भारत-नेपाल-बांग्लादेश क्षेत्र में भारी बारिश ने कई समुदायों को प्रभावित किया है। इन प्रभावित क्षेत्रों की तस्वीरें यह दर्शाती हैं कि कैसे लोग नावों और अस्थायी राफ्ट्स से अपने कीमती सामानों को सुरक्षित स्थान पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ लोग तो सीने तक गहरे पानी में अपने सामान को कंधों पर लाद कर ले जा रहे हैं।
इस साल 13 और 14 अगस्त के बीच, भारत-नेपाल सीमा के पास हुई भारी बारिश बिहार के कई जिलों में बाढ़ का कारण बनी। 23 अगस्त को 300 से अधिक लोगों की मौत के बाद हालात और भी खराब हो गए। 18 जिलों के लगभग 1.4 करोड़ लोग बाढ़ से प्रभावित हुए। नेपाल में के मैदानी क्षेत्र में भी 50,000 से ज्यादा लोग बाढ़ में फंसे। इसके अलावा 28 जिलों से 91,000 परिवारों को अस्थायी रूप से विस्थापित किया गया।
इन चुनौतियों के अतिरिक्त, स्थिर जल से एक और खतरा है वह है- जलजनित रोग। बाढ़ की स्थिति में, पीने का पानी एक विलासिता की वस्तु बन जाती है क्योंकि अधिकांश स्रोत पूर्णतः या आंशिक रूप से जलप्लावित हो जाते हैं, जिससे वे अनुपयोगी हो जाते हैं। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जो लोग हैंडपंप का इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं, वे दूषित पानी का उपभोग करते हैं। वे स्थिर बाढ़ के पानी में प्रयोग से जलजनित रोगों के संपर्क में भी आ सकते हैं। इस समय में, महिलाओं को अधिक जोखिम का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्हें दूषित पानी से सफाई करने जैसे अपने दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलापों को पूरा करना होता है।
बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के नया टोला बिष्मभरपुर (एनटीबी) में गांव के पास जलीय दलदल का घेराव एक विकट चुनौती बना हुआ है। एनटीबी की उत्तरी सीमा नेपाल से लगती है और इस क्षेत्र में अपस्ट्रीम की वर्षा, पानी की मात्रा को बहुत प्रभावित करती है क्योंकि बारिश का पानी नीचे की ओर इस क्षेत्र में आता है। नीचे दिए गए नक्शे से स्पष्ट है कि इस जिले का पूरा पश्चिमी हिस्सा बारिश और बाढ़ में डूबा हुआ है।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के साप्ताहिक स्थानिक वर्षा आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 10 से 16 अगस्त के बीच पश्चिमी चंपारण में 240 से 600 मिलीमीटर बारिश हुई है, इतने कम समय में इतनी बारिश ने जिले में रहने वाले समुदायों पर स्थायी प्रभाव डाला है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार जिले में केवल बाढ़ से 13 मौतें हुई हैं।
बाढ़ के दौरान, स्वच्छता एक विशेष समस्या बन जाती है क्योंकि लोग निजी स्वच्छता विशेषकर शौच के संबंध में बनाए रखने के साधनों को कम कर दिया है। खुले में शौच से भूजल में मलिनता बढ़ती है, जो फिर घरेलू कार्यों के लिए प्रयोग करने लोगों को प्रभावित करती है। स्वच्छ पेयजल और सुरक्षित शौच जैसी कई जरूरतों को पूरा करने के लिए एक व्यावहारिक समाधान की जरूरत है।
स्वच्छ और सुरक्षित शौच की इसी जरूरत को पूरा करने के लिए, एनटीबी में फायदेमंद शौचालय अर्थात् इको-सैन शौचालय को शुरू किया गया। इसके नवीन संरचनात्मक डिजाइन से यह स्वच्छता को सामान्य फ्लश शौचालय की तुलना में यह ज्यादा प्रभावी माध्यम साबित होता है। बिहार के जलोढ़ बाढ़ के मैदानों में फ्लश शौचालय के प्रयोग से उथले पानी समूहों के प्रदूषित होने का खतरा बढ़ जाता है। अक्सर बाढ़ का सामना करने वाले क्षेत्रों में इन शौचालयों अवरोधक, प्रयोगकर्ता विशेषकर महिलाएं और बच्चों में संक्रमण जैसी समस्या का भी सामना करते हैं।
