हर साल की तरह इस वर्ष भी बिहार में बाढ़ आयी। कोरोना की मार से पहले से परेशान उत्तर बिहार के जिलों के लोगों को इस बार की बाढ़ न दोहरा दुःख दिया। हजारों बाढ़ पीड़ितों को अपने घर-गांव से विस्थापित होकर तटबंधों और हाइवे पर शरण लेनी पड़ी। विस्थापित जीवन एक-दो का एक सप्ताह का नहीं एक महीने से अधिक समय तक रहा। हजारों गरीबों की झोपड़ियां बाढ में दह गयी या जलजमाव में गिर गयी। धान और गन्ने की फसल को व्यापक नुकसान हुआ है जिसकी वजह से लोगों को लम्बे समय तक आर्थिक-सामाजिक संकट से जूझना पड़ेगा।
बिहार के आपदा विभाग के अनुसार इस वर्ष बिहार के 16 जिलों के 130 प्रखंड के 1333 गांव बाढ़ से प्रभावित हुए। बाढ़ से कुल 83,62,451 की आबादी प्रभावित हुई। कुल 27 लोगों की जान गई। बाढ़ से धान और गन्ने की फसल को व्यापक नुकसान हुआ है। बिहार सरकार अभी फसलों को हुए नुकसान का आकलन कर रही है।
वर्ष 2019 में अक्टूबर महीने तक बिहार के 15 जिलों के 90 प्रखंड की 20 लाख आबादी बाढ़ से प्रभावित हुई थी। कुल 73 लोगों की जान गयी थी। वर्ष 2019 में 26 जिलों के 1724 गांव बाढ़ से प्रभावित हुए। कुल 30 लोगों की जान गयी थी।
इस वर्ष बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित जिलों में सीतामढ़ी, दरभंगा, मुजफफरपुर, पूर्वी चम्पारण, समस्तीपुर, सारण जिले रहे। इस बार गंडक, बूढी गंडक, बागमती, लखनदेई, अवधारा समूह की नदियों ने सर्वाधिक क्षेत्र को प्रभावित किया। गंडक और बूढी गंडक नदी पर आधा दर्जन स्थानों पर तटबंध टूटे। गंडक नदी पर पूर्वी चम्पारण जिले के संग्रामपुर ब्लक के गांव में तटबंध टूटने से गंडक नदी की बाढ़ ने करीब 50 वर्ग किमी इलाके को बाढ़ की चपेट में ले लिया।
गोपालगंज जिले में गंडक नदी पर बने तटबंध के टूटने से गोपालगंज जिले के पांच ब्लाकों के 66 गांव तो बाढ़ से प्रभावित हुए ही, सीवान जिले के चार ब्लाकों के 44 गांवों में भी बाढ़ का पानी फैल गया।
जुलाई के आखिरी सप्ताह में नेपाल में हुई भारी बारिश से वहां से आने वाली सभी नदियों में डिस्चार्ज काफी बढ़ गया। गंडक नदी में डिस्चार्ज चार लाख क्यूसेक से अधिक हो गया और गंडक नदी पर बना तटबंध कई जगहों पर टूट गया। इसकी वजह से पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चम्पारण, मुजफफरपुर, गोपालगंज, सारण, सीवान के सैकड़ों गांव बाढ़ की चपेट में आ गए।
पूर्वी चम्पारण के संग्रामपुर प्रखंड के भवानीपुर गांव के पास रात ढाई बजे तटबंध करीब 400 मीटर के दायरे में टूट गया। इस स्थान पर गंडक नदी का रूख कई वर्षों से तटबंध की तरफ हो गया था। नदी तटबंध के करीब आते गयी थी। तटबंध टूटने से तटबंध के पास स्थित भावानीपुर गांव में सबसे अधिक तबाही हुई। लोगों को रातोरात जान बचाने के लिए बच्चों-मवेशियों के साथ भागना पड़ा। गांव के सैकड़ों कच्चे घर पूरी तरह से ढह गये। उसमें रखा अनाज व जरूरी समान बह गया और पानी में डूब कर खराब हो गया।
टूटे तटबंध से नदी का पानी पूर्वा चम्पारण से होते हुए मुजफफरपुर जिले के पारू ब्लाक तक पहुंच गया। पारू ब्लाक के क्षेत्र गंडक नदी पर तटबंध बनने के कारण बाढ़ से सुरक्षित हो गए थे लेकिन भवानीपुर गांव के पास तटबंध टूटने से उन्हें भी बाढ़ का सामना करना पड़ा। इस इलाके की धान की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गयी है।
इस वर्ष औसत से 20 फीसदी ज्यादा बारिश
बिहार के जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार इस वर्ष की बाढ़ का प्रमुख कारण नेपाल के जलग्रहण क्षेत्र और बिहार में काफी बारिश का होना। दोनों स्थानों पर हुई बारिश के कारण बाल्मीकिनगर बराज से गंडक नदी में लगभग 4 लाख 36 हजार क्यूसेक पानी का डिस्चार्ज हुआ है। इसी दौरान बिहार के इस इलाके में 200 एम0एम0 से अधिक औसत बारिश हुई है, जिसके कारण सारण बांध से करीब 5 लाख 35 हजार क्यूसेक जलश्राव हुआ। इसके कारण गोपालगंज के डुमरिया घाट के पास जलस्तर 64.36 मीटर दर्ज किया गया, जो 2017 के उच्चतम जलस्तर से 26 सेंटीमीटर अधिक है।
जल संसाधन मंत्री ने बताया कि 19 से 21 जुलाई के बीच हुई बारिश के कारण 5 लाख 36 हजार क्यूसेक पानी प्रवाहित हो रहा था। इसको लेकर कई जगहों पर सीपेज और पाइपिंग की समस्या आयी है, जिसको रिपेयर कर दिया गया है। तीन स्थानों पर तटबंध भी टूटा।
