जलवायु

COP27: लॉस एंड डैमेज फंड रही एकमात्र कामयाबी

गरीब देशों के लिए जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले लॉस एंड डैमेज से निपटने के लिए एक फंड की स्थापना करना एकमात्र सफलता है।
<p>कॉप 27 की कुछ सफलताओं में से एक हानि और क्षति कोष के प्रचारक हरजीत सिंह (बाएं) और सलीमुल हक़ (दाएं)। (फोटो: जॉयदीप गुप्ता)</p>

कॉप 27 की कुछ सफलताओं में से एक हानि और क्षति कोष के प्रचारक हरजीत सिंह (बाएं) और सलीमुल हक़ (दाएं)। (फोटो: जॉयदीप गुप्ता)

इस साल शर्म अल-शेख में आयोजित संयुक्त राष्ट्र की सबसे बड़ी जलवायु वार्ता क़रीब 40 घंटे ज़्यादा चली। इससे ये भी साबित होता है कि कैसे जलवायु परिवर्तन की वास्तविक हक़ीक़त और जलवायु पर होने वाली बनावटी चर्चा के बीच बहुत बड़ा अंतर है और ये अंतर बढ़ता ही जा रहा है। COP27 की एकमात्र सफलता यह रही कि गरीब देशों के लिए जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली हानि और क्षति यानी लॉस एंड डैमेज से निपटने के लिए एक फंड की स्थापना की गई है।

लॉस एंड डैमेज से क्या मतलब है?

लगातार और तीव्र बाढ़, भीषण गर्मी, तूफ़ान और समुद्र के स्तर में वृद्धि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव हैं। हालांकि, लोग अपने पर्यावरण में इनमें से कुछ परिवर्तनों का सामना नहीं कर पाते हैं। ऐसे मामलों में अनुकूलन यानी एडेप्टेशन संभव नहीं हो पाता है। ऐसे में, लोगों की जान चली जाती है, तटबंध टूट जाते हैं, भूमि बंजर हो जाती है, निवास स्थान स्थायी रूप से बदल जाते हैं और मवेशी मारे जाते हैं। 

जलवायु परिवर्तन के जिन सामाजिक और वित्तीय प्रभावों से बचा नहीं जा सकता है, उन्हें ‘लॉस एंड डैमेज’ कहा जाता है। जलवायु परिवर्तन से होने वाली हानि और क्षति, आर्थिक या गैर-आर्थिक हो सकते हैं। आर्थिक हानि में व्यवसायों को होने वाले वित्तीय हानि शामिल हैं।

ग़ैर-आर्थिक हानि और क्षति में सांस्कृतिक परंपराएं, ज्ञान, जैव विविधता और इकोसिस्टम सेवाएं शामिल हो सकती हैं, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण खो जाती हैं।

ये इस बात को भी दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन पर 30 सालों की बातचीत ग्रीनहाउस गैस के एमिशन को मिटिगेट करने में विफल रही जो इस ग्रह को गर्म करता जा रहा है। इसलिए इस चर्चा में शामिल वार्ताकारों को हानि और क्षति से निपटने के लिए मजबूरन एक वित्तीय कोष बनाना पड़ा। हालांकि, भविष्य में इसके सभी तौर-तरीकों पर काम किया जाना चाहिए।

COP27 के समापन सत्र में यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज के एग्जीक्यूटिव सेक्रेटरी साइमन स्टिइल ने ये माना कि वार्ता बिल्कुल आसान नहीं थी। साथ ही उन्होंने इस पर भी ध्यान दिलाया कि आखिर में हाशिए पर रहने वाले लोगों की मदद के लिए एक क्लाइमेट कोष की स्थापना हो ही गई।

‘कोड रेड’ चेतावनी वाले साल में COP27 वार्ता रही नाकामयाब

इस साल की शुरुवात द इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की चेतावनियों से हुई थी। चेतावनियों के अनुसार अगर मानव जाति को ग्लोबल वार्मिंग के उस स्तर को टालना है, जिसका वह सामने करने में सक्षम नहीं है तो वैश्विक ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) का उत्सर्जन साल 2030 तक आधा हो जाना चाहिए और साल 2050 तक शून्य पहुंच जाना चाहिए। इस रिपोर्ट को ‘कोड रेड’ कहा गया है।

