पीलभीत जिले के पूरनपुर तहसील में दो दशक से अधिक समय से शारदा नदी के दोनों तटों पर बसे दो दर्जन से अधिक गांव नदी के कटान के कारण बार-बार उजड़ रहे हैं। हजारों एकड़ कृषि भूमि और वन भूमि नदी में समा गए हैं तो सैकड़ों लोग विस्थापित होकर सड़क, तटबंध किनारे जीवन गुजार रहे हैं। सरकार और प्रशासन नदी कटान के कारणों को जानने, कटान रोकने का वैज्ञानिक व पर्यावरणीय तरीका अपनाने और विस्थापितों की मदद के बजाय ठोकर व तटबंध बनाने, नदी की ड्रेजिंग करने में लगा हुआ है।
शारदा नदी हर वर्ष दोनों तटों पर कटान करते हुए अपनी दिशा बार-बार बदल रही है। पीलीभीत जिले में 40 किलोमीटर तक बहने वाली इस नदी के प्रवाह में नाटकीय बदलाव आ रहा है और इसकी वजह से पूरे क्षेत्र की भू स्थिति लगातार बदल रही हैं। नदी प्रवाह की दिशा बार-बार बदलने से सबसे अधिक प्रभावित इस क्षेत्र में 60 के दशक में यहाँ बसे बंगाली शरणार्थी और विशेष उपनिवेशन योजना के तहत बसाए गए पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसान व मजदूर हो रहे हैं। कृषि योग्य भूमि के कटान से हजारों लोग भूमिहीन हुए हैं और वे जीविकोपार्जन के लिए पलायन को मजबूर हो रहे हैं।
शारदा नदी
शारदा नदी का उद्गम ट्रांस हिमालय में भारत-तिब्बत सीमा पर लिपुलिख दर्रे के निकट कालापानी नामक स्थान पर झरने के समूह से माना जाता है। इसे नेपाल में महाकाली और उत्तराखंड में काली नदी के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखंड के चम्पावत जिले के टनकपुर से इस नदी को शारदा नदी के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड के तवाघाट में धौलीगंगा, धारचुला से गुजरते हुए जौलजीवी नामक स्थान पर गोरी नदी इसमें मिलती है। आगे चलकर इसमें सरयू नदी भी मिलती है।
उत्तराखंड के मनुस्यारी, चम्पावत, टनकपुर, बनबसा आदि स्थानों से होते हुए शारदा नेपाल में प्रवेश करती है और नेपाल के महेन्द्रनगर के कुछ भू-भाग में बहते हुए पीलीभीत जिले के पूरनपुर ब्लाक के क्षेत्र में प्रवेश करती है। यह पीलीभीत में कुल 40 किलोमीटर की दूरी तय करते लखीमपुर खीरी जिले में प्रवेश करती है और वहां से होते हुए सीतापुर जिले के मल्लापुर गांव के पास घाघरा नदी में मिल जाती है। घाघरा नदी के दाएं तरफ सीतापुर है तो बाएं तट पर बहराइच जिला है। बनबसा बराज से घाघरा के मिलन स्थल तक इसकी कुल यात्रा 240 किमी है।
शारदा महाकाली नदी का कुल कैचमेंट एरिया 20,538 वर्ग किमी है जिसमें 15,339 वर्ग किमी पहाड़ का हिस्सा है जबकि 5,199 वर्ग किलोमीटर मैदानी इलाका है 9,943 वर्ग किमी उत्तराखंड में है। यह अपने उद्गम स्थान से घाघरा नदी में मिलने तक कुल 546 किलोमीटर की यात्रा करती है. इसमें 223 किलोमीटर पहाड़ी क्षेत्र है तो 323 किलोमीटर मैदानी इलाका है.
पीलीभीत जिले में शारदा नदी की अधिकतम डेप्थ लगभग 12 मीटर है। बनबसा बराज से वर्ष 2013 में 5,44,476 क्यूसेक डिस्चार्ज हुआ जो अब तक का सबसे अधिकतम है।
बार–बार उजड़ने को अभिशप्त गांव
पीलीभीत जिले के पूरनपुर तहसील के चंदिया हजारा ग्राम सभा का राहुल नगर नदी की कटान से पूरी तरह उजड़ गया है और अब राहुल नगर मजदूर बस्ती उजड़ रही है। इस साल जुलाई महीने में राहुल नगर मजदूर बस्ती की करीब 350 एकड़ भूमि और 7 घर पूरी तरह से नदी में समा गए। कटान से उजड़ जाने के बाद राहुल नगर के वाशिंदे जंगल किनारे रह रहे हैं। राहुल नगर मजदूर बस्ती के लोगों के खेत व घर अब भी कट रहे हैं।
