हैं। दीवाली के बाद सर्दियां शुरू होते ही गांव के अधिकतर परिवार चार महीनों के लिए निचले इलाकों में रहने के लिए चले जाते हैं।
हर्षिल से भी नीचे उतरा हिम तेंदुआ
माधवेंद्र सिंह उन चंद लोगों में से हैं जो इस दौरान भी हर्षिल में ही रहते हैं। द थर्ड पोल हिंदी को वह बताते हैं “साल 2018 में बहुत ज्यादा बर्फ़ गिरी थी। हर्षिल से भी नीचे उत्तरकाशी की ओर झाला गांव (करीब 2200 मीटर ऊंचाई) में नदी किनारे हिम तेंदुए की तस्वीर खींची गई। 2019 की सर्दियों में भी हिम तेंदुए निचले इलाकों में देखे गये। वैसे तो हिम तेंदुए छिप कर रहते हैं। लोगों के सामने नहीं आते। क्या पता जब सारा गांव नीचे उतर जाता हो, वे उस समय यहां भी घूमते रहते होंगे। हम पहले इस पर ध्यान ही नहीं देते थे।”
शिकार नीचे आता है, तो शिकारी भी
हर्षिल की इस घटना ने स्थानीय लोगों को भी चौंका दिया। उत्तरकाशी के डीएफओ (प्रभागीय वन अधिकारी) संदीप कुमार द थर्ड पोल हिंदी को बताते हैं “लोग अब हिम तेंदुओं पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं। इनके प्रति लोगों में दिलचस्पी बढ़ी है। साल 2015 से पहले स्नो लैपर्ड को लेकर लोगों के बीच बहुत जिज्ञासा नहीं थी। सर्दियों में बर्फ़बारी ज्यादा होने पर हिम तेंदुए 3000 मीटर से नीचे आते हैं। क्योंकि भरल (ब्लू शीप), मस्क डियर, हिमालयन थार जैसे उनके शिकार भोजन की तलाश में नीचे चले आते हैं। नवंबर से फरवरी के बीच गंगोत्री नेशनल पार्क से करीब 50 किलोमीटर नीचे उत्तरकाशी की तरफ भरल के झुंड हाईवे के पास देखे गए। अगर भरल वहां हैं तो हिम तेंदुआ भी जरूर होगा”।
हिम तेंदुए के हैबिटेट पर जलवायु परिवर्तन का असर!
हिमालयन माउंटेन घोस्ट कहा जाने वाला हिम तेंदुआ अपने अस्तित्व को बचाने के लिए कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। जलवायु परिवर्तन भी इसमें से एक है। हिम तेंदुए के संरक्षण के लिए उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और सिक्किम में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के साथ मिलकर यूएनडीपी सिक्योर हिमालय प्रोजेक्ट चला रहा है। देहरादून में सिक्योर हिमालय की स्टेट प्रोजेक्ट ऑफिसर अपर्णा पांडे द थर्ड पोल हिंदी को बताती हैं “हर्षिल में हिम तेंदुआ निचले इलाकों में देखा जा रहा है। वहीं, सिक्किम में सामान्य लैपर्ड और स्नो लैपर्ड एक ही कैमरा ट्रैप में दिखाई दिए। जबकि सामान्य तौर पर ये शर्मीले जीव समुद्र तल से 3000 से 6000 मीटर की ऊंचाई पर मिलते हैं। इसका मतलब कि जलवायु परिवर्तन का असर इनके हैबिटेट पर पड़ रहा है। भोजन और पानी की तलाश में ये नीचे की ओर आ रहे हैं”।
वाइल्ड लाइफ़ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया उच्च हिमालयी क्षेत्र में रहने वाले जीवों पर जलवायु परिवर्तन के असर का अध्ययन कर रही है। संस्थान के वैज्ञानिक डॉ एस. सत्यकुमार द थर्ड पोल हिंदी को बताते हैं “गर्मी बढ़ने से हिमालयी क्षेत्र में पेड़-पौधों में फूलों के खिलने, फलों के आने के समय में बदलाव आ रहा है। मई में खिलने वाले फूल अप्रैल में ही आने लग गए हैं। इन वनस्पतियों पर निर्भर जानवर भी अपनी एक्टिविटी बदल रहे हैं। पिछले 20 वर्षों से अधिक के अध्ययन में हमने ये पाया है। हिम तेंदुए का प्रिय भोजन भरल, कस्तूरी मृग, हिमालयी भेड़-बकरी हैं। ये जानवर भोजन की तलाश में नीचे शिफ्ट होंगे तो हिम तेंदुआ भी नीचे शिफ्ट होगा”।
डॉ सत्यकुमार कहते हैं “उच्च हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के साथ मानवीय गतिविधियों का भी असर है। ऐसा कोई कंट्रोल क्षेत्र नहीं है जहां मानवीय गतिविधियां न होती हों। जड़ी-बूटियां या घास लेने लोग जंगलों में जाते हैं। इसलिए इन बदलावों का सही-सही कारण बता पाना आसान नहीं है”।
