जीडी अग्रवाल अस्पताल में पुलिस हिरासत में हैं। उन्हें अन्न ग्रहण किए हुए एक महीने से ज्यादा हो चुका है, लेकिन कमजोर एवं बूढ़े होने के बावजूद भी वे गंगा नदी के लिए अपना जीवन कुर्बान करने को तैयार हैं।
कुछ साल पहले हिंदू धर्म की संत परंपरा की शपथ लेने के बाद उन्हें स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद के नाम से जाना जाने लगा। अग्रवाल न कोई साधारण प्रदर्शनकारी हैं और न ही वे दिखावटी पर्यावरणविद हैं। इससे पहले वे अकादमिक के रूप में देश के प्रतिष्ठित संस्थान आईआईटी कानपुर के सिविल एवं पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख थे। उन्होंने राष्ट्रीय गंगा बेसिन प्राधिकरण का काम किया और वे केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पहले सचिव भी रहे।
हो सकता है, उन्हें बिना लाग-लपेट के बोलने वालों के रूप में जाना जाता हो लेकिन उन्होंने अपनी सारी जिन्दगी को मां गंगा के लिए समर्पित कर दी। 2008 से 2012 के बीच उन्होंने चार राज्यों में गंगा के लिए अनशन किया। महात्मा गांधी जी की तरह भूख हड़ताल की और इससे अपने जीवन को समाप्त करने की धमकी भी दी और वे तब तक जमे रहे जब तक सरकार नदी के प्रवाह पर जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण को रद्द करने पर सहमत न हुई। 2012 में वे राष्ट्रीय गंगा बेसिन प्राधिकरण को निराधार कहते हुए इसकी सदस्यता से त्याग पत्र दे दिया और अन्य सदस्यों को भी यही करने के लिए प्रेरित किया।
पर्यावरण के क्षेत्र में उनकी प्रतिष्ठा को देखते हुए उनके हर उपवास को गंभीरता से लिया गया। जुलाई 2010 में तात्कालिक पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री जयराम रमेश ने व्यक्तिगत रूप से पर्यावरणविद के साथ बातचीत में सरकार के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया और गंगा की महत्वपूर्ण सहायक नदी भागीरथी में बांध रद्द करने पर सहमति भी व्यक्त की।
इस बार, हालांकि, राज्य एवं केन्द्र सरकारें अलग तरह से पेश आ रही हैं। यद्पि 2014 में चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गंगा की स्वच्छता के लिए प्रतिबद्धता दिखायी थी लेकिन सरकार बनने के बाद अब तक नमामि गंगे परियोजना सकारात्मक परिणाम पेश करने में असफल रही।
22 जुलाई को अग्रवाल ने हिमालयी राज्य उत्तराखंड के हरिद्वार से अनशन शुरू करने की घोषणा की। इस बार उनकी मांग थी कि नदियों को प्रदूषण से रोकने लिए उनका पर्यावरणीय प्रवाह बनाने रखा जाए, नदियों के किनारे अतिक्रमण हटाया जाए और जिसके लिए एक प्रभावी कानून का निर्माण किया जाए।
10 जुलाई को पुलिस ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल में बैठे अग्रवाल को जबरदस्ती उठा लिया और उन्हें एक अज्ञात स्थान ले जाया गया। जबरदस्ती उठाए जाने के बाद अग्रवाल ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय में पुलिस के खिलाफ याचिका दायर की और कहा कि उनके शांतिपूर्ण उपवास ने राज्य कानून व्यवस्था को किसी तरह का खतरा नहीं था, उन्होंने राज्य सरकार एवं पुलिस प्रशासन द्वारा उनके सर्मथकों के साथ किए अनुचित बर्ताव का भी आरोप लगाया।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 12 जुलाई, 2018 को उत्तराखंड राज्य के मुख्य सचिव को आदेश दिया कि उपवास पर बैठे अग्रवाल से अगले 12 घंटों में बैठक आयोजित कर मामलों का उचित हल निकाला जाए। इस बीच अनेक राजनीतिक एवं पर्यावरण क्षेत्र के व्यक्ति उनके समर्थन में आए। सरकार ने वर्तमान में चल रही चार जल विद्युत परियोजनाओं- भागीरथी, पलमानारी, लोहारी-नागपाल और भेरोघाटी, जो सभी गंगा की प्रमुख सहायक नदियां हैं, से जुड़े संतों के साथ बैठक आयोजित की।
लेकिन इस सबसे बावजूद कुछ भी सार्थक निकलकर नहीं आया। सरकार ने वयोवृद्ध पर्यावरणविद को ऋषिकेष स्थित एम्स अस्पताल में पुलिस हिरासत में ले लिया, जहां उन्होंने चिकित्सकों द्वारा जबरदस्ती भोजन कराने पर भी इनकार कर दिया।
रेमन मैगसेसे पुरस्कार एवं स्टाकहोम जल पुरस्कार विजेता जल कार्यकर्ता राजेन्द्र सिंह ने कहा कि उच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद मुख्य सचिव ने ऐसा करने से इनकार कर दिया और कहा कि यह मेरे अधिकार से बाहर है। हाल ही में प्रधानमंत्री को संबोधित पत्र में सिंह ने आग्रह किया कि सरकार जल्द से जल्द गंगा प्रबंधन एवं संरक्षण कानून को पास करे और नदी किनारे बन रहे सारे बांधों पर रोक लगायी जाए, जिसकी मांग अग्रवाल भी अपने अनशन में कर रहे हैं।
दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि अभी तक इस पर कोई प्रतिक्रिया आती नहीं दिख रही है। इस बीच भूख हड़ताल दूसरे महीने में प्रवेश कर चुकी है और अग्रवाल का अभी तक 9 किलो वजन कम हो चुका है। सिंह ने कहा अग्रवाल इतनी जल्दी थकने वाले नहीं है, न ही हार मानने वाले हैं। https://www.thethirdpole.net से बात करते हुए उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने केवल कागज में आदेश जारी किए हैं और किसी आदेश पर कोई कार्रवाई नहीं की है। सरकार की ओर से उपवास को खत्म कराने और इस मुद्दे को हल करने के लिए एक भी व्यक्ति नहीं आया। उनका जीवन खतरे में है और किसी को इस बात की परवाह नहीं है। हम वास्तव में इसके लिए चिंतित हैं।