राहुल नगर के श्रीराम दयाल ने बताया कि शारदा नदी ने धनहरा घाट के पास दो किलोमीटर सड़क काटते हुए अपना रूख बदल दिया तभी से राहुल नगर खतरे में आ गया। तीन वर्ष से हमारा गांव कटान का शिकार है।
राहुल नगर भूमिहीन मजदूरों की बस्ती है जिसे 1974 में महापंडित राहुल सांकृत्यायन के नाम पर बसाया गया था। हजारा गांव के तत्कालीन प्रधान अलाउद्दीन शास्त्री के विशेष प्रयास से यह गांव बसाया गया था। 86 वर्षीय श्री शास्त्री ने बताया कि नदी के उस पार चंदिया हजारा गांव की काफी जमीन खाली थी। बतौर ग्राम प्रधान हमने 74-75 में 63 भूमिहीन ग्रामीणों को ढाई-ढाई एकड़ भूमि देकर बसाया। इसमें चार पिछड़ी जाति के थे और शेष दलित थे। तत्कालीन डीएम सुबोध नाथ झा के सुझाव पर इस गांव का नाम महापंडित राहुल सांकृत्यायन के नाम पर रखा गया। अब इस गांव ने शारदा नदी की कटान में अपना अस्तित्व पूरी तरह से खो दिया है। श्री शास्त्री के अनुसार शारदा नदी की कटान से दो दशक में 20 गांव उजड़े हैं। इन गांवों के लोग इधर-उधर रहते हुए विस्थापित जीवन गुजार रहे हैं।
वर्ष 1994-95 में शारदा नदी ने राहुल नगर को काटना शुरू किया और दो दशक में इसका अस्तित्व समाप्त हो गया। उजड़ने के बाद कुछ लोग चंदिया हजारा गांव के पास बसे राहुल नगर मजदूर बस्ती में आ गए तो कुछ लोग जंगल किनारे चले गए। अब मजदूर बस्ती की तरफ कटान शुरू हो गई है। कई परिवार ऐसे हैं जो दो दशक में दूसरी बार नदी की कटान के शिकार हो रहे हैं।
70 वर्षीय सम्पत इनमें से एक हैं। उन्होंने बताया कि वह पुराने राहुल नगर के रहने वाले हैं। जब नदी ने कटान किया तो हम इधर आ गए। मुझे ढाई एकड़ जमीन का पट्टा मिला था। सब नदी में चला गया और हम अब मारे-मारे फिर रहे हैं। पहले नदी यहां से काफी दूर अशोक नगर के पास थी। अब वहां से नदी घूमते हुए इस गांव के पास आ गयी है।
राहुल नगर मजदूर बस्ती के फूल मोहम्मद (50) ने बताया कि इस वर्ष बरसात में मेरे गांव की 350 एकड़ जमीन और सात घर नदी में समा गए। शाहिद, तोड़ीराम, गामा पहलवान, मुमताज, गुलजारी राम, सियाराम, अनन्त, किन्नू व गीतन के घर नदी में कट गए। कटान अभी भी हो रही है। नदी ने पहले कटान कर एक नाला बनाया और फिर नदी की मुख्य धारा ही हमारे गांव की तरफ आ गयी। नदी एक किलोमीटर में कटान करती हुई गांव की आबादी तक आयी है। पुराना राहुल नगर जिसमें 63 लोगों को पट्टा देकर बसाया गया था, पूरी तरह नदी में समा गया। हम उधर से इस बस्ती की तरफ आ गए तो यहां भी नदी की कटान के शिकार हो रहे हैं। खेती की जमीन नहीं रहने के कारण अब 100-150 रूपए की दिहाड़ी करने पर मजबूर हैं। अब तक अनाज खरीदने की जरूरत नहीं होती थी लेकिन अब अनाज खरीदना पड़ रहा है। कटान का यही हाल रहा तो हमारा पूरा गांव खत्म हो जाएगा और हमें सड़क पर जाना होगा।
मुन्नी देवी ( 50 वर्ष ) की दो एकड़ भूमि नदी की कटान का शिकार हुई है। खेती उनके परिवार का आधार थी। वे कहती हैं कि नदी की कटान को देखते हुए हम मांग कर रहे थे कि ठोकर बनाया जाय लेकिन नहीं बनाया गया। हम यहां 50 वर्ष से रह रहे हैं। दो एकड़ खेती की जमीन थी। इसमें आधे एकड़ में हल्दी लगाए थे और डेढ़ एकड़ में गन्ना। सब नदी में समा गया। हमारे घर में कोई कमाने वाला नहीं है। पति पहले ही गुजर चुके है। दो बेटे और दो बेटियां हैं। बेटी की शादी में डेढ़ लाख का कर्जा हो गया। खेती चली गई। अब हम कैसे कर्जा भरेंगे और बच्चों की परवरिश करेंगे ? नदी जिस तरह से काट रही है लग रहा गांव नहीं बचेगा। आप ही बताइए हम कहां जाएं ?