हिम तेंदुए नीचे, सामान्य तेंदुए उपर
उत्तरकाशी के डीएफओ संदीप कुमार के मुताबिक “सर्दियों में हिम तेंदुओं का 3000 मीटर से नीचे उतरना सामान्य है। यही नहीं हमने सामान्य तेंदुओं (common leopard) को भी 3500 मीटर तक की ऊंचाई पर देखा है। हिम तेंदुए अपने हैबिटेट से थोड़ा नीचे आ रहे हैं। जबकि सामान्य तेंदुए उपर की ओर बढ़ रहे हैं।”
सामान्य तेंदुए का 3000 मीटर से उपर की ऊंचाई पर पहुंचना भी हिम तेंदुए के लिए नई चुनौती ला रहा है। डब्ल्यूडब्लयूएफ इंडिया के डॉ ऋषि कुमार शर्मा द थर्ड पोल हिंदी से कहते हैं “तापमान बढ़ने और ट्री लाइन के उपर खिसकने के चलते ऐसा हो रहा है। इससे हिम तेंदुए और सामान्य तेंदुओं आमने-सामने आएंगे। हिम तेंदुओं के लिए ये हालात ज्यादा मुश्किल होंगे। क्योंकि जलवायु परिवर्तन के चलते उनका हैबिटेट सिकुड़ जाएगा। दोनों ही जानवर तकरीबन एक आकार के हैं। इनके भोजन की आदतें भी एक जैसी हैं। संभव है कि भविष्य में दोनों के बीच कड़ी प्रतियोगिता हो। उच्च हिमालयी क्षेत्रों के गर्म होने से सामान्य तेंदुओं का दायरा बढ़ेगा लेकिन ट्री लाइन और ग्लेशियर के बीच सिमटे हिम तेंदुए का हैबिटेट कम होगा”।
डॉ ऋषि के मुताबिक “ उच्च हिमालयी क्षेत्र में भरल, कस्तूरी मृग, हिमालयन थार, आईबैक्स पहले ही अवैध शिकार और हैबिटेट कम होने की समस्या से जूझ रही हैं। इन जीवों का कम होना भी हिम तेंदुए को प्रभावित करेगा। क्योंकि वे अपने भोजन के लिए इन पर ही निर्भर रहते हैं”। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बहुत ज्यादा अध्ययन नहीं हुआ है। बहुत सटीक डाटा उपलब्ध नहीं है जिससे इनके संरक्षण और नीति बनाने से जुड़े फ़ैसले लिए जा सकें”।
हिमालय और मध्य एशिया तक सिमटे हिम तेंदुए
हिम तेंदुए ऊंचे पहाड़ों के बीच 200 से 2000 वर्ग किलोमीटर तक के क्षेत्र में घूमते हैं और इंसानों के नज़दीक आने से बचते हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने इन्हें रेड लिस्ट में दर्ज किया है। यानी धरती पर बने रहना इनके लिए चुनौती है। डबल्यूडबल्यूएफ की वर्ष 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक मात्र 4,000 हिम तेंदुए जीवित बचे हैं। इनमें से 2,500 ही प्रजनन योग्य वयस्क हैं। हिम तेंदुओं की मौजूदगी 12 देशों- अफ़गानिस्तान, भूटान, चीन, भारत, कज़ाक़स्तान, काइरगिज़ रिपबल्कि, मंगोलिया, नेपाल, पाकिस्तान, रूस, तजाकिस्तान और उज़्बेकिस्तान में है।
भारत में 516 हिम तेंदुए की मौजूदगी का अनुमान है। हिमाचल प्रदेश में 90, जम्मू-कश्मीर में 285, सिक्किम में 13 और उत्तराखंड में 86 हिम तेंदुओं की मौजूदगी का आकलन किया गया है।
भारत में इस समय हिम तेंदुए की गणना का कार्य चल रहा है। अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और लेह में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सहयोग से हिम तेंदुओं की गिनती की जा रही है। अगले ढाई वर्षों में इसके पूरा होने का अनुमान है।
धरती पर बने रहने का संघर्ष
हिम तेंदुए का हैबिटेट सिकुड़ रहा है। बिखरा हुआ है। इसकी गुणवत्ता में गिरावट आई है। इसके उलट इंसानों और पशुओं की आबादी बढ़ रही है। डबल्यूडबल्यूएफ की वर्ष 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक उच्च हिमालयी क्षेत्रों में सड़क समेत अन्य निर्माण कार्य और खनन जैसी मुश्किलें भी इनके हैबिटेट को प्रभावित कर रही हैं। हिम तेंदुए के शिकार (भरल, कस्तूरी मृग, हिमालयन थार) की कमी, हिमालयी क्षेत्रों में रह रहे लोगों के साथ बढ़ता संघर्ष और हिम तेंदुओं का शिकार इस शर्मीले जीव की आबादी को प्रभावित कर रहा है।
तापमान बढ़ेगा, हिम तेंदुए घटेंगे?
