दक्षिण कश्मीर के संगम और श्रीनगर के राम मुंशीबाग इलाकों में पानी के स्तर बढ़ने के बाद 22 जून को सरकार ने कश्मीर घाटी में बाढ़ की चेतावनी दी थी। पानी का स्तर आधिकारिक तौर पर “बाढ़ के खतरे” वाले स्तर से नीचे था। लेकिन नदी के पानी ने श्रीनगर के बेमिना क्षेत्र में 20 से अधिक घरों की दो कॉलोनियों में पानी भर दिया। उत्तरी कश्मीर के बारामूला जिले के कम से कम तीन गांव अचानक बाढ़ की चपेट में आ गए।
कुछ दिनों बाद बारिश कम हो गई, और साथ ही बाढ़ का पानी भी वापस जाने लगा, लेकिन नदी का पानी जुलाई तक ऊंचे स्तर पर चलता रहा। फिर 29 जुलाई को कश्मीर के मौसम विभाग ने तीन दिनों तक लगातार बारिश के बाद ‘येलो वार्निंग’ जारी की। श्रीनगर में मौसम विभाग के उप निदेशक मुख्तार अहमद ने द् थर्ड पोल को बताया, “बाढ़ की संभावना हो सकती है।”
कश्मीर में, 2014 की विनाशकारी बाढ़ की यादें अभी भी लोगों के बीच मौजूद है। हाल की चेतावनियों ने इस क्षेत्र की बाढ़ प्रबंधन योजनाओं की प्रभावशीलता पर कुछ सवाल खड़े किए हैं।
2014 के बाद कैसी रही बाढ़ प्रबंधन योजना
सितंबर 2014 में, झेलम नदी के क्षेत्र के कई हिस्सों में उफान के बाद कश्मीर घाटी में अब तक की सबसे भीषण बाढ़ आई थी। इस बाढ़ में 300 से अधिक लोग मारे गए थे और अरबों की संपत्ति का नुकसान हुआ था।
इस विनाशकारी बाढ़ के तुरंत बाद, केंद्र सरकार ने झेलम नदी और उसकी सहायक नदियों के लिए बाढ़ प्रबंधन योजना को मंजूरी दी। इस परियोजना को प्रधान मंत्री डेवलपमेंट पैकेज के माध्यम से फंड्ज़ दिए गए थे। और इस योजना को दो चरणों में विभाजित किया गया था।
पहले चरण के लिए 399 करोड़ रुपये सैंगशन किए गए थे जो अभी तक पूरा नहीं हुआ है। इस चरण में तलछट हटाने के लिए नदी की ड्रेजिंग करने की बात थी। ड्रेजिंग का मतलब है किसी भी नदी या झील के अंदर से भारी मशीन इस्तेमाल करके कीचड़ को निकालना। सरकार ने दावा किया कि यह चरण झेलम की निर्वहन क्षमता को 31,800 क्यूसेक से बढ़ाकर 41,000 क्यूसेक कर देगा। इसका मतलब यह है कि नदी अपने किनारों को ओवरस्पिल किए बिना लगभग 25% अधिक पानी के लिए जगह बना सकती है।
क्यूसेक एक निश्चित बिंदु से बहने वाले फ्लूइड जैसे की पानी की मात्रा बताता है। “क्यूबिक” से “क्यू” और “सेकंड” से “सेक”। इसका मतलब है कि एक सेकंड में कितने क्यूबिक फीट फ्लूइड बहता है। एक क्यूसेक 28.32 लीटर प्रति सेकेंड के बराबर होता है।
झेलम नदी दक्षिण कश्मीर में वेरीनाग से बहती है, उत्तर की ओर श्रीनगर से होकर उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा जिले में वूलर झील तक पहुँचती है। 103 धाराओं और सहायक नदियों से पहुंचने वाले पानी के लिए झेलम नदी एकमात्र जल निकासी चैनल है।
कश्मीर के सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण (आईएफ एंड सी) विभाग के अनुसार, पहले चरण का मुख्य उद्देश्य झेलम नदी और उसके मौजूदा बाढ़ स्पिल चैनल में कम से मध्यम परिमाण की बाढ़ से निपटने के लिए प्रमुख बाधाओं को दूर करना था। झेलम का बाढ़ स्पिल चैनल श्रीनगर के दक्षिण से वूलर झील तक चलता है, और इसका उद्देश्य है अतिरिक्त पानी को हटाना।
आईएफ एंड सी विभाग के एक अधिकारी ने द् थर्ड पोल को बताया कि बाढ़ प्रबंधन योजना के पहले चरण के तहत काम में मध्य कश्मीर के बडगाम जिले के शरीफाबाद क्षेत्र में और उत्तरी कश्मीर के नायदखाई गांव में बाढ़ फैलाने वाले चैनल की ड्रेजिंग शामिल है, ताकि इसे चौड़ा किया जा सके और इसकी वहन क्षमता बढ़ाई जा सके। इन जगहों पर दो पुल भी बनाए गए थे। नदी की वहन क्षमता बढ़ाने के लिए श्रीनगर और बारामूला जिलों में झेलम का ड्रेजिंग किया गया था।
विभाग ने बाढ़ फैल चैनल को चौड़ा करने के लिए 214.75 एकड़ राज्य भूमि और निजी भूमि का भी अधिग्रहण किया था।
