जंगल

क्या आग की मदद से जंगलों की आग को रोका जा सकता है?

पारंपरिक तौर-तरीकों को दोबारा ज़िंदा करके हिमालय में चरागाह पारिस्थितिकी तंत्र को विनाशकारी जलवायु परिवर्तन से प्रेरित जंगल की आग से बचाया जा सकता है।
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<p>भूटान के एक वन अधिकारी ने उत्तर-पश्चिम भूटान के मेवांग गेवोग में एक प्रायोगिक क्षेत्र में सावधानीपूर्वक आग लगाई। (फोटो: सुष्मिता कुंवर / ईसीमॉड)</p>

भूटान के एक वन अधिकारी ने उत्तर-पश्चिम भूटान के मेवांग गेवोग में एक प्रायोगिक क्षेत्र में सावधानीपूर्वक आग लगाई। (फोटो: सुष्मिता कुंवर / ईसीमॉड)

इस साल हिंदू कुश हिमालय के पहाड़ों में जंगल की आग खूब भड़की हुई है। उत्तराखंड में 1,500 हेक्टेयर से ज़्यादा जंगल जल गए। वहीं, नेपाल में मार्च में सैकड़ों हेक्टेयर और अप्रैल में एक हज़ार से ज़्यादा हेक्टेयर में जंगल जल गए।

इस तरह की आग बेहद भयावह और विनाशकारी होती है। वैसे, 10,000 से ज़्यादा वर्षों से उत्तरी अमेरिका में सेंट्रल एपलाशियन और कैलिफ़ोर्निया के जंगलों से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक में, हर जगह स्थानीय समुदाय भी अपने जंगलों और चरागाहों को प्रबंधित करने के लिए जलाने की कुछ विधियों का इस्तेमाल करते रहे हैं। 

औपनिवेशिक काल के दौरान और उसके बाद दुनिया के कई हिस्सों में इन प्रथाओं को दबा दिया गया था। लेकिन अब संरक्षण से जुड़े हलकों में यह मान्यता बढ़ रही है कि अगर समझदारी के साथ नियंत्रित तरीके से आग जलाई जाए, तो स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र के प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण उपकरण हो सकता है। यह पौधों की वृद्धि को बढ़ावा दे सकता है, पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ा सकता है और अवांछित प्रजातियों को नियंत्रित कर सकता है।

वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी शुष्क मौसम की ओर ले जा रही है। अग्नि शमन और हाल के वक्त में आक्रामक प्रजातियों के चलते बायोमास के निर्माण हुए हैं। इसकी वजह से जंगल, आग लगने की घटनाओं के लिहाज से बेहद संवेदनशील हो गए हैं। इसमें हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र भी शामिल है। 

इससे अब यह बात साफ हो चली है कि आग प्रबंधन की पुरानी तकनीकों पर फिर से नज़र डालने का समय आ गया है।

भूटानी चरागाहों में झाड़ियों का आक्रमण

भूटान के थिम्पू प्रांत के मेवांग के गेवोग (गांव के एक समूह की एक प्रशासनिक इकाई) के काफी ऊंचे घास के मैदान, बेकार झाड़ियों के आक्रमण से जूझ रहे हैं। रोडोडेंड्रोन और बर्बेरिस खुले घास के मैदानों में फैल रहे हैं, जो पहले से ही सीमित चरागाह क्षेत्रों पर अतिक्रमण कर रहे हैं।

ब्लू पाइन, एक लचीला वृक्ष प्रजाति है, जिसके पौधे घने खरपतवार और झाड़ियों के बीच भी पनपने में सक्षम हैं, यह भी बढ़ रहा है। इससे जंगलों में वनस्पति विविधता कम हो रही है और जल स्रोत सूख रहे हैं। इससे भी बदतर स्थिति यह है कि यह एक ऐसा पेड़ है जिसकी पतली छाल और उथली दरारें इसे अत्यधिक ज्वलनशील बनाती हैं। इससे जंगल में आग लगने का उच्च जोखिम पैदा होता है।

A mountainside scene of pine trees and dry shrubs
भूटान में एक पहाड़ी पर बरबेरिस (बरबेरी झाड़ी) और नीला चीड़। इन पौधों की अधिक वृद्धि जंगली खुर वाले जानवरों और पशुओं के लिए चरागाह को कम करती है। (फोटो: यी शालियांग / ईसीमॉड)

