बच्चों के एक समूह ने जूम ऐप पर हुए एक वेबिनार में सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। असम पुलिस के महानिदेशक भास्कर ज्योति महंत ने बच्चों को बताया कि कोरोनो वायरस महामारी के दौरान किस तरह से स्वस्थ और सुरक्षित रहना है। उन्होंने समझाया कि सोशल डिस्टेंसिंग क्या है। साथ ही ये भी बताया कि किस तरह के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और यौन हिंसा से खुद को बचाया जा सकता है। इस पर भी बात हुई कि दुर्गम क्षेत्रों में ऑनलाइन शिक्षा के लिए क्या बाधाएं हैं। ये वेबिनार इसलिए संभव हो पाया क्योंकि मजीदभीटा में एक पुस्तकालय है। मजीदभीटा एक चार यानी नदी द्वीप है। मजीदभीटा उत्तर पूर्वी राज्य असम में ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी बेकी के तट पर है।
वेबिनार का आयोजन इस वर्ष की शुरुआत में असम पुलिस और एक एनजीओ उत्साह (यूटीएसएएच) द्वारा किया गया था। यह एनजीओ राज्य में बाल अधिकारों पर काम करता है। असम के 105 बच्चों ने वेबिनार में भाग लिया। सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के कारण मजीदभीटा के केवल पांच युवा भाग ले सकते थे।
उत्साह की स्थापना और नेतृत्व करने वाले मिगुएल दास क्वे ने कहा, “हम कमज़ोर बच्चों को उनके अधिकारों और अधिकारों को हासिल करने के तरीकों के बारे में जानकारी देने का एक मंच तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। दुर्गम क्षेत्रों में ग्रामीण पुस्तकालय, सीखने का एक केंद्र बन सकते हैं और संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के तहत अपने अधिकारों का उपयोग करने के लिए बच्चों को सशक्त बना सकते हैं। ”
अशिक्षा को रोकना
पराग कुमार दास ने चार लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर की स्थापना 2016 में झाई फाउंडेशन द्वारा की थी। यह केवल चार युवा स्थानीय स्वयंसेवकों द्वारा चलायी जाती है। इनमें एक विज्ञान स्नातक है और तीन ने हाई स्कूल पूरा किया है। वे छात्रों को अंग्रेजी, विज्ञान और गणित जैसे विषयों में मदद करते हैं। पहले तो, स्वयंसेवकों को घर-घर जाकर अभिभावकों से अपने बच्चों को पुस्तकालय में किताबें पढ़ने के लिए भेजने का आग्रह करना पड़ता था। अब, बच्चे इस सुविधा का पूरा उपोग कर रहे हैं और ये उनके बीच काफी लोकप्रिय है। जब पुस्तकालय खोला गया था, तो उसमें 5 रुपये सदस्यता शुल्क था, लेकिन यह नियम सख्ती से नहीं लगाया गया है। वहां पर 250 से अधिक परिवार हैं, जिनमें से 80 फीसदी से अधिक गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं। तीन प्राथमिक विद्यालय हैं। उच्च शिक्षा के लिए, छात्रों को द्वीप छोड़ना पड़ता है और नाव से जोखिम भरा सफर तय करना पड़ता है। नतीजतन, पुस्तकालय शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करता है और एक सीखने का केंद्र बन गया है।
कहानी और संदर्भ वाली पुस्तकों के अलावा पुस्तकालय में बच्चों को वीडियो दिखाने के लिए उपयोग किया जाने वाला एक लैपटॉप भी है। इस तरह, वे स्वदेशी मछली, पक्षियों और कीड़ों के बारे में सीखते हैं। साथ ही, आपदा-जोखिम प्रबंधन और बाल विवाह की बुराइयों पर यूनिसेफ द्वारा निर्मित वीडियो उन तक पहुंचते हैं। लाइब्रेरियन और इस पहल के अध्यक्ष ज़ाहेदुल इस्लाम ने कहा, “प्रौद्योगिकी ने जीवन बदल दिया है। इंटरनेट ने हमें दुनिया दिखाई है। गूगल और यू ट्यूब ने ज्ञान में क्रांति ला दी है। अगर हमारे पास 10 साल पहले इस तरह की एक लाइब्रेरी होती, तो हम मीलों आगे होते।
इस्लाम, उसी चार के निवासी हैं। उन्होंने हाई स्कूल तक पढ़ाई की है। यह एक ऐसे क्षेत्र में एक उपलब्धि है जहां लगभग 80 फीसदी निवासी निरक्षर हैं। इस्लाम कहते हैं, “मैं इस चार में बड़ा हुआ हूं। ज्ञान के प्रकाश को फैलाने में पुस्तकालय ने बहुत योगदान दिया है। अब, लॉकडाउन के दौरान, हम बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने में मदद कर रहे हैं। ”
मानसून के चलते अधिकांश चार में बाढ़ आ गई है और पुस्तकालय, जो सामान्य रूप से हर दिन खुला रहता है, अभी बंद है। हालांकि, इस्लाम, स्थानीय स्कूलों के वाट्सऐप ग्रुप्स में हैं और उनको शिक्षकों को नोट्स इस माध्यम से मिल जाते हैं जिसे वह 100 से अधिक बच्चों को उपलब्ध करा देते हैं। ये बच्चे नोट्स लेने के लिए उनके घर आते हैं।
चार का बौद्धिक केंद्र
