जलवायु

कॉप 28 जलवायु कार्रवाई को जीवन रेखा प्रदान करता है, लेकिन कोई अंतिम विकल्प नहीं देता

दुबई में दो सप्ताह का जलवायु सम्मेलन, जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाने के ऐतिहासिक समझौते के साथ समाप्त हुआ, लेकिन इसकी खामियां प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में बाधा बन सकती हैं।
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<p>कॉप 28 के अध्यक्ष सुल्तान अल जाबेर दुबई में कॉप 28 जलवायु वार्ता की समापन बैठक में बोलते हुए (फोटो: एंथनी फ्लेमन / यूएन क्लाइमेट चेंज, <a href="https://creativecommons.org/licenses/by-nc-sa/2.0/">CC BY-NC-SA</a>)</p>

कॉप 28 के अध्यक्ष सुल्तान अल जाबेर दुबई में कॉप 28 जलवायु वार्ता की समापन बैठक में बोलते हुए (फोटो: एंथनी फ्लेमन / यूएन क्लाइमेट चेंज, CC BY-NC-SA)

इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन, कॉप 28 में किए गए समझौते में देशों से अपनी ऊर्जा प्रणालियों को उचित एवं व्यवस्थित तरीके से स्थानांतरित करने का आह्वान किया गया है। लेकिन इसमें ऐसी खामियां भी हैं, जो उत्सर्जन कटौती को प्रभावित कर सकती हैं।

शिखर सम्मेलन के अध्यक्ष और अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी के सीईओ सुल्तान अल जाबेर ने कहा कि तेल और गैस क्षेत्र महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए ‘पहली बार आगे बढ़ रहा है। हमारे पास परिवर्तन लाने का आधार है। यह जलवायु कार्रवाई में तेजी लाने के लिए एक संतुलित और ऐतिहासिक पैकेज है।’

ग्लोबल स्टॉकटेक के समापन के लिए विभिन्न देशों ने दुबई में दो सप्ताह तक बैठक की। इसका उद्देश्य जलवायु कार्रवाई पर प्रगति का मूल्यांकन करना और यह रेखांकित करना था कि ग्लोबल वार्मिंग को 2015 के पेरिस समझौते में शामिल उच्च महत्वाकांक्षा लक्ष्य 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए और क्या करने की जरूरत है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि वैश्विक औसत तापमान पहले ही पूर्व-औद्योगिक काल से 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है।

पहले दिन नुकसान एवं क्षति कोष यानी लॉस एंड डैमेज फंड के संचालन एवं पूंजीकरण के साथ कॉप 28 की मजबूत शुरुआत हुई, जो जलवायु परिवर्तन से प्रभावित सबसे कमजोर राष्ट्रों को मुआवजा देने के लिए एक वैश्विक वित्तीय पैकेज है। विकसित देशों ने इस कोष में 70 करोड़ डॉलर देने का वादा किया है, हालांकि यह विकासशील देशों को हर साल होने वाले अनुमानित नुकसान के 0.5 फीसदी से भी कम है।

जीवाश्म ईंधन का भविष्य

बातचीत उस समय रुक गई, जब जीवाश्म ईंधन के भविष्य पर कॉप 28 समझौते की भाषा पर सभी देश आम सहमति नहीं बना सके। 100 से अधिक देश तेल, गैस, और कोयले के उपयोग को ‘चरणबद्ध तरीके से खत्म करने’ के लिए सख्त भाषा पर जोर दे रहे थे। उन्हें प्रमुख जीवाश्म ईंधन उत्पादक और निर्यातक देशों के संगठन ओपेक के विरोध का सामना करना पड़ा, जिसने तर्क दिया कि सभी जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के बजाय दुनिया को उत्सर्जन कम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

लंबी चर्चा के कारण शिखर सम्मेलन उम्मीद से एक दिन देरी से समाप्त हुआ। समझौते का अंतिम टेक्स्ट, सभी देशों से ‘नेट जीरो उत्सर्जन ऊर्जा प्रणालियों की दिशा में विश्व स्तर पर प्रयासों में तेजी लाने’ का ‘आह्वान’ करता है, जिसमें शून्य और निम्न-कार्बन ईंधन का उपयोग सदी के मध्य से पहले या उसके आसपास किया जाना है। इसमें ‘अप्रभावी’ जीवाश्म सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का उल्लेख है, जो ‘ऊर्जा पर खर्च के कारण गरीबी या न्यायोचित बदलाव को संबोधित नहीं करती है’।