भूटान में पिछले चार दशकों में पारंपरिक चरागाह प्रबंधन प्रथाओं जैसे कि नियंत्रित तरीके से आग लगाना पर नीतिगत प्रतिबंधों ने इन चरागाहों को उपेक्षित कर दिया है। और क्षेत्र से लकड़ी की झाड़ियों और आक्रामक पौधों को भौतिक रूप से हटाना लगभग असंभव है। 

चरवाहा समुदायों की परेशानी 

सोनम शेरिंग, थिम्पू के बारशोंग के 27 वर्षीय चरवाहे हैं। उनका जीवन उनके 81 याक और उनके तीन लोगों के परिवार के इर्द-गिर्द घूमता है।

अपने परिवार के दो बच्चों में वह सबसे बड़े हैं। इसी कारण उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल करने का विकल्प नहीं चुना। उन्होंने पारंपरिक पशुपालन का विकल्प चुना जिससे वह अपने परिवार की जीविका में मदद कर सकें। लेकिन अब उनको अपने जीवन के तरीके को बनाए रखना कठिन होता जा रहा है। 

सोनम कहते हैं, “पहले चरागाह भूमि हरी-भरी थी, जिसमें हमारे याक के लिए भरपूर चारा था। अब यह एक अलग कहानी है। घास दुर्लभ है। घास जितनी कम होगी, याक उतने ही कम स्वस्थ होंगे।” वह बताते हैं कि घास की उपलब्धता और गुणवत्ता से उनके पोषण पर सीधा असर पड़ता है। वे हर मौसम के साथ याक को कमजोर होते हुए देख रहे हैं। वे न केवल उनकी जीवन शक्ति में गिरावट देखते हैं, बल्कि दूध और पनीर की गुणवत्ता और मात्रा में भी गिरावट देखते हैं।

Two people stand outside a low wooden house in a mountainous area
भूटान के थिम्पू जिले में अपने घर के पास सोनम शेरिंग और उनकी मां। चरागाहों के क्षरण से चरवाहा समुदायों के जीवन और आजीविका पर असर पड़ रहा है। (फोटो: सुष्मिता कुंवर / ईसीमॉड)

सोनम और उनके जैसे हजारों लोगों के लिए, उनका भविष्य पहाड़ी चरागाहों के स्वास्थ्य पर टिका हुआ है।

भूटान के भूमि पट्टा नियम और विनियम 2018 के तहत इन चरागाहों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया है और चरवाहों को पट्टे पर दे दिया गया है। इनके पास अब इन लैंडस्केप के प्रबंधन की जिम्मेदारी भी है। इससे पारंपरिक प्रबंधन प्रथाओं को दोबारा जिंदा करने का अवसर पैदा होता है, जिसमें आग का उपयोग भी शामिल है।

पुनर्स्थापना की ज़रूरत

 हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में चरागाह पारिस्थितिकी तंत्र, प्रकृति और उन लोगों के बीच साथ-साथ जीने वाले आपसी संबंधों का परिणाम है जो पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं: कई खुले चरागाह, विशेष रूप से सबअल्पाइन जंगलों में, लंबे समय से नियमित रूप से जलाना जैसी मानव प्रबंधन गतिविधियों द्वारा बरकरार रखा गया है।

इसके अलावा, विभिन्न क्षेत्रों में चरागाहों पर अतिक्रमण को नियंत्रित करने में पारंपरिक जलाने की प्रथाओं को लागत प्रभावी पाया गया है। और यह बरबेरिस जैसी लंबी झाड़ियों और नीले पाइन जैसे पेड़ प्रजातियों के खिलाफ प्रभावी हो सकता है। रोडोडेंड्रोन लेपिडोटम जैसी छोटी झाड़ियों को अन्य अप्रिय पौधों के साथ जलाया जा सकता है।

खरपतवार और आक्रामक प्रजातियों से अलग तरीके से निपटने की जरूरत है: उनको सीधे-सीधे निकाल देना, हर्बिसाइट का प्रयोग करना, आवश्यक प्रजातियों के साथ फिर से बीज बोना और संबंधित स्थान का बेहतर प्रबंधन। 

इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि इन सभी समाधानों को विज्ञान और साक्ष्यों का समर्थन हो। और इन समाधानों के नीतियों और मानक संचालन दिशानिर्देशों द्वारा निर्देशित होने की भी आवश्यकता है।