आलोचना में वित्तीय हेराफेरी के आरोप भी शामिल
जून 2021 की एक रिपोर्ट में, भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक यानी सीएजी जो सरकारी कार्यों की सभी प्राप्तियों और व्यय का ऑडिट करने वाले अधिकारी हैं, उन्होंने आवश्यक लक्ष्यों को प्राप्त करने में बड़ी चूक के लिए आईएफ एंड सी विभाग की आलोचना की।
8%
सीएजी की एक रिपोर्ट के अनुसार, खानबल और कदलपाल के बीच नदी तल सामग्री के 142,000 क्यूबिक मीटर के लक्ष्य में सिर्फ़ 8% ड्रेजिंग की गई थी।
झेलम नदी के दो खंडों में हुए विकास पर आधारित सीएजी के रिपोर्ट के महत्वपूर्ण हिस्से में ये बताया गया है कि 1.42 लाख (142,000) क्यूबिक मीटर नदी तल सामग्री के लक्ष्य का केवल 8% तल सामग्री खानाबल और कदलपाल के बीच निकाला गया था, और 0.6 लाख (60,000) क्यूबिक मीटर के लक्ष्य के बावजूद, सेथर और सेम्पोर के बीच झेलम से कोई सामग्री नहीं निकाली गई।
सीएजी की रिपोर्ट में वित्तीय अनियमितताओं को भी उजागर किया गया था। खासकर उन मामलों को जिसमें अधिकारियों ने निश्चित राशि से अधिक पैसे खर्च करने वाले कागज़ पर हस्ताक्षर कर दिया था। 25 जुलाई 2022 को, जम्मू और कश्मीर और लद्दाख के हाई कोर्ट ने भी बहाली परियोजना के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रदान किए गए धन के उपयोग पर प्रतिक्रिया मांगी।
परियोजना का पहला चरण कोलकाता स्थित कंपनी रीच ड्रेजिंग लिमिटेड द्वारा शुरू किया गया था। ड्रेजिंग को मार्च 2018 में पूरा किया जाना था, लेकिन कंपनी कई बार अपने डेड्लाइन से चूक गई और अप्रैल 2018 में आईएफ एंड सी विभाग द्वारा संचालन को बंद करने के लिए कहा गया। विभाग ने अभी तक परियोजना को पूरा नहीं किया है।
आईएफ एंड सी विभाग में कश्मीर क्षेत्र के मुख्य अभियंता नरेश कुमार ने द् थर्ड पोल को बताया, “97% काम [पहले चरण पर] पहले ही पूरा हो चुका है, बाकी का 3% सितंबर 2022 तक पूरा हो जाएगा।”
विभाग के अन्य अधिकारियों ने उनकी पहचान साझा ना करने के शर्त पर द् थर्ड पोल को बताया कि 2016 की गर्मियों में अशांति और साइट की बाधाओं के कारण डेड्लाइन पीछे छूट गई थी। ये खासकर शहर के हिस्से में हुआ। अधिकारियों ने कहा कि कम तापमान और ठंड की वजह से सर्दियों के महीनों के दौरान भी काम में देरी हुई, क्योंकि ज्यादातर मजदूर भारत के उन क्षेत्रों से आए थे, जहां कभी ऐसी ठंड का अनुभव नहीं हुआ था।
सीएजी रिपोर्ट में बिल्कुल रहम नहीं खाई। रिपोर्ट में कहा गया था कि ठेकेदार समय प्रबंधन में अपने दायित्वों को पूरा करने में नाकामयाब रहें और इस बात के लिए उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए। हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि नदी तल सामग्री के 7 लाख (700,000) क्यूबिक मीटर के कुल लक्ष्य का 98% ड्रेजिंग आखिरकार कर ही दिया गया था, लेकिन इसमें ये भी कहा गया है कि “निकर्षण छह साइटों पर निर्धारित आवश्यकताओं के अनुसार नहीं किया गया था। असलियत में, तीन जगहों पर 0.58 लाख घन मीटर [58,000 घन मीटर] अतिरिक्त बिस्तर सामग्री निकाली गई; दूसरी ओर, एक साइट पर बिल्कुल भी ड्रेजिंग नहीं की गई थी और दो साइटों पर कम ड्रेजिंग की गई थी।
बारिश और नदी में बढ़ते पानी की वजह से कई सवाल उठते हैं
जून में कुछ दिनों की बारिश के बाद ही पानी का स्तर बाढ़ के खतरे के स्तर तक बढ़ गया था। श्रीनगर के कर्णनगर इलाके में रहने वाले व्यापारी हिलाल अहमद मीर जैसे कई स्थानीय निवासियों ने अपनी निराशा व्यक्त की।
मीर पूछते हैं, “यह बिल्कुल पैसे की बर्बादी है। अगर कुछ दिनों की बारिश के बाद नदी फिर से उफान पर आ जाती है तो 399 करोड़ रुपये कहां गए?”
