पर्यावरणविदों ने द् थर्ड पोल के साथ बातचीत में ऐसी आशंका व्यक्त की है कि असम में संरक्षित वनों (प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट्स) के बीच से होकर बिछाई जा रहीं तेल और गैस की चार पाइपलाइन वन्यजीवों के लिए “विनाशकारी” हो सकती हैं।
फ़ॉसिल फ़्यूल यानी जीवाश्म ईंधन की खोज और उत्पादन के क्षेत्र में काम कर रही ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) अपने उत्पादन को बढ़ाने के उद्देश्य से एक पाइपलाइन का पुनर्निर्माण और तीन पाइपलाइनों का निर्माण कार्य कर रही है। द् थर्ड पोल ने उन दस्तावेजों को देखा है जिनसे पता चलता है कि इन पाइपलाइनों के लिए कुल 40 हेक्टेयर से अधिक जंगल साफ़ किए जाएंगे।
देहिंग पटकाई नेशनल पार्क के करीब से होकर ये पाइपलाइनें गुजरेंगी। भारत के लोलैंड रेनफ़ॉरेस्ट यानी तराई वर्षावन का सबसे बड़ा हिस्सा देेहिंग पटकाई नेशनल पार्क में है। यह कई लुप्तप्राय प्रजातियों का निवास स्थान है जिनमें पश्चिमी हूलॉक गिबन और सफ़ेद पंखों वाले बतख शामिल हैं। सफेद पंखों वाला बतख असम का राजकीय पक्षी है।
संरक्षित जंगलों के रास्ते से गुजरने वाली पाइपलाइनें
असम के पूर्व में बसा डिगबोई नामक कस्बा, देहिंग पटकाई नेशनल पार्क से तकरीबन 25 किमी दूर है। यहां ओआईएल, भारत की सबसे पुरानी रिफाइनरी चलाती है। इस रिफाइनरी को 1954 से ही दुलियाजान शहर से लगभग 35 किमी की दूरी पर स्थित एक पंप स्टेशन से कच्चा तेल मिलता रहा है। इस रिफाइनरी को कच्चा तेल दुलियाजान-डिगबोई रोड के साथ बिछाई गई पाइपलाइन के जरिए मिलता है। दुलियाजान-डिगबोई रोड की बात करें तो देहिंग पटकाई नेशनल पार्क इसके नजदीकी बिंदु से केवल 2.5 किमी ही है।
कंपनी ने अब लगभग 70 साल पुरानी पाइपलाइन को बंद करने और सड़क के दूसरी तरफ एक नई पाइपलाइन बिछाने का फैसला किया है। द् थर्ड पोल ने उन दस्तावेजों को देखा है जिनसे पता चलता है कि पाइपलाइन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा – 16.4 किमी – डिगबोई वन प्रभाग के भीतर एक आरक्षित वन से होकर गुजरता है। (कानून के मुताबिक, संरक्षित वन क्षेत्र के भीतर कुछ गतिविधियां नहीं हो सकती हैं। हालांकि राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों की तुलना में यहां कम प्रतिबंध हैं।)
इस नई तेल पाइपलाइन को बिछाने के साथ ही, इसके समानांतर एक नई प्राकृतिक गैस पाइपलाइन बिछाई जा रही है। गैस की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए यह गैस पाइप लाइन बिछाई जा रही है जो डिगबोई के निकट कुशीजन से दुलियाजान तक ईंधन लेकर जाएगी।
850 पेड़ों की कटाई और 7.5 मीटर सड़क को चौड़ा करने के साथ-साथ 13 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि के क्लीयरेंस की अनुमति दे दी गई है।
एक स्थानीय पर्यावरणविद् मृदु पबन फुकोन का कहना है कि अधिकांश ट्री कैनोपीज़, जो पश्चिमी हूलॉक गिबन्स के लिए जरूरी निवास स्थान प्रदान करती हैं, डिगबोई-दुलियाजान सड़क के साथ वाले हिस्से में आती हैं।
ओआईएल 60 किलोमीटर लंबी पाइपलाइनों की दूसरी जोड़ी भी बिछा रहा है। ये अरुणाचल प्रदेश के कुमचाई क्षेत्र से असम के कुशीजन तक तेल और गैस का ट्रांसपोर्ट करेंगी। ये पाइपलाइनें डिगबोई वन प्रभाग और पास के ही डूमडूमा वन प्रभाग में 18 किमी से ज्यादा दूरी तक संरक्षित वनों से होकर गुजर रही हैं।