आपदा विभाग के अनुसार इस वर्ष अगस्त महीने तक औसत से 20 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है लेकिन उत्तरी बिहार के बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले जिलों- पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चम्पारण, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, छपरा, समस्तीपुर, दरभंगा, सीतामढ़ी, सुपौल, सहरसा, मधेपुरा में औसत से 30 से 50 फीसदी अधिक बारिश हुई है।
तटबंध और हाइवे पर जीवन
बाढ ने लाखों बाढ़ पीड़ितों को तटबंध, हाइवे और बाढ़ शिविरों में रहने को मजबूर कर दिया। इन बाढ़ पीड़ितों के घर गिर गए हैं या उनमें चार से पांच फीट तक पानी भरा है। मुज़फ्फरपुर के पारू प्रखंड के सिंगाही गांव पर कई किलोमीटर तक तटबंध पर बाढ़ पीड़ितों का डेरा पड़ा है। यह तटबंध सम्पर्क सड़क के रूप में भी कार्य करती है। बड़ी संख्या में बाढ़ पीड़ितों के तटबंध पर आने से इस सम्पर्क मार्ग पर चार पहिया वाहनों को आवागमन बंद हो गया है।
पूर्वी चम्पारण जिले के संग्रमापुर प्रखंड के भवानीपुर में 23 जुलाई की रात चम्पारण तटबंध 50 फीट के दायरे में कट गया। तटबंध कटने से तटबंध के बाहर बसे भवानीपुर के दो टोले कुशवाहा टोला व निराली टोला में पानी भर गया। दक्षिण भवानीपुर के 12 वार्ड और उत्तरी भवानीपुर के पांच वार्ड में पांच फुट तक पानी भर गया। तटबंध के टूटे हिस्से से गंडक नदी का पानी करीब 20 किलोमीटर दूर तक फैल गया और पचास हजार की आबादी बाढ़ से प्रभावित हुई। बाढ़ के पानी ने स्टेट हाइवे को भी क्षतिग्रस्त किया। कई दिन तक आवागमन बंद रहा है। स्टेट हाइवे के किनारे कई पक्के मकान को पानी धार ने जर्जर कर दिया।
इस समय एक किलोमीटर से अधिक दूरी तक सैकड़ों परिवार अभी भी तिरपाल के टेंट में रह रहे हैं। अगस्त महीने के तीसरे सप्ताह तक इन्हें चूड़ा, गुड़ और एक बार पानी की एक-एक बोतल के अलावा और कुछ नहीं मिला था। दर्जनों लोगों की झोपड़ी के घर ध्वस्त हो गए हैं। भागीरथी की झोपड़ी गिर गयी है। ममता देवी की तीन झोपडी गिर गयी है। लोगों के अनाज सड़ गए हैं। कई मवेशियों की मौत हो गयी है।
नवल किशोर कुशवाहा, शर्मा महतो, शिवजी कुशवाहा, नायक कुशवाहा, शिवपूजन कुशवाहा, नागेश्वर कुशवाहा, मोहन प्रसाद ने बताया कि तटबंध के कटे हिस्से को बांधने में प्रशासन ने जल्दी दिखायी लेकिन इससे हम लोगों की आज तक कोई ठोस मदद नहीं हो पायी। तटबंध पर रह रहे लोगा सांपों के भी शिकार हो रहे है। चारो तरफ पानी भरे होने के कारण सांप बचने के लिए तटबंध पर चले आए हैं। इस तटबंध पर दो लोगों की सर्पदंश से मौत हुई है। दो किशारों को भी सांप ने काट लिया लेकिन वे किसी तरफ बच गए।
गोपालगंज से मुजफ्फरपुर होते हुए दरभंगा तक फोरलेन हाइवे और मुजफ्फरपुर से पूसा जाने वाले मार्ग और मुजफ्फरपुर से सीतमाढी हाइवे पर बाढ़ पीड़ितों का तांता लगा हुआ था। बाढ़ पीड़ितों के आ जाने के कारण कई स्थानों पर फोरलेन हाइवे को एक तरफ से बंद करना पड़ा।
मोतीहारी से मुजफ्फरपुर जाने वाले फोर लेन हाइवे दो दर्जन से अधिक बाढ पीडित मिले। ये बाढ़ पीडित मोतीहारी के बारा बैसवां गांव के थे। राजू सहनी ने बताया कि वे एक महीने से हाइवे पर रह रहे हैं। पानी खिसकने से बहुत से वापस गांव चले गए है। प्रशासन ने करीब एक सप्ताह तक कम्यूनिटी किचन की व्यवस्था की। अब ये बाढ़ पीड़ित खुद अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी का इंतजाम कर रहे हैं। राजू साहनी ने बताया कि सभी पुरूष काम की तलाश में निकले हैं। गांव में सभी के घर गिर गए हैं। सरकार की ओर से बरसाती, चूड़ा मिला है। नकद धनराशि नहीं मिली है।
बिहार में बाढ़ कोई नयी बात नहीं है। हर वर्ष आने वाली बाढ़ से लाखों की आबादी प्रभावित होती है। बाढ़ से लोगों का घर, फसल सब नष्ट हो जाता है। सरकार हर वर्ष गुड़, चिउड़ा और प्लास्टिक शीट बांट देती है और बाद में उनके खातों में सहयता राशि भेज देती है। सरकार के रिकार्ड के अनुसार लाखों लोगों को यह सहायता राशि दी जाती है लेकिन मौके पर जाने पर सहायता राशि न मिलने की शिकायतें बहुतायत में सुनायी देती हैं।
नदियों का नैहर उत्तर बिहार
