जलवायु

ग्रीन बिल्डिंग्स क्या हैं और जलवायु संकट से निपटने के मामले में वे दक्षिण एशिया की कैसे मदद कर सकती हैं?

ग्रीन बिल्डिंग्स एक्सपर्ट अपूर्व विज बताते हैं कि कैसे आर्किटेक्ट और डेवलपर, एक स्वस्थ वातावरण बनाते हुए निर्माण क्षेत्र के पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकते हैं।
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<p>(इलस्ट्रेशन: जिज्ञासा मिश्रा / द् थर्ड पोल)</p>

(इलस्ट्रेशन: जिज्ञासा मिश्रा / द् थर्ड पोल)

वैश्विक स्तर पर अगर एनर्जी और प्रोसेस संबंधी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की बात करें तो बिल्डिंग और कंस्ट्रक्शन सेक्टर की हिस्सेदारी करीब 40 फीसदी है। जलवायु संकट को दूर करने के लिए, इस क्षेत्र को हरित करना ज़रूरी है। इस दिशा में कुछ प्रयास किए जा रहे हैं। पिछले 20 वर्षों के दौरान ग्रीन बिल्डिंग्स मूवमेंट सबसे अहम प्रयासों में से एक है।

इसमें इमारतों की डिज़ाइन के लिए ज़रूरी और स्वैच्छिक प्रोत्साहन की बात है। इसमें कुछ ऐसे निर्माण की ज़रूरत होती है जिससे ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन कम हो। साथ ही, ये इमारतें, जलवायु संबंधी आपदाओं के लिहाज से ज्यादा रेज़िलिएंट यानी लोचशील हों।  

ग्रीन बिल्डिंग्स क्या हैं?
एशिया में ग्रीन बिल्डिंग मूवमेंट की क्या स्थिति है?
क्या ग्रीन रेटिंग आसपास के वातावरण को अधिक समावेशी यानी सस्टेनेबल बना सकती है?
क्या ग्रीन बिल्डिंग्स के चलते आपदाओं से लड़ने की क्षमता में सुधार हो सकता है?
ग्रीन बिल्डिंग्स जलवायु अनुकूलन योजनाओं में किस तरह से फिट होते हैं?

ग्रीन बिल्डिंग्स क्या हैं?

दरअसल, कई सस्टेनेबिलिटी-रेटिंग फ्रेमवर्क्स, 1990 के दशक में, स्वैच्छिक रूप से अस्तित्व में आए। इनमें, अमेरिका में लीडरशिप इन एनर्जी एंड एनवायर्नमेंटल डिजाइन (एलईईडी) और यूके में बिल्डिंग रिसर्च एस्टैब्लिशमेंट एनवायरनमेंटल असेसमेंट मेथड (बीआरईईएएम) प्रमुख हैं। इनके अस्तित्व में आने की वजह से ग्रीन बिल्डिंग मूवमेंट शुरू हुआ। इस स्वैच्छिक रेटिंग सिस्टम के अनुसार ग्रीन बिल्डिंग्स यानी हरित इमारत वो हैं जिनके उत्सर्जन और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव कम हैं। साथ ही, ये इमारतें एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण करते हैं, जहां लोग रहते हैं और काम करते हैं। 

रेटिंग सिस्टम किसी इमारत के एक पहलू के बजाय आर्किटेक्ट और डेवलपर्स द्वारा की गई सभी पहलों के आधार पर सर्टिफिकेट प्रदान करता है। इनमें से कुछ हैं:

• गर्मी को रिफ्लेक्ट, स्टोर और डिस्ट्रीब्यूट करने के लिए पैसिव सोलर आर्किटेक्चर डिज़ाइन

• उच्च दक्षता वाली लाइटिंग, हीटिंग और एयर-कंडीशनिंग

• सोलर पैनल्स

• नल और शॉवर के कुछ मॉडल जिनसे पानी की बचत होती है

• सिंचाई और फ्लश में इस्तेमाल करने के लिए पानी की रीसाइक्लिंग 

• लो-वीओसी पेंट का उपयोग (वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स का उपयोग, सुखाने के समय को धीमा करने के लिए किया जाता है लेकिन ये संभावित रूप से हानिकारक रसायन भी छोड़ते हैं।)

• लो-कार्बन सामग्री का उपयोग

• बिल्डिंग्स के अंदर साफ, ताजी हवा सुनिश्चित करने के लिए उन्नत वेंटिलेशन

• डेलाइट सेंसर जैसे स्मार्ट नियंत्रक का उपयोग। ये दिन के समय, घर के अंदर की रोशनी को अपने आप कम कर देते हैं। इससे ऊर्जा और पैसे की बचत होती है। 