इस परियोजना में 15 मीटर तक एक सड़क को चौड़ा किया जाएगा और 27 हेक्टेयर वन भूमि को साफ किया जाएगा। इसमें 2,144 पेड़ों को काटा जाएगा जिनमें हॉलोंग के पेड़ भी शामिल हैं। यह असम का लुप्तप्राय राजकीय पेड़ है।
ओआईएल के चीफ जनरल मैनेजर और प्रवक्ता भैरव भूयन ने द् थर्ड पोल को बताया कि सभी चार पाइपलाइनों पर काम नवंबर 2022 में शुरू हुआ था और मार्च, 2023 में इनके पूरा होने की उम्मीद है।
पाइपलाइन देहिंग पटकाई के वाइल्डलाइफ के लिए एक खतरनाक हैं
राजधानी गुवाहाटी से लगभग एक दिन की ड्राइव पर स्थित देहिंग पटकाई लैंडस्केप 600 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसमें 20 आरक्षित वन हैं। साथ ही, इसमें 230 वर्ग किमी देहिंग पटकाई नैशनल पार्क भी शामिल हैं।
ये नैशनल पार्क एक जैव विविधता केंद्र यानी बायोडायवर्सिटी हब है, जो की 47 प्रजातियों, 127 ऑर्किड्स और 310 तितलियों का निवास है। यहां पाई जाने वाली लुप्तप्राय प्रजातियों में स्लो लोरिस, कैप्ड लंगूर, पिग-टेल्ड मकाक और असमिया मकाक के साथ ही पश्चिमी हूलॉक गिबन और सफेद पंख वाले बतख शामिल हैं। यह क्षेत्र हाथियों के लिए एक कॉरिडोर भी है। पर्यावरणविदों को डर है कि इतने सारे पेड़ों की कटाई से गिबन्स का निवास स्थान बिखर जाएगा।
हूलॉक गिबन्स भारत में पाई जाने वाली एकमात्र लंगूर प्रजाति (एप्स) हैं और ये पूर्वोत्तर वाले राज्यों के जंगलों में रहते हैं। ये मुख्य रूप से फल खाते हैं। फॉरेस्ट कैनपी (वर्षावन में कई जीव पेड़ों की पत्तियों के घने जाल में रहते हैं) में रहते हैं। ये एक ही साथी के साथ संबंध में (मोनोगामयस) रहते हैं और टेरिटोरियल यानी देशीय हैं।
पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले पूर्वोत्तर भारत के एक एनजीओ, अरण्यक में प्राइमेट रिसर्च एंड कंजर्वेशन डिवीजन के प्रमुख दिलीप छेत्री का कहना है कि पाइपलाइनें बिछाने से गिबन्स की पहले से ही गिरती आबादी को गहरा झटका लगेगा। छेत्री ने कहा कि 2005 के एक अध्ययन में पाया गया था कि पूर्वोत्तर भारत में लगभग 10,000 पश्चिमी हूलॉक गिबन्स थे, जिनमें से 7,000 असम में थे, लेकिन तब से “उनकी संख्या में काफी कमी आई है।
छेत्री बताते हैं कि डूमडूमा वन प्रभाग में, 2019-20 में एक अध्ययन के दौरान, संभाग के 20 आरक्षित वनों में से आठ आरक्षित वनों में हमने एक भी गिबन नहीं देखा। वह यह भी बताते हैं कि कैनपी कवर के नुकसान का सीधा प्रभाव गिबन्स की आबादी पर असम के भेरजन-बोरजन-पदुमनी वन्यजीव अभयारण्य के बोरजन में देखा गया है। साल 1995 में बोरजन में गिबन्स के 15 समूह थे। प्रत्येक परिवार में दो से चार सदस्य थे जबकि वर्तमान में केवल एक समूह है। छेत्री का कहना है कि अगर प्रजातियों को संरक्षित किया जाना है तो पश्चिमी हूलॉक गिबन्स के निवास स्थल के भीतर या उसके आसपास, किसी भी विकास परियोजना के प्रभाव का आकलन किया जाना चाहिए।
सफेद पंखों वाले बतख के खतरे को लेकर भी पर्यावरणविद् चिंतित हैं। भारत ये केवल असम और अरुणाचल प्रदेश में पाए जाते हैं। पर्यावरणविद् फुकोन ने कहा कि पाइपलाइनें बिछाए जाने के दौरान, खोदी गई मिट्टी का डिस्पोजल, जरूरी दिशानिर्देशों का पालन किए बिना ही कर दिया जाता है। यह हालात प्राकृतिक जल धाराओं को रोक रहा है। वह बताते हैं कि सफेद पंखों वाले बतख के लिए खतरा यह है क्योंकि वे जंगलों के तालाबों में रहना पसंद करते हैं। पेड़ों को काटना, सफेद पंखों वाले बतखों और ऑस्टिन के भूरे रंग के हॉर्नबिल्स, दोनों के लिए विनाशकारी होगा क्योंकि वे घोंसला बनाने के लिए ट्री कैविटीज यानी पेड़ों के खाली जगहों का इस्तेमाल करते हैं।