उत्तरी बिहार में कुल तीन दर्जन से अधिक नदियां प्रवाहित होती है। इसमें से अधिकतर नेपाल से आने वाली नदियां हैं। इतनी अधिक नदियों के कारण ही उत्तरी बिहार को नदियों का नैहर कहा जाता है।
इन नदियों में गंडक और कोसी बड़ी नदियां हैं जिसकी बाढ़ से बड़ी आबादी प्रभावित होती है। इन दोनों नदियों के दोनों तटों पर तटबंधों का निर्माण कर दिया गया है। दोनों नदियों पर नेपाल से हुए समझौते के अनुसार बराज बनाया गया है और नहरें निकाली गयी हैं। गंडक पर बाल्मीकिनगर में बराज बना है कोसी पर वीरपुर में बराज बना है। दोनों बराजों, नहरों और नदी पर बने तटबंधों की देखरेख का जिम्मा बिहार के जल संसाधन विभाग के जिम्मे है।
इसके बावजूद जितनी बड़े क्षेत्र और आबादी को बाढ़ से बचाने का दावा किया जाता है, उससे कही अधिक क्षेत्र हर वर्ष बाढ़ व जलजमाव से प्रभावित होता है।
द्वितीय बिहार राज्य सिंचाई आयोग ने उत्तरी बिहार के 37 नदियों-घाघरा, गंडक, बूढी गंडक, बागमती-अधवारा, कमला बलान, कोसी, महानंदा, गंगा, को चिन्हित किया। इन्हें सात नदी बेसिन में बांटा है। इन नदियों का भौगोलिक क्षेत्र 50 लाख हेक्टेयर से अधिक है।
आजादी के बाद से नदियों को तटबन्धों में कैद किया गया
आजादी के बाद से बाढ़ से बचाव के लिए तटबन्ध निर्माण को एक जादुई समाधान के रूप में पेश किया गया और हर वर्ष सैकड़ों किलोमीटर तक तटबंध का निर्माण होता रहा। यह सिलसिला आज तक रूका नहीं है।
हर वर्ष तटबंधों के निर्माण, उनकी मरम्मत, उच्चीकरण, सुदृढीकरण का बजट अब डेढ हजार करोड़ रूपए तक पहुंच गया है। तटबंधों पर पानी की तरह पैसा बहाने के बावजूद ये तटबंध हर साल टूटते हैं और बाढ़ की विभीषिका को बढ़ाते जाते हैं। आज बिहार में प्रमुख नदियों की जितनी लम्बाई से उससे अधिक उनके दोनों तटों पर तटबन्ध बन गए हैं।
बिहार की बाढ़ व नदियों पर मानीखेज काम करने वाले वरिष्ठ इंजीनियर व लेखक दिनेश कुमार मिश्र ने अपनी किताब ‘ दुई पाटन के बीच में… ’ बताया है कि आजादी के बाद पहली बाढ नीति को 1954 में स्वीकार किया गया था। उस समय बिहार में जमींदारी और महाराजी तटबन्धों के अलावा बिहार में तटबन्धों की लम्बाई 160 किलोमीटर थी। उस समय बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रफल 25 लाख हेक्टेयर था।
जल संसाधन विभाग के ताजा आंकड़ों के अनुसार बिहार की 13 नदियों-गंगा, कोसी-अधवारा, बूढी गंडक, किलु हरोहर, पुनपुर, महानंदा, सोन, बागमती, कमला बलान, गंडक, घाघरा और चंदन नदी पर अब तक कुल 3790 किलोमीटर तटबन्ध का निर्माण हो चुका है।
द्वितीय बिहार राज्य सिंचाई कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार 1992 तक बिहार की नदियों पर 3454 किलोमीटर तक तटबन्ध बन चुका था। इसके बाद के करीब तीन दशक में 350 किलोमीटर लम्बा तटबन्ध और बना है।
वर्ष 2005 से 2010 के बीच बागमती, गंडक और कोसी पर करीब 70 किलोमीटर लम्बे तटबन्ध का निर्माण किया गया। इसी तरह 2010 से 2012 के बीच बागमती, भुतही बलान और कमला पर 67 किलोमीटर और उसके बाद से अब तक बागमती, कमला, अधवारा, चंदन आदि नदियों पर करीब 50 किलोमीटर तटबन्ध का निर्माण हुआ है।
गंडक पर 511.66, बूढी गंडक पर 779.26, बागमती पर 488.11, कोसी-अधवारा पर 652.41 किलोमीटर, कमला पर 204 किमी, घाघरा पर 132.90, पुनपुन पर 37.62,चंदन पर 83.18, महानन्दा पर 230.33, गंगा पर 596.92, सोन पर 59.54 और किउल हरोहर पर 14 किलोमीटर लम्बा तटबंध बनाया जा चुका है।
तटबन्ध निर्माण की रफतार में अभी कोई कमी नहीं आयी है। कई नदियों पर तटबन्ध निर्माण का कार्य चल रहा है और कई प्रस्ताव मंजूर किए गए हैं।
जमींदारी/महाराजी बांध
इन तटबन्धों के अलावा बिहार में 374 जमींदारी महाराजी बांध भी है जिसे जमींदारों और ग्रामीणों ने जन सहयोग से अपने गांव-इलाके को बाढ़ की सुरक्षा के लिए बनाया था। आजादी के बाद ये तटबंध भू राजस्व विभाग के अधीन आ गए लेकिन इनका कोई देखभाल नहीं हुआ जिसके कारण ये अनुपयोगी होते गए। वर्ष 2006 में इसे जल संसाधन विभाग को सौंप दिया गया लेकिन स्वामित्व भूमि सुधार विभाग के पास ही रहा।