शाहनवाज अंसारी (30) नदी की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं कि जहां नदी बह रही है वहां छह महीने पहले मेरा घर था और ढाई एकड़ खेत था। देखते-देखते सब नदी में समा गया है। अब मै घर विहीन व भूमिहीन हूं। बीच गांव में सिर ढंकने के लिए थोड़ी जमीन मिली है। पिता कमाने के लिए बाहर चले गए हैं। सरकार से कोई मुआवजा नहीं मिला। मै और मेरे दो छोटे-छोटे भाई के सामने मजदूरी के अलावा और कोई चारा नहीं हैं।
इसी गांव की मनभावती के पास दस एकड़ जमीन और घर था। अब उनके पास न घर है न खेत। नदी के कटान ने सब कुछ खत्म कर दिया। वह कहती हैं कि हम धान, गेहूं, गन्ने की फसल लगाते थे और इससे परिवार की जीविका चलती थी। अब कुछ नहीं बचा है। जीवन में कभी मजदूरी नहीं की। अब हम किसान से मजदूर बन गए हैं। बच्चों को कैसें पढाएं ? जब कटान हो रही थी तब अधिकारी आए और कटान रोकने का काम करने लगे। पूरे गांव के लोगों ने उनकी मदद की। हमने उन्हें भोजन कराया। वे बोले कि फिर आएंगे लेकिन फिर नहीं लौटे। अब न तो गांव को बचाने के लिए ठोकर बना रहे हैं न हमें कोई मुआवजा दे रहे हैं।
मैतुननिशां के दो एकड़ का खेत का अब थोड़ा ही हिस्सा बचा है जिसमें गेहूं लगा हुआ है। वह इस हिस्से को नदी में जाते हुए देखने को विवश हैं। विमलावती, इन्द्रावती, कुसुम, ऊषा का यही हाल है। विमलावती और ऊषा का चार-चार एकड़, कुसुम व सुशीला का दो –दोएकड़ खेत कटान में चला गया। यह सूची काफी लम्बी है। अनीता, सुशीला, लवंगी, दुलारी, मेरूननिशां, सलहरी, स्वामीनाथ, शिवमूरत, लचियादेवी, शाहनवाज, मैनुद्दीन, कमलादेवी, आस मोहम्मद, तोड़ी लाल, इन्द्रावती, रामअशीष, अजीज, निजामुद्दीन, जय प्रकाश, रामरती, रामानन्द, इस्लाम के नाम इस सूची में शामिल हैं. ये सभी अब भूमिहीन हो गए हैं.
मंजूर अली कहते हैं कि दो एकड़ जमीन में सिर्फ 25 डिस्मिल बचा है. इस जमीन पर गेहूं की फसल लगायी है. यह खेत भी धीरे-धीरे कट रहा है. यह जमीन कट गयी तो हम भूमिहीन हो जाएंगे. मंजूर अली की तरह मोबीन का एक एकड़ खेत जिसमें गन्ना लगा हुआ है, नदी में समाता जा रहा है. प्यारेलाल का एक वर्ष के अंदर एक एकड़ खेत कट गया है।.
महेशी गन्ने की पत्तियां छीलते हुए मिलीं। उन्होंने बताया कि हम आज दूसरे के खेत में मजदूरी कर रहे हैं। एक वर्ष पहले तक वह पांच एकड़ भूमि वाली किसान थीं। उन्हें तीन एकड़ जमीन सरकार से पट्टे में मिली थी। दो एकड़ उनकी भूमि थी। सब नदी में चला गया। सरकार ने कोई मदद नहीं की है। जीवन यापन करने के लिए दूसरों के खेत में मजदूरी करनी पड़ रही है।
इसी गांव के रहने वाले भाकपा माले नेता नगीना ने बताया कि राहुल नगर में 63 लोगों को पट्टे की जमीन देकर बसाया गया था। कुछ भूमिहीन परिवार भी यहां रहते थे। नदी की कटान से पूरा राहुलनगर उजड़ गया। गांव से नदी अब सिर्फ 200 मीटर रह गई है। सरकारी अधिकारी कहते हैं वे खेती वाली जमीन को नहीं बचा सकते। गांव को बचाने का प्रयास करेंगे लेकिन गांव को बचाने के लिए कोई ठोस कार्य नहीं हो रहा है।
राहुल नगर और राहुलनगर मजदूर बस्ती के लोग आजीविका के चलते पलायन कर रहे हैं। राहुल नगर में 63 परिवार थे तो मजदूर बस्ती में 565 घर बसे थे। मजदूर बस्ती में अब 365 परिवार ही बचे हैं। शेष जिंदगी चलाने के लिए यहां से पलायन कर गए हैं। मजदूर बस्ती के अधिकतर पुरूष काम की तलाश में बाहर चले गए हैं। नजमा का बेटा शाकिर अलीगढ़ जाकर गन्ने के खेत में मजदूरी कर रहा है। नजमा का दो एकड़ खेत था जो नदी की कटान का शिकार हुआ है.
इन्द्रावती के पति शिवनाथ भी मजदूरी करने अलीगढ़ गए हैं. सुशीला के तीन बेटे अलीगढ़ जिले में मजदूरी कर रहे हैं। कांता, पिंटू, रिंकू जैसे नौजवान कर्नाटक के कोयन्नूर में मजदूरी करने चले गए है. अलीगढ़ जिले में बड़े किसानों के फार्म हैं जहां पर राहुल नगर के लोग मजदूरी में खप रहे हैं. अलीगढ़ के बड़े किसान इन मजदूरों को रहने और भोजन का प्रबंध कर देते हैं और मजदूरी भी ज्यदा देते हैं इसलिए इस इलाके के सैकड़ों लोग वहां चले गए हैं. मजदूरी करने गए लोगों में कई किशोर हैं। उन्हें पढ़ाई-लिखाई छोड़नी पड़ी हैं। नदी कटान ने इस इलाके में गहरा सामाजिक-आर्थिक प्रभाव डाला है।
खीरी–पीलीभीत उपनिवेशन योजना