पुस्तकालय टिन की चादरों से बना है। इसे ऊंचे स्थान पर बनाया गया है, जिससे यह बाढ़ के पानी से बच जाता है। बहुत से गरीब घरों ने भी इस डिजाइन को दोहराया है। लेकिन पुस्तकालय अभी भी चार में काफी ऊंचाई पर है। बाढ़ में यह एक तैरते हुए घर की तरह दिखता है।
एक नाव को भी इस तरह बनाया गया है, जिसका उपयोग एक अस्थायी कक्षा के रूप में किया जाता है, जब स्कूल की इमारतों में बाढ़ आ जाती है। हालांकि, इसकी मरम्मत की जरूरत है और महामारी के दौरान इसका उपयोग नहीं हुआ। द्वीप पर बिजली नहीं है, लेकिन पुस्तकालय में एक सौर-संचालित लैंप है। इस बीच, शहनाज परबीन जैसे स्वयंसेवक नदी द्वीप में एक अलग तरह की ज्ञान की रोशनी फैला रही हैं। वह कहती हैं, “पुस्तकालय सप्ताह में तीन दिन शाम 5 बजे तक खुला रहता है। कभी-कभी हमें माता-पिता को समझाना पड़ता है क्योंकि बच्चे घरेलू काम, खाना पकाने और खेत के काम में लगे होते हैं। कुछ किसानों को लगता है कि यह समय की बर्बादी है। जब मैं छोटी थी, तब कभी भी लाइब्रेरी नहीं गई। बच्चे इन किताबों से दुनिया के बारे में बहुत कुछ सीखते हैं। यह ऐसा है मानो दुनिया उनके हाथ में है।”
एक लाइब्रेरी कार्यकर्ता और कहानीकार रितुपर्णा नियोग, जो यू ट्यूब पर बच्चों के लिए साहित्य के बारे में वीडियो बनाते हैं, जून 2018 में 10 दिनों के लिए लाइब्रेरी में रहे। (अगर कोई यहां रहकर चार के अपने अनुभव साझा करना चाहता है तो उसके लिए एक अतिरिक्त कमरा है जिसमें बिस्तर और वॉशरूम हैं।) नियोग ने कहा, “मैं पहले कभी भी चार में नहीं गया था। मैंने बच्चों को कई कहानियां सुनाईं। बच्चों ने मुझे कुछ स्वदेशी खेल सिखाए जैसे कि डिग-डिग, जो कबड्डी जैसा है। ”
नियोग ने कहा कि पुस्तकालय परिवर्तन के लिए एक शक्तिशाली माध्यम है। एक शाम याद करते हुए वह बताते हैं कि जब एक मां पूछने आई कि क्या उन्होंने रात का खाना खाया है। खिड़की से झांक कर उसने अपने बेटे को किताबों में देखा और कहा, “मेरी जिंदगी खत्म हो गई है। मैं चाहती हूं कि वह अच्छी पढ़ाई करे और एक महान इंसान बने। ”
सामुदायिक और सांस्कृतिक पहल
पुस्तकालय का उपयोग सामुदायिक केंद्र के रूप में भी किया जाता है। किशोर लड़कियों को कई तरह की जानकारियां दी जाती हैं। मंजुवारा मुल्ला, एक स्वयंसेवक, नियमित रूप से मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में उनसे बात करती हैं। उन्होंने कहा, “हमने किशोर लड़कियों वाले परिवारों की सोशल प्रोफाइलिंग की है। हम किशोरावस्था में विवाह रोकने के लिए ठोस प्रयास कर रहे हैं और लड़कियों को उनके प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं। हम उनको रजाई बनाने की ट्रेनिंग देते हैं। उनको एक लाइब्रेरी में प्रशिक्षण दिया जाता है। हम आशा करते हैं कि कांथा (एक प्रकार की कढ़ाई) वाली रजाइयों को ऑनलाइन बेचने का काम आगे बढ़ेगा।
कभी-कभी पुस्तकालय सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए एक स्थान भी है, जहां लोग बैठ सकते हैं, गा सकते हैं और बहस कर सकते हैं। पुस्तकालय के संस्थापक अब्दुल कलाम आज़ाद ने कहा, “हमने एक बार जोरहाट से एक किसान समूह को आमंत्रित किया था। उन्होंने अपने मवेशियों के ख्याल रखने के तरीकों और बाढ़ के अनुभवों को साझा किया। हमने रात अपने-अपने क्षेत्रों के लोक गीत गाते हुए बिताई थी।
इसके अलावा, भारत और विदेश के कई विद्यार्थी और शोधकर्ता पुस्तकालय में आते हैं और स्थानीय समुदाय के साथ बातचीत करते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता अभिषेक चक्रवर्ती ने गुवाहाटी में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में अपने शोध प्रबंध के लिए नियमित रूप से दो साल तक पुस्तकालय का दौरा किया। चक्रवर्ती ने कहा, “मुझे महसूस हुआ कि इस तरह के प्रयास से कितना बदलाव लाया जा सकता है। अतिरिक्त इनपुट और स्टोरीबुक्स विशेषाधिकार प्राप्त कुछ के लिए हैं। ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जिनका हम महत्व नहीं समझते।” लाइब्रेरी के संस्थापक आजाद कहते हैं, “हम आसपास के चार में इस तरह के कुछ अन्य पुस्तकालयों का निर्माण करना चाहते हैं। हमें पहले उन लोगों के साथ तालमेल बनाना होगा। एक समर्पित स्थानीय स्वयंसेवक प्राप्त करना हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है।”
Teresa Rehman असम की पत्रकार और लेखक हैं