इसके बाद से भी इन बांधों पर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया। वर्ष 2013 में राज्य लघु बांध नीति बनाया गया और इसके तहत जल संसाधन विभाग को इसका स्वामित्व के साथ-साथ इनकी देखरेख का भी दायित्व दे दिया गया है। अब इन बांधों का नाम लघु बांध रख दिया गया है। जल संसाधन विभाग का कहना है कि अब इन लघु बांधों का कोर नेटवर्क तैयार कर इनका वैज्ञानिक तरीके से जीर्णो़द्वार व मरम्मत का कार्य किया जाएगा।
3800 किलोमीटर तटबंध बनाने के बावजूद 68.80 लाख हेक्टेयर भूमि है बाढ़ से प्रभावित
बिहार में अब कुल बाढ़ प्रवण क्षेत्र 68.80 लाख हेक्टेयर है। इसमें उत्तरी बिहार का बाढ़ प्रवण क्षेत्र 44.46 लाख हेक्टेयर है। दावा किया जाता है कि तटबंधों के निर्माण ने वर्ष 2017 तक 39.96 लाख हेक्टेयर भूमि को बाढ़ से सुरक्षित किया जिसमें उत्तरी बिहार का कुल 37.96 लाख हेक्टेयर क्षेत्र है।
साफ जाहिर है कि वर्ष 1954 में बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र 25 लाख हेक्टेयर था जब तटबंधों की कुल लम्बाई 160 किलोमीटर थी। आज 3800 किलोमीटर लम्बा तटबंध बन जाने के बाद बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र बढ़ते हुए 68.80 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है। साथ ही यह भी तथ्य है कि बिहार में कुल 9.41 लाख हेक्टेयर क्षेत्र जलजमाव का शिकार है जिसमें 8.35 लाख हेक्टेयर उत्तरी बिहार में है। तमाम प्रयास के बाद अब तक सिर्फ 1.80 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को जलजमाव से मुक्त किया जा सका है। सरकार ने मान लिया है कि इसमें से 2.50 लाख हेक्टेयर भूमिक को जलजमाव से मुक्त कराना आर्थिक दृष्टिकोण से संभव नहीं है। इस क्षेत्र में अब बायो ड्रेनेज, एक्वाकल्चर और मत्स्य पालन जैसे काम ही हो सकते हैं।
जलजमाव वाले क्षेत्र का विस्तार करने में तटबंधों ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। कोसी पर तटबंध बनने के बाद तटबंध के बाहर का बड़ा क्षेत्र जलजमाव का शिकार हुआ है।
ऐसे में यह सहज सवाल उठता है कि आखिर में 3800 किलोमीटर लम्बा तटबंध बनाकर हमें मिला क्या ? न तो बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में कमी आयी न हर वर्ष आने वाली बाढ़ से मुक्ति मिली। बल्कि तटबंध टूटने से बाढ़ की त्रासदी और भयानक हो जाती है और तटबंध के बाहर का इलाका जलजमाव का शिकार हो रहा है।
तटबंधों के मरम्मत, सुदृढीकरण पर हर वर्ष एक हजार करोड़ से अधिक का खर्च
जल संसाधन विभाग की वर्ष 2018-19 की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में नए तटबंधों के निर्माण, बाढ़ सुरक्षा व जल निकासी की योजनाओं पर 1560.818 करोड़ रूपए खर्च किए गए। इसी तरह 2017 में 1231 करोड रूपए खर्च किए गए।
इसके पहले के वर्षो में बजट 500 करोड़ से नीचे ही रहा है लेकिन विगत तीन वर्षों से इस कार्य का बजट बहुत बढ़ा है। वर्ष 2018-19 में करीब 1500 करोड़ का बजट इस मद में खर्च हो रहा है। वर्ष 1991 के मुकाबले तटबंधों पर होने वाला खर्च 50 गुना बढ़ गया है। वर्ष 1919 में इस मदद में 32.990 करोड़ रूपए खर्च हुए। यह बजट वर्ष 2000 तक 100 करोड़ के नीचे रहा। फिर बजट बढ़ने लगा। वर्ष 2009 तक यह बजट 354.020 करोड़ तक पहुंच गया।
वर्ष 2018-19 में बाढ़ पूर्व किए गए खर्च में बाढ़ सुरक्षा व कटाव निरोधक कार्य की 351 परियोजनाओं पर 419.34 करोड़ खर्च हुए। बाढ़ प्रबंधन योजनाओं पर 999.49 करोड़ की पांच परियोजनाओं पर कार्य हुआ। आपदा प्रबंध विभाग से मिले धन से 44 परियोजनाओं पर कार्य हुआ। केन्द्रीय सहायता से 15 योजनाओं पर 22.95 करोड़ खर्च हुए।
केन्द्र सरकार ने बाढ़ प्रबंधन योजना के तहत 11वीं पंचवर्षीय योजना 2007 से 12 में 46 बाढ़ प्रबंधन योजनाओं के लिए 1929.19 करोड़ की स्वीकृति दी। इसनमें से 40 योजनाओं का कार्य पूर्ण हो गया है। इसमें से तीन योजनाएं निरस्त कर दी गयी हैं जबकि बागमती बाढ प्रबंधन योजना फेज दो और कोसी नदी के तटबंधों के उच्चीकरण, सुदृढीकरण तथा कालीकरण का कार्य चल रहा है। इसी तरह 12वीं पंचवर्षीय परियोजना 2012-17 में बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रम केन्द सरकार द्वारा 447.63 करोड़ की लागत की चार परियेजनाओं को स्वीकृति दी गयी। इसमें से एक पूरा हो चुका है। शेष तीन परियोजनाओं में अवधारा व खिरोई नदी के बाए व दाएं तटबंध के उच्चीकरण व सुदृढीकरण का कार्य है जो चल रहा है।
