अप्रैल 2021 में, काठमांडू में, जैसे ही मैं, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव संरक्षण विभाग (DNPWC) के प्रवक्ता हरि भद्र आचार्य के कार्यालय में उनके साथ बैठा, उन्हें एक फोन आ गया। अपने मोबाइल को स्पीकर मोड पर रखने में उनको कोई हिचक नहीं होती है। उनके फोन पर एक पुरुष की आवाज सुनाई दी, “मैं वाइल्ड लाइफ फार्मिंग लाइसेंस के लिए आवेदन करना चाहता हूं और हिमालयी कस्तूरी मृग को सीड एनिमल के रूप में प्राप्त करना चाहता हूं। मुझे विभाग में कब आना चाहिए और क्या-क्या आवश्यकताएं हैं?”
आचार्य मेरी तरफ देखकर मुस्कुराए और धीरे से फोन करने वाले को जवाब दिया। उन्होंने कहा, “हमें अभी तक वन्यजीवों की फार्मिंग के लिए मानदंडों को अंतिम रूप देना बाकी है, इसलिए मुझे यकीन नहीं है कि यह कब होगा।” फोन करने वाले ने जोर देकर कहा, “पिछले साल, हमें बताया गया था कि हम कुछ महीनों में लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकेंगे।” आचार्य ने देरी के लिए कोविड -19 को दोषी ठहराया और फोन पर बातचीत समाप्त कर दी।
2021 में, नेपाल एक नया उद्यम शुरू करने के लिए तैयार है। यह उद्यम है, व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए जंगली जानवरों की फार्मिंग। जब से 1973 में राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम को अपनाया गया था, देश की वन्यजीव नीति, एक ऐसे दर्शन पर आधारित रही है जो स्थलीय जंगली जानवरों को व्यावसायिक शोषण से बचाने का प्रयास करती है। इसमें जंगली जानवरों और उनके अंगों को खरीदने या बेचने पर सख्त प्रतिबंध शामिल है। ये सुरक्षा गैर-पालतू स्तनधारियों, पक्षियों, सरीसृपों, उभयचरों और कीड़ों पर लागू होती है, लेकिन अन्य अकशेरुकी या मछली पर नहीं लागू है। अब, नेपाल जंगली जानवरों के व्यावसायीकरण की ओर शिफ्ट होने के कगार पर है। लेकिन कुछ लोग नेपाल में वन्यजीव संरक्षण के भविष्य को लेकर भयभीत हैं।
वाइल्डलाइफ फार्मिंग के लिए नया कानून
पहली कॉल के पंद्रह मिनट बाद फिर से आचार्य का मोबाइल बज उठा। फोन करने वाले ने पूछा, “हम सांप पालन के लाइसेंस के लिए आवेदन करने की योजना बना रहे हैं तो इसके लिए मानदंड क्या हैं?” आचार्य ने फिर देरी के लिए महामारी को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, “हर दिन, मुझे वन्यजीवों की फार्मिंग के बारे में जानकारी मांगने वाले लोगों के लगभग 10-12 कॉल आते हैं।”
बार-बार इन कॉल्स का एक कारण है। 2017 में, नेपाल की संसद ने नेशनल पाक् र्स एंड वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन एक्ट में एक संशोधन पारित किया, जिसमें एक नए प्रावधान के साथ वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए जंगली जानवरों की फार्मिंग की अनुमति दी गई। नेपाल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है। इस अनुमति के बाद से वन और पर्यावरण मंत्रालय को कानून को लागू करने योग्य बनाने के लिए काम करना पड़ा है। दो साल बाद 2019 में, मंत्रालय ने जंगली जानवरों की एक सूची प्रकाशित की, जिनकी संशोधित अधिनियम के तहत फार्मिंग की जा सकती है। साथ ही, वाणिज्यिक वन्यजीव फार्मों के लाइसेंस के लिए नियमों के बारे में भी सूचना छापी गई। सूची में 10 स्तनधारियों के नाम हैं, जिनमें कई लुप्तप्राय हिरण प्रजातियां शामिल हैं, 12 पक्षी हैं और अजगर को छोड़कर सभी सरीसृप हैं।
एक महत्वपूर्ण तत्व, जिसे अभी अंतिम रूप दिया जाना है, वह एक दस्तावेज है जो ‘सीड’ जानवरों को प्राप्त करने के लिए मानदंड और प्रक्रियाओं को बताता है। इन दस्तावेजों से यह तय होगा कि किस तरह से जानवरों को इकट्ठा किया जाएगा, उनका कैसे ट्रांसपोर्टेशन और उनको कैसे बेचा जाएगा। आचार्य ने कहा, “अगर कोविड -19 नहीं होता तो हम इसे पहले ही अंतिम रूप दे देते।” एक बार यह हो जाने के बाद, मंत्रालय द्वारा सूचीबद्ध जंगली जानवरों की फार्मिंग में रुचि रखने वाला कोई भी व्यक्ति लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकता है और एक बार स्वीकृत होने के बाद, व्यवसाय शुरू करने के लिए सीड एनिमल्स को प्राप्त कर सकेगा।”