अमेरिका में 22 एलईईडी गोल्ड-रेटेड बिल्डिंग्स के एक स्टडी में पाया गया कि उन्होंने सामान्य इमारतों की तुलना में औसतन 34 फीसदी कम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन किया। बेसलाइन की तुलना में 11 फीसदी कम पानी का उपयोग किया। और वहां रहने वाले, बेसलाइन की तुलना में काफी अधिक संतुष्ट थे।

Roof top solar pannels in Dhaka, Bangladesh
बांग्लादेश की राजधानी ढाका में रूफटॉप सोलर पैनल। यह सर्टिफिकेशन स्कीम्स द्वारा मान्यता प्राप्त पहलों में से एक है। (फोटो: सैयद महबूबुल कादर / अलामी)

एलईईडी और बीआरईईएएम की रेटिंग सिस्टम का उद्देश्य, रेकग्निशन यानी स्वीकृति के लिए, एक उच्च मानक स्थापित करना है जिससे कंस्ट्रक्शन के इंडस्ट्री लीडर्स, सक्षम बनकर बाकी बाजार को चला सकें।   

ग्रीन बिल्डिंग रेटिंग सिस्टम्स, अब दुनिया भर में विकसित और कार्यान्वित हो रहे हैं। इनमें एशिया भी शामिल हैं जहां शहरी आबादी में 2050 तक 1.2 अरब की बढ़ोतरी का अनुमान है।

एशिया में ग्रीन बिल्डिंग मूवमेंट की क्या स्थिति है?

दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के अधिकांश देशों में, न्यूनतम ऊर्जा प्रदर्शन यानी मिनिमम एनर्जी परफॉर्मेंस और बुनियादी पर्यावरणीय मूल्यांकन को अनिवार्य करने वाले नियम हैं। साथ ही, स्वैच्छिक ग्रीन बिल्डिंग रेटिंग सिस्टम भी हैं।  

अनिवार्य व्यवस्था में, भारत में एनर्जी कंजर्वेशन बिल्डिंग कोड, 2017 और श्रीलंका में एनर्जी इफिसियंसी बिल्डिंग कोड, 2020 जैसे नियम शामिल हैं। ये ऊर्जा दक्षता और नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग के लिए मानक निर्धारित करते हैं। दोनों व्यवस्था का लक्ष्य हरित, उच्च दक्षता वाली इमारतों की ओर बदलाव में तेजी लाना है। 

निर्माण उद्योग पर प्रभाव को बढ़ाने के लिए वे कभी-कभी दूसरे की ताकत और संसाधनों से लाभ उठाने के लिए मिलकर काम करते हैं।

प्रमाणन प्रणाली यानी सर्टिफिकेशन सिस्टम्स में, अब भारत में ग्रीन रेटिंग फॉर इंटीग्रेटेड हैबिटेट असेसमेंट (जीआरआईएचए), सिंगापुर में ग्रीन मार्क और इंडोनेशिया में ग्रीनशिप शामिल हैं।

Exterior view of the NZEB@SDE building, Singapore’s net-zero energy building
सिंगापुर में एनजेडईबी@एसडीई बिल्डिंग। इसकी छत पर सोलर पैनलों के कारण, वर्ष भर में इसे ऊर्जा खपत के मामले में नेट ज़ीरो होने के लिए डिजाइन किया गया है। इमारत एयर-कंडीशनिंग की आवश्यकता को कम करते हुए क्रॉस-ब्रीज्स (जब नेचुरल वेंटिलेशन के लिए अपने घर की खिड़कियों और दरवाजों को दोनों तरफ खोला जाता है) को भी बढ़ावा देती है। (फोटो: सियूअन मा / अलामी)

इन मानकों के शुरुआती संस्करणों के बाद से, यह क्षेत्र एक लंबा सफर तय कर चुका है। अनिवार्य और स्वैच्छिक भवन मानकों के हाल के संस्करण, नेट-जीरो बिल्डिंग्स की ओर बदलाव को तेज करने के लिए इस क्षेत्र को आगे बढ़ा रहे हैं। 

भारत में पर्यावरण और वन मंत्रालय के कार्यालय का भवन, इंदिरा पर्यावरण भवन, जो नई दिल्ली में है; नेपाल में बयालपाटा अस्पताल; सिंगापुर में एनजेडईबी@एसडीई कैंपस बिल्डिंग; और कुआलालंपुर, मलेशिया में यूनीकेएल ब्रिटिश मलेशियन इंस्टीट्यूट, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में नेट-जीरो बिल्डिंग्स के उदाहरण हैं।

क्या ग्रीन रेटिंग, आसपास के वातावरण को अधिक समावेशी यानी सस्टेनेबल बना सकती है?

