प्रदूषण

भारत और चीन से प्रदूषण समताप मंडल पहुंचा

मानसूनी हवाओं ने भारत और चीन से प्रदूषण को हिमालय की तरफ धकेला और यहां से समताप मंडल में पहुंचकर इसने वैश्विक तापमान को तेज कर दिया।
<p>Smog over northern India [image by NASA]</p>

Smog over northern India [image by NASA]

भारत और चीन से प्रदूषण की सिर्फ मात्रा ही नहीं बढ़ रहा है बल्कि यह वायुमण्डल में ऊंचाई तक पहुंच रहा है दक्षिण एशिया के मानसूनी वैज्ञानिकों को धन्यवाद,  जिन्होंने इसकी खोज की।

वास्तव में यह प्रदूषण दक्षिण एशियाई मानसून के प्रत्येक पैटर्न को प्रभावित कर रहा है। जैविक ईंधनों के जलने से प्रदूषणकारी एयरोसोल्स और काफी हद तक बायोमास सूर्य की विकीरण का अवशोषण करते हैं जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है।

नवंबर में क्लाइमेट डायनेमिक्स पर एक लेख प्रकाशित हुआ, जिसका निष्कर्ष है कि स्थानीय जलवायु वर्षा पर एयरोसोल्स का अधिक प्रभाव होता है। वैज्ञानिकों ने यह खोजा की हिमालय की खड़ी और जटिल आकृति एयरोसोल्स की एक पतली परत के निर्माण में सहायता करती है जिन्हें मानसूनी हवाएं अरब सागर के पार अरब के रेगिस्तान से लाती हैं इन एयरोसोल्स का निर्माण का परिणाम मानसून का जल्दी आना है।

ये खोजें सिर्फ जलवायु परिवर्तन के लिये ही महत्वपूर्ण नहीं हैं बल्कि एशिया के मानसून की भविष्यवाणी के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।

इन वैज्ञानिकों के दल के अध्यक्ष विलियम लाऊ जो कि मेरीलैण्ड विश्वविद्यालय में अर्थ साइंस इंटरडिसीप्लीनरी सेंटर से हैं, 2008 से भारतीय मानसून का अध्ययन कर रहे हैं। इस लेख के अनु्सार इस वर्ष “अरब सागर और उत्तर मध्य भारत, और संपूर्ण भारत के वर्षा क्षेत्रों में धूल के ये एयरोसोल्स भारी मात्रा में छाये रहे जिसका परिणाम उत्तर भारत में हिमालय की तलहटी में खतरनाक बाढ़, सूखे की स्थिति का पाया जाना है”

वैज्ञानिकों ने नासा मॉडल से यह दिखाया कि विचरित करते यह प्रदूषणकारी एयरोसोल्स “मानसूनी परिसंचरण तंत्र को बड़े स्तर पर बिगाड़ने में मुख्य कारक होते हैं। ” जिसका परिणाम समताप मण्डल के उत्तर और दक्षिणी क्षेत्रों में बड़े स्तर पर तापमान में अंतर होना, उत्तर की ओर भारी वर्षा और 4 से 5 दिन पहले मानसून का आना है।

समताप मंडलीय प्रदूषण 

इस दौरान दूसरे वैज्ञानिकों ने यह खोज की थी कि प्रदूषणकारी एयरोसोल्स समताप मंडल में 18 किमी की ऊंचाई तक पहुंचे गये हैं जहां क्षोभमण्डल के ऊपर वायुमण्डलीय परत में पृथ्वी की सर्वाधिक ओजोन गैस होती है। अमेरिका और फ्रांस का संयुक्त उपग्रह कैलिप्सो जिसे वर्ष 2006 में प्रक्षेपित किया गया था, इसने पाया कि वायुमण्डल में एक अनजान परिघटना होती है जो ऊष्मा को फेंकने वाले पंप की तरह कार्य करता है। हवा की परतें एयरोसोल्स के साथ हिमालय के ऊपर एक ऐसे क्षेत्र में पहुंच जाती है जहां यह वायुमण्डल की ऊपरी और निचली परत के बीच एक दीवार बनाती है अर्थात क्षोभमण्डल (0-16 कि.मी) और समताप मण्डल (16-50 कि.मी) के बीच एशिया की इसे एशिया की क्षोभमण्डलीय एयरोसोल्स परत(एटीएएल) कहते हैं।

हिमालय के ऊपर गर्म वायु और प्रदूषण के पहुंचने का विचार सबसे पहले 2006 में लाऊ की अध्यक्षता वाले एक दल ने दिया था। लाऊ ने बताया कि मार्च से मई के बीच प्रारंभिक मानसून के समय, उत्तर भारत से कालिक और पश्चिमी चीन के रेगिस्तान, अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान से धूल हिमालय की तलहटी में सिंधु और गंगा की बेसिन में जमा होती है। तब यह एयरोसोल्स ऊष्मा का अवशोषण करते हैं और चारों तरफ की वायु को गर्म करते हैं। यहां से यह हिमालय के ऊपर 10 से 15 किमी की ऊंचाई तक पहुंच जाते हैं जो वायु को ऊपर उठाने वाले पंप की तरह कार्य करते हैं।