नदी कटान से सबसे अधिक प्रभावित खीरी-पीलीभीत उपनिवेशन योजना के तहत यहाँ बसायी गयीं कालोनियां हैं. बेकारी की समस्या के निवारण तथा अनाज उत्पादन बढ़ाने के लिए यह योजना 1955 में बनी। नेपाल से सटा यह पूरा इलाका खाली था। चार-पांच छोटे गांव थे जहां रहने वाले लोग मवेशियों के सहारे जीविकोपार्जन करते थे। इस योजना के तहत पहले लखीमपुर जिले में 12 कालोनियां आबाद की गईं। इसमें गोरखपुर मंडल के निवासियों को जमीन देकर बसाया गया। हाईस्कूल तक शिक्षा प्राप्त लोगों को दस एकड़ और इससे उपर की पढ़ाई किए हुए लोगों को 20-20 एकड़ भूमि खेती के लिए आवंटित की गई। इस योजना के तहत पीलीभीत जिले की पूरनपुर तहसील के ट्रांस-शारदा क्षेत्र में करीब 10 हजार एकड़ भूमि पर 13 कालोनियां- -सिद्धनगर, शास्त्रीनगर, भरतपुर, अशोक नगर और चन्द्रनगर बसायी गयी। ये पांचों कालोनिया हजारा गांव सभा में बसायी गयीं। इसके अलावा नौहरसा और कबीरगंज ग्राम सभा में श्रीनगर, आजादनगर, गौतमनगर, राणा प्रताप नगर, विजय नगर बसाए गए। चंदिया हजारा गांव में 150 लोगों को बसाया गया। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से खेती की जमीन के साथ-साथ आवंटियों को रहने के लिए पक्के मकान बनाकर दिए गए। खेती में सहायता के लिए बैल दिए गए।
देवरिया जिले के रहने वाले अलाउद्दीन शास्त्री लखनऊ में मलेरिया विभाग में सर्विलांस इंस्पेक्टर के पद पर थे। उन्होंने नौकरी छोड़ दी और यहां पर भूमि आवंटन के लिए आवेदन किया। उन्हें 1962 में 20 एकड़ भूमि आवंटित की गई।
श्री शास्त्री बताते हैं कि जब उत्तर प्रदेश में गेंदा सिंह कृषि मंत्री बने और पीलीभीत आए तो हमने उनसे अनुरोध किया कि पूर्वांचल से आकर बड़ी संख्या में श्रमिक यहां बस गए हैं। अब दस और 20 एकड़ की भूमि आवंटित करने पर रोक लगाकर इन भूमिहीन मजदूरों को जमीन दी जाए। गेंदा सिंह को यह बात उचित लगी और उन्होंने प्रत्येक भूमिहीन मजदूर को 3.33 एकड़ जमीन पट्टे पर देने का आदेश दिया। इस तरह सैकड़ों भूमिहीन मजदूरों को चंदिया हजारा, कोठिया गोदिया, कबीरगंज आदि स्थानों पर जमीन देकर बसाया गया।
नदी कटान की दास्तां और भी है
नदी कटान से उजड़ने वाली राहुल नगर इकलौती बस्ती नहीं है। सरकारी दस्तावेजों के अनुसार पीलीभीत में शारदा नदी की बाढ़ से पूरनपुर तहसील में कुल 46 गांव प्रभावित होते हैं जिसमें 22 सर्वाधिक प्रभावित हैं। जल भराव और कटान वाले गांवों की संख्या पूरनपुर में 24 है। इसमें 18 जलभराव वाले गांव है तो छह कृषि कटान वाले गांव हैं।
कटान से प्रभावित गावों की संख्या सरकारी आंकड़ों से कहीं ज्यादा है. शारदा नदी के बायें तट पर टार्टरगंज, कम्बोजनगर, टीला नम्बर 4, राघवपुरी, धर्मपुरी, वमनपुरी, भगीरथ, वेल्हा, बाजार घाट, सिद्धनगर, गौटिया टिब्बा, शास्त्रीनगर, हजारा, भुरजनिया, अशोक नगर, रामनगर, शान्तिनगर, श्रीनगर, आजाद नगर, कबीरगंज, राणा प्रताप नगर, विजय नगर, गौतमनगर, कुठिया गुदिया, मल्लुरी फार्म, नहरोसा, चिड़ईया टोला, कुलवा फार्म कटान से प्रभावित हैं।
इसी तरह शारदा नदी के दाएं तट पर बूंदीभूड, नौजल्हा नकटिया, कुतिया कवर, गभिया सहराई, पुरैना ताल्लुक महाराजपुर, बुझिया, नगरिया खुर्द, रमनगरा, मठैया लालपुर, ढकिया महाराजपुर, धुरिया पलिया, बिजौरिया खुर्द कला, राहुलनगर, चंदिया हजारा, खिरकिया बरगदिया, मझारा कटान से प्रभावित हैं।
नदी की कटान और उसके प्रवाह दिशा में परिवर्तन धनहरा घाट में बहुत स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इस घाट से होकर नदी बहती थी। यहां पर पांटून पुल बना है जो अब भी बरकरार है लेकिन नदी इसके बजाय दूसरी दिशा मे चली गयी है। अब वहां दूसरा पांटून पुल बनाया गया है. इस स्थान पर नदी करीब दो किलोमीटर सड़क काटते हुए हजारा और राहुल नगर के तरफ बढ़ी है। सिद्धनगर से हजारा को जोड़ने वाले सड़क पुल से नदी गुजरती थी लेकिन अब नदी करीब दो किलोमीटर से अधिक दूर खिसक गयी है। यह पुल अब किसी काम का नहीं रह गया है। यह पुल नदी मार्ग के बदलने की गवाही देता खड़ा है. नदी ने यहां सैकड़ो एकड़ वन भूमि को काटा है। सिद्धनगर की तरफ से नदी के दूर जाने के बाद किसानों की कुछ जमीन उन्हें वापस मिल गयी है और वे वहां खेती करने का प्रयास कर रहे हैं।
अलाउद्दीन शास्त्री बताते हैं कि वर्ष 1993 में सबसे पहले पुराना हजारा गांव कटा। इसके बाद भरतपुर, शास्त्रीनगर, अशोक नगर, पूरा का पूरा नदी की कटान का शिकार हुआ। वर्ष 1967 में स्थापित लाल बहादुर शास़्त्री स्कूल जो बाद में कालेज तक विस्तारित हुआ, दो बार नदी की कटान से कटा। अब यह कालेज तीसरे स्थान पर बसा है। हजारा थाना भी नदी की कटान का जद में आकर विस्थापित हुआ है.
