जलवायु

जलवायु परिवर्तन का संस्कृति पर प्रभाव: 2022 में द् थर्ड पोल की सबसे ख़ास स्टोरीज़

हिंदू कुश हिमालय वैश्विक औसत की तुलना में अधिक तेज़ी से गर्म हो रहा है। जलवायु परिवर्तन हमेशा से ही प्राकृतिक दुनिया के साथ लोगों और समुदायों के सांस्कृतिक रिश्तों को प्रभावित करता आया है। यहां पढ़िए जलवायु परिवर्तन और संस्कृति के संबंधों पर द् थर्ड पोल द्वारा प्रकाशित की गई कुछ ख़ास स्टोरीज़
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<p><span class="Y2IQFc" lang="hi">आधुनिक नक्षी कांथा कढ़ाई पुराने कला रूप की शैली और रूपांकनों की नकल करती है, जो बांग्लादेश में बंगाल डेल्टा के बदलते वातावरण और जलवायु से प्रेरणा लेती है (फोटो: नज़्मुन नहर शिशिर / द् थर्ड पोल)</span></p>

आधुनिक नक्षी कांथा कढ़ाई पुराने कला रूप की शैली और रूपांकनों की नकल करती है, जो बांग्लादेश में बंगाल डेल्टा के बदलते वातावरण और जलवायु से प्रेरणा लेती है (फोटो: नज़्मुन नहर शिशिर / द् थर्ड पोल)

हिमालय की तलहटी से लेकर बांग्लादेश की जमुना नदी के द्वीपों तक, हर जगह जलवायु परिवर्तन से सांस्कृतिक परंपराएं प्रभावित हो रही हैं। जैसे-जैसे दक्षिण एशिया और हिंदू कुश हिमालयी क्षेत्र गर्म हो रहा है, हज़ारों वर्षों से चली आ रही प्राकृतिक लय अस्थिर होती जा रही है। इसके साथ-साथ सांस्कृतिक परंपराएं भी अस्थिर हो रही हैं जो हमेशा से लोगों के जीवन का अहम हिस्सा रहीं हैं।

जलवायु परिवर्तन से होने वाले कुछ नुक़सान अपरिवर्तनीय और गैर-आर्थिक होते हैं। संस्कृति पर पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभाव लॉस एंड डैमेज का एक ज़रूरी हिस्सा है लेकिन इस विषय पर बहुत कम चर्चा हुई है।

इन नुकसानों की विभिन्न तस्वीरें हमारे समाज ने देखी हैं। दक्षिण एशिया में कहीं जलवायु परिवर्तन की वजह से आने वाली बाढ़ के कारण लोगों को अपनी शादी की परंपराओं को बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा, तो कहीं बढ़ती लवणता से विश्व धरोहर स्थलों को होने पहुंच रही है।

हिमालय में अप्रत्याशित और मौसम की कठोर घटनाओं ने पर्वतीय परंपराओं को भी बाधित कर दिया है। चरवाहों को बेमौसम बर्फबारी और गर्मी की लहरों का सामना करना पड़ रहा है। इस क्षेत्र में कई लोगों के लिए, सांस्कृतिक विरासत या पारंपरिक ज्ञान का नुकसान आर्थिक अवसरों की क़ीमत पर आता है जो सीधे तौर पर उनकी आजीविका को प्रभावित करता है।

साल 2022 में द् थर्ड पोल के पत्रकारों ने इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का पता लगाने के लिए दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया और पूरे हिमालय की यात्रा की और उन समुदायों के दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला जो अपने सांस्कृतिक जीवन को बदलते जलवायु के साथ बदलते हुए देख रहे हैं। यहां, हम संस्कृति और जलवायु परिवर्तन पर अपनी अहम रिपोर्ट्स पर रोशनी डाल रहे हैं।

मॉनसून की शादियों में बाधा डाल रही बिहार की बाढ़

Illustration of a groom in Bihar travelling to his wedding by boat, Vipin Sketchplore
उत्तरी बिहार में मॉनसून में आने वाली बाढ़ के वजह से लोगों को अपनी शादी तक पहुँचने के लिए नांव तक का सहारा लेना पड़ता है।  (इलस्ट्रेशन:  विपिन स्केचप्लोर / द् थर्ड पोल)