ड्रेजिंग प्रक्रिया का बारीकी से पालन करने वाले सिविल इंजीनियर इफ्तिखार अहमद द्राबू का तर्क है कि ड्रेजिंग शुरू करने के लिए अधिकारी नदी के गलत हिस्सों को चुनते हैं।
द्राबू ने कहा, “निकर्षण ऊपरी इलाकों में किया गया था – जिससे शहर [श्रीनगर] बाढ़ के प्रति अधिक संवेदनशील हो गया।” उन्होंने आगे तर्क दिया कि बाढ़ के खतरे को कम करने के लिए झेलम को अतिरिक्त चैनलों की आवश्यकता है। उन्होंने अतिरिक्त पानी रखने के लिए दो समानांतर चैनलों के निर्माण का समर्थन करते हुए कहा कि अकेले ड्रेजिंग से समस्या का समाधान नहीं होगा।
अगर कुछ दिनों की बारिश के बाद नदी फिर से उफान पर आ जाती है तो 399 करोड़ रुपये कहां गए?हिलाल अहमद
वहन क्षमता में बढ़ोतरी से जुड़े सरकार के दावों पर सवाल उठाते हुए द्राबू पूछते हैं कि शहर एक बार फिर बाढ़ के खतरे को क्यों देख रहा है?
आईएफ एंड सी के नरेश कुमार ने इस सवाल पर ध्यान देने के बजाय कि बाढ़ का खतरा कम क्यों नहीं हुआ, इस बात पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि योजना को क्या हासिल करना चाहिए था। उन्होंने द् थर्ड पोल को बताया कि बाढ़ प्रबंधन योजना के पहले चरण का प्रमुख उद्देश्य बाढ़ फैल चैनल में बाधाओं और बाधाओं को दूर करना था। उन्होंने कहा, “यह झेलम नदी से पड़शाही बाग में अतिरिक्त बाढ़ के पानी को 48 किलोमीटर की यात्रा के बाद सीधे वूलर झील में बदलने के लिए महत्वपूर्ण था”। उनका मतलब यह था कि पानी अभी भी बढ़ सकता है लेकिन अगर बाधाएं दूर हो जाएंगी तो उन्हें कोई खतरा नहीं होगा।
श्रीनगर सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग के एक कार्यकारी अभियंता एजाज अहमद कीन ने द् थर्ड पोल को बताया: “द्वितीय चरण में, आउटफ़्लो को बढ़ाने के लिए निचले क्षेत्रों में ड्रेजिंग किया जाएगा।”
सीएजी की रिपोर्ट द्वारा उठाए गया प्रमुख मुद्दा ये था कि “काम नियमों और शर्तों के अनुसार नहीं हुआ था [और] बढ़े हुए प्रवाह के लिए झेलम नदी में ड्रेजिंग कार्यों की प्रभावकारिता को सीमित करेगा।” उठाए गए बिन्दु इस बात से बिल्कुल संबंधित नहीं थे। द् थर्ड पोल ने सीएजी रिपोर्ट की आलोचनाओं के संबंध में आईएफ एंड सी विभाग से संपर्क किया, लेकिन विभाग ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, और यह बताने से इनकार कर दिया कि क्या उन्होंने रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया दर्ज की है।
8 जुलाई को, जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने झेलम नदी और उसकी सहायक नदियों के बाढ़ प्रबंधन के दूसरे चरण के लिए 16.23 अरब रुपये आवंटित किए है।