बंदरों से लेकर कस्तूरी मृग तक
वाइल्डलाइफ फार्मिंग में नेपाल की अब तक की एक कहानी रही है। 2003 में, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने संरक्षण और अनुसंधान उद्देश्यों के लिए जंगली जानवरों के बंदी प्रजनन को सक्षम करने के लिए एक नीति पारित की। अमेरिका में जैव चिकित्सा अनुसंधान में इस्तेमाल की जाने वाली बंदर की एक प्रजाति, रीसस मकाक के लिए एक प्रजनन केंद्र, 2005 में काठमांडू में स्थापित की गई थी, जिसमें 200 मकाक सीड एनिमल्स के रूप में थे। अमेरिकी प्रयोगशालाएं उस समय पर्याप्त संख्या में बंदरों के स्रोत के लिए संघर्ष कर रही थीं, क्योंकि भारत – पहले मुख्य आपूर्तिकर्ता – ने 1978 में उनके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था।
इस उद्यम को समाप्त करने के लिए नेपाली सरकार पर दबाव बनाने के लिए जल्द ही विरोध समूहों का गठन किया गया। नेपाल में वन्यजीव संरक्षण पर काम करने वाले एक गैर-सरकारी संगठन, वाइल्डलाइफ वॉच ग्रुप के अध्यक्ष मंगल मान शाक्य ने कहा “यह मुख्य रूप से अमेरिका को बंदरों को बेचने के उद्देश्य की पूर्ति करना था। उस नीति का संरक्षण या अनुसंधान से कोई लेना-देना नहीं था।
2009 में, प्राकृतिक संसाधनों पर संसदीय समिति ने सरकार को जंगली जानवरों की बिक्री को सक्षम करने वाले राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में प्रावधानों की कमी के कारण बंदरों के निर्यात पर तुरंत प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया। वन और पर्यावरण मंत्रालय ने प्रजनन सुविधाओं के साथ एक समझौता करने का फैसला किया और बंदी बंदरों को मुक्त कर दिया। दुर्भाग्य से, अधिकांश की मृत्यु हो गई क्योंकि वे जंगल में जीवन के अनुकूल नहीं हो सके।
नेपाल में वन्यजीवों की फार्मिंग तब लगभग एक दशक तक ठप रही। लेकिन 2017 में जंगली जानवरों की कॉमर्शियल फार्मिंग की अनुमति देने के लिए राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में संशोधन पारित होने के साथ इसकी एक शानदार वापसी हुई। एक बार फिर, पशु अधिकार और संरक्षण समूहों ने वन्यजीवों की फार्मिंग के खिलाफ लड़ने की कसम खाई है।
नेपाल में Jane Goodall Institute की सृष्टि सिंह श्रेष्ठ कहती हैं, “हम अदालत में इस कानून के खिलाफ लड़ने की तैयारी कर रहे हैं और कागजी कार्रवाई करने में व्यस्त हैं। नेपाल गलत दिशा में जा रहा है और हम देश में किसी भी प्रकार की वाइल्डलाइफ फार्मिंग पर प्रतिबंध लगाने के लिए लड़ते रहेंगे।” उन्होंने एक याचिका पोस्ट की है जिस पर लगभग 10,000 हस्ताक्षर प्राप्त हुए हैं। वह कहती हैं, “सबसे पहले, व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए किसी भी जंगली जानवर की फार्मिंग करना अनैतिक है। दूसरे, यह कानून जानवरों को चिड़ियाघरों और अन्य प्रदर्शनियों जैसे मनोरंजन के लिए भी इस्तेमाल करने की अनुमति देता है। यह विक्षिप्तता है।”
परामर्श की कमी और त्रुटियां खतरे को बढ़ाती हैं
जंगली जानवरों की नई सूची में हिमालयी कस्तूरी मृग शामिल हैं, जो इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध एक प्रजाति है। आईयूसीएन के आकलन ने प्रजातियों के शरीर के अंगों के व्यापार के उत्पन्न खतरे को उजागर किया। कस्तूरी मृग के ‘पॉड्स’ – नर हिरण में पाई जाने वाली गंध ग्रंथियां – का चीन की पारंपरिक चिकित्सा और इत्र में उपयोग के लिए कारोबार किया जाता है। नेपाल में अधिकांश मीडिया ने इस प्रजाति पर ध्यान केंद्रित किया है और कस्तूरी मृग की फार्मिंग से बहुत सारा पैसा बनाने के अवसर के रूप में चित्रित किया है।