बाढ़ प्रबंधन योजनाओं में महानन्दा बेसिन की विभिन्न नदियों पर 1195.871 किमी नए तटबंध बनाने और पहले से बने 95.40 किमी तटबंध के उच्चीकरण का कार्य है। इसमें तटबंध उच्चीकरण का काम पूरा हो चुका है। इस योजना के तीसरे चरण में महानन्दा, रतवा व नागर नदी पर 198.37 किमी नए तटबंध का निर्माण होना है।
बागमती बाढ़ प्रबंधन योजना वर्ष 2008 से चल रही है। इस योजना के तहत सीतमाढ़ी जिले में नेपाल सीमा से बागमती के दोनों तटों पर तटबंधों उच्चीकरण, सुढृढीकरण व नए तटबंध के निर्माण का कार्य चल रहा है। इस योजना में कुल 246 किलोमीटर नए तटबंध बनाया जाना है। इस योजना के पांचवे चरण में बागमती के बाएं तट पर बेनीबाद से हायाघाट तक व दाएं तट पर बेनीबाद से सोरमार हाट तक तटबंध बनाने का डीपीआर तैयार किया गया है।
भागलपुर जिले में कोसी नदी के दाए किनारे पर नगरपाड़ा तटबंध के उच्चीकरण व सुदृढीकरण का कार्य 52.64 करोड़ की लागत से कराया गया है।
‘ योजना का कुछे फायदा नु हुआ ’
मुजफ्फरपुर जिले के कटौंझा से औराही और उससे आगे तक बागमती नदी पर तटबंध बनाया गया है जिससे स्थानीय लोग ‘ योजना ’ कहते हैं। इस तटबन्ध का निर्माण अभी जारी है और यह दरभंगा जिले तक जाएगा। तटबन्ध से बागमती की बाढ़ से कई गांवों को राहत मिली लेकिन अब लखनदेई नदी की बाढ़ इन गांवों के लिए बड़ी समस्या बनती जा रही है। जब तटबंध नहीं बना था तो बागमती और लखनदेई में जब बाढ़ आती थी तो दोनों का पानी आपस में मिलकर दूर तक फैल जाता था लेकिन अब लखनदेई की बाढ़ कई महीनों तक गांव में जमी रहती है।
नया गांव की एक सड़क को उफनाई लखनदेई ने काट दिया। सड़के उस पर का गांव मलटोली अब टापू की तरह हो गया हैं। लोगों को अपने घर तक जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ रहा है।
इस गांव के हरिश्चन्द्र सहनी कहते हैं कि ‘ योजना का कुछे फायदा नु हुआ। पहले बागमती और लखनदेई का पानी आपस में मिलकर तोड़-फाड़ करते दूर तक फैल जाता था। अब लखनदेई नदी का पानी कोढ़ की तरह गांव के चारो तरफ तीन महीने तक जम जाता है। फसल को बहुत नुकसान हो रहा है। ’
वह बाढ़ के पानी में डूबी धान की फसल की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं कि सब पूंजी बर्बाद हो गयी।
उफनाई लखनदेई नदी डिस्चार्ज कम होने के बाद शांत होकर बह रही है लेकिन नया गांव के लोग एक महीने से अधिक समय से बाढ़ में मुसीबत का सामना कर रहे हैं। प्रशासन के रिकार्ड में यह गांव अब बाढ़ से मुक्त हैं क्योंकि नदी उफनायी हुई नहीं है लेकिन पानी का जमाव सैकड़ो एकड़ क्षेत्र तक दिख रहा है। यह पानी आगे दो महीनों तक बना रहेगा।
नया गाँव की यह कहानी तटबंधों क कारण उत्पन्न होने वाली विषम स्थिति का बयान करती है।
हर वर्ष टूटते हैं तटबंध
उत्तरी बिहार की नदियों पर बने तटबंध हर वर्ष टूटते हैं। तटबंध के टूटने पर बाढ़ की स्थिति और गंभीर हो जाती है और नदी का पूरा पानी इस टूटे हिस्से से बड़े इलाके में फैल जाता है। नदी का डिस्चार्ज कम होने के बाद भी यह पानी वापस नदी में महीनों तक नहीं जा पाता है क्योंकि चारों तरफ सड़कें और पुल-पुलिया उनका रास्ता रोक देते हैं।
जल संसाधन विभगा की वर्ष 2019 की रिपोर्ट में 1987 से 2018 तक विभिन्न नदियों के तटबंधों के टूटने का ब्योरा दिया गया है। इस ब्योरे के मुताबिक 1987 से 2018 तक तटबंध टूटने की 408 घटनाएं हुईं हैं। सबसे अधिक 1987 में 104 स्थानों पर तटबंध टूटे। सबसे अधिक संख्या में तटबंध 1988, 2001, 2004, 2007 और 2017 टूटे।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2015 में कोई तटबंध नहीं टूटा जबकि 2016 में पांच स्थानों पर तटबंध टूटे। वर्ष 2017 में 27 स्थानों पर और 2008 में एक स्थान पर तटबंध टूटा। वर्ष 2019 में नौ स्थानों पर तटबंधों के टूटने का जिक्र है। इसमें बताया गया है कि 14 जुलाई 2019 को कमला बलान के दाए व बाएं तटबंध आठ स्थानों पर टूटे। भुतही बलान का तटबंध 220 मीटर तक टूट गया। दरभंगा जिले में खिरोही का दाया तटबंध टूटा।
कोसी नदी का तटबंध 1963 से 2008 तक आठ बार टूट चुका है। वर्ष 2008 में कुसहा के पास तटबंध टूटने से व्यापक तबाही हुई थी।
