20वीं शताब्दी के सबसे प्रभावशाली एशियाई कवियों में से एक मोहम्मद इकबाल, जो कश्मीरी वंश के थे, ने लिखा है, श्वे कब तक दुनिया से छुपे रहेंगे, जिन मुख्तलिफ रत्नों को वुलर झील से अपनी गहराई में रखा हुआ है।’’
शानदार पहाड़ों से घिरी वुलर झील, एशिया की सबसे बडी मीठे पानी की झीलों में से एक है और जम्मू-कश्मीर के उत्तरी बांदीपुरा जिले, राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर से 34 किमी उत्तर में, की सबसे बड़ी बाढ़ बेसिन है।
लगभग एक शताब्दी बाद इकबाल ने अपना प्रश्न, रत्न और अधिक छिपे हुए हैं, खड़ा किया क्योंकि वुलर झील की गहराईयां बहुत अधिक कीचड़ से अवरुद्ध हो गई है। लेकिन जम्मू-कश्मीर सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग (आईएफसी) के इंजीनियरों का मानना है कि वे वुलर झील के अनूठे रत्नों को निकालने के लिए चुपचाप एक इंजीनियरिंग समाधान निकाल रहे हैं।
उनका यह आशावाद उनके विभाग की विशाल वुलर संरक्षण परियोजना के कारण है। वे कहते हैं, यह परियोजना झील के चारों ओर की दलदली भूमि में सुधार के अतिरिक्त झील के आकार में बढ़ोतरी, पर्यावरण-पर्यटन, दीर्घकालिक सिंचाई, डाउनस्ट्रीम हाइड्रोपॉवर परियोजनाओं में बेकार महीनों में सबसे अच्छा विद्युत उत्पादन, आसान नौपरिवहन और उत्तम मछली व चारा उत्पादन समेत कई लाभों की एक सूची तैयार करेगी।
नाम न छापने की शर्त पर एक इंजीनियर ने इस परियोजना की जानकारी https://www.thethirdpole.net से साझा करते हुए कहा, “यह वुलर झील के सर्वश्रेष्ठ संरक्षण की ओर पहला कदम है।”
इंजीनियर ने कहा, राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार झील का कुल क्षेत्र 130 वर्ग किलोमीटर है, जबकि अधिकांश वर्षों में, अक्टूबर तक झील लगभग 24 वर्ग किलोमीटर तक घट जाती है। “परियोजना के पूरी होने के बाद यह पूरी तरीके से बदल जाएगी। हम पूरे साल झील के संपूर्ण क्षेत्र में जल स्तर को बनाए रखेंगे।”
वेटलैंड्स इंटरनेशनल के एक विस्तृत अध्ययन में पाया गया कि वुलर झील का वास्तविक क्षेत्र 217.8 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें 58 किलोमीटर का दलदली क्षेत्र भी शामिल है। अध्ययन के अनुसार, यह क्षेत्र 1911 में 157.74 वर्ग किलोमीटर से घटकर 2007 में 86.71 वर्ग किलोमीटर हो गया था। कुल मिलाकर अध्ययन में यह कहा गया है कि झील के क्षेत्र में 45 प्रतिशत कमी मुख्यतः झील के हिस्सों का कृषि के लिए रूपांतरण और विलो वृक्ष के रोपण से हुई है।
परियोजना और इसके वादे
इंजीनियर ने बताया, “प्रोजेक्ट का शुरुआती काम जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा 80 करोड़ भारतीय रुपया (12 मिलियन अमेरिकी डॉलर) के आंवटन के माध्यम से वित्त पोषित किए गए थे। उन्होंने कहा लेकिन इस परियोजना का मुख्य भाग, जो उस से काफी अधिक में जाएगा, अभी तक निष्पादित नहीं किया गया है।
इंजीनियर के अनुसार, आईएफसी ने निंगली सोपोरे, जहां बारामूला जिले के पहाड़ों और मैदानों इलाकों से घुमावदार होने से पहले झेलम वुलर झील से निकलती है और पाकिस्तान में प्रवेश करती है, में काम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पूरा कर लिया है। उन्होंने कहा, विनाशकारी कश्मीर बाढ़ में फंसे होने से पहले तक इस काम में डेढ किलोमीटर के लंबे बांध का निर्माण और 112 मीटर लंबे लोहे के पुल का निर्माण का निर्माण शामिल है, जो 2011 से 2014 के बना था।
हमारे लिए वह 2014 की बाढ़ प्रकृति का उपहार थी। यह उसके वेश में असली आर्शीवाद था क्योंकि हमने इस प्रोजेक्ट को 25 साल में एक बेंचमार्क बाढ़ के आधार पर डिजाइन किया था। इंजीनियर ने बताया, “लेकिन 2014 की इस बाढ़ ने हमें इस प्रोजेक्ट को दोबारा डिजाइन करने पर मजबूर किया। इसलिए, 2014 की बाढ़ से जो सबक हमने सीखा है, उससे अतिरिक्त बुनियादी ढांचा के निर्माण के लिए डीपीआर डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले हम व्यापक मृदा परीक्षण कर रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि वुलर कंजरवेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी (डब्ल्यूयूसीएमए) भी संरक्षण कार्य कर रहा है, “लेकिन यह बुरी तरह घायल व्यक्ति को प्राथमिक उपचार देने जैसा है। कश्मीर विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान के विभाग में पढाने वाले शमीउल्लाह भट्ट ने कहा कि तेजी से बढ़ते शिकार, विशेषकर उदबिलाव और जलीय पक्षियों का, ने क्षेत्र की जैव-विविधता को लुप्त कर दिया है।
क्या यह प्रोजेक्ट सिंधु जल संधि का उल्लंघन करता है?