इसके अलावा सूची में हॉग डियर हैं, जिन्हें आईयूसीएन द्वारा लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। स्वैम्प डियर या बरसिंघा को भी विलुप्त होने की श्रेणी में हैं। एक कंजर्वेशन रिसर्च ऑर्गनाइजेशन फ्रेंड्स ऑफ नेचर नेपाल के कार्यकारी निदेशक राजू आचार्य कहते हैं, “इन प्रजातियों को कैसे चुना गया, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है। यह सरकार का तदर्थ निर्णय है। इन प्रजातियों को चुनने से पहले हितधारकों के साथ कोई परामर्श नहीं किया गया था, कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया गया था। “
सूची के लिए पक्षियों का चयन और भी सवाल खड़े करता है। नेपाली- भाषा सूची में 12 पक्षियों के नामों में से दो, एक ही प्रजाति के हैं। फिर भी लाइसेंस और सीड एनिमल्स के लिए अलग-अलग शुल्क देना है। एक गैर-सरकारी संगठन बर्ड कंजर्वेशन नेपाल के बोर्ड मेंबर विमल थापा कहते हैं, “बान कुखुरा और लुइनचे, रेड जंगलफाउल के स्थानीय नाम हैं लेकिन नियमों के दस्तावेज ने उन्हें दो प्रजातियों के रूप में सूचीबद्ध किया है। इतना बड़ा फैसला लेते समय इस स्तर की लापरवाही चिंताजनक है। यह हास्यास्पद है। ”
वन्यजीव विभाग के हरि भद्र आचार्य ने सहमति व्यक्त की कि पक्षी विज्ञानियों के साथ कोई परामर्श नहीं किया गया था और जंगल के पक्षियों को दो प्रजातियों के रूप में सूचीबद्ध करना एक गलती थी। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को इंगित करने के लिए धन्यवाद। हम इसके बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे और आवश्यक परिवर्तन करेंगे।
सूची में कहीं भी सामान्य शब्दों का उपयोग संभावित रूप से अधिक समस्याएं पैदा करता है। थापा कहते हैं, “[सूची] में कबूतर या तीतर या फ्रेंकोलिन का उल्लेख है लेकिन उस परिवार के भीतर कई प्रजातियां हैं और उनमें से कुछ की प्रजाति को खतरा भी है। मुझे नहीं पता कि वे इस नीति को कैसे क्रियान्वित करने जा रहे हैं।” इसी तरह, ‘फ्रॉग्स’, ‘टॉड्स’, ‘टॉर्टस’ और ‘पायथन्स को छोड़कर सभी सरीसृप’ की मोटी सूची का मतलब है कि इन श्रेणियों के भीतर खतरे वाली प्रजातियों की भी कुछ दिशानिर्देशों के साथ फार्मिंग की जाने की अनुमति है और इनको सीड एनिमल्स के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। इसमें नेपाल पा फ्रॉग जैसी प्रजातियां शामिल हैं, जो नेपाल और आसपास के उत्तरी भारत के लिए स्थानिक हैं। ये दुनिया में और कहीं नहीं पाया जाता है।
नेपाल की त्रिभुवन यूनिवर्सिटी की नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के एक रिटायर्ड प्रोफेसर कर्ण बहादुर थापा कहते हैं, “ऐसा प्रतीत होता है कि एक और त्रुटि में, ‘कछुआ’ शीर्षक ‘उभयचर’ के तहत सूचीबद्ध है। “कछुआ एक उभयचर नहीं एक सरीसृप है। यह संपूर्ण रूप से संरक्षण समुदाय के लिए शर्म की बात है कि देश का आधिकारिक कानूनी दस्तावेज यह पहचानने में विफल रहता है कि फार्मिंग के लिए सूचीबद्ध प्रजातियां अन्य विवरणों में कहां हैं।” उनका कहना है कि इस तरह की गलतियों से बचने के लिए विशेषज्ञों को बस कुछ फोन कॉल करने की जरूरत होती है लेकिन इतना भी नहीं किया गया। किसी से कोई परामर्श नहीं लिया गया।
नीति को व्यवहार में लाना: निराश सरकारी अधिकारी और विभाजित संरक्षणवादी
जबकि नेपाल अपने वन्यजीव फार्मिंग इंडस्ट्री को शुरू करने से बस एक कदम दूर है, सरकार के भीतर कुछ अधिकारी संतुष्ट नहीं हैं। वन्यजीव विभाग के हरि भद्र आचार्य ने कहा, “व्यक्तिगत रूप से, मैं वन्यजीवों की फार्मिंग के खिलाफ हूं और जो हो रहा है उससे खुश नहीं हूं। मैंने कुछ अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से बात की, जिनकी राय समान थी।”
मैंने आचार्य से पूछा कि अगर वह इससे खुश नहीं हैं तो वह नीति को लागू करने के लिए आगे क्यों बढ़ रहे हैं। उनका उत्तर सरल था: “नीति-निर्माता इसे आगे बढ़ाने के इच्छुक हैं। हम इसे रोक नहीं सकते क्योंकि यह हमारी क्षमता से परे है।” वन्यजीवों की फार्मिंग के लिए समर्थन केवल राजनेताओं तक ही सीमित नहीं है। कुछ संरक्षणवादियों ने यह भी तर्क दिया है कि वन्यजीवों की फार्मिंग एक ऐसी चीज है जिसमें नेपाल को आगे बढ़ना चाहिए, लेकिन सावधानी बरतनी चाहिए।