आग की शक्ति का दोहन

भले ही भूटान खुद कभी उपनिवेश नहीं रहा, लेकिन इसके कानून पड़ोसी देशों के कानूनों की तरह ही हैं, जहां औपनिवेशिक युग के दौरान और उसके बाद इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। चरागाहों पर झाड़ियों के अतिक्रमण की गंभीरता और इसके परिणामों को पहचानते हुए, भूटान का वन और प्रकृति संरक्षण अधिनियम 2023 आग को एक रणनीतिक उपकरण के रूप में स्वीकार करता है, जिसमें कहा गया है, “वन और उद्यान सेवा विभाग आवास प्रबंधन और जंगल की आग की रोकथाम के लिए नियंत्रित या निर्धारित जलाने की अनुमति दे सकता है।”

निर्धारित जलाने के कार्यान्वयन को कारगर बनाने के लिए, विभाग ने यूके फॉरेन कॉमनवेल्थ एंड डेवलपमेंट ऑफिस और रॉयल गवर्नमेंट ऑफ भूटान के पशुधन विभाग द्वारा वित्तपोषित आईसीआईएमओडी के हिमालयन रिजिलियन्स इनैबलिंग एक्शन प्रोग्राम के तहत स्थानीय समुदायों और विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम किया। इसका उद्देश्य आवास प्रबंधन और चारागाह सुधार दोनों के लिए चरागाहों में निर्धारित जलाने के लिए नए तकनीकी दिशा-निर्देशों को क्षेत्र में उपयोग करना और लोगों के बीच प्रदर्शित करना है। 

आग एक शातिर उपकरण है
लोबज़ैंग दोरजी, भूटान के वन और उद्यान सेवा विभाग

हालांकि, अधिकारी इस दिशा में सावधानी से आगे बढ़ रहे हैं। वन और उद्यान सेवा विभाग के निदेशक लोबज़ैंग दोरजी ने कहा, “आग एक शरारती उपकरण है। निर्धारित जलाने के प्रयासों के नियंत्रण से बाहर होने और पूरे वन क्षेत्र को जला डालने की कई घटनाएं हुई हैं। सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश होने चाहिए।”

50 से अधिक वन अधिकारियों और विशेषज्ञों की एक टीम ने अप्रैल में मेवांग गेवोग में चरागाह के एक हिस्से में निर्धारित जलाने की चरण-दर-चरण प्रक्रिया को सावधानीपूर्वक पूरा किया। टीम ने पेड़ों की कटाई-छंटाई और उन्हें पतला करने सहित अन्य प्रबंधन प्रथाओं को भी लागू किया।

आगे की तरफ बढ़ते प्रयास

पारंपरिक चरवाहा प्रथा को कम करके आंका जाता है, भले ही यह चरागाह के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। 

झाड़ियों के अतिक्रमण जैसी चुनौतियां बढ़ रही हैं, ऐसे में यह आकलन करना जरूरी है कि इससे निपटने के लिए क्या-क्या संभावित उपाय हो सकते हैं। 

चरागाह के सीमित हिस्से पर परीक्षण किए गए बहाली पैकेज की दीर्घकालिक सफलता अभी निर्धारित की जानी है। 

हालांकि, अधिक आंकड़े और अनुभव प्राप्त करने और निर्धारित जलाने के लिए तकनीकी दिशानिर्देशों को बेहतर बनाने के लिए इसे अन्य स्थानों पर बढ़ाने का प्रयास जारी है। एक बार जब परीक्षणों के परिणाम आ जाते हैं, उनके प्रभाव की पुष्टि हो जाती है और भूटान की सरकार द्वारा तकनीकी दिशानिर्देशों का समर्थन किया जाता है, तो निर्धारित जलाने जैसे उपाय चरागाह प्रबंधन के लिए एक मानक अभ्यास बन सकते हैं। 

इन पायलट प्रोजेक्ट्स से मिले सबक इस क्षेत्र के अन्य देशों में उपयोगी साबित हो सकते हैं जो पारिस्थितिकी तंत्र के क्षरण और जंगल की आग के समान खतरों का सामना करते हैं। यह विचार करने योग्य है कि क्या अन्य देश पहाड़ों में नियंत्रित जलाने पर नए सिरे से विचार कर सकते हैं।