इस वर्ष आधा दर्जन स्थानों पर तटबंध टूटे है। जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा ने 24 जुलाई को अपने बयान में जानकारी दी कि 23 जुलाई 2020 की रात्रि में 3 जगहों पर तटबंध के टूटे। गोपालगंज के पकहां, देवापुर और पूर्वी चंपारण के संग्रामपुर के पास टूटे तटबन्ध का उन्होंने हवाई निरीक्षण भी किया गया। उनके अनुसार तीनों जगहों पर 30 से 40 मीटर तक तटबंध टूटा।
‘ छह हजारिया ’ पर हर वर्ष दो हजार करोड़ से अधिक का खर्च
बाढ़ राहत के नाम पर सरकार प्लास्टिक सीट, गुड़ और चिउड़ा बांटती है और बाढ़ पीड़ितों के बैंक खाते में छह हजार रूपए की सहायता राशि भेजती है। इस छह हजार रूपए में तीन हजार घर को हुए नुकसान के लिए दिए जाते हैं तो तीन हजार फसल के नुकसान की भरपाई के लिए। आपदा विभाग की रिपोर्ट के अनुसार 31 अगस्त तक लाख लोगों को छह हजार रूपए की सहायता राशि उनके खाते में भेजी जा चुकी है।
लेकिन मौके पर पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चम्पारण, मुजफुरपुर , समस्तीपुर, दरभंगा, मोतीहारी के जितने भी बाढ़ पीड़ित मिले, उन्हें छह हजार रूपए की सहायता राशि नहीं मिली थी।
तटबंध कटने से विस्थापित हुए भवानीपुर गांव के लोगों का भी यही कहना था कि उन्हें अभी सहायता राशि नहीं मिली है जबकि उन्हें उसकी बहुत जरूरत है। क्योंकि उनके पास न तो नगदी है न खाने-पीने का राशन। शिवरती देवी कहती हैं कि उनकी छह बकरियां और एक पाड़ी बाढ में बह गयी। घर गिर गया। उसे रखा सब कुछ डूब गया। बेटी द्वारा भेजी गयी साड़ी पहनकर गुजारा कर रही हैं। इसी तरह की व्यथा जानकी, मालती, संजू देवी की है।
समस्तीपुर के बाढ़ सहायता शिविर में रह रहे तीन गांवों के लोगो का भी कहना था कि उन्हें अभी छह हजारिया नहीं मिला है। रघुनाथपुर ब्लाक के सबहा गांव के जीवन पासवान बताते हैं कि वे 25 दिन से हाइवे पर रह रहे हैं। उनका घर में पानी भरा हुआ। अभी सहायता राशि नहीं मिली है। सामुदायिक भोजनालय से भोजन मिल रहा है। उसी से गुजारा हो रहा है।
नया गांव के रामरूप सहनी शिकायती लहजे में कहते हैं कि ‘ छह हजारिया अभी तक नहीं भेंटाया है। पिछले बरस भी नहीं भेंटाया था। ’
इसी गांव की रामरती को लगता है कि सरकार ने पैसा भेज दिया है लेकिन दलाल उनका पैसा खा जा रहे हैं। वह आक्रोश भरे स्वर में कहती हैं कि ‘ मुंहजरहा हर जगह है। उनसे बचे तब त हमन के कुछ मिले। ’
बिहार सरकार को अब बाढ़ पीड़ितों को छह हजार की सहायता राशि सरकारी खजाने पर बड़ा बोझ लगने लगी है और अब वह इसमें केन्द्र सरकार की मदद चाहती है। दस अगस्त को प्रधानमंत्री के साथ बाढ़ के मुद्दे पर हुई बातचीत में मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने यह मुद्दा उठाया।
उन्होंने कहा कि ‘ हम लोग बाढ़ प्रभावित प्रत्येक परिवारों को 6 हजार रुपये की ग्रेचुएट्स रिलीफ की राशि पहले से देते आ हैं जिसमें 3 हजार रुपये अनाज और 3 हजार रुपये कपड़े और अन्य जरुरतों की पूर्ति के लिए देते हैं। वर्ष 2017 में 2385 करोड 42 लाख और वर्ष 2019 में 2003 करोड 55 लाख की ग्रैचुट्स रिलीफ के रुप में राशि लोगों के बीच वितरित की गई है। ’
अपर सचिव आपदा प्रबंधन रामचन्द्र डू की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार इस वर्ष पांच अगस्त तक 16,54,063 परिवारों को छह-छह हजार की दर से 992.43 करोड़ रूपया दिया जा चुका है।
सरकार बाढ़ पीड़ितों पर हर वर्ष दो हजार करोड़ खर्च करने का आंकड़ा पेश कर रही है लेकिन यह मदद न तो जरूरत के समय पहुंच पा रही है न यह बाढ़ पीड़ितों के लिए पर्याप्त हैं। तटबंध पर रह रहे सिंगाही गांव के दहाउर सिंह तीखी टिप्पणी करते हैं कि ‘ सरकार की इस सहायता से तो घर का एक कोना भी सीधा नहीं होगा।’
सिंगाही गांव के 74 वर्षीय जगरनाथ प्रसाद सिंह कहते हैं कि उनके गांव के लोग तकरीबन 600 बीघा रकबा में धान की फसल करते हैं। बाढ़ से पूरी फसल बर्बाद हो गयी है। गंडक नदी दियारे में पहले से हम केवल गेहूं की फसल ले पाते थे। तटबंध से सुरक्षित हुए इलाके में धान की बहुत अच्छी खेती होती थी लेकिन इस साल सब बर्बाद हो गया। धान का एक दाना तक घर नहीं आएगा। एक बीघा धान की रोपाई में 50 हजार की लागत लगी है। आप ही बताइए सरकार की ‘ छह हजारिया ’ से हमारा क्या होगा ?