फ्रेंड्स ऑफ नेचर नेपाल के राजू आचार्य कहते हैं कि मैं वन्यजीवों की फार्मिंग को एक समस्या के रूप में नहीं देखता। अगर इसे ठीक से और प्रभावी ढंग से मॉनिटर किया जाए तो यह संरक्षण और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए फायदेमंद होगा।
मेरे यह पूछने पर कि ऐसा कैसे होगा, उन्होंने कहा, “व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए प्रचुर मात्रा में प्रजातियों की विनियमित फार्मिंग समुदायों को आर्थिक लाभ प्रदान करेगी और जंगली आबादी पर दबाव कम करेगी। यह अंततः अवैध शिकार को कम करने में मदद करेगी।”
संरक्षणवादियों के पक्ष में तर्क है कि जंगली जानवरों के संरक्षण को बनाए रखने के लिए स्थानीय समुदायों को आर्थिक लाभ आवश्यक हैं। उनका सुझाव है कि वन्यजीव फार्मिंग आय का एक स्रोत प्रदान कर सकती है जिसका अर्थ है कि समुदायों को जंगली जानवरों के शिकार पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ नेपाल के प्रमुख घनश्याम गुरुंग कहते हैं कि यह सामान्य रूप से वन्यजीवों की फार्मिंग के पक्ष या विपक्ष का मुद्दा नहीं है। हमें बुद्धिमान होने और इस बारे में सोचने की जरूरत है कि जंगली संरक्षण के मूल्यों को कम किए बिना आर्थिक लाभ कैसे उठाया जा सकता है। यह बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि हम फार्मिंग के लिए किस प्रजाति का चयन करते हैं।
हालांकि, वन्यजीव विभाग में हरि भद्र आचार्य को चिंता है कि व्यवहार में, कॉमर्शियल फार्मिंग से जंगली जानवरों की अधिक अवैध हत्या और व्यापार हो सकता है। अगर कोई फार्मिंग करने वाला व्यक्ति जंगली जानवरों को मारता है या शिकारियों से खरीदता है और उसके मांस या शरीर के अंगों को बेचता है, तो हम उस उत्पाद के स्रोत की पहचान कैसे करते हैं, इस तरह के मुद्दों से निपटना तकनीकी रूप से कठिन है। अन्य देशों जैसे चीन और वियतनाम में जहां वन्यजीव होती है, वहां ऐसे मुद्दे बार-बार सामने आए हैं।
आचार्य इस अनुमान पर सवाल उठाते हैं कि नेपाल में वन्यजीवों की फार्मिंग की प्रभावी निगरानी की जा सकती है। उन्होंने कहा, “हमारे पास पहले से ही कर्मचारियों की कमी है इसलिए मौजूदा मानव संसाधनों के साथ निगरानी करना लगभग असंभव है।”
हालांकि, अन्य इसे वन्यजीव फार्मिंग से बचने के लिए पर्याप्त कारण के रूप में नहीं देखते हैं। फ्रेंड्स ऑफ नेचर नेपाल के राजू आचार्य कहते हैं, “अगर हमारे पास नियमों और विनियमों को प्रभावी ढंग से लागू करने की क्षमता की कमी है तो हमें इसे बढ़ाने की जरूरत है। मुझे नहीं लगता कि हर कानूनी रूप से संभव गतिविधि को संचालित करने पर रोक लगाना एक अच्छा विचार है।”
वन्य जीव पालन की तैयारियों में तेजी आने के साथ ही अन्य सरकारी विभाग भी जमीनी कार्य कर रहे हैं। वन विभाग द्वारा 2019 में संशोधित वन अधिनियम, वन्यजीव फार्मिंग को “वन उद्यम” के एक प्रकार के रूप में सूचीबद्ध करता है जिसे बढ़ावा दिया जा सकता है। अधिनियम के मुताबिक “कोई भी व्यक्ति, निकाय, समूह या समुदाय, निर्धारित मानकों के अधीन, कृषि-वानिकी, जड़ी-बूटियों की खेती और वन्यजीव फार्मिंग भी कर सकता है।”
हरि भद्र आचार्य कहते हैं, “कल्पना कीजिए कि अगर सभी सामुदायिक वन या निजी वन मालिक आय के संभावित स्रोत के रूप में वन्यजीव फार्मिंग शुरू करते हैं, तो आप निगरानी के लिए कहां जाएंगे?” देश भर में निजी वनों के महत्वपूर्ण क्षेत्रों के साथ, नेपाल में 20,000 से अधिक सामुदायिक वन उपयोगकर्ता समूह हैं।
इसका जवाब एडवोकेट्स के पास है, हालांकि पूर्ण समाधान नहीं है। एक एनजीओ, नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी ऑफ नेपाल के संस्थापक मुकेश चालिस कहते हैं, “हम सीड्स एनिमल्स की उपलब्धता के आधार पर एक कोटा प्रणाली लगा सकते हैं, हमें इसे आवेदन करने वाले हर किसी को इसे देने की ज़रूरत नहीं है।” .