बाढ़ की स्थिति में भी इसका प्रयोग सुनिश्चित करने के लिए इको-सैन शौचालयों को ऊंचे प्लेटफार्म पर बनाया गया है। शौचालयों की ऊंचाई पूर्वानुमानित बाढ़ के पानी के उच्चतम स्तर के आधार पर निर्धारित की गई है। शौचालय की सीट में दो सुराग हैं जो मल और मूत्र को अलग-अलग एकत्र करते हैं। ये दोनों सुराग दो अलग-अलग भंडारण टैंकों से जुड़े हुए हैं, जो जमीन के ऊपर स्थित हैं। चूंकि इको-सैन सूखा शौचालय है, इसलिए मल से किसी प्रकार की गंध नहीं होती है। इको-सैन शौचालय के पीछे ईंटों से बने सुराग के जरिये संग्रहण गड्डों तक पहुंचा जा सकता है। इस प्रकार मल अब ह्यूमनेयर के रूप में तैयार है, जोकि फसलों पर उर्वरक के रूप में और मूत्र को यूरिया के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। बाढ़ अनूकूल तकनीक के रूप में, ये शौचालय न केवल सुरक्षित प्रयोग प्रदान करते हैं, बल्कि इसके निम्न जल उपभोग डिजाइन के कारण यह भूजल प्रदूषण और संक्रमण के खतरे को खत्म कर देता है।
कोई भी सफल तकनीक को अपेक्षित लाभार्थियों द्वारा अपनाया जाना चाहिए। इस पर आर्थिक विकास संस्थान, नई दिल्ली में पूर्णमिता दासगुप्ता द्वारा किया गया एक अध्ययन सफलता का संकेत देता है। दासगुप्ता का 2016 का अध्ययन पश्चिम चंपारण में अनुचित शौच के कारण होने वाले चरम स्वास्थ्य जोखिम और बाढ़ के उच्चतम स्तर का वर्णन है। पश्चिम चंपारण में उनकी टीम ने इको सैन शौचालय अपनाने की लागत लाभ पर एक विश्लेषण किया और पाया कि शौचालय की पहुंच सुनिश्चित करके स्वास्थ्य लागत और सुविधा में काफी बचत की जा सकती है। इकोलॉजिकल सैनीटेशन सर्वाधिक प्रभावी लागत का विकल्प देता है, जहां इसके लाभ लागत से कहीं ज्यादा हैं।
पश्चिम चंपारण का कैरी समुदाय इस शौचालय का प्रयोग करने का प्रत्यक्ष उदाहरण है, जो एनटीबी में के लोगों को एक उज्ज्वल भविष्य की ओर इशारा करता है। नेपाल सीमा के पास, पश्चिम चंपारण के गउनाहा ब्लॉक में कैरी गांव सर्वाधिक बाढ़ प्रभावी क्षेत्र है, और बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में शौच के लिए इको सैन शौचालयों के प्रयोग की प्रभावशीलता का प्रमाण है। 2015 के बाद से ही, अपने पड़ोसियों को इसका प्रयोग करते और उसके सकारात्मक परिणाम देखते हुए गांव के निवासियों ने एक-एक करके शौचालय का निर्माण कराया। इस साल 8 अगस्त को, बाढ़ का पानी गांव के जरिये घरों में घुस गया, खेतों में धाराओं के लिए नए माध्यम बना रहे थे, और यहां तक कि पांडई नदी, जिसके किनारे पर गांव स्थित है, के साथ जियो बैग का तटबंध भी धुल गया। लेकिन इको सैन शौचालय स्थित रहा और प्रयोग के लिए उपलब्ध रहा। बाढ़ का पानी जो कैरी में आया था, कुछ घंटों के लिए ही रहा, लेकिन अपने उच्चतम स्तर पर भी शौचालय की ऊपरी सीढ़ी पानी के ऊपर थी।
बाढ़ के दौरान, पश्चिम चंपारण में चट्टी देवी के घर ऊपर बनाया गया शौचालय जल स्तर बढ़ने से अप्रभावित और हमेशा उपलब्ध और इस्तेमाल योग्य था। यह इन घटनाओं में एक महत्वपूर्ण मोड़ है क्योंकि इस क्षेत्र में हाल ही के स्मृति में हुए बदतर बाढ़ घटनाओं में यह बाढ़ के पानी का उच्चतम स्तर था जैसा कि कभी 1993 में हुआ था। इस शौचालय के प्रयोग से जलजनित रोग सीधे तौर पर उत्पन्न नहीं होते हैं क्योंकि चैंबर अपशिष्ट पदार्थों को बाढ़ के पानी से सीधे तौर पर संपर्क में आने से रोकते हैं। यह इको-सैन शौचालयों की प्रभाविकता को सिद्ध करता है जोकि बाढ़ के दौरान स्वच्छ व सुरक्षित शौच का प्रयोग और लागत प्रभावी तकनीक है। बाढ़ के पानी के बढ़ने के बावजूद यह एक संकेत- एक उम्मीद है जो शौच के लिए एक स्वच्छ और सुरक्षित स्थान प्रदान करता है। यह चट्टी देवी के खेतों को उपजाऊ बनाने के लिए हरियाली साधनों के प्रयोग की दिशा में बढ़ता एक कदम है।
डेबाब्राट शुक्ला आईसीमोड में हाई अवेयर पहल के लिए ज्ञान प्रबंधन के प्रमुख व्यक्ति हैं।
अंजल प्रकाश प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर हाई अवेयर और आईपीसीसी द्वारा महासागरों और क्रोनोहेयर पर आने वाली एआर6 रिपोर्ट के प्रमुख समन्वयक लेखक हैं। अर्पणा उन्नी मेघ प्याने अभियान की कार्यक्रम अधिकारी पानी हैं।