पिछले साल 29 नवंबर को, फुकोन ने भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को देहिंग पटकाई के आरक्षित वनों के अंदर पाइपलाइन बिछाने से जुड़ी परियोजनाओं की समस्याओं के बारे में लिखा था। उन्होंने द् थर्ड पोल को बताया कि इको-सेंसिटिव जोन में एक्स्कवेटर्स और बुलडोजर्स जैसी तेज आवाज करने वाली मशीनों के इस्तेमाल से पर्यावरण नियमों का उल्लंघन हो रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि इससे हाथियों की आवाजाही बाधित हो रही है क्योंकि यह पूरा वर्षावन 200 से अधिक हाथियों की आबादी वाला एक एलिफैंट कॉरिडोर है। इन वजहों से ये विशालकाय जानवर रिहायशी इलाकों की ओर रुख कर सकते हैं। इतना ही नहीं, निर्माण कार्य के कारण सड़क पार करने में असमर्थ होने के बाद ये फसलों और घरों को नुकसान पहुंचाएंगे।
आस-पास के गांवों के निवासियों ने दिसंबर 2022 में द् थर्ड पोल को बताया कि उन्होंने पिछले एक महीने के दौरान अपने धान के खेतों में हाथियों की लगातार हलचल देखी थी।
ओआईएल और वन विभाग का क्या कहना है?
ओआईएल के प्रवक्ता भैरव भूयन ने द् थर्ड पोल को बताया कि पाइपलाइन कॉरिडोर्स बनाने के लिए पेड़ों की कटाई “कम से कम” होगी। वह कहते हैं कि किसी अपरिहार्य आवश्यकता के मामले में पेड़ों की कटाई की स्थिति आने पर यह काम वन विभाग द्वारा किया जाएगा। पाइपलाइन के रास्ते में आने वाले छोटे पौधों को फिर से लगाया जा रहा है।
डिगबोई-दुलियाजान पाइपलाइन के विषय पर, भुइयां ने कहा: “एक ही स्थान पर एक नई पाइपलाइन के साथ एक पुरानी पाइपलाइन को बदल पाना संभव नहीं है क्योंकि इससे सुरक्षा जोखिम हो सकता है। नियमानुसार आपसी दूरी बनाए रखना भी जरूरी है और बड़े-बड़े पेड़ों को काटे बिना सड़क के एक ही तरफ पर्याप्त जगह उपलब्ध नहीं थी। नई पाइपलाइन के चालू होने के बाद, वनस्पतियों और जीवों को नुकसान पहुंचाए बिना, पुरानी पाइपलाइन को अधिकतम संभव सीमा तक दोबारा चालू किया जाएगा।”
हमें नेशनल पार्क के करीब पाइपलाइन बिछाने जैसे कार्यों के लिए किसी पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता नहीं है।डिगबोई डिवीजन के डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर टीसी रंजीत राम
डिगबोई डिवीजन के डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर टीसी रंजीत राम ने दावा किया कि डिगबोई-दुलियाजान सड़क के साथ पाइप लाइन बिछाने के लिए अब तक केवल तीन पेड़ काटे गए हैं। साथ ही, जंगलों का कम से कम नुकसान सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास किए गए हैं। हम ओआईएल अधिकारियों के साथ बातचीत कर रहे हैं और उनसे कहा है कि वे इस तरह से पाइपलाइन बिछाएं कि जैव विविधता के साथ ज्यादा छेड़छाड़ न हो। अब तक, हमने पश्चिमी हूलॉक गिबन्स की कोई कैनेपीज नहीं काटी हैं। कैनेपीज तब तक नहीं काटी जाएंगी जब तक कि परियोजना के लिए ऐसा करना बिल्कुल जरूरी न हो जाए। हमें नेशनल पार्क के करीब पाइपलाइन बिछाने जैसे कार्यों के लिए किसी पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता नहीं है।
दूसरी पाइपलाइन को लेकर टीसी रंजीत राम कहते हैं कि अरुणाचल प्रदेश से तेल और गैस पाइपलाइन बिछानेे के लिए पेड़ों की गणना [कटाई के लिए चिह्नित] की गई है, लेकिन हमने अभी तक वन क्षेत्र में काम शुरू नहीं किया है। ओआईएल ने वाइल्डलाइफ मिटिगैशन एंड कंजर्वेशन प्लान के लिए परियोजना लागत के 2 फीसदी का भुगतान भी कर दिया है।