UN climate chief Simon Stiell (centre left), and UN secretary-general, António Guterres 
discuss a draft of the COP28 agreement
राष्ट्र जलवायु प्रमुख, साइमन स्टिल (बाएं से बीच में), और संयुक्त राष्ट्र महासचिव, एंटोनियो गुटेरेस (दाएं से बीच में) समझौते के मसौदे पर चर्चा करते हुए। (फोटो: कियारा वर्थ/ यूएन क्लाइमेट चेंज,  CC BY-NC-SA)
Protestors at COP28
शिखर सम्मेलन के बाहर अपनी मांगों को बताने के लिए दुनिया भर से युवा दुबई आए। (फोटो: एंड्रिया डिसेंजो / यूएन क्लाइमेट चेंज, CC BY-NC-SA)

समझौते का टेक्स्ट मीथेन जैसी अन्य ग्रीनहाउस गैसों में कटौती की जरूरत और ऊर्जा परिवर्तन को सुविधाजनक बनाने में कम कार्बन वाले ईंधन, जैसे प्राकृतिक गैस की भूमिका को को वैधता प्रदान करता है, जिस पर जलवायु परिवर्तन कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाया।

एक यूरोपीय थिंक टैंक स्ट्रैटेजिक पर्सपेक्टिव के कार्यकारी निदेशक लिंडा काल्चर ने कहा, ‘आर्थिक वास्तविकताएं कुछ गलत समाधानों को खत्म कर देंगी, जिसे यह टेक्स्ट अब भी जगह देता है, जैसे सीसीएस (कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज) और तथाकथित संक्रमण ईंधन, लेकिन इन्हें मौजूदा काम से ध्यान भटकाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।’

समझौते के पाठ में देशों से 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने और ऊर्जा दक्षता सुधार की वार्षिक दर को दोगुना करने के लिए भी कहा गया है। लेकिन लक्ष्य में यह उल्लेख नहीं किया गया है कि यह कैसे होना चाहिए या इसे हासिल करने के लिए विकासशील देशों के लिए जरूरी वित्तीय सहायता पर स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा गया है।

जलवायु वित्त का अभाव

अपर्याप्त जलवायु वित्त दो सप्ताहों के दौरान विवाद के मुख्य मुद्दों में से एक था। क्रिश्चियन एड के वरिष्ठ जलवायु सलाहकार जोआब ओकांडा ने कहा: ‘वास्तव में विकासशील देशों में अस्वच्छ से स्वच्छ ऊर्जा में बदलाव को वित्त पोषित करने के लिए जलवायु वित्त पर एक बड़ा अंतर है। इसके बिना, हम वैश्विक बदलाव के बहुत धीमे होने का जोखिम उठाते हैं।’

कॉप 28 समझौता सभी देशों से 2025 तक विकासशील देशों के अनुकूलन के लिए अपने जलवायु वित्त को दोगुना से अधिक करने का आग्रह करता है और यह सुनिश्चित करता है कि वे प्रति वर्ष 100 अरब अमेरिकी डॉलर के मौजूदा लक्ष्य को पूरा करें। इसमें अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में सुधार का भी आह्वान किया गया है।

उम्मीद है कि जलवायु वित्त अगले साल के जलवायु सम्मेलन का एक प्रमुख विषय होगा, जब समझौते के तहत एक नए, मात्रात्मक लक्ष्य पर पहुंचने के लिए विकसित देश, विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन को कम करने और अनुकूलन में मदद करने के लिए वित्तीय सहायता की राशि प्रदान करेंगे

क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल में वैश्विक राजनीतिक रणनीति के प्रमुख हरजीत सिंह ने कहा: ‘अंतिम परिणाम अमीर देशों को अपनी वित्तीय जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए मजबूर करने में निराशाजनक रूप से विफल है।’

पर्यावरण थिंक टैंक ई3जी के शोधकर्ता एना मुलियो अल्वारेज ने कहा कि ‘हालांकि पार्टियों ने अनुकूलन ढांचे पर उतना मजबूत वैश्विक लक्ष्य हासिल नहीं किया, जितना कमजोर देश चाहते थे, अब अनुकूलन कार्यों में सुधार के लिए एक रास्ता है, जो अनुकूलन और लचीलेपन के लिए एक औपचारिक समन्वित वैश्विक प्रयास की शुरुआत का प्रतीक है।’

एक समझौते को आगे बढ़ाना

कॉप 28 में जिस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किया गया, वह घंटों की धैर्यपूर्वक बातचीत के बाद किया गया समझौता था, जो हजारों सरकारी प्रतिनिधियों के लिए दो रातों की नींद हराम करने वाला था, और जब इसे किसी भी देश द्वारा औपचारिक आपत्ति के बगैर अंतिम पूर्ण बैठक में अपनाया गया, तो मंच पर लोगों ने एक-दूसरे को गले लगाया।

