मॉनसून के शुरू होने पर बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में पहले ही बाढ़ आ चुकी है और यह आशंका है कि जलस्तर में तेज़ी से हो रही बढ़ोत्तरी से ब्रह्मपुत्र और गंगा नदियाँ जल्द ही अपनी सीमाएं तोड़ कर बहने लगेंगी। लेकिन बाढ़ की भविष्यवाणी और निगरानी प्रणाली में सुधार होने से बांग्लादेश के लोग अब संभावित आपदाओं के बारे में ज़्यादा जागरूक हैं।
बांग्लादेश फ्लड फोरकास्टिंग एंड वार्निंग सेंटर (एफएफडब्लूसी) के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर सज़्ज़ाद होसैन ने कहा, “हमने 30 जून से पहले ही सूरमा-कुशियारा घाटी में अभी चल रही बाढ़ की भविष्यवाणी कर दी थी और अब हम यह भविष्यवाणी कर रहे हैं कि अगले तीन दिनों में ब्रह्मपुत्र और गंगा का जल स्तर कई जगहों पर खतरे की स्तर से ऊपर जा सकता है।”
भारत और चीन के आंकड़े
केंद्र द्वारा दिए गए अनुमान भारत से आने वाली सीमापार नदियों जैसे कि ब्रह्मपुत्र, गंगा, तीस्ता, फ़ेनी और बराक की ऊपरी धारा में जल प्रवाह के आंकड़ों पर आधारित हैं। और जानकारी बांग्लादेश मौसम विभाग द्वारा प्रदान की जाती है। अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि जल सम्बन्धी आंकड़े भारत और चीन के मौसम कार्यालयों द्वारा प्रदान किये जाते हैं जिससे अधिकारियों को तैयार होने के लिए और ज़रूरतमंद लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए अधिक समय मिल जाता है।
देशों के बीच द्विपक्षीय समझौतों के तहत भारत और चीन मॉनसून के दौरान प्रतिदिन दो बार जानकारी प्रदान करते हैं ताकि बांग्लादेश अपनी बाढ़ की भविष्यवाणी प्रणाली के द्वारा ताज़ा जानकारी दे सके। भारत गंगा के दो स्थानों से, ब्रह्मपुत्र के पांच और तीस्ता, फ़ेनी और बराक नदियों के एक-एक केंद्रों से आंकड़े प्रदान करता है, वहीँ चीन ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रवाह की जानकारी तिब्बत स्थित तीन स्थानों से देता है।
गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना नदी क्षेत्र में रहने वाले लोग मॉनसून के मौसम में बाढ़ के आदी हैं। पिछले ही साल, ब्रह्मपुत्र नदी क्षेत्र में भारी मानसून के कारण बांग्लादेश को भारी बाढ़ का सामना करना पड़ा था और डिपार्टमेंट ऑफ़ एग्रीकल्चरल एक्सटेंशन (डीएई) के अनुसार 2015 में दो लाख हेक्टेयर अमन धान के खेत और पचास हज़ार हेक्टेयर सब्ज़ियों के खेत बाढ़ के पानी में डूब गए थे।
इस बार समय से पहले बाढ़
इस साल जून महीने के शुरुआत में बांग्लादेश और पड़ोसी भारतीय राज्यों असम और मेघालय में भारी वर्षा के कारण देश के कुछ हिस्सों को बाढ़ का सामना करा पड़ा। सीलहेत जिले में सुरमा नदी के दो जगह खतरे के स्तर से ऊपर (72 से.मी और 78 से.मी) बहने की वजह से उत्तर-पूर्व बांग्लादेश बुरी तरह प्रभावित हुआ।
बांग्लादेश वॉटर डेवेलपमेंट बोर्ड के अनुसार चल रही बाढ़ ने सिल्हेत, सुनमगंज, हबीगंज और मुलोविबाजार जिलों में कई सौ लोगों को प्रभावित किया है जहाँ 280 स्कूल बंद कर दिए गए हैं और तकरीबन तीन लाख लोग फंस गए हैं।
पर क्यूँकि अब देश आने वाले ख़तरों की जानकारी कुछ दिन पहले से ही हासिल कर सकता है इसलिए इनका सामना करने की तैयारी पहले से ही की जा सकती है।
अगर बाढ़ से फसल क्षतिग्रस्त होती है तो उस स्थिति में डीएई ने किसानों को ताजा अमन धान के बीज प्रदान करने की तैयारी की है।
डीएई के डेप्युटी डायरेक्टर चैतन्य कुमार दास ने thethirdpole.net को बताया, “हमने बाढ़ के बाद किसानों को धान की आपूर्ति कराने के लिए पर्याप्त तैयारी की हुई है ताकि वे अपनी खेती जारी रख सकें।”
“एफएफडब्लूसी की भविष्यवाणी को देखते हुए हमने प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए राहत और पुनर्वास क्रियाविधि सहित तैयारी की है,” ऐसा कुरीग्राम जिला प्रशासन के डेप्युटी कमिश्नर अबू सालेह मोहम्मद फिरदौस खान ने thethirdpole.net को बताया। “हमें नदियों के निकट निचले इलाकों को खाली कराने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है।”
चिराग़ तले अँधेरा
फिलहाल भारतीय राज्य असम में 12.५ लाख से ऊपर लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं और खबर है कि कम से कम 33 लोग मारे जा चुके हैं। प्रमुख हाईवे जो हैं उनपर आवागमन बाधित हो गया है और प्रसिद्ध काज़ीरंगा नैशनल पार्क जहाँ एक सींग वाले गैंडे पाए जाते हैं वह अब तकरीबन पूरी तरह पानी में डूब गया है और वहाँ पशुओं के पास ऊँची ज़मीन ढूंढ़ने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है।
अगर बांग्लादेश बाढ़ से निपटने के लिए कुछ हद तक इसलिए बेहतर तरीके से तैयार है क्यूँकि उसे भारत से नदी सम्बन्धी जानकारी मिल रही है, तो यह साफ़ नहीं हो पाया है कि भारतीय राज्य खुद इस आपदा से लड़ने में कमज़ोर क्यूँ हैं। इससे पूर्व पश्चिम बंगाल और असम के राज्यों ने ऊपरी नदियों के तटों से सटे भूटान और चीन को पर्याप्त जानकारी ना देने के लिए दोषी ठहराया था। बाढ़ एक नियमित आपदा है जो हर साल तुलनीय मात्रा में लोगों को प्रभावित करती है। जहाँ यह तर्क दिया जाता है कि भारत और बांग्लादेश का दोनों देशों की सीमाओं के बीच होने वाली बाढ़ों से निपटने के लिए साथ मिलकर काम करना ज़रूरी है, वहीँ ऐसा दिखाई दे रहा है कि भारत के सामने जो चुनौतियां हैं वे ना सिर्फ अंदरूनी हैं बल्कि वे सीमाओं के बाहर भी मौजूद हैं।