नेपाल सीमा से सटा नौजल्हा नकटिया गांव छह वर्ष से नदी की कटान का शिकार है। इस गांव में 60 के दशक में बांग्लादेश से आए बंगाली शरणार्थियों को बसाया गया है। गांव की 200 एकड़ खेती की जमीन नदी से कट गई है।
इस गांव के 50 वर्षीय प्रफुल्ल शील ने बताया कि जहां आज नदी बह रही है वहां मेरी डेढ़ एकड़ भूमि थी जो कट गयी। हमारे पास अब सिर्फ तीन एकड़ जमीन बची है। किसी तरह जीवन गुजार रहे हैं। कटान को रोकने के लिए तीन वर्ष पहले तटबंध बनाया गया तो थोड़ी राहत मिली है। कुछ वर्षों से नदी में पानी कम आ रहा है। पहले नदी छोटी लेकिन गहरी थी। अब नदी की गहराई काफी कम हो गयी है जबकि इसका पाट काफी बढ़ गया है। नांगलिया के पास नदी की दो धारा बन गयी है।
वह कहते हैं कि नदी की कटान को बालू और सीमेंट की बोरियों से नहीं रोका जा सकता। नेपाल की सरकार अपने तरफ मशीन से तटबंध बना रही है। हमारी तरफ काम नहीं हो रह है। अब नेपाल से काफी तेजी से पानी आएगा तब गांव को बचाना मुश्किल हो जाएगा। हमारा गांव तो नदी की धारा में उड़ ही जाएगा। गांव के लोग नदी का रूख देख तनाव में रहते हैं।
इसी गांव के नारायण चौधरी ने बताया कि हमारे गांव में 80 परिवार है। हम सभी को सरकार ने पुर्नवासित किया था लेकिन अब नदी की कटान से उजड़ रहे हैं। एक कालोनी जिसमें 60 घर थे, पूरी तरह उजड़ गयी। विस्थापित लोग जंगल किनारे बस गए लेकिन वन विभाग उन्हें हटा रहा है। यहा बसे लोगों को नोटिस दी गई है। कुछ लोगों पर केस दर्ज किया गया है।
पूर्व प्रधान विमल गोलदार कहते हैं कि नदी की कटान रोकने के लिए पहले बेडवायर बनाया गया। फिर ढाई किलोमीटर लम्बा तटबंध नेपाल बार्डर से नौजल्हा तक बना। यह तटबंध पीलीभीत जिले का पहला तटबंध है। तटबंध से 250 मीटर दूर पहले गांव हुआ करता था जो पांच वर्ष पहले नदी की कटान से उजड़ गया। इस गांव में 45 घर थे। कटान से उजड़ने के बाद कुछ लोग उधम सिंह नगर तो कुछ रामकोट चले गए। कुछ लोग आस-पास जहां जगह मिली बस गए। नदी का रूख पश्चिम की तरफ हो रहा है।
रामनगरा की भी यही कहानी है। यहां भी बंगाली शरणार्थियों को पांच-पांच एकड़ भूमि देकर बसाया गया था। रामनगरा निवासी युवा प्रहलाद सरकार, सतपाल सिंह, मनदीप सिंह, आनंद सरकार ने बताया कि 1964 में हमारे गांव को बसाया गया था। सभी को सरकार की ओर से पांच-पांच एकड़ भूमि दी गई थी। वर्ष 1999 में कटान में स्कूल, गुरू़द्वारा, गन्ना सेंटर , ईंट भट्ठा सहित सैकड़ों एकड़ खेत शारदा नदी में समा गए। आज जहां नदी बह रही है वहां तक अच्छा-खासा बाजार बसा था और यहां तक बस आती थी। अब यहां नदी बह रही है। कटान से 500 परिवार प्रभावित हुए हैं।
इन युवाओं का कहना था कि कटान को रोकने के लिए तटबंध बनाया गया। जियो बैग से भी कटान रोकने की कोशिश की जा रही है लेकिन यह ज्यादा असरकारी नहीं है। कटान प्रभावितों को कोई मदद नहीं दी गई है। नदी उस पार गांव के लोगों की करीब 800 एकड़ जमीन है लेकिन वन विभाग उसे अपनी जमीन बताते हुए हमें खेती करने से रोक रहा है। नदी की धारा गांव के करीब आ जाने से लोग नाव से नदी पार कर खेत जाते हैं और वहां से अपनी फसलें नावों के जरिए यहां तक लाते हैं। इससे खेती करने में काफी मुश्किल होती है। हम यहां पर धनहरा की तरह पांटून पुल की मांग कर रहे हैं लेकिन अभी तक हमारी सुनवाई नहीं हुई है। सरकार नाव तक नहीं दे रही है। अपनी व्यवस्था से हम नाव चलवा कर खेती-बारी कर रहे हैं। कटान से विस्थापित हुए लोग सिंचाई विभाग की जमीन छप्पर-टिन शेड डालकर रह रहे हैं।