एक ऐसे वर्ष में COP27 का निराशाजनक समापन हुआ है। आईपीसीसी की ‘कोड रेड’ चेतावनी को अक्टूबर 2022 में रिपोर्ट की एक सीरीज ने और पुख्ता कर दिया। दरअसल, विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) ने वातावरण में तीन मुख्य जीएचजी– कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के रिकॉर्ड स्तर की सूचना दी

यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) ने बताया कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए सभी देशों की वर्तमान प्रतिज्ञा (जिसे राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान या एनडीसी कहा जाता है) भले ही पूरी हो जाए, लेकिन पेरिस समझौते में जो सभी देशों ने संकल्प लिया था कि औसत वैश्विक तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखना है, उसमें विफलता ही हाथ लग रही है। पेरिस समझौते में शामिल सभी देश अब पूर्व-औद्योगिक युग के स्तर से ऊपर 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने के अपने आकांक्षी लक्ष्य को छोड़ ही दें। 2100 तक वैश्विक तापमान में 2.4-2.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का अनुमान है।

यूएनएफसीसीसी ने गणना की कि विकासशील देशों को राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान को पूरा करने के लिए साल 2030 तक 458 ट्रिलियन रुपयों की आवश्यकता होगी।

वार्ताकारों ने थमाया ‘समाधान’ का बुलबुला

COP27 में सभी विशेषज्ञ आए। उन्होंने अपनी चेतावनियों को दोहराया और समाधानों की सिफारिश की। जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली आपदाओं के पीड़ितों ने अपनी खौफनाक आपबीती सुनाई, जिसे सुनकर वहां मौजूद दर्शकों की आंखें नम हो गईं। कई अन्य जगहों पर पर्यावरण पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी की, लेकिन किसी भी सरकार का कोई भी प्रतिनिधि इस बात को सुनने वाला नहीं था।

सम्मेलन में तेल और गैस कंपनियों की पैरवी करने वाले 600 से ज्यादा लोग पहुंचे थे, जो साल 2021 में आयोजित जलवायु शिखर सम्मेलन की तुलना में 25% अधिक थे। ऐसे में हो सकता है कि सभी फॉसिल फ्यूल यानी जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध करने के लिए भारत की ओर से शुरू किए गए कदम को विफल करने में उन्होंने भी योगदान दिया हो।

क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया के डायरेक्टर संजय वशिष्ठ ने कहा, “यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है कि COP27 उन तीन प्रमुख परिणामों में से किसी में भी कोई आउटकम नहीं दे पाया, जिनसे जलवायु संकट के सबसे बुरे प्रभावों को रोकने के लिए त्वरित कार्रवाई की जा सकती थी। इस साल जब पाकिस्तान की बाढ़ ने दुनिया को जल्द से जल्द और कड़े फैसले लेने की आवश्यकता समझाई, इसके बावजूद COP27 में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने के लिए कुछ भी नया प्रस्ताव नहीं दिया गया।”

जब श्रीलंका जैसे द्वीपीय देश आर्थिक और जलवायु संकट से जूझ रहे हैं, ऐसे समय में कोई नई या अतिरिक्त वित्तीय सहायता तो भूल ही जाइए। हर साल बिलियन अमेरिकी डॉलर देने के वादे को तेजी से पूरा करने का तरीका तक नहीं खोज पाए। वहीं बांग्लादेश, मालदीव और नेपाल कई जलवायु आपदाओं से जूझ रहे हैं, ऐसे समय में भी अमीर देशों खासकर अमेरिका ने भारत के कोयला, तेल और गैस समेत सभी जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के कदम पर ध्यान नहीं दिया, इसलिए इस पर भी किसी तरह की कोई सहमति नहीं बन सकी।

