बिहार की राजधानी पटना के एक दुकानदार इरशाद अहमद को अप्रैल के मध्य में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी के कारण कई दिनों के लिए अपना स्टोर बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा। दरअसल बिहार में तापमान 44 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया जो कि औसत से कई डिग्री अधिक है।
राज्य भर में अप्रैल की गर्मी ने 10 दिनों से अधिक वक्त तक लोगों की रोज़मर्रा ज़िंदगी को अस्त-व्यस्त कर दिया। प्रचंड गर्मी की वजह से गरीब और कामकाजी लोगों को काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इस हफ़्ते फिर से बिहार में लू लौट आई है।
राज्य सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग (डीएमडी) की तरफ़ से गर्मी को लेकर चेतावनी जारी किए जाने के बाद अहमद ने अपनी दुकान बंद कर दी थी। उनके पास एक ही विकल्प था। निश्चित रूप से यह कठिन विकल्प था। या तो उनको अपनी कमाई के साथ समझौता करना था या फिर गर्मी की चपेट में आना था। गर्मी की चपेट में आने का मतलब है स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर समस्याएं और यहां तक कि मौत भी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि विश्व स्तर पर, 1998 और 2017 के बीच हीटवेव के कारण 1,66,000 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
बहुत ज्यादा गर्मी के कारण शरीर में पानी की कमी हो जाती है। थकावट बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। हीट स्ट्रोक का खतरा पैदा हो जाता है। प्रचंड गर्मी की वजह से हीट रैशेज, निचले अंगों में सूजन, ऐंठन, सिरदर्द और कमजोरी भी हो सकती है।
हीट वेव के कारण 2019 में, बिहार के तीन जिलों (गया, औरंगाबाद और पटना) में लगभग 200 लोगों की मौत हो गई।
बिहार, भारत के लिए कुछ सबसे बड़ी चुनौतियों को समेटे हुए है। दरअसल, यह राज्य लो-कार्बन अर्थव्यवस्था में बदलाव के दौरान बार-बार आने वाली खराब मौसम से जुड़ी घटनाओं की समस्या का जवाब तलाशना चाहता है। आबादी (10 करोड़ से अधिक) के लिहाज से यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है जबकि प्रति व्यक्ति जीडीपी सबसे कम है। अनुमान के मुताबिक, 2021 में प्रतिवर्ष के हिसाब से यह 46,292 रुपये (560 डॉलर) रही। कृषि तकरीबन पूरी तरह से बारिश और गंगा, कोसी व अन्य नदियों पर निर्भर है। तकरीबन 77 फीसदी रोजगार भी कृषि पर ही निर्भर है और राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में इसकी हिस्सेदारी 25 फीसदी की है।
अगर मैदानी इलाकों में तापमान अधिकतम 40 डिग्री सेल्सियस, पहाड़ी इलाकों में अधिकतम 30 डिग्री सेल्सियस और तटीय इलाकों में अधिकतम 37 डिग्री सेल्सियस को छू लेता है या पार कर जाता है तो भारत का मौसम विज्ञान विभाग हीटवेट की घोषणा कर देता है।
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (डब्ल्यूडब्ल्यूए) के एक इनीशिएटिव के हालिया विश्लेषण में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन की वजह से अप्रैल 2023 में भारत और बांग्लादेश में हीटवेव की संभावना 30 गुना अधिक हो गई। इसमें पूर्वानुमान लगाया गया कि “अभी और 2 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग तक पहुंचने के बीच” भारत को लगातार काफी सारे हीटवेव झेलने पड़ सकते हैं। डब्ल्यूडब्ल्यूए के जलवायु वैज्ञानिकों के समूह ने अनुमान लगाया है कि हर एक से दो साल में इस तरह के हीटवेव की आशंका है।
बिहार के एक गैस विक्रेता चंदन चौधरी ने भी 10 दिनों के लिए अपना काम बंद कर दिया था। चंदन चौधरी ने द् थर्ड पोल को बताया कि होने वाली कमाई के नुकसान से दुख जरूर हुआ लेकिन चिलचिलाती धूप से राहत मिली।
राज्य सरकार द्वारा स्थानीय मीडिया और कम्युनिटीज में व्हाट्सएप मैसेजेस सर्कुलेट किए जाने के बाद, अहमद और चौधरी दोनों ने अपने काम बंद करने का फैसला लिया। ये प्रयास अर्ली वार्निंग अलर्ट और एडवाइजरी, बिहार हीट एक्शन प्लान (एचएपी) का हिस्सा हैं। यह भयानक गर्मी के प्रभावों को कम करने की कोशिश के लिए 23 हीटवेव-प्रोन भारतीय राज्यों में स्थापित प्रणालियों में से एक है।
बिहार हीट एक्शन प्लान में क्या-क्या है?