आईएफसी के अधिकारियों का मानना है कि उनका प्रोजेक्ट सिंधु जल संधि, जो भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी के जल के साझाकरण को नियंत्रित करती है, के मानदंडों के भीतर आता है। आईएफसी अधिकारी ने कहा, “हमारा प्रोजेक्ट एक संरक्षण परियोजना है और यह पूरी तरह से संधि का अनुपालन करता है। हम जल स्तर नहीं बढ़ा रहे हैं। हम बस केवल जल स्तर को बनाए रखेंगे। यह एक “संरक्षण और पुर्ननिर्माण परियोजना” है, जिसे “गैर-उपभोग प्रयोग” के रूप में अनुमति दी जाएगी।
आईडब्ल्यूटी के अनुच्छेद I के खंड 11 में लिखा हैः
” ‘गैर-उपभोग प्रयोग’ शब्द का तात्पर्य है कि नौकायन के लिए पानी के किसी भी प्रयोग और नियंत्रण, लकड़ी या अन्य संपतियों के बहाव, बाढ़ सुरक्षा या बाढ़ नियंत्रण, मछली पकड़ना या मछली संवर्धन, वन्य जीवन या अन्य लाभकारी उद्देश्य इसमें शामिल हैं लेकिन इसमें कृषि प्रयोग या जल विद्युत का उत्पादन शामिल नहीं है।”
आईडब्ल्यूटी के अनुच्छेद III में लिखा है कि दिए गए प्रयोगों के अतिरिक्त भारत को सिंधु बेसिन के पश्चिमी नदियों के स्वतंत्र प्रवाह के अनुमति देनी होगी, सिंधु, झेलम और चेनाब नदी और उनके जलनिकासी बेसिन के मामले में निषेधः (संलग्नक सी के पैराग्राफ 5 के (सी) (11) में दिए गए के अतिरिक्त)
1- घरेलू प्रयोग
2- गैर-उपभोग्य प्रयोग
3- कृषि प्रयोग, जैसा कि संलग्नक सी में निर्धारित है और
4- हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर का उत्पादन, जैसा कि संलग्नक डी में निर्धारित है।”
इसलिए, आईएफसी मानती है कि यह परियोजना संधि का अनुपालन करती है।
गुप्त उद्गम
यद्यपि यह आत्मविश्वास गुप्त रूप से परियोजना को चलाये जाने के कारण इसका खंडन किया जा रहा है। प्रोजेक्ट के बारे में पूछने पर आईएफसी के मुख्य इंजीनियर इम्तियाज अहमद डार ने कहा, “हम आपको नहीं बता सकते कि हम वुलर में क्या कर रहे हैं क्योंकि हम कुछ नहीं कर रहे हैं।” और आगे बात करने से इनकार कर दिया।
परियोजना शुरू होने के एक वर्ष बाद, 27 अगस्त, 2012 को एक अज्ञात बंदूकधारी ने तटबंधों को उठाए हुए खंभों पर हमला कर दिया और प्रोजेक्ट साइट पर रहने वाले श्रमिकों को हरा दिया और उनसे खंभे को ध्वस्त करने के लिए कहा। लेकिन सुरक्षा प्रदान करने के लिए अर्द्धसैनिक शिविर स्थापित होने के बाद परियोजना का काम चलता गया।
दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान के सिंधु जल आयोग के तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल, जिसने झेलम नदी के जल स्तर और तुलबुल नैवीगेशन प्रोजेक्ट की स्थिति को जानने के लिए मई 2013 में कश्मीर का दौरा किया था, को आईएफसी प्रोजेक्ट साइट पर नहीं ले जाया गया। आईएफसी का वुलर संरक्षण प्रोजेक्ट तुलबुल नैवीगेशन प्रोजेक्ट से मुश्किल से डेढ़ किलोमीटर आगे है।
नाम न छापने की शर्त पर मेजबानों में से एक इंजीनियर ने https://www.thethirdpole.net को बताया कि वुलर के मुंह पर निंगली में किए जाने वाले आईएफसी के काम को टीम ने नहीं दिखाया। उन्होंने कहा, “अगर हम यह कहते रहते कि हम बस वुलर के जल स्तर को बनाए रखने के लिए आधारभूत ढांचा तैयार कर रहे हैं, तो वे निश्चित रूप से जल के इतिहास और राजनैतिक विवादों और तुलबुल नैवीगेशन लॉक पर संदेह को लेकर चुनौती देते।”
तुलबुल नैवीगेशन प्रोजेक्ट है तुरुप का पत्ता?