पांच वर्षों से शारदा नदी के बायें तट पर राणा प्रताप नगर, नहरोसा में जबर्दस्त कटान हो रही है। राणा प्रताप नगर के बस स्टेशन के पास और नहरोसा गांव में कटान रोकने के लिए सिंचाई विभाग के बाढ खंड ने पर्क्युपाइन लगाया है। नहरोसा गांव के 45 वर्षीय इकरार ने बताया कि नदी की कटान से राणा प्रताप नगर से नहरोसा तक दो हजार एकड़ से अधिक कृषि भूमि का कटान हुआ है। राणा प्रताप नगर में ऐसा कोई परिवार नहीं है जिसका खेत नदी के कटान से बचा हो। लोगों को अब रोजगार के लिए पलायन करना पड़ रहा है। राजीवनगर के 150 परिवार कटान से विस्थापित होकर स्कूल के पास की जमीन में रह रहे हैं। हमारे गांव में नदी के कटान से खेती-बारी का काम एकदम ठप है। चार वर्ष पहले कटान प्रभावितों को प्रति एक एकड़ की दर से एक-एक हजार रूपए का मुआवजा मिला। इसके अलावा कोई अन्य सहायता नहीं मिली है।
वर्ष 2018-19 में कटान को रोकने के लिए बाढ़ खंड द्वारा शारदा नदी के दायें और बाएं तट पर राणा प्रताप नगर, राजीवनगर, विजय नगर, गौतमनगर, नहरोसा, चिडईया टोला, कुलवा फार्म, चकलउआ फार्म, टिब्बा, रामनगरा, पुरैना ताल्लुक महाराजपुर, बुझिया में सुरक्षा कार्य कराया गया है.
शारदा नदी के दाएं तट पर 4.360 किमी लम्बा मार्जिनल तटबंध बनाया गया है। इसी तरह कलीनगर से उधम सिंह नगर के खटीमा ब्लाक में 17.200 किलोमीटर लम्बा सनेड़ी तटबंध बनाया गया है। इसमें 12 किलोमीटर लम्बा तटबंध पीलीभीत जिले में आता है जबकि 5.200 किमी लम्बा उधम सिंह नगर के खटीमा ब्लाक में आता है।
शारदा नदी के प्रवाह मार्ग में बदलाव का कारण क्या है
शारदा नदी के कटान के कारणों को लेकर अलग-अलग राय है। किसान कटान का कारण सिल्ट जमाव, नदी के प्राकृतिक बहाव में रूकावट मानते हैं तो इंजीनियर नदी के बहाव दिशा में परिवर्तन को नदी की स्वभाविक क्रिया बताते हैं।
पीलीभीत जिले के आपदा प्रबंधन पुस्तिका में शारदा नदी की कटान के बारे में कहा गया है कि नेपाल से बाढ़ काल में अत्यधिक सिल्ट युक्त पानी शारदा नदी मे आता है जिससे तीव्र बहाव की प्रवृत्ति सर्पाकार (मेन्डरिंग ) गति हो जाने के कारण नदी कभी दाएं तट पर और कभी बाएं तट पर कटान करती हुई प्रवाहित होती रहती है।
बाढ़ खंड पीलीभीत के अधिशासी अभियंता शैलेश कुमार ने बताया कि पीलीभीत में शारदा नदी का ढाल बहुत ज्यादा है। पहाड़ से उतरते हुए नदी बड़ी मात्रा में सिल्ट लेकर आती है। जब पानी कम होता है तो सिल्ट एक तरफ बैठने लगती है और सख्त हो जाती है। इस कारण नदी दूसरी तरफ घूम जाती है। नदी दूसरे तरफ घूमती है तो उसमें प्रेशर ज्यादा होता है इसलिए वह तटों को काटने लगती है। शारदा नदी के बहाव को अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है। सुबह इसका बहाव कहीं और होता है तो शाम को कहीं और। जब नदी एक तरफ घूम जाती है तो उसे रोकना संभव नहीं हो पाता है। जैसे-जैसे नदी मैदान की तरफ बढ़ती है कटान कम होती जाती है।
उनका कहना था कि शारदा नदी वर्षों से दोनों तटों पर काट रही है। यह अनुमान लगाना काफी कठिन है कि वह किस तरफ कटान करेगी। नदी में पानी के कम और अधिक डिस्चार्ज पर कटान का रूख तय होता है। कटान को रोकने के लिए हम ठोकर बनाते हैं ताकि नदी बीच में बहे और किनारे को नहीं काटे। मैं तीन वर्ष से पीलीभीत जिले में हूं। मेरे हिसाब से नदी की कटान कम हुई है। पहले तो यह बहुत ज्यादा था। नदी की कटान रोकने के लिए लिए हम चंदिया हजारा गांव के पास प्रयोग के तौर पर ड्रेजिंग का काम कर रहे हैं। ड्रेजिंग के जरिए जिन स्थानों पर अधिक शिल्ट जमा है, उसे हटाया जाएगा और नदी का रूख बदलने की कोशिश की जाएगी। हमें देंखेंगे कि इसका कितना असर होता है।
श्री शैलेश कुमार का कहना है कि नदी का फ्लड प्लेन पांच किलोमीटर है। नदी इसी के अंदर इधर-उधर घूम रही है। नदी कृषि भूमि को काटती है तो छोड़ती भी है। जो कृषि भूमि कटान का शिकार हो रही है वह अधिकतर जंगल व नदी भूमि ही है। नेपाल के अंदर कोई तटबंध नहीं बन रहा है। वहां भी ठोकर ही बनाए गए हैं। करीब एक किमी लम्बा ठोकर बनाया गया है। हम भी जिन गांवों के पास नदी कटान कर रही है वहां ठोकर बना रहे हैं।