197 सरकारों के वार्ताकारों ने बंद दरवाजों के पीछे बहस की, अमीर देशों ने गरीब देशों से उत्सर्जन में कमी लाने के लिए महत्वाकांक्षा बढ़ाने के लिए कहा, जबकि गरीब देशों ने पूछा कि वे यह अमीर देशों के बिना कैसे करेंगे, लेकिन औद्योगिक युग की शुरुआत के बाद से अब तक प्रमुख प्रदूषक देशों ने न तो कभी पैसा देने का वादा किया और अगर कर भी दिया तो कभी पैसा नहीं दिया।

बढ़ती हुई निराशा और समझौते की अपील

मेज़बान देश मिस्र के विदेश मंत्री और COP27 के अध्यक्ष समीह शौकरी ने समझौते के लिए बार-बार अपील की, जिसमें शिखर सम्मेलन के समापन के बाद सुबह एक सार्वजनिक अपील भी शामिल थी। 

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि हमें अब एमिशन में एक ठोस कमी लाने की आवश्यकता है और एक बड़ा मुद्दा है, जिसे जलवायु शिखर सम्मेलन में संबोधित नहीं किया गया। देशों से ‘सहयोग या बर्बादी’ का चयन करने के उनके आग्रह के बावजूद यहां अंत तक सहयोग देखने को नहीं मिला। अपने समापन वक्तव्य में हानि और क्षति से निपटने के लिए बनाए गए कोष का जिक्र करते हुए गुटेरेस ने कहा, स्पष्ट रूप से यह पर्याप्त नहीं होगा, लेकिन टूटे हुए भरोसे के पुनर्निर्माण के लिए यह एक बहुत ही आवश्यक राजनीतिक संकेत है। यूरोपीय संघ ने भी समापन सत्र के दौरान महत्वाकांक्षा की कमी की आलोचना की।

शिखर सम्मेलन की घोषणा में भी हताशा दिखाई दी। समिट डिक्लेरेशन पैराग्राफ वन: वैश्विक भू-राजनीति में तेजी से जटिल और चुनौतीपूर्ण स्थितियां बनी हैं, जिनका ऊर्जा, भोजन और आर्थिक स्थितियों पर प्रभाव पड़ा है। ऐसे में कोरोना वायरस महामारी के बाद सामाजिक और आर्थिक सुधार से जुड़ी अतिरिक्त चुनौतियां, बैकट्रैकिंग, बैकस्लाइडिंग या जलवायु कार्रवाई को प्राथमिकता देने के बहाने के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।

इस घोषणा के बावजूद ऑपरेटिव हिस्से में समझौते ने इसे जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बहुत कमजोर घोषित कर दिया। अगले वर्ष मिटिगेशन वर्क प्रोग्राम के तहत केवल दो वैश्विक वार्ताएं होंगी। 

यह उसी घोषणा के बावजूद है, जिसमें कहा गया है कि साल 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा में प्रतिवर्ष लगभग 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर यानी 330 ट्रिलियन रुपए का निवेश करने की आवश्यकता है ताकि साल 2050 तक जीरो उत्सर्जन तक पहुंचने में सक्षम बन सकें। इसके अलावा, वैश्विक परिवर्तन कर कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था के लिए प्रतिवर्ष कम से कम 330-490 ट्रिलियन रुपए के निवेश की आवश्यकता होगी।

Protestors at COP27
मिस्र में COP27 में सिविल सोसाइटी के कई कार्यकर्ताओं ने जलवायु वित्त की आवश्यकता पर ज़ोर दिया (फोटो: जॉयदीप गुप्ता)

शिखर सम्मेलन की घोषणा में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि इस तरह के वित्तपोषण के लिए वित्तीय प्रणाली और ढांचा बनाने के साथ ही इसमें सरकारों, केंद्रीय व वाणिज्यिक बैंकों, संस्थागत निवेशकों की आवश्यकता होगी। इसमें विकासशील देशों में पार्टियों के बीच बढ़ती खाई, जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों और दिन ब दिन बढ़ते कर्ज पर भी चिंता जताई गई है, जिस कारण वे उनके राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों को पूरा नहीं कर पाते हैं। उन्हें इसके लिए अब से साल 2030 तक 5.8-5.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की जरूरत होने का अनुमान लगाया है।