इमारतों के लिए ग्रीन रेटिंग की सफलता ने कई अन्य रेटिंग प्रणालियों के विकास को प्रोत्साहित किया है, जिसमें शहरों और समुदायों के लिए एलईईडी, समुदायों के लिए बीआरईईएएम और बड़े विकास के लिए जीआरआईएचए शामिल हैं। इनका उद्देश्य हासिल किए गए बदलावों को मापना है ताकि आस-पड़ोस अधिक हरित हों और हर तरह के लोगों को अपना जीवन जीने के लिए बेहतर वातावरण प्राप्त हो। 

कोविड-19 महामारी के दौरान, हमारी बिल्डिंग्स और शहरों के लिए, फटाफट ऐसे उपाय तैयार किए गए और लागू किए गए जिससे कोरोना कम से कम फैले। अमेरिका में भी ऐसा ही किया गया। और यही प्रक्रिया विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी अपनाई। अब जबकि कोविड-19 पर हमारा ध्यान कम हो गया है, भवन और शहर के डिजाइन का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव है, इस तरफ ध्यान बढ़ गया है। 

मौजूदा समय में इमारतों के जो डिजाइन्स हैं, उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों और उनमें सुधार के लिए अपनाए जा सकने वाले उपायों को बेहतर ढंग से समझने के लिए कई अध्ययन किए जा रहे हैं।

Buildings covered with green plants in Rangpur, Bangladesh
बांग्लादेश के रंगपुर में एक इमारत की दीवार (फोटो: अबीर अब्दुल्ला क्लाइमेट विज़ुअल्स काउंटडाउन)

क्या ग्रीन बिल्डिंग्स के चलते आपदाओं से लड़ने की क्षमता में सुधार हो सकता है?

हम सभी जानते हैं कि कोविड-19 के कारण अनेक तरह के व्यवधान पैदा हुए। इसके अलावा, प्रचंड लू यानी हीटवेव्स, जंगलों की आग, चक्रवात और बाढ़ जैसे प्रतिकूल मौसमी प्रभावों के कारण भी होने वाले व्यवधानों में वृद्धि हुई है। जलवायु परिवर्तन की अनुमानित गति को देखते हुए ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के पहले से ज्यादा भयानक होने और बार-बार होने की आशंका बरकरार है।

हमारे पास दशकों से, भूकंप जैसी कुछ आपदाओं के लिहाज से भवन डिजाइन मानक हैं। अब, अन्य आपदाओं के लिहाज से, हमारे शहरों और इमारतों की लोचशीलता यानी रिज़िल्यन्स में सुधार के लिए क्लाइमेट अडॉप्टेशन एंड मिटिगेशन गाइडलाइंस यानी जलवायु अनुकूलन और शमन दिशानिर्देशों की ओर ध्यान देने की बात की जा रही है। 

लोचशील इमारतें और शहर, मानव जीवन के नुकसान को कम करेंगे। इनसे वित्तीय नुकसान में भी कमी आएगी। निरंतर व्यापार करते रहने की स्थिति में सुधार होगा। आपदा की स्थिति में समुदायों को जल्दी ठीक होने में मदद होगी। जिस तरह से लोचशील योजनाएं विकसित होती हैं, वैसे ही, यह तय करना महत्वपूर्ण हो जाता है कि आपदाओं की तीव्रता और आवृत्ति (इंटेंसिटी एंड फ्रीक्वेंसी) अब से 20, 30 और 50 वर्ष बाद क्या होगी। और उसी के हिसाब से योजनाएं बनाने की आवश्यकता होती है। 

ग्रीन बिल्डिंग्स, जलवायु अनुकूलन योजनाओं में किस तरह से फिट होते हैं?

जिन लोचशील योजनाओं की बात की जा रही है, उनमें न्यायसंगत विकास पर विचार करना बेहद महत्वपूर्ण है। आमतौर पर, हमारी आबादी का सबसे कमजोर वर्ग, प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं के सबसे बुरे प्रभावों को झेलता है।

उदाहरण के लिए, यह निम्न-आय वर्ग ही है, जिसे हम अक्सर वायु या जल प्रदूषण के स्रोतों के पास रहते हुए पाते हैं या यही वह वर्ग है, जिसको पानी की कमी के कारण सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। 

दक्षिण एशिया, वैश्विक आबादी का लगभग एक चौथाई हिस्सा है, जिनमें से अधिकांश लोग, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति नाजुक स्थिति में हैं। इनके रहने की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार की आवश्यकता है। 

इस क्षेत्र के देश, जैसे भारत और बांग्लादेश, अपने राष्ट्रीय जलवायु अनुकूलन और शमन योजनाओं को विकसित कर रहे हैं। इनमें लो-कार्बन, न्यायसंगत, स्वस्थ और सभी के रहने लायक जरूरी वातावरण के लक्ष्य को हासिल करने की बात है। 

यह बेहद जरूरी है कि भवन और शहर के मानकों की अगली पीढ़ी, व्यापक और समग्र तरीके से, इन लक्ष्यों के साथ अपनी आवश्यकताओं को श्रेणीबद्ध यानी अलाइन करे। इससे हमारे शहर और भवन अधिक टिकाऊ, लोचशील, स्वस्थ और न्यायसंगत बन सकेेंगे।

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