सीड एनिमल्स की सोर्सिंग पर केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों को अभी नियम बनाने हैं। प्रांतीय सरकारें पहले से ही खुद को व्यवसाय के लिए तैयार करने के लिए कमर कस रही हैं।
गंडकी प्रांत में वन, पर्यावरण और मृदा संरक्षण मंत्रालय के सचिव महेश्वर ढकाल ने कहा, “हमने मस्तांग जिले में हिमालयी कस्तूरी मृग फार्म स्थापित करने की एक परियोजना के लिए 150,000 अमेरिकी डॉलर का बजट आवंटित किया है। क्षेत्र-आधारित अध्ययन किया गया है और हम वर्तमान में इसे अंतिम रूप दे रहे हैं। ”
वन्यजीवों की खेती संतृप्त होगी या बढ़ेगी मांग?
वन्यजीव फार्मिंग के पैरोकारों द्वारा दिया गया एक प्रमुख तर्क यह है कि यदि फार्मिंग की अनुमति दी जाती है, तो यह अंततः प्रजातियों की जंगली आबादी पर शिकार के दबाव को कम कर देगा। फ्रेंड्स ऑफ नेचर नेपाल के राजू आचार्य ने कहा “हमें उन जानवरों की फार्मिंग की अनुमति देनी चाहिए जो प्रचुर मात्रा में हों। उदाहरण के लिए, कलिज तीतर, नेपाल में सबसे अधिक अवैध रूप से शिकार की जाने वाली प्रजातियों में से एक है और अपेक्षाकृत प्रचुर मात्रा में है। अगर फार्मिंग होती है तो इससे जंगली आबादी पर कम दबाव पड़ेगा क्योंकि मांस की मांग फार्मिंग से पूरी की जाएगी। ”
लेकिन क्या वन्यजीव फार्मिंग वास्तव में वन्यजीव उत्पादों की मांग को बढ़ाती है या संतृप्त करती है, यह विश्व स्तर पर एक विवादित मुद्दा है।
यूके स्थित एक गैर-सरकारी संगठन एनवायरन्मेंटल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी में टाइगर्स एंड वाइल्डलाइफ क्राइम कैंपेन की अगुवाई करने वाले Debbie Banks कहते हैं कि यहां तक कि फार्मिंग वाले टाइगर प्रोडक्ट्स की आपूर्ति को लेकर कुछ उपभोक्ताओं के बीच धारणा है कि जंगली बेहतर हैं।
पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में पारंपरिक चिकित्सा में उपयोग किए जाने वाले भालू के बाइल की खपत पर वियतनाम के 2018 के एक अध्ययन में पाया गया कि उपभोक्ताओं को फार्मिंग वाले भालुओं के बाइल का सेवन करने में कम दिलचस्पी थी। वे जंगली भालुओं के बाइल के लिए अधिक भुगतान करने को तैयार थे। अध्ययन का निष्कर्ष है कि वियतनाम में भालू बाइल फार्मिंग का मामला वन्यजीव फार्मिंग का एक उदाहरण प्रदान करता है जो एक बार व्यापक रूप से वितरित और अपेक्षाकृत प्रचुर प्रजातियों पर दबाव कम करने में विफल रहा है।
कंजर्वेशन रिसर्चर Laura Tensen द्वारा वन्यजीव फार्मिंग पर 2016 के एक अध्ययन में तर्क दिया गया कि वन्यजीव फार्मिंग केवल तभी जंगली आबादी को लाभान्वित कर सकती है, यदि पांच शर्तें पूरी होती हैं, उपभोक्ता जंगली उत्पादों बनाम फार्मिंग विकल्पों के लिए कोई प्राथमिकता नहीं दिखाते हैं, फार्मिंग करने वालों को जंगल से जानवरों को फिर से जमा करने की जरूरत नहीं होती है, फ़ार्मिंग करने वाले अवैध वन्यजीव उत्पादों को वैध बनाकर बाजार में नहीं बेचते हैं। Laura Tensen का निष्कर्ष है, “वन्यजीव व्यापार में आने वाली अधिकांश प्रजातियों के लिए, इन मानदंडों को वास्तविकता में पूरा होने की संभावना नहीं है और वाणिज्यिक प्रजनन में संरक्षण के लिए वांछित के विपरीत प्रभाव होने की आशंका है।”