जम्मू-कश्मीर में भारतीय सुरक्षाबलों पर आतंकी हमले और नियंत्रण रेखा एलओसी पर आगजनी के बाद जब भारत और पाकिस्तान के संबंध निम्न श्रेणी पर आ गया था, जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि “खून और पानी कभी एक साथ नहीं बह सकते।”
तब से, भारत ने जम्मू-कश्मीर में जल विद्युत और सिंचाई योजनाओं को तेजी से करने का प्रयास किया है। जम्मू-कश्मीर पावर डेवलपमेंट कार्पोरेशन (जेकेपीडीसी) ने https://www.thethirdpole.net को बताया कि हाल ही के महीनों में तुलबुल नैवीगेशन लॉक प्रोजेक्ट के बारे में केंद्रीय अधिकारियों से पूछताछ की गई और पहले छोड़े गए इस प्रोजेक्ट को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
जेकेपीडीसी के एक शीर्ष अधिकारी ने https://www.thethirdpole.net को बताया, “मैं केंद्रीय अधिकारियों को बताया कि आईएफसी विभाग ने बहुत सारा काम कर लिया है। इसलिए, पहले वाले तुलबुल नैवीगेशन प्रोजेक्ट, जो कि आईएफसी के वर्तमान प्रोजेक्ट से लगभग डेढ़ किलोमीटर नीचे की ओर है, की अब कोई प्रासंगिकता नहीं है।” उन्होंने कहा कि औपचारिक रूप से तुलबुल नैवीगेशन प्रोजेक्ट को छोड़ने का अंतिम निर्णय लेना अभी बाकी है।
इस बीच, जो काम पहले से किया गया है वह बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। इस क्षेत्र में रहने वाले एक वरिष्ठ नागरिक मजाक में कहते है कि तुलबुल नौपरिवहन परियोजना के आसपास के क्षेत्र में रहने वाले लोग अब अमीर बन गए हैं। उन्होंने कहा, ’’उन्होंने पूरा लोहा और तांबा चुरा लिया है। वास्तव में अब वहां कुछ भी नहीं बचा है।’’
यह तर्क देते हुए कि आईडब्ल्यूटी के पास ऐसे गैर-विनाशकारी प्रयोग के लिए ऐसे प्रावधान हैं। भारत ने 1980 के दशक में तुलबुल नैवीगेशन परियोजना के लिए निर्माण कार्य शुरू किया था और झील से पानी के नियंत्रित बहाव की परिकल्पना की गई थी, जिससे आसान नौपरिवहन और पर्यटन के लिए अक्टूबर से फरवरी तक के बेकार महीनों में वुलर झील के जल स्तर को बरकरार रखा जा सके। भारत ने यह भी तर्क दिया था कि यह परियोजना पाकिस्तान के हित में भी है। लेकिन पाकिस्तान इसका यह कह कर विरोध किया था कि भारत द्वारा किये जाने वाले जल का नियंत्रण और भंडारण का पाकिस्तान पर गंभीर प्रभाव पडता है। दोनों देशों ने 1990 के दशक से इस मुद्दे पर कई बैठक आयोजित की, लेकिन अभी तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हैं।
डब्ल्यूयूसीएमए द्वारा संरक्षण कार्य
डब्ल्यूयूसीएमए प्रोजेक्ट की देखरेख कर रहे एक वन संरक्षक इरफान रसूल ने https://www.thethirdpole.net को बताया कि डब्ल्यूयूसीएमए सरंक्षण प्रोजेक्ट का पहला चरण पहले ही पूरा कर लिया है और दूसरा चरण शुरू करने वाला है।