बर्फ़ीले माहौल में रहने वाले प्राणी क्या बढ़ते तापमान को झेल सकेंगे? इंटरनेशनल क्राइसोफेयर क्लाइमेट इनिशियेटिव के मुताबिक पूर्व औद्योगिक युग की तुलना में हिमालयी क्षेत्र के तापमान में औसतन 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढत दर्ज की गई है। जबकि इस अंतराल में वैश्विक तापमान में तकरीबन एक डिग्री सेल्सियस तक का इजाफा हुआ है। यानी हिमालयी क्षेत्र पर बढ़ते तापमान का असर अधिक है। पिछले दो दशकों में तिब्बती पठार 3 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हुए हैं (द स्नो लैपर्ड ट्रस्ट) । जलवायु परिवर्तन का असर अन्य पर्वतीय जीवों की तुलना में हिम तेंदुए पर अधिक होगा। डबल्यूडबल्यूएफ की वर्ष 2015 की रिपोर्ट कहती है कि पेड़-पौधों की ऐसी प्रजातियां भी उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उगने लगी हैं जो इनके शिकार माने जाने वाले जानवरों को पसंद नहीं। गर्मी बढ़ने से हवा शुष्क होगी। ग्लेशियर पिघलने से पानी की उपलब्धता का समय बदलेगा। हिम तेंदुए का हैबिटेट इससे बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। आशंका है कि भविष्य में इनका एक तिहाई हैबिटेट रहने योग्य नहीं रह जाएगा।
हिम तेंदुए को अब भी नहीं जानते हम
मुश्किल ये है कि हिम तेंदुओं के बारे में हमारी जानकारी अब भी बेहद सीमित है। हमें इसके जीवन चक्र, प्रजनन और खानपान की आदतों के बारे ज्यादा जानकारी नहीं है। उनकी वास्तविक संख्या का भी अनुमान ही लगाया जा सका है। डबल्यूडबल्यूएफ के मुताबिक हिम तेंदुए के हैबिटेट के 1.7 मिलियन वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के पथरीले पहाड़ों पर कभी कोई अध्ययन नहीं हुआ। जो कि इसके संरक्षण में एक बड़ी बाधा है। मात्र 200,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र शोध और संरक्षण के लिहाज से कवर किए गए हैं। सिर्फ नेपाल ने हिम तेंदुए के 70 प्रतिशत क्षेत्र पर काम किया है। भारत में 30 प्रतिशत क्षेत्र का अध्ययन किया गया है।
हिम तेंदुआ और विंटर टूरिज्म
उत्तराखंड सरकार ने भी इस वर्ष अगस्त में उत्तरकाशी में देश का पहला हिम तेंदुआ संरक्षण केंद्र बनाने की घोषणा की है। इसका मकसद हिम तेंदुए का संरक्षण करने के साथ ही विंटर टूरिज्म को बढ़ावा देना भी है। हिमाचल प्रदेश में हिम तेंदुए को देखने के लिए देशभर से लोग आते हैं। लद्दाख में इसे इको टूरिज्म से जोड़ा गया है।
अगर हम जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण नहीं कर पाए तो हिम तेंदुए का एक तिहाई क्षेत्र खत्म हो सकता है। पिछले 16 वर्षों में हिम तेंदुए की आबादी में 20 प्रतिशत गिरावट का अनुमान है। ऊंचे पहाड़ों के बीच रहने वाले इस जीव को हमें ज्यादा जानने-समझने की जरूरत है।
वर्षा सिंह एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। उत्तराखंड के देहरादून से पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन, सामाजिक और जन-सरोकार से जुड़े मुद्दों पर रिपोर्टिंग करती हैं। वर्षा से @BareeshVarsha पर संपर्क किया जा सकता है