एनजीओ ग्रीनहुड नेपाल के सह-संस्थापक कुमार पौडेल ने कहा, “पहले से ही शिकारियों के लिए एक हॉटस्पॉट और वन्यजीवों के शरीर के अंगों की अवैध तस्करी के लिए एक स्थापित व्यापार मार्ग, नेपाल को बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। अगर आप कानून के हिसाब से सही रहना चाहेंगे तो आपको कड़े नियमों का पालन करना होगा। इसलिए फार्मिंग के मालिक व्यवसाय के एक हिस्से को लीगल दिखाकर अवैध व्यापार का विकल्प (भी) चुन सकते हैं। यह उनके लिए आसान होगा।”
कई संरक्षणवादियों ने नई वाइल्डलाइफ फार्मिंग पॉलिसी की नींव पर सवाल उठाया है, जिसमें यह दावा किया गया है कि ग्रामीण समुदाय के लोगों को इससे आर्थिक लाभ प्राप्त होंगे। पॉडेल ने कहा, “मौजूदा नीति से गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों के लाभान्वित होने की बहुत कम संभावना है। यह उन लोगों के लिए डिज़ाइन किया गया है जिनके पास निवेश करने और इसे एक व्यावसायिक उद्यम के रूप में लेने के लिए पर्याप्त [पैसा] है। ”
सरकारी दस्तावेजों में दी गई लागत कई नेपालियों के लिए वहन करने योग्य नहीं होगी। सरकार द्वारा 2019 में प्रकाशित नियमों के अनुसार, हिमालयी कस्तूरी की फार्मिंग का लाइसेंस प्राप्त करने के लिए लगभग 900 अमेरिकी डॉलर का खर्च आएगा। साथ ही सरकार से खरीदे गए प्रत्येक सीड एनिमल के लिए 700 अमेरिकी डॉलर से अधिक का खर्च आएगा। इसके अलावा फार्मिंग करने वाले को सीड एनिमल्स को लाने के लिए सरकारी अधिकारियों के पास जाने, सीड एनिमल्स को लाने के परिवहन इत्यादि का खर्च भी करना होगा। विश्व बैंक के अनुसार, 2019 में नेपाल की वार्षिक प्रति व्यक्ति आय लगभग 1,070 अमेरिकी डॉलर थी।
वन्यजीव विभाग के आचार्य भी समझ नहीं पा रहे हैं कि इससे आखिर समुदायों को कैसे लाभ होगा। उन्होंने कहा कि हमारी योजना कुछ चुनिंदा कंपनियों को फार्मिंग के लाइसेंस मुहैया कराने की है।
मैंने कहा कि क्या यह नीति गरीब और हाशिए के समुदायों के जीवन और आजीविका के उत्थान की थोड़ी सी भी संभावना प्रदान करती है, इस पर आचार्य ने कहा, “मैं कुछ हद तक सहमत हूं, लेकिन यह समुदायों के लिए रोजगार पैदा कर सकता है और लंबे समय में जैसे-जैसे व्यवसाय फलेगा-फूलेगा, वे उन फार्म्स से सीड एनिमल्स को प्राप्त करने और अपना [खुद का] व्यवसाय शुरू करने में सक्षम होंगे।”
पारंपरिक चीनी दवा कंपनियों के लिए एक अच्छा व्यावसायिक अवसर
चूंकि 2017 में संसद द्वारा वन्यजीव खेती कानून पारित किया गया था, पारंपरिक चीनी दवा कंपनियां नेपाल में स्थापित संरक्षण संगठनों के साथ साझेदारी करने की कोशिश कर रही हैं।
आचार्य के अनुसार, कम से कम एक चीनी कंपनी ने नेपाल के उद्योग विभाग में एक आवेदन दायर कर नेपाल में एक पारंपरिक चीनी दवा कारखाना स्थापित करने की मंजूरी मांगी है। वह कहते हैं, “उद्योग विभाग ने प्रस्ताव को समीक्षा के लिए हमारे पास भेज दिया है क्योंकि इसने ऐसी दवा के उत्पादन के लिए कस्तूरी मृग की गंध और सांप के जहर के उपयोग का उल्लेख किया है। इसकी समीक्षा की जा रही है।”
दो प्रमुख पारंपरिक चीनी दवा कंपनियां – Beijing Tong Ren Tang and Beijing Sheng Shi Xingwen Company Limited – नेपाल में वाइल्डलाइफ फार्मिंग में शामिल होने की कोशिश कर रही हैं। www.thethirdpole.net ने Beijing Tong Ren Tang and Beijing Sheng Shi Xingwen Company Limited की ओर से नेपाल के प्रधानमंत्री को लिखे गए उस पत्र को देखा है कि जिसमें दोनों कंपनियों ने वाइल्डलाइफ फार्मिंग पर अपनी रुचि प्रकट की है।