श्री सिंह बताते हैं कि उनका गांव और आस-पास का इलाका 1974 के बाद बाढ़ से प्रभावित हुआ है। तटबंध कटने के कारण यह स्थिति हुई है। हम लोग तटबंध बनने के बाद बाढ़ से निश्चिन्त हो गए थे। चार वर्ष पहले तटबंध को ऊंचा किया गया और इसे पिच कर दिया गया। हमारे गांव से लगभग 50 किलोमीटर दूर तटबंध टूटा है लेकिन हमारा गांव तक इससे बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
कटान पीड़ितों का कोई पुरसा हाल नहीं
बाढ पीड़ित नदी का पानी कम होने पर देर सबेर अपने गांव-घर लौट जाते हैं और फिर से अपने को व्यवस्थित करने में जुट जाते हैं लेकिन नदियों की कटान से हमेशा के लिए विस्थापित हुए दर्जनों गांवों के लोगों को कोई पूछने वाला नहीं है।
रामपुर महनवा का बढइया टोला इस वर्ष सिकरहना नदी (बूढी गंडक) की बाढ से प्रभावित हुआ है। यह टोला पहले नदी के उत्तर दिशा में बसा था लेकिन 2001 से 2004 के बीच नदी की कटान में यह टोला पूरी तरह खत्म हो गया। टोले के लोग भागकर नदी के दक्षिण तट से काफी दूर बस गए। ढाई हजार की आबादी वाले इस टोले में मुस्लिम सर्वाधिक हैं। इसके बाद दलित व पिछड़े हैं।
इस वर्ष नदी पर बना तटबंध और इससे जुड़ा रिंग तटबंध कट गया जिससे नदी का पानी पूरे गांव में फैल गया। लोगों ने रात-रात भर जागकर कटान को किसी तरह बंद किया और अपने प्रबंध से जमा पानी नदी में फेंक रहे हैं। इसके बावजूद जलजमाव की स्थिति बनी हुई। गांव में कई घर गिर गए है।
पश्चिम चम्पारण के मझवलिया प्रखंड के रामपुर महनवा के 41 परिवार 2014 से सड़क किनारे एक नाले के पास रह रहे है। इसमें 27 दलित और 14 मुस्लिम परिवार हैं। मुस्लिम परिवार सड़क के उत्तर तो दलित परिवार दक्षिण तरफ बसे हुए है। इनके नाम सिधारी राम, मोतीलाल राम, वीरेन्द्र राम, अमानुल्लाह, रामू राम, भंगीराम, दशरथ राम, दिनेश राम, सुरेन्द्र राम, सुधाई राम, जगविंदर राम, अखिलेश राम, गुलाब राम, दीनानाथ राम, अब्दुल वही, मोहम्मद आजाद, अतुल्लाह, जाकिर, रूबिदा, जाकिर नट, अली असगर आदि हैं। विस्थापितों ने इस स्थान का नाम नाम रामपुर महनवा रोड नयी बस्ती रख दिया है।
अमानुल्लाह बताते हैं कि उनके सहित दो दर्जन परिवार बूढी गंडक नदी की कटान से विस्थापित होकर दो दशक तक इधर-उधर भटकते रहे। इन लोगों ने धरना-प्रदर्शन किया तो उन्हें सड़क के किनारे एक नाले के किनारे बसा दिया गया। जुलाई महीने के आखिरी सप्ताह में आयी बाढ़ से सभी के घर डूब गए हैं। कई की झोपड़ियां धराशायी हो गयी हैं। अब ये सभी विस्थापित सड़क पर पन्नी डाल कर रह रहे हैं। प्लास्टिक सीट के अलावा उन्हें और कोई सहायता नहीं मिली है। यह सभी परिवार भूमिहीन हैं। ये लोग नेपाल में मजदूरी करने जाते थे।
अधिकतर मजदूर पेंट पालिश व फर्नीचर बनाने का काम करते हैं। कोरोना के कारण नेपाल में लॉकडाउन के कारण बार्डर बंद हो गया। वे अपने घर लौट आए हैं और चार महीने से बेरोजगारी में किसी तरह जी रहे हैं।
इस गांव के लोगों को कटान से विस्थापित होने के बाद नाले के पास ही सही बसा तो दिया गया है लेकिन मुजफफरपुर जिले के पारो ब्लाक के चकदेइया गांव के लोग तीन दशक बाद भी ‘ बेवतन ’ है। यह गांव गंडक नदी के कटान से 1987 में पूरी तरह खत्म हो गया। लोग पश्चिमी चम्पारण तटबंध के उत्तरी किनारे आकर रहने लगे। तभी से ये तटबंध के पास रह रहे हैं। इनको आज तक कहीं और नहीं बसाया जा सका है। भवानीपुर के पास तटबंध टूटने से इनके घर पानी में डूब गए है। तटबंध के एक तरफ के लोग नदी के पानी से डूबे हुए है तो दूसरे तरफ के लोग भवानीपुर के पास तटबंध टूटने से फैले पानी में डूबे हैं। नारायण सहनी और भरत सहनी कहते हैं कि ‘ हम दोनों तरफ से दह रहे हैं। इन्हरियो दरिया बा, उधरियो दरिया बा। ’
अब पूरा गांव तटबंध पर आ गया है। वहीं प्लास्टिक शीट के नीचे पूरी जिंदगी उलझी हुई है।
चकदेइया गांव के बागेश्वार शाही कहते हैं कि ‘ वह तीन दशक स अधिक समय से तटबंध के किनारे झोपड़ी में रह रहे हैं जबकि उनके पास एक बीघा खेत और अपना घर था। गंडक की कटान में उनका सब कुछ खत्म हो गया। अब वह विस्थापित जीवन जी रहे हैं। कहा जा रहा है कि यह तटबंध अब टू लेन सड़क में बदलेगी। तब हमें यहां छोड़ कर जाना होगा। वह बताते हैं कि जब नदी से चकदेइया गांव की कटान हुई तब वहां करीब 100 घर थे। हमें आज तक पुनर्वासित नहीं किया गया है। ’