रसूल ने कहा, “प्रथम चरण में, डब्ल्यूयूसीएमए ने 2012 से 2016 के बीच 60 करोड़ रुपये (9 मिलियन अमेरिकी डॉलर) के बजट में झील की सीमा का सीमांकन, झील के जलग्रह का वनीकरण और तलहटी की सफाई की गई।” उन्होंने बताया कि झील की सीमा के 130 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में खंभे लगाने के अलावा झील के जलग्रह के 1,200 हेक्टेयर के क्षेत्र में 10 लाख पेड़ लगाए गए। झील के एक वर्ग किलामीटर के क्षेत्र में तलहटी की गंदगी निकाली गई।
रसूल के अनुसार संरक्षण कार्य का दूसरा चरण इस वर्ष सितंबर में शुरू हो जाएगा, जिसमें 4 बिलियन भारतीय रुपया (60 मिलियन अमेरिकी डॉलर) का बजट होगा। रसूल ने बताया कि इस परियोजना के माध्यम से, झील क्षेत्र के पांच वर्ग किलोमीटर के अलावा 1970 के दशक में सरकारी नीति के तहत उर्जा और औद्योगिक जरूरतों के लिए रोपित किए गए 20 लाख से अधिक विलो पेड़ों को हटाया जाएगा (प्रथम चरण में 34,000 पेड़ हटाए गए) और झील की 34 किलोमीटर की परिधि में बांध का निर्माण किया जाएगा। वेटलैंड इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार विलो वृक्षारोपण ने जलीयभूमि के खंडन, तेजी से कीचड़ बढ़ना, जल गुणवत्ता में गिरावट और सामाजिक संघर्ष को बढ़ावा दिया है।
रसूल ने कहा, “हमें उम्मीद है कि यह काम ने केवल वुलर की कीर्ति वापस हासिल करने में मदद मिलेगी, बल्कि इससे पर्यटक भी आकर्षित होंगे क्योंकि तीसरे चरण में हम बांध को मुख्य मार्ग बनाने की योजना बना रहे हैं।”
कश्मीर विश्वविद्यालय के शमीउल्लाह भट्ट का कहना है कि झील की जल क्षमता में सुधार मछली और जीव-जंतु व वनस्पति की अन्य प्रजातियों के उत्पादन को बढ़ावा देगा। “मछली, चेस्टनट वृक्ष और चारा उत्पादन में बढ़ोतरी के अतिरिक्त यह पानी में फलने-फूलने वाली जलीय पक्षियों को झील में आने के लिए मददगार होगा।”
उनके अनुसार, वुलर का संरक्षण अति महत्वपूर्ण है क्योंकि झील के असंतुलित संकुचन ने पर्यावरण और आजीविका से संबंधित समस्याओं को जन्म देना शुरू कर दिया है। भट्ट ने कहा, “उदाहरण के लिए जिन लोगों की आजीविका मछली पकडने पर निर्भर थी, उन्होंने हाल के वर्षों में घटते मछली उत्पादन के बारे में शिकायत की है।”
हालांकि, भट्ट को इस बात का अंदाजा नहीं है कि किस हद तक वुलर के जल स्तर का रखरखाव का लाभ निचले लेवल पर बसे पाकिस्तान के हिस्सों को मिलेगा। “अगर हम कहते हैं कि यह पाकिस्तान को पर्यावरणीय लाभ दे सकता है, तो मुझे लगता है कि झेलम पहले ही ऐसा कर रही है क्योंकि अक्टूबर से बसंत तक जल स्तर कम होने पर भी यह नहीं सूखती है। लेकिन यह अक्टूबर से फरवरी तक के बेकार महीनों में बिलजी उत्पादन के मामले में पाकिस्तान की डाउनस्ट्रीम बिजली परियोजनाओं में मदद कर सकता है। वुलर से पानी यूरी बिजली परियोजना में बिजली उत्पादन के लिए बेकार अवधि में छोड़ा जाएगा। लेकिन यह इस निर्भर करता है कि कब और कैसे पानी छोड़ा जाएगा।”
अब तक, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि तुलबुल नौपरिवहन परियोजना के विपरीत, जिसका पहले बडे विचित्र तरीके से विरोध किया गया था, पाकिस्तान इसे एक जीत के रूप में देखेगा।