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मणिपुर में जातीय संघर्ष के बीच संकट में है लोकटक झील

जातीय संघर्ष, कुप्रबंधित विकास परियोजनाओं और जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत की प्रमुख लोकटक झील अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष करती नज़र आ रही है।
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<p>लोकटक झील में जाल डालते हुए एक मछुआरा। हाल ही में आई बाढ़ झील में गाद, सीवेज, प्लास्टिक और अन्य मलबे को बहाकर ले गई। जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ जैसी आपदाएं बढ़ती जा रही हैं। (तस्वीर: निंगथौजम विक्टर)</p>

लोकटक झील में जाल डालते हुए एक मछुआरा। हाल ही में आई बाढ़ झील में गाद, सीवेज, प्लास्टिक और अन्य मलबे को बहाकर ले गई। जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ जैसी आपदाएं बढ़ती जा रही हैं। (तस्वीर: निंगथौजम विक्टर)

287 वर्ग किलोमीटर तक फैली मणिपुर में स्थित लोकटक झील भारत की सबसे बड़ी मीठे पानी की झीलों में से एक है। इसके किनारे के गांवों में एक लाख से अधिक लोग रहते हैं, जो अपनी आजीविका के लिए इसकी मछलियों पर निर्भर हैं।

मणिपुरी संस्कृति और लोक कथाओं में इस झील की एक ख़ास जगह है। मई 2023 से यहां दो जातीय समूहों – मैतेई और कुकी – के बीच संघर्ष चल रहा है। इस बीच भी यह झील कई लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा के रूप में काम करती है।

झील के किनारे थिनुंगेई गांव में रहने वाले 50 वर्षीय लैशराम शांता एक लकड़हारे के रूप में काम करते थे। वह काम के लिए दूरदराज़ के पहाड़ी गांवों की यात्रा करते थे। लेकिन मणिपुर में जातीय हिंसा ने इस तरह की यात्रा को अब खतरनाक बना दिया है।

पिछले 14 महीनों में, 226 से अधिक लोग मारे गए हैं और कम से कम 67,000 लोग विस्थापित हुए हैं। इन वजहों से मणिपुर अब मैतेई और कुकी क्षेत्रों के बीच बट गया है। 

शांता ने झील को देवी बताते हुए कहा, “पहले हमारे गांव के लोग ज़्यादातर ग्रामीण चुराचांदपुर जिले [लगभग 50 किमी दूर] में काम करते थे, लेकिन इस संघर्ष के कारण, हमारे पास लोकटक इमा से शरण लेने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है।” 

लोकटक झील मणिपुर की अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग है। साल 2017 के एक अध्ययन का अनुमान है कि राज्य की 12% आबादी अपनी आजीविका के लिए इस पर निर्भर है। अब कुछ नए लोग भी मछली पकड़ने के काम में लग गए हैं। इन्हें नए मछुआरे कहा जाता है। लेकिन इनके सामने भी नई चुनौतियां हैं।

शांता ने कहा, “हमें जाल, डोंगी जैसे उपकरणों की ज़रूरत होती है और मछली पकड़ने और डोंगी चलाने का बुनियादी कौशल भी होना चाहिए।” 

लागत कम करने के लिए, ‘नए मछुआरे’ पुराने मछुआरों के आराम करने के लिए किनारे पर जाने का इंतज़ार करते हैं और फिर उनकी डोंगी और उपकरण, जैसे कि स्थानीय रूप से बनाया गया मछली पकड़ने का लंबा भाला, उधार लेने का इंतज़ार करते हैं।


पहले से ही दिक्कतें झेल रही झील पर अतिरिक्त दबाव

झील पर नए लोगों का आना-जाना काफी ज़्यादा हो गया है। हालांकि कोई आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं, लेकिन शांता का अनुमान है कि थिनुंगेई में, संघर्ष से पहले लगभग 100-150 लोग अपनी आजीविका के लिए मछली पकड़ते थे। अब, यह संख्या तीन गुना हो गई है, जिससे की झील के ईकोसिस्टम पर काफ़ी दबाव पड़ रहा है।