राहत और तटबंध निर्माण में उलझी बाढ़ बचाव की योजनाएं
आजादी के बाद से उत्तर बिहार में बाढ़ नियंत्रण जिसे अब बाढ़ प्रबंधन कहा जाने लगा है , मुख्यत: तटबन्धों के निर्माण और बाढ़ आने के बाद राहत वितरण पर टिकी हुई है।
बाढ़ नियंत्रण के लिए तटबंधों के निर्माण के पक्ष में अब बहुत कम विशेषज्ञ रह गए हैं। खुद बिहार सरकार का मानना है कि ‘ बाढ़ नियंत्रण के लिए तटबंधों का निर्माण अल्पकालिक योजना ’ है फिर भी वह तटबंधों के निर्माण कार्य को ही आगे बढ़ा रही है। यह भी आश्चर्य है कि ‘ बाढ़ प्रबंधन ’ की योजनाओं में भी तटबंध निर्माण, उसका उच्चीकर व सुदृढीकरण ही प्रधान पहलू है।
वरिष्ठ इंजीनियर एवं लेखक दिनेश कुमार मिश्र शुरू से तटबंधों से होने वाले नगण्य फायदे की ओर ध्यान दिलाते रहे हैं। उनका कहना था कि तटबंध बाढ़ से बचा नहीं पाते बल्कि ये बाढ़ की आवृति को बढ़ा देते हैं बल्कि कटान, सिल्ट जमाव और जलजमाव की समस्या उत्पन्न करते हैं। उन्होंने अपनी किताब ‘ दुई पाटन के बीच में.. ’ में लिखा है कि तटबंध, पानी का फैलाव रोकने के साथ-साथ गाद का फैलाव भी रोक देते हैं और नदियों के प्राकृतिक भूमि निर्माण में बाधा पहुंचाते हैं। गाद तटबंधों के बीच जमा होने लगती है जिससे नदी का तल धीरे-धीरे उपर उठना शुरू हो जाता है और इसी के साथ तटबंधों के बीच बाढ़ का स्तर भी उपर उठता है। इस कारण तटबंधों को ऊंचा करते रहना इंजीनियरों की मजबूरी बन जाती है। तटबंधों को जितना ज्यादा ऊंचा और मजबूत किया जाएगा, सुरक्षित क्षेत्रों पर बाढ और जल-जमाव का खतरा उतना ही ज्यादा बढ़ता है। तटबंधों के कारण बारिश का पानी जो अपने आप नदी में चला जाता था वह तटबंधों के बाहर अटक जाता है और जल जमाव की स्थिति पैदा करता है। तटबंधों से होने वाला रिसाव जल जमाव को बद से बदतर स्थिति में ले जाता है। ’
श्री मिश्र की राय से अब काफी लोग सहमत हैं । वर्ष 2012 में से आईआईटी कानुपर के बिकास रामाहषय और राजीव सिन्हा और द्वारा तैयार एक रिपोर्ट ‘ फ्लड डिजास्टर एंड मैनेजमेंट : इंडियन सिनेरियो ’ में कहा गया है कि भारत में अधिकतर नदी घाटियों में बाढ़ नियंत्रण की रणनीति मुख्य रूप से तटबंध आधारित है। तटबंधों ने नदियों के प्राकृतिक प्रवाह व्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है और बाढ़ की तीव्रता को बढ़ाया है। तटबंध मुख्य नदी के बहाव और उससे जुड़ने वाले नदी-नालों के सम्पर्क को बाधित करते हैं।
तटबंधों ने लोगों में ‘ बाढ़ से सुरक्षा की झूठी भावना ’ भी पैदा की है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि तटबंध बनने से नदी द्वारा लाया गया अवसाद (सिल्ट) पूरे फ्लड प्लेन में न फैल तटबंधों के बीच एकत्र होता जाता है जिसके कारण तटबंध के अंदर रिवर बेड उठता जाता है। नदी के किनारे तटबंधों के अलावा, अनियोजित ढंग से बनायी जाने वाली सड़कें जल निकासी को बाधित करती हैं और नदियों के चैनल को उनसे काट देती हैं। रिपोर्ट कहती है कि बाढ़ नियंत्रण पर खर्च में जबर्दस्त वृद्धि के बावजूद बाढ़ से नुकसान कम होने के बजाय बढ़ा है। समाज के कमजोर वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हैं। तटबंधों के रखरखाव पर काफी खर्च होता है। बाढ़ राहत और बाढ से क्षतिग्रस्त सड़कों व अन्य ढांचों की मरम्मत व पुनर्स्थापन पर जनता के काफी धन खर्च होता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हमें यह एहसास करना होगा कि हमारी बाढ़ नियंत्रण रणनीति में कुछ गड़बड़ है। बाढ़ के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान को कम करने और नदी के स्वास्थ्य में सुधार पर जोर देना होगा। यह समय ‘ बाढ़ नियंत्रण ’ से ‘ बाढ़ प्रबंधन ’ की ओर बढ़ने का है जो बाढ़ की प्रक्रियाबद्ध समझ पर बल देता है और बाढ़ के जोखिम को कम करने के लिए गैर-संरचनात्मक दृष्टिकोण का पक्षधर है।
रिपोर्ट में नदियों के प्ल्डप्लेन को नियमित करने पर बल दिया गया है और खेती के अलावे उसके अंधाधुंध उपयोग को रोकने की सलाह दी गयी है।
लेकिन इन सुझावों की हुक्मरान शायद ही परवाह करें। दिनेश मिश्र कहते हैं कि ‘ हमने जो अरबों रुपये बाढ़ नियंत्रण या प्रबंधन पर खर्च किये उसने हमें फायदे की जगह नुकसान पंहुचाया है और इसकी फिक्र जिन्हें होनी चाहिए थी वो आँखें बंद किये बैठे है। ’