नेपाल सरकार द्वारा स्थापित एक अर्ध-स्वायत्त संगठन, नेशनल ट्रस्ट फॉर नेचर कंजर्वेशन (NTNC) ने www.thethirdpole.net को बताया कि Beijing Sheng Shi Xingwen Company Limited ने हिमालयी कस्तूरी मृग फार्मिंग सेंटर में निवेश के लिए संपर्क किया था जो कि पश्चिमी नेपाल के मनांग जिले में निर्माणाधीन है। एनटीएनसी के कार्यकारी अधिकारी सिद्धार्थ बजराचार्य ने कहा, “चूंकि यह एक निजी कंपनी है, इसलिए हमने उन्हें नेपाल में चीनी दूतावास से एक पत्र प्राप्त करने के लिए कहा है, जिसमें कहा गया हो कि यह चीन में एक मान्यता प्राप्त एजेंसी है, लेकिन वे दस्तावेज के साथ नहीं आए हैं।”
The Third Pole ने इस लेख के प्रकाशन से पहले टिप्पणी के लिए दोनों कंपनियों से संपर्क किया, जिनसे कोई प्रतिक्रिया मिलने पर अपडेट किया जाएगा।
शरीर के अंगों के लिए कस्तूरी मृग की फार्मिंग चीन में अच्छे से होती है, जो 1958 में शुरू हुई थी। 2017 में प्रकाशित एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार, चीन में 20,000 से अधिक कस्तूरी मृग कैद में हैं। कस्तूरी मृग का बहुत तेजी से शिकार हो रहा है। इनके निवास स्थान नष्ट हो रहे हैं। इसके कारण इनकी जंगली आबादी में गिरावट जारी है। कस्तूरी की मस्क पॉड्स अक्सर नेपाल में चीन के रास्ते में जब्त की जाती है। ग्रीनहुड के कुमार पौडेल कहते हैं, “अगर फार्मिंग और व्यापार को खोल दिया जाता है तो कोई कैसे पहचानेगा कि जिस कस्तूरी गंध का कारोबार किया जा रहा है वह कानूनी रूप से हासिल की गई है या इसे जंगली में कस्तूरी मृग से अवैध रूप से निकाला गया है? यह अवैध व्यापार को आसान बना देगा। ”
नेपाल में वन्यजीवों की फार्मिंग में चीनी कंपनियों और सरकारी एजेंसियों की दिलचस्पी, विशेष रूप से कस्तूरी मृग के लिए, कोई नई बात नहीं है। 2009 में, नेपाल में चीनी दूतावास और नेशनल ट्रस्ट फॉर नेचर कंजर्वेशन के साथ एक बैठक हुई थी, जिसके दौरान मनांग जिले में कस्तूरी मृग फार्म स्थापित करने के लिए चीन से संभावित समर्थन पर चर्चा हुई। यह अमल में नहीं आया क्योंकि उस वर्ष वन्यजीव कृषि नीति पर प्रगति का काम रुक गया था।
लेकिन निजी पारंपरिक चीनी दवा कंपनियों ने 2017 में कानून संशोधन के बाद नेपाल में एजेंसियों से संपर्क करना शुरू कर दिया। बजराचार्य कहते हैं, “जैसा कि यह हमारी पायलट परियोजना है, हम प्रौद्योगिकी पर चीन का सहयोग प्राप्त करना चाहते हैं। अपने लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए उनकी मदद चाहते हैं। अगर वे सहमत होते हैं तो हम कस्तूरी मृग से बनने वाली इत्र को तैयार करने और चीन को निर्यात करने के लिए बड़े पैमाने पर कस्तूरी मृग की फार्मिंग पर पार्टनर बन सकते हैं। ”
चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेस में अध्ययन कर चुके हिमालयी कस्तूरी मृग के विशेषज्ञ पारस बिक्रम सिंह कहते हैं कि सभी लोग आश्वस्त नहीं हैं कि विदेशी निवेश आएगा। चीन की कंपनियां यहां निवेश करने के लिए कूदने के बजाय नेपाल की स्थिति का आकलन कर रही हैं। मुझे नहीं लगता कि चीन वाइल्डलाइफ फार्मिंग में अभी तुरंत निवेश करने के लिए इच्छुक है लेकिन वह फार्मिंग कंपनियां स्थापित करने में मदद करना चाहता है। फिलहाल, चीन वाइल्डलाइफ प्रोडक्ट्स खरीदने का भी इच्छुक है।