A basket of small fish viewed from above
मणिपुर में लोकटक झील में पकड़ी गई छोटी मछलियां। राज्य में रहने वाले आठ में से लगभग एक व्यक्ति अपनी आजीविका के लिए किसी न किसी तरह से झील पर निर्भर है। (फोटो: निंगथौजम विक्टर)

चंपू खंगपोक गांव की निवासी खोइरोम किरणबाला कहती हैं, “लोकटक इमा को पहले आराम मिल जाता था।” चंपू खंगपोक एक ऐसा गांव है जो झील के अंदर फुमदी (एक तैरता हुआ बायोमास या ‘द्वीप’) पर तैरता है। लेकिन संघर्ष के बाद से, “लोकटक को कोई आराम नहीं मिला है, क्योंकि कई लोग दिन के साथ-साथ रात में भी मछली पकड़ते हैं।” 

वह कहती हैं: “क्योंकि अब नए मछुआरे भी हमारे भाई और रिश्तेदार हैं और उन्हें बहुत ज़रूरत है, इसलिए हम उन्हें झील से बाहर नहीं निकाल सकते, भले ही हमारी अपनी आय में अधिक प्रतिस्पर्धा के कारण काफ़ी गिरावट आई हो।” 

मई 2024 में उच्च तीव्रता सी ओले पड़ने और बाढ़ के साथ असामान्य मौसम पैटर्न ने समस्या को और बढ़ा दिया है। किरणबाला बताती हैं कि बाढ़ के बाद के प्रभाव के रूप में, “लोकटक गाद, सीवेज, प्लास्टिक, मलबे और सभी प्रकार के प्रदूषकों से भर गया है। इसलिए, प्रदूषण और बदबूदार पानी के कारण मछली पकड़ना बंद हो गया है। कई मछलियां भी मर गई हैं।” 

अनदेखा होने का लंबा इतिहास

फिलहाल यह उन समस्याओं की लंबी श्रृंखला में से सबसे नया है, जिसने लोकटक झील को ख़तरे में डाला है। यह मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड के तहत सूचीबद्ध दो भारतीय झीलों में से एक है। मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड पर्यावरणीय क्षरण का सामना कर रही महत्वपूर्ण आर्द्रभूमि प्रणालियों की एक रजिस्ट्री है। समस्याएं 1983 से चली आ रही हैं, जब लोकटक जलविद्युत परियोजना के हिस्से के रूप में इथाई बैराज का निर्माण किया गया था। बैराज ने इरावदी नदी से प्रजनन के लिए ऊपर की ओर आने वाली मछलियों के प्रवास को अवरुद्ध कर दिया। इससे स्थानीय मछली की प्रजातियां विलुप्त हो गईं। जवाब में, मछली के भंडार को बढ़ाने और अपनी आजीविका के लिए अपने शिकार पर निर्भर मछुआरों की सहायता करने के लिए झील में कॉमन कार्प और अन्य गैर-देशी मछलियां डाली गईं। 

ऑल लोकतक लेक एरियाज फिशरमैंस यूनियन, मणिपुर के सचिव ओइनम राजेन ने कहा, “मत्स्य विभाग द्वारा हर साल मछली के अंडे जारी किए जाने के बावजूद, इसमें गिरावट आई है, जिससे मछुआरों में गंभीर तनाव पैदा हो गया है।” राजेन ने कहा कि इसके घटने के कारण आर्थिक अनिश्चितता ने मछुआरों को हतोत्साहित किया और “कई लोग काम के लिए कहीं और चले गए।” स्थानीय मछुआरों के संघ के सचिव ओइनम राजेन लोकतक झील के किनारे खड़े हैं।

A man wearing an Asian conical hat stands in front of cows grazing in a green area, mountains in the distance
स्थानीय मछुआरों के संघ के सचिव ओइनम राजेन लोकतक झील के किनारे खड़े हैं। मछलियों की संख्या को बहाल करने के प्रयासों के बावजूद, 1980 के दशक में झील के नीचे की ओर एक बांध के निर्माण के बाद से इसमें में कमी आई है। (तस्वीर: निंगथौजम विक्टर)