हीट एक्शन प्लान यह रेखांकित करता है कि नागरिकों को प्रचंड गर्मी का जोखिम कम से कम झेलना पड़े, इस उद्देश्य से, अधिकारी कैसे दिशा-निर्देश जारी करके हीटवेव की चुनौती से निपटने की तैयारी कर सकते हैं।
बिहार का आपदा प्रबंधन विभाग (डीएमडी) हीट एक्शन प्लान के कार्यान्वयन के लिए प्रमुख विभाग है। यह बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (बीएसडीएमए) और शहरी निकायों के साथ मिलकर काम करता है। डीएमडी के अलावा, आपदा प्रबंधन गतिविधियों के समग्र समन्वय और निगरानी के लिए, राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप की जवाबदेही है।
हाल के वर्षों में, डीएमडी और बीएसडीएमए ने प्रचंड गर्मी के बारे में जागरूकता कार्यक्रम और सूचना अभियान चलाए हैं।
दुकानें बंद करने के अलावा, योजना में उल्लिखित उपायों में कार्यालयों और स्कूलों के समय को बदलना शामिल है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) की जॉब गारंटी स्कीम के तहत आने वाले सबसे गरीब ग्रामीण श्रमिकों के लिए काम के घंटे बदल दिए गए हैं। इस अप्रैल में, मुजफ्फरपुर जिले में प्राथमिक विद्यालय भी बंद कर दिए गए थे।
बिहार हीट एक्शन प्लान में कहा गया है कि राज्य सरकार इसके कार्यान्वयन के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है, क्योंकि हीटवेव के प्रभाव क्रॉस-सेक्टोरल हैं, ऐसे में किसी एक विभाग की अकेले जिम्मेदारी नहीं हो सकती है। इसमें यह भी कहा गया है कि सभी स्टेकहोल्डर्स, जैसे कि सरकारी एजेंसियों और जिला प्रशासन को हीटवेव के दस्तक देने की स्थिति में आपसी समन्वय स्थापित करना चाहिए।
कम फंडिंग और योजनाओं का ठीक ढंग से लागू न होना
एक योजना के अस्तित्व के बावजूद, अधिकारियों और श्रमिकों ने द् थर्ड पोल को बताया कि नीति को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा गायब है। इसके अलावा, हीट एक्शन प्लान से जुड़े कामों के लिए जरूरी फंड को अलग नहीं रखा गया है।
डीएमडी के ज्वाइंट सेक्रेटरी हरि नारायण पासवान ने कहा, “हमारे पास ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। विभिन्न विभाग हीट एक्शन प्लान को लागू करने के लिए अपने आवंटन से पैसा खर्च करते हैं।”
नतीजतन, राज्य के कई सबसे कमजोर लोगों को वह राहत नहीं मिल रही है जो उन्हें मिलनी चाहिए। राज्य के सबसे गर्म जिलों में से एक गया में, एक मनरेगा कर्मचारी ने कहा, “मनरेगा के सभी कार्य स्थलों पर न तो आराम करने के लिए शेड और न ही पीने के पानी की व्यवस्था की गई थी।” कर्मचारी ने कहा कि साइट पर रिहाइड्रेशन टैबलेट्स उपलब्ध नहीं हैं। ये सभी उपाय केवल कागजों पर ही हीट एक्शन प्लान का हिस्सा हैं। कार्यस्थल के आसपास अगर कोई पेड़ है तो मजदूर ज्यादातर वहीं आराम करते हैं।
द् थर्ड पोल को बताया गया कि हीट एक्शन प्लान को तैयार हुए 5 साल हो गए लेकिन भीषण गर्मी को लेकर इसकी तैयारियां और जरूरी कदम से जुड़े ज्यादातर दिशा निर्देश या तो अधूरे हैं या फिर आधे-अधूरे तरीके से लागू किए गए हैं।
यहां तक कि कई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में शुद्ध पेयजल भी उपलब्ध नहीं है।औरंगाबाद जिले के स्वास्थ्य विभाग से जुड़े एक अधिकारी
सरकार द्वारा संचालित जिला अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में जरूर कुछ व्यवस्था की गई है। गया के एक सर्जन रंजन कुमार सिंह ने बताया कि सरकार द्वारा संचालित अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज में 30 बेड का एक डेडिकेटेड हीटवेव वार्ड बनाया गया है। लेकिन डीएमडी द्वारा स्वास्थ्य विभाग को बार-बार निर्देश देने के बावजूद सैकड़ों प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) में से अधिकांश में ये सुविधाएं नदारद थीं।
औरंगाबाद जिले में जिला स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर द् थर्ड पोल को बताया कि पीएचसी में ओरल रिहाइड्रेशन साल्ट टैबलेट्स, IV फ्लुइड्स और जीवनरक्षक दवाओं की कमी एक आम बात है। यहां तक कि कई जगहों पर सुरक्षित पेयजल भी उपलब्ध नहीं है।