आलोक गुप्ता, जून

बिहार, भारत का सबसे अधिक बाढ़-प्रभावित इलाक़ा, हर साल बाढ़ की चपेट में आता है। उत्तरी बिहार के 80% लोग बाढ़ से प्रभावित होते हैं। बाढ़ की वजह से कई लोग, ख़ासकर राज्य के नौजवान, दूसरे राज्यों में पढ़ाई और नौकरी की तलाश में चले जाते हैं। प्रवास के साथ-साथ मॉनसून के पैटर्न का असर उत्तर बिहार की शादियों में भी नज़र आ रहा है। क्योंकि शादियों को रद्द करना सांस्कृतिक नज़र से एक बड़ा कदम समझा जाता है, लोग बाढ़ और बारिश से लड़कर शादी करने के नए तरीक़ों को ढूँढ रहे हैं।

बिहार में बाढ़ की स्थिति विकराल होती जा रही है। इस बीच मॉनसून में होने वाली शादियों में कुछ लोग दुल्हन के घर तक पुल बनाकर अपनी बारात ले जा रहे हैं और कुछ लोग नांव की मदद ले रहे हैं। जैसे-जैसे बाढ़ और भीषण होती जा रही है, वैसे-वैसे समुदाय परंपराओं को जीवित रखने के लिए जोखिम भरे उपायों का सहारा लेते जा रहे हैं।

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मधुमक्खियों की गिरती आबादी के बीच अपनी परंपराओं से जुड़े हुए हैं नेपाल के शहद शिकारी

Honey hunters sit in the forest, directing the honey hunt from the base of a cliff
गंगा बहादुर गुरुंग (बीच में) नेपाल के नायचे गांव के शहद शिकार समूह के नेता हैं। वह खुद को मधुमक्खी से बचाने के लिए अपने सिर पर एक लाल बोरी ओढ़ कर चट्टान के नीचे से शिकार का निर्देशन करते हैं। (फोटो: नबीन बराल / द् थर्ड पोल)

नबीन बैरल, जुलाई

नेपाल हिमालय की तलहटी में चट्टानों से शहद उत्पादन की प्राचीन परंपरा गुरुंग की संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। गुरुंग एक ऐसा समूह है जो मध्य नेपाल और उत्तरी भारत की पहाड़ियों में रहता है। हज़ारों सालों से, समुदाय के पुरुषों ने दुनिया की सबसे बड़ी मधुमक्खियों के घोंसलों से मधुकोश लेने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली है। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं: एक बार नाइचे गाँव के पास एक चट्टान पर एक बड़े घोंसले से 15 लीटर तक शहद प्राप्त होता था, जब द् थर्ड पोल ने इस जगह का दौरा किया तब सिर्फ़ 200 मिली लीटर से भी कम शहद मिल पाया।

विशेषज्ञ बताते हैं कि नेपाल में हिमालय की विशाल मधुमक्खियां खतरनाक दर से घट रही हैं। क्लिफ कॉलोनी की संख्या और मधुमक्खियों के घोंसलों की कुल संख्या दोनों में कमी देखी गई है। इस मामले में, सांस्कृतिक परंपराओं पर प्रभाव डालने वाला एकमात्र कारक जलवायु परिवर्तन नहीं है। हिमालय की विशाल मधुमक्खी में तेज़ी से गिरावट के लिए कीटनाशकों, आवास और खाद्य स्रोतों की कमी और बुनियादी ढांचे के विकास सहित कई कारकों को जिम्मेदार ठहराया गया है। शहद की वैश्विक मांग में वृद्धि के साथ, ज़रूरत से ज़्यादा शहद उत्पादन और “विनाशकारी शहद शिकार प्रथाओं” ने भी समस्याएं पैदा की हैं, जिससे गुरुंग की पारंपरिक चट्टान की फसल को और भी अधिक खतरा है।

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उत्तराखंड के पहाड़ों में लुप्त होती भूटिया संस्कृति की एक झलक

Bhutia_Museum archives women at festival
बदलती ज़िंदगी: मिलाम गांव में महिलाएं पारंपरिक वस्त्र पहने हुए (दाए)। जून 2022 में दाम्यंति पंगती पारंपरिक खादी में काम करते हुए (बाए)। जैसे-जैसे ग्लेशियर सिकुड़ते जा रहे हैं और धाराएँ सूखती जा रही हैं, भूटिया समुदाय भारतीय हिमालय में अपनी सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। (फोटो: शिखा त्रिपाठी / द् थर्ड पोल)