ऊपर उठती गर्म वायु, हिन्द महासागर से आने वाली ठण्डी वायु को सोख लेती है जो समय से पहले मानसून आने का एक कारण है।

नासा लैंगली रिसर्च सेंटर, वर्जीनिया से ऐसा ही एक प्रयास 2009 में जॉन पॉल वार्नर की अध्यक्षता वाले एक दल ने किया। इन्होंने पाया कि 13 से 18 किमी की ऊंचाई पर एयरोसोल्स की एक पतली परत भूमध्य सागर, उत्तरी भारत और पश्चिमी चीन में फैली हुई है।

2015 में वार्नर के दल ने पाया कि इन एयरोसोल्स की मात्रा, जब वर्ष 1996 में पहली बार इन्हे उपग्रह से देखा गया, तब से तीन गुना बढ़ गई है। चीन, स्विस और स्वीडिस वैज्ञानिकों के दल की यह खोज जियोफिजिकल रिसर्च की पत्रिका में प्रकाशित हुई।

तिरुपति में नेशनल एयरोनोटिक्स रिसर्च लेबोर्टरी (एनएआरएल) के सहयोग से नासा ने पिछले 3 साल में भारत और सऊदी अरब में फैले 30 सेटेलाइट गुब्बारों के आंकड़ों को जांचा।

इस अध्ययन में शामिल बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय से भौतिक विज्ञानी अभय सिंह ने बताया की परिणामों से पता चला कि एशिया क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में वायुमण्डल की 15 से 18 किमी की ऊंचाई पर इन एयरोसोल्स में तेजी से वृद्धि हुई है।

“यह इस बात की पुष्टि करता है कि एटीएएल उत्तर भारत और पश्चिमी चीन में भारी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। उदाहरण के तौर पर विद्युत ग्रहों से निकलने वाला सल्फर डाई ऑक्साइड का निचले समताप मण्डल तक पहुंचना और एयरोसोल्स में बदलना है।”

प्रारंभिक निष्कर्षों के वर्णन में वार्नर ने बताया “मानसून के दौरान बड़े तूफान धरातल से वायु को उठाकर वायुमण्डल में ऊपर भेजते हैं और प्रदूषण को उच्य अक्षांश में पहुंचाने का माध्यम बनते हैं।”

उन्होंने आगे इस बात को भी जोड़ा “मेरी समझ में ऊपरी वायुमण्डल में और न सिर्फ तिब्बत के पठार के ऊपर बल्कि उत्तरी भारत एवं पश्चिमी चीन के ऊपर भी प्रदूषित वायु के पहुंचने का मुख्य कारण मानसूनी तूफान है”

वैश्विक प्रभाव

इस दौरान अगस्त 2016 को चीन के तिब्बती पठार में आयोजित अंतरराष्ट्रीय धरातलीय सतह कार्यशाला में लाऊ के हाल ही के अध्ययनों को प्रस्तुत किया गया, जिनके निष्कर्षों का व्यापक प्रभाव दिखा।

“लाऊ ने बताया मानसूनी क्षेत्रों में प्रदूषणकारी धरातलीय एयरोसोल्स का प्रभाव स्थानीय स्वास्थ्य और पर्यावरण तथा धरातलीय पर्यावरण परिवर्तन पर है लेकिन शायद विकिरणकारी प्रतिक्रियाओं से वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर गहरा प्रभाव पड़ा है जो कि ऊपरी क्षोभमण्डल और निचले समताप मण्डल में सबसे प्रभावी और दक्ष हैं।”

ये नए निष्कर्ष बताते हैं कि प्रदूषण का प्रभाव न सिर्फ मानसून पर और मौसम के बीच रहेगा बल्कि यह वैश्विक तापमान को भी बढ़ाएगा।

यह खतरनाक प्रदूषण कभी वैश्विक स्तर पर फैल सकते हैं और उस ओजोन परत को नष्ट कर सकते हैं जो पराबैगनी किरणों से हमारी रक्षा करती है। पराबैगनी किरणों से पैदावार तो कम होती ही है, साथ ही साथ इससे त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद भी हो सकता है और ये हमारी प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करती है। वैज्ञानिक अभी भी उच्च स्तर पर एयरोसोल्स के प्रभाव को जानने का प्रयास कर रहे हैं जिसका प्रभाव बादलों के निर्माण और मौसम के मिजाज पर होगा।

(टी.वी. पद्मा दिल्ली स्थित विज्ञान की पत्रकार के साथ विकास से संबंधित विज्ञान की नीतियों और अनुसंधान के क्षेत्र में विशेष रुचि रखती हैं।)    

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