सिंह ने कहा, “हमें नीति पर स्पष्टता की आवश्यकता है कि क्या हम वाइल्डलाइफ फार्मिंग पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश चाहते हैं या नहीं। अगर हम निवेश चाहते हैं, तो हमें अपनी निर्णय लेने की प्रक्रिया को तेज करना होगा और निवेश करने के इच्छुक लोगों के साथ स्पष्ट रूप से बातचीत करनी होगी। जब तक हम ऐसा नहीं करते, मुझे नहीं लगता कि कोई यहां निवेश करने आएगा।”
2019 में, नेपाल और चीन के बीच कई क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिनमें से एक पारंपरिक चीनी चिकित्सा पर सहयोग स्थापित करना भी शामिल था। कुमार पौडेल ने कहा, “आम तौर पर पारंपरिक चीनी दवा वन्यजीवों के शरीर के अंगों और उत्पादों की कई किस्मों का उपयोग करती है, इसलिए अंततः यह वन्यजीव फार्मिंग उस सहयोग को पोषित करेगी जिसकी कल्पना दो देशों के बीच की गई है।”
समय पर सवाल
जैसा कि नेपाल 2020 की शुरुआत में वन्यजीवों की फार्मिंग के लिए परमिट के मानदंडों को अंतिम रूप दे रहा था, तभी कोविड -19 महामारी ने तबाही मचाना कर दिया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञों ने दक्षिणी चीन में वन्यजीवों की फार्मिंग को वायरस के सबसे संभावित स्रोत के रूप में इंगित किया है। वन्यजीवों की फार्मिंग और व्यापार से रोग होने के खतरे की चिंताओं के कारण चीन सहित दुनिया भर से वन्यजीवों की खपत पर प्रतिबंध लगाने की बात उठने लगी है।
फरवरी 2020 में, चीनी सरकार ने भोजन की खपत के लिए स्थलीय जंगली जानवरों की फार्मिंग और व्यापार पर अचानक प्रतिबंध लगा दिया। पारंपरिक चिकित्सा, रोएंदार खाल से बनने वाले वस्त्रों और अन्य उपयोगों के लिए फार्मिंग को छूट दी गई। जलीय प्रजातियों में व्यापार – मछली और कछुओं से लेकर विशाल सैलमैंडर्स तक – कानूनी बना रहा। फिर भी, इसका व्यापक प्रभाव पड़ा। इसके बाद सरकार ने 12,000 से अधिक वन्यजीव-संबंधी व्यवसायों को बंद कर दिया।
सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम के कारण भोजन के लिए जंगली जानवरों की फार्मिंग को लेकर चीन ने अपने रुख से पलटी मार ली। इस वजह से भी नेपाल की वाइल्डलाइफ फार्मिंग की महत्वाकांक्षी योजना पर कुछ ब्रेक लगा है।
गंडकी प्रांत के वन, पर्यावरण और मृदा संरक्षण मंत्रालय के सचिव महेश्वर ढकाल ने कहा, “हमारा मुख्य ध्यान मांस आधारित वन्यजीव उत्पादों पर है, अन्य उत्पादों में नहीं, यहां एक ऐसा बाजार है जो घरेलू स्तर पर मांस आधारित उत्पादों का उपभोग कर सकता है। इसे वन्यजीव उत्पादों को बेचने की तुलना में खाद्य सुरक्षा से अधिक जोड़ा जाना चाहिए।
कोविड महामारी से वजह से देरी हुई है। लोगों की राय में बदलाव का मतलब ये नहीं है कि सरकार अपने फैसले को वापस ले लेगी। हरि भद्र आचार्य कहते हैं कि चूंकि दुनिया इसके खिलाफ है, इसलिए इस व्यवसाय में कूदने का यह सही समय नहीं है। हालांकि यह अभी या बाद में बंद हो जाना है। बस सवाल यह है कि कब होगा।
Illustrations by Kabini Amin