शिखा त्रिपाठी, अगस्त

उत्तराखंड मेंबदलती जलवायु कठोर रूप से भूटिया समुदाय के जीवन के तरीके को बदल रही है, भूटिया समुदाय लोगों का एक समूह है जिन्होंने 9वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास तिब्बत से दक्षिण की ओर पलायन किया था। वेभारत-तिब्बत सीमा के साथ पर्वत श्रृंखलाओं में बस गए थे। कुछ लोग अब मुनस्यारी के तलहटी शहर में सर्दी का मौसम बिताते हैंलेकिन हर साल मई की शुरुआत में वे अपनी जन्मभूमि लौट आते हैं। इस वार्षिक प्रवासन की मदद से भूटिया समुदाय अपनी खेती की ज़मीन और पुश्तैनी घरों से जुड़े हुए रहते हैं, जिससे उन्हें अपनेपन का भाव मिलता है।

यह यात्रा हमेशा से मुश्किल रही है। लेकिन बदलते जलवायु के प्रभावों के कारण ये यात्रा और भी कठिन और अधिक अप्रत्याशित होती जा रही है। एक तरफ़ बेमौसम भारी बारिश ने यात्रा के लिए अतिरिक्त चुनौतियां पैदा कर दी हैं वहीं दूसरी ओर ग्लेशियरों के सिकुड़ने और धाराओं के सूखने से उनके ऊंचाई वाले गांव में खेती और दैनिक जीवन तेजी से कठिन हो गया है। खान-पान से लेकर पहनावे तक, आजीविका से लेकर दैनिक दिनचर्या तक, इन परिवर्तनों के की वजह से पारंपरिक भूटिया संस्कृति के कई पहलू लुप्त होते जा रहे हैं। इस इतिहास को संजोने वाली कुछ वस्तुएँ मुनस्यारी में ट्राइबल हेरिटेज म्यूज़ियम में अपना रास्ता तलाश रही हैं, जहाँ उन्हें भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित रखा गया है।

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बदलते जलवायु के साथ बदल रही है एक पारंपरिक कशीदाकारी कला

group of women stitching embroidery onto black cloth
उत्तर-मध्य बांग्लादेश में जमालपुर जिले के दोक्खिन गिलबारी गांव की महिलाएं एक आधुनिक नक्षी कांथा पर आकृति की सिलाई करती हैं (फोटो: नज़्मुन नहर शिशिर / द् थर्ड पोल)

नज़्मून नहर शिशिर, नवंबर

कुछ समुदायों के मामले में यह साफ़ नज़र आता है कि उनकी संस्कृति और आजीविका के बीच एक अटूट संबंध है। नक्षी कांथा, बांग्लादेश में हाथ से की जाने वाली कढ़ाई, इसका एक उदाहरण है। यह एक पारंपरिक कला है जिसमें आमतौर पर पुरानी साड़ियों का उपयोग होता है। बांग्लादेश में महिलाएं 500 सालों से अपने नुक़सान, चाहत और इच्छा की भावनाओं को सिलाई के रूप में पेश कर रही हैं। कई लोगों के लिए ये पारंपरिक हस्तकला वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान करती है। लेकिन अब आधुनिक नक्षी कांथा में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव भी नज़र आते हैं: बाढ़ के कारण हुए विस्थापन का दर्द, लोगों के घर, उनकी ज़मीन और वो मवेशी जो नदियों के बदलते रास्ते की वजह से खो गए।

विनाशकारी और लगातार आने वाले बाढ़ बांग्लादेश में कई लोगों को उनकी सांस्कृतिक विरासत से अलग कर रही है। बाढ़ की वजह से लोगों के पास नदी किनारे अपने घरों को छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है, और इस बीच कई लोग अपनी विरासत को भी पीछे छोड़ देते हैं। पिछले 40 वर्षों में नक्षी कांथा की बढ़ती मांग ने इसके व्यावसायीकरण का मार्ग प्रशस्त किया है, जिससे यह डर पैदा हो गया है कि कला का रूप कैसे प्रभावित होगा।

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