नहरोसा निवासी इकरार ठोकर निर्माण और ड्रेजिंग पर सवाल उठाते हैं। उनका कहना है कि कटान से बचाने के लिए ढकिया के पास जब ठोकर बनाया गया और नदी की ड्रेजिंग की गई तो राणा प्रताप नगर और नहरोसा में कटान शुरू हुई। ढकिया में ठोकर लगने की वजह से नदी हमारे गांव के पास आ गई। ड्रेजिंग और पर्क्युपाइन से धारा मोड़ने की कोशिश हुई तो नदी की एक धारा पश्चिम की तरफ चली गयी तो दूसरी धारा नहरोसा गांव के पास आ गई।
सिद्धनगर निवासी और हजारा के पूर्व प्रधान 86 वर्षीय अलाउद्दीन शास्त्री बताते हैं कि नदी का रूख तब बदलना शुरू हुआ जब पूरनपुर से इधर के गांवों को जोड़ने के लिए सड़क और पुल बनाया गया। सड़क काफी उंची बनायी गयी। तब मै जिले स्तर पर गठित 20 सूत्री कार्यक्रम की कमेटी में था। मैने इस कमेटी में डीएम के सामने सड़क को अधिक ऊँचा बनाने का विरोध किया और कहा कि इससे नदी के स्वभाविक प्रवाह में बाधा आएगी लेकिन इंजीनियरों ने कहा कि उनका कथन तकनीकी रूप से सही नहीं है। सड़क और पुल बनने के पहले बरसात के मौसम में सिद्धनगर स्थित मेरे घर तक नदी का पानी आता था और 24 घंटे में वापस भी चला जाता था लेकिन सड़क और पुल बनने से नदी की फैलाव कम होता गया और यहीं से तबाही की कहानी शुरू हुई। नदी के स्वभाविक प्रवाह में बाधा आयी तो उसने कटान शुरू कर दी।
सिद्धनगर के ही निवासी मुन्ना सिंह नदी की कटान को यहां की बलुई मिट्टी से जोड़ते हैं। उनका कहना है कि शारदा नदी पलिया धुरिया, कम्बोजनगर, टार्टरगंज, हजारा, सिद्धनगर, राघवपुरी, अशोक नगर, राणा प्रताप नगर की तरफ से कटान करते हुए राहुल नगर की तरफ बढ़ी है। नदी की कटान इसलिए यहां ज्यादा है क्योंकि इस इलाके की मिट्टी बलुई है। बलुई मिट्टी के कारण नदी नीचे से गहरी कटान करती जाती है। पूर्वांचल के गोरखपुर, बलिया जिले में 70 फीट नीचे तक पक्की मिट्टी है। इसलिए उन जगहों पर नदी की कटान कम है।
हिमालय से निकलने वाली नदियों में अपना प्रवाह मार्ग बदलने का स्वभाव आम तौर पर देखा जाता है। ऐसा स्वभाव ज्यादातार पूर्व गंगा प्लेन की नदियों जैसे कि कोसी, गंडक, बागमती आदि में देखा जा सकता है। इन नदियों के इस स्वभाव के कारण लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं और यही कारण है कि इन नदियों का काफी गहन अध्ययन भी हुआ है और इस परिस्थिति से निपटने के लिए कई किलोमीटर लम्बे तटबंध का निर्माण भी किया गया है। इससे नदियों के मार्ग बदलने की समस्या से लोगों को राहत मिली है लेकिन तटबंध के बाहर वाले क्षेत्र में जलजमाव की समस्या बहुत गंभीर हुई है। कई बार नदियां अपने तटबंधों को काटकर अपने पुराने मार्ग पर भी बही हैं।
पूर्वी गंगा प्लेन के मुकाबले पश्चिमी गंगा प्लेन की नदियों जैसे गंगा और यमुना को काफी स्थायी माना जाता है परन्तु इन पूर्वी और पश्चिमी नदियों के बीच कुछ नदियां ऐसी भी हैं जो अपना मार्ग और स्वभाव काफी तेजी से बदलती हैं। इनमें शारदा और घाघरा नदी प्रमुख है। घाघरा नदी पर कुछ शोध व अध्ययन हुए हैं क्योंकि इसका निचला इलाका तकरीबन हर वर्ष बाढ़ प्रभावित रहता है। शारदा नदी पर बहुत ज्यादा अध्ययन नहीं है। पूर्वी गंगा प्लेन्स की नदियों की तरफ शारदा नदी भी अपना मार्ग बहुत तेजी से बदलती पायी गयी है जिसके कारण हर वर्ष सैकड़ों लोग प्रभावित होते हैं। पूर्वी गंगा प्लेन में नदियों के मार्ग बदलने का कारण उनका छिछला होना और अपने साथ ढेर सारा अवसाद लाना बताया जाता है। शोध कार्यों से पता चलता है कि चूंकि नदियाँ अपने साथ ढेर सारा गाद लाती हैं और अपने साथ नीचे ले जाने में असमर्थ हो जाती हैं जिसकी वजह से यह गाद नदी की तलहटी में जमा हो जाता है और इसका स्तर उठ जाता है और वे दूसरी दिशा में बहने लगती है लेकिन क्या शारदा नदी भी इसी वजह से अपना मार्ग तेजी से बदलती है ?