अमीर देशों ने साल 2009 में वादा किया था कि वे गरीब देशों को साल 2020 तक 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रदान करने करेंगें। हालांकि, वे इस वादे को पूरा करने में नाकाम रहे।

घोषणा पत्र में कहा गया कि वैश्विक जलवायु वित्त प्रवाह विकासशील देशों की समग्र जरूरतों के सापेक्ष छोटा है। साल 2019-2020 में यह 803 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, जोकि वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस बनाए रखने के लिए आवश्यक वार्षिक निवेश का 31-32% है।

COP27 ने कुछ अमीर देशों से घोषणाएं देखीं कि वे अनुकूलन कोष में और अधिक पैसा लगाएंगे। इसके अलावा, ऐडैप्टेशन फंड को दोगुना करने पर एक रिपोर्ट तैयार करना एकमात्र योजना थी, जिस पर ग्लासगो में 2021 के शिखर सम्मेलन में सहमति हुई थी।

COP27 लॉस एंड डैमेज के भुगतान के लिए कोष बनना इकलौती सफलता

कई विकासशील देश शर्म अल-शेख एक सूत्री एजेंडे के साथ आए कि हानि और क्षति के लिए भुगतान कोष बनाया जाए। इसे कई वार्ताओं के बाद लॉन्च किया गया। ढाका स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्लाइमेट एंड डेवलपमेंट के प्रमुख सलीमुल हक ने द थर्ड पोल को बताया कि COP27 में मानव जनित जलवायु परिवर्तन से होने वाली हानि और क्षति को ध्यान में रखकर एक कोष की स्थापना की गई है, जोकि सभी विकासशील देशों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। साथ ही इसके लिए सभी विकसित देशों के सहमत होने पर उनको भी बधाई देते हैं।

क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल में ग्लोबल पॉलिटिकल स्ट्रेटजी के हेड हरजीत सिंह ने कहा, ‘फंड कमजोर लोगों को आशा प्रदान करता है कि उन्हें जलवायु आपदाओं से उबरने और अपने जीवन के पुनर्निर्माण में मदद मिलेगी।’ बता दें कि हक और सिंह ने जलवायु वार्ताओं में नुकसान और क्षति के मुद्दे को सामने लाने के लिए दशकों से कदम उठाए हैं।

कोष की स्थापना की प्रशंसा करते हुए महासचिव गुटेरेस ने कहा, इस सीओपी ने न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। स्पष्ट रूप से यह पर्याप्त नहीं होगा, लेकिन टूटे हुए भरोसे के पुनर्निर्माण के लिए यह एक बहुत ही आवश्यक राजनीतिक संकेत है। 

न्याय का मतलब कई अन्य चीजें भी होनी चाहिए: विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्त में हर साल 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर देने के लंबे समय से लंबित वादा पूरा होना चाहिए। दोहरे अनुकूलन वित्त के लिए स्पष्टता और विश्वसनीय रोडमैप तैयार हो। बहुपक्षीय विकास बैंकों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के व्यापार मॉडल को बदलना होगा, उन्हें अधिक जोखिम स्वीकार करना चाहिए और उचित लागत पर विकासशील देशों के लिए व्यवस्थित रूप से निजी वित्त का लाभ उठाना चाहिए।

फंड की स्थापना का स्वागत करते हुए मर्सी कॉर्प्स पाकिस्तान के निदेशक फराह नौरीन ने कहा, इससे कम कुछ भी जलवायु वार्ता में विश्वास को खतरे में डालेगा, जिसकी कीमत मेरे पाकिस्तान जैसे देशों को चुकानी पड़ेगी। फंड की प्रभावशीलता देखा जाना बाकी है और असली काम COP27 के बाद ही शुरू होगा।

Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.

Strictly Necessary Cookies

Strictly Necessary Cookie should be enabled at all times so that we can save your preferences for cookie settings.

Analytics

This website uses Google Analytics to collect anonymous information such as the number of visitors to the site, and the most popular pages.

Keeping this cookie enabled helps us to improve our website.

Marketing

This website uses the following additional cookies:

(List the cookies that you are using on the website here.)