बिजली कटौती एक अन्य समस्या है। मार्च में, बिहार के प्रिंसिपल एनर्जी सेक्रेटरी, संजीव हंस ने घोषणा की थी कि हीट एक्शन प्लान के अनुसार, हीटवेव के दौरान बिजली आपूर्ति बाधित नहीं होगी।
हालांकि, अप्रैल की गर्मी के दौरान, ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली अनियमित थी। पटना जिले के जमहारू गांव में रहने वाले पप्पू सिंह ने कहा, “गर्मी के दौरान बिजली की आपूर्ति बहुत खराब थी, जबकि उस समय हमें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी।”
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, नगर निगमों द्वारा 500 से अधिक सार्वजनिक प्याऊ (पीने के पानी के आउटलेट) बनाए गए हैं। हालांकि, द् थर्ड पोल के रिपोर्टर को सड़कों के किनारे कुछ ही प्याऊ नजर आए।
भारत के हीट एक्शन प्लांस में सुधार कैसे हो
दक्षिण बिहार के केंद्रीय विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के एक एसोसिएट प्रोफेसर, प्रधान पार्थसारथी ने द् थर्ड पोल को बताया कि बिहार का हीट एक्शन प्लान, जलवायु शोधकर्ताओं के इनपुट के बिना तैयार किया गया।
पार्थसारथी ने कहा,”आप बिहार के उन शैक्षणिक संस्थानों से परामर्श किए बिना एक हीट एक्शन प्लान कैसे तैयार कर सकते हैं जो कि बिहार और गंगा के मैदानी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर काम कर रहे हैं?”
मार्च 2023 में, एक भारतीय थिंक टैंक, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च ने भारत के हीट एक्शन प्लांस में सुधार के लिए छह प्रमुख क्षेत्रों की पहचान करते हुए एक शोध प्रकाशित किया। इसमें कहा गया कि अधिकांश हीट एक्शन प्लान में स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में नहीं रखा गया है। इसके अलावा, इनमें हीटवेव के खतरों के प्रति बहुत सरल तरह का दृष्टिकोण रखा गया है। मूल्यांकन से यह भी पता चलता है कि हीटवेव के लिहाज से सबसे नाजुक समूहों की पहचान करने और उनको टार्गेट करके कदम उठाने की दिशा में ये योजनाएं बहुत कमजोर साबित हुई हैं। इनके लिए पर्याप्त फंड उपलब्ध नहीं रहा है। कानून के लिहाज से भी इनकी नींव कमजोर है। पारदर्शिता का अभाव है। इसके अलावा, ये योजनाएं विभिन्न क्षेत्रों को लक्षित करके काम करने और कैपेसिटी-बिल्डिंग यानी क्षमता निर्माण के लिहाज से भी कमजोर ही साबित हुई हैं।
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के एक फेलो और रिपोर्ट के सह-लेखक आदित्य वलियाथन पिल्लई ने कहा कि बिहार हीट एक्शन प्लान, सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकों में, हीटवेव से बचाव को लेकर तैयारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
उन्होंने कहा, “बिहार हीट एक्शन प्लान में मुख्यमंत्री स्कूल सुरक्षा कार्यक्रम और मनरेगा जैसी मौजूदा योजनाओं के साथ जोड़कर गर्मी के प्रति रिजिल्यन्स यानी लोचशीलता की दिशा में कुछ दिलचस्प कदम उठाए गए हैं। लेकिन एक बड़ी खामी बनी हुई है: वह है हीट एक्शन प्लान के लिए फंड की कमी और एक स्पष्ट वल्नरबिलिटी एसेसमेंट का अभाव। इससे सरकार को यह पता चल सकेगा कि राज्य के किन हिस्सों पर सबसे अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।”
उन्होंने आधिकारिक सरकारी रिकॉर्ड की ओर इशारा किया, जिसमें बताया गया है कि 2000 और 2014 के बीच बिहार में तकरीबन 1,000 लोगों की मौत, हीटवेव के कारण हुई थी।
पिल्लई कहते हैं कि इससे पता चलता है कि राज्य के लिए प्रॉपर हीट प्लानिंग कितनी महत्वपूर्ण है। हीट एक्शन प्लान को जब आगे तैयार किया जाए तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इसके लिए ठीक से फंडिंग हो, इसको ठीक से लागू किया जाए और इसकी ठीक ढंग से समीक्षा की जाए।
एक एनवायरनमेंटल एक्टिविस्ट, देवप्रिया दत्ता- एक एनजीओ तरुमित्र के साथ काम करती हैं, जिसका मुख्यालय पटना में है- कहती हैं कि हीट एक्शन प्लान तभी मददगार होंगे जब अधिकारी अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलेंगे और जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन के लिए काम करेंगे।