2017 में, मणिपुर के मुख्यमंत्री ने जलविद्युत परियोजना को बंद करने का सुझाव दिया। यह पहली बार था कि सत्ता में बैठी किसी पार्टी ने इस तरह की कार्रवाई का प्रस्ताव दिया था। इसके बावजूद, जब 2018 में परियोजना की आधिकारिक उत्पादकता समाप्त हो गई, तो इसको 2023 तक पांच साल के लिए बढ़ा दिया गया। अब प्लांट चलाने वाली एनएचपीसी इसको 25 साल और बढ़ाने की मांग कर रही है। इससे स्थानीय समुदायों और यहां तक कि लोकटक विकास प्राधिकरण (एलडीए) (झील के संचालन की मुख्य कार्यकारी निकाय) की तरफ़ से आलोचना हो रही है। 

कानूनों की अनदेखी और जलवायु परिवर्तन का असर 

इथाई बैराज लोकटक झील को बर्बाद करने वाला एकमात्र मुद्दा नहीं है, लेकिन यह इस बात का संकेत है कि नीति निर्माताओं द्वारा स्थानीय चिंताओं को गंभीरता से लेने में कितना ज़्यादा समय लगता है। एक अन्य उदाहरण अगस्त 2017 से चल रहे एक कानूनी मामले से जुड़ा है, जब मणिपुर उच्च न्यायालय ने राज्य की आर्द्रभूमियों यानी वेटलैंड्स की निगरानी की ज़िम्मेदारी ली थी। इसमें मुख्य फोकस लोकटक झील, अंतर्राष्ट्रीय महत्व के रामसर आर्द्रभूमि स्थल पर था।

तब से लेकर अब तक इस पर तकरीबन 80 सुनवाई हो चुकी है। अदालत के कुछ आदेश बेहद गंभीर हैं। उदाहरण के लिए, 2020 में एक विस्तृत आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि ऐसा लगता है कि मणिपुर राज्य वेटलैंड्स प्राधिकरण को एलडीए द्वारा शुरू की जा रही एक परियोजना के बारे में पता नहीं था। फरवरी 2022 के आदेश में, अदालत ने दोहराया कि, 2020 में अपने पहले के फैसले के अनुसार, एलडीए को तब तक कोई विकास परियोजना नहीं शुरू करनी चाहिए जब तक कि उचित योजनाओं को औपचारिक रूप नहीं दिया जाता। 

नागरिक समाज समूह इंवायरमेंटल सपोर्ट ग्रुप ने इस बात पर तीखी टिप्पणी की कि कैसे मणिपुर की मुख्य संस्थाओं ने पर्यावरण कानून की अनदेखी करते हुए स्थानीय लोगों की कीमत पर बार-बार परियोजनाओं को आगे बढ़ाने की कोशिश की थी। 

इन सब के ऊपर जलवायु परिवर्तन अतिरिक्त चुनौतियां पेश कर रहा है। जल विज्ञान पर एक हालिया पेपर में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि आने वाले वर्षों में पूर्वोत्तर भारत के बड़े हिस्से में बारिश और गर्मी का मौसम रहेगा, मॉनसून के दौरान लोकटक झील में पानी का बहाव काफ़ी बढ़ जाएगा। इससे बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा।

Green vegetation floating the surface of a lake
मणिपुर के लोकटक झील में तैरती फुमदी। फुमदी वनस्पति, मिट्टी और कार्बनिक पदार्थों का एक ढेर है जो अपघटन के विभिन्न चरणों में है। (तस्वीर: निंगथौजम विक्टर)

अब तक लोकटक संकट के समय में शरण देता आया है। जैसा कि शांता ने कहा: “अगर परोपकारी लोकतक एमा न होती, तो मुझे नहीं पता होता कि इन कठिन समयों में जीविका के लिए क्या करना है।” लेकिन आधिकारिक उपेक्षा और जलवायु परिवर्तन के संयोजन से झील पर दबाव बढ़ रहा है। यह कितने समय तक सुरक्षित आश्रय प्रदान करना जारी रख सकता है, यह स्पष्ट नहीं है।

ओमेर अहमद के इन्पुट्स के साथ।