नदियों के स्वभाविक प्रवाह को बांध, बराज भी बदलते हैं। शारदा नदी पर बनबसा पर बराज बना है तो लखीमपुर जिले में लोअर शारदा बराज बना है। इसके अलावा टनकपुर में एनएचपीसी का हाइड्रो प्रोजेक्ट स्थापित है।
पीलीभीत में शारदा नदी के दाएं किनारे पर 22 किलोमीटर लम्बा शारदा सागर डैम भी है। इस डैम में शारदा मुख्य नहर का पानी स्टोर किया जाता है और फिर इसे इसके जरिए नई शारदा पोषक (डिस्चार्ज 1000 क्यूसेक) और पुरानी शारदा पोषक डिस्चार्ज ( 4000 क्यूसेक ) के माध्यम से रबी की सिंचाई हेतु भरा जाता है तथा आउटलेट के माध्यम से हरदोई ब्रांच में मांग के अनुरूप पानी छोड़ा जाता है। इसका रख-रखाव शारदा सागर खंड पीलीभीत द्वारा किया जाता है। बांध का टाप लेवल 630.00 फीट है। यह शारदा नदी के दाएं किनारे पर है।
पर्यावरणविद व वैज्ञानिकों का मानना है कि बांध व बराज नदी के स्वभाव में बदलाव ला सकते हैं। ये ढांचे नदी के मार्ग में बैरियर का काम करते हैं। चूंकि ये नदी की धारा को रोकते हैं, नदी द्वारा लाया गया अवसाद वहीं जमा हो जाता है। बांधों व बैराजों के नीचे छोड़ा जाने वाला पानी अवसाद रहित या बहुत ही कम अवसाद लाता है जिसकी वजह से नदी के कार्य करने की क्षमता बढ जाती है और नदी अपने तटों को काटने लगती है। शारदा नदी के स्वभाव में बदलाव के पीछे इस प्रक्रिया के शामिल होने से इंकार नहीं किया जा सकता।
शारदा नदी के कटान के कारणों पर अध्ययन कम है। दिल्ली विश्वविद्यालय के भूर्गभ विज्ञान विभाग द्वारा किए गया शोध (इन्वेस्टिगेशन ऑफ़ द पीडमांट फाल्ट बिटविन द घाघरा एंड शारदा रिवर्स, साऊथ ऑफ़ द सेन्ट्रल हिमालय) नदी की मेंडरिंग को टेक्टानिक प्रक्रिया से जोड़ता है। इस शोध में कहा गया है कि शारदा नदी और घाघरा नदी के बीच के मैदान इलाके में एक नव निर्मित फाल्टलाइन मौजूद है। यह फाल्टलाइन हिमालय की टेक्टोनिक प्रक्रिया से बना है। शोधकर्ता विक्की शंकर और उनके निर्देशक दिल्ली विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. विमल सिंह ने बताया कि बहुत से शोध कार्यो से यह स्थापित हो चुका है कि हिमालय की उत्पत्ति के बाद से हिमालय पर्वत नए फाल्ट्स के द्वारा दक्षिण की तरफ बढ़ता जा रहा है। काफी समय तक शिवालिक और गंगा मैदान के सम्पर्क को ही हिमालय की सीमा या हिमालय माउंटेन फ्रंट माना जाता था किंतु 2008 में एक शोध प्रकाशित हुआ जिसमें बताया गया है कि हिमालयन माउंटेन फ्रंट के दक्षिण में भी एक फाल्ट लाइन मौजूद है जिसकी वजह से नदियों के स्वभाव में इस फाल्टलाइन के पास बदलाव देखा जा सकता है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के शोध में शारदा और घाघरा के बीच इसी फाल्टलाइन के मौजूद होने के सबूत पाए गए हैं। इस शोध के अनुसार दुधवा नेशनल पार्क वाला इलाका इस नए फाल्ट लाइन की वजह से आस-पास के इलाकों की अपेक्षा थोड़ा उठ गया है और फलस्वरूप शारदा, घाघरा ओर दोनों के बीच मौजूद शिवालिक से निकलने वाली नदियों ने अपना मार्ग बदला है और साथ ही उनके स्वभाव में परिवर्तन भी आया है। चूंकि कोई भी टेक्टोनिक प्रक्रिया एक नदी के पहले से चले आ रहे संतुलन को बदल देती है इसलिए एक नदी इस बदलाव से समायोजन करने के लिए अपने स्वभाव व मार्ग में परिवर्तन करती है। यही प्रक्रिया शारदा नदी में भी देखी जा सकती है। नदी उठी हुई जमीन को काटकर पुनः अपने पुराने स्तर पर जाने का प्रयास करती है जिसके कारण उसके अंदर गाद की मात्रा अधिक हो जाती है जिससे वह कुछ दूर जाने के बाद पश्चात ढो नहीं पाती और अपनी तलहटी पर छोड़ देती है जिससे उसका स्तर उंचा हो जाता है और वे अपने तटों को काटने लगती हैं। इसी प्रक्रिया के कारण उसका मार्ग परिवर्तित भी हो जाता है।
अब यह कहना मुश्किल है कि शारदा नदी के स्वभाव एवं मार्ग में बदलाव का कौन सा कारण प्रमुख है. इसको जानने के लिए गहन शोध की जरूरत है।