हालांकि, समोआ के प्राकृतिक संसाधन और पर्यावरण मंत्री ऐनी रासमुसेन ने शिकायत की कि उसके प्रतिनिधियों के कमरे में आने से पहले ही समझौते की पुष्टि कर दी गई, जिससे आपत्ति करने का कोई मौका नहीं मिला। उन्होंने इस समझौते को ‘हमेशा की तरह धीमी गति से प्रगति बताया, जबकि वास्तव में हमारे कार्यों में तेजी से बदलाव की आवश्यकता होती है।’

उस समय उन्हें काफी प्रशंसा मिली, जब उन्होंने कहा कि ‘विज्ञान का संदर्भ देना पर्याप्त नहीं है, फिर हम वह न करें, जो विज्ञान हमें करने के लिए कहता है।’ अल जाबेर ने जवाब देते हुए कहा, ‘हम आपकी चिंताओं को समझते हैं।’ 

Marshall Islands delegate at the plenary of COP28
कॉप 28 के समापन सत्र में मार्शल द्वीप के प्रतिनिधि। कई प्रशांत द्वीपीय राष्ट्र सम्मेलन के नतीजे से निराश थे, उनका कहना था कि ‘यह हमें यथास्थिति से आगे नहीं बढ़ाएगा।’ (फोटो: क्रिस्टोफ़र एड्रलिन / यूएन क्लाइमेट चेंज, CC BY-NC-SA)

कॉप 28 नतीजों पर मिली-जुली प्रतिक्रिया

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के कार्यकारी सचिव साइमन स्टिल के अनुसार, कॉप 28 ने ‘कुछ वास्तविक प्रगति’ की, लेकिन उन्होंने चेतावनी दी कि देश अभी भी इसे अंतिम रूप देने से दूर हैं। ‘हमें पेरिस समझौते को पूरी तरह से क्रियान्वित करने का काम जारी रखना चाहिए। हमें कई मोर्चों पर स्पष्ट संदेश देने के लिए इस कॉप की आवश्यकता थी।’

उन्होंने बहुपक्षीय प्रक्रिया का भी बचाव किया, जिस पर जलवायु कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए बार-बार हमला किया गया, जिसे विज्ञान जरूरी बताता है : उन्होंने कहा कि ‘कॉप के बिना, हम 5सी की ओर बढ़ रहे होंगे। फिलहाल हम 3सी के अधीन हैं।’ हालांकि उन्होंने माना कि ‘कॉप 28 को सुई को और आगे बढ़ाने की जरूरत है।’

कुछ पर्यावरण कार्यकर्ता अधिक स्पष्टवादी थे। क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क, साउथ एशिया के निदेशक संजय वशिष्ठ ने कहा : ‘अंतिम परिणाम के टेक्स्ट से समानता और मानवाधिकार सिद्धांतों को हटाने से संकेत मिलता है कि विकासशील देशों में कमजोर समुदायों को खुद को बचाने की जरूरत है और वास्तविक जलवायु अपराधी उन्हें बचाने के लिए सामने नहीं आ रहे हैं।’ 

नई दिल्ली स्थित काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर के सीईओ अरुणाभ घोष ने कहा : ‘जलवायु संकट की तात्कालिकता के लिए कॉप प्रक्रिया में तत्काल सुधार की मांग की गई है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जवाबदेही, कार्यान्वयन और जलवायु न्याय सभी प्रयासों के लिए मुख्य विषय बन जाए। अन्यथा, भविष्य के कॉप के अप्रासंगिक होने का खतरा है।’

भारत के पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने अंतिम सत्र में कहा कि कॉप 28 में जो सहमति बनी है, देशों को उसके ‘कार्यान्वयन के साधनों’ की आवश्यकता है, और उन्होंने स्वच्छ अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ते हुए समानता और जलवायु न्याय के सिद्धांतों पर जोर दिया।

चीन और अमेरिका से जल्द ही मीथेन और ऊर्जा से संबंधित अन्य खबरें आ सकती हैं। अमेरिकी जलवायु दूत जॉन केरी ने कहा कि दोनों देश अपनी दीर्घकालिक रणनीतियों को अपडेट करने और अन्य देशों को भी ऐसा करने के लिए आमंत्रित करने का इरादा रखते हैं। उन्होंने कहा, ‘हम शुरुआती रेखा तक पहुंच गए हैं, भले ही अंतिम रेखा पर नहीं।’

जलवायु परिवर्तन के लिए चीनी विशेष दूत के वरिष्ठ सलाहकार लियू झेनमिन ने रॉयटर्स को बताया कि प्रस्तावित कॉप 28 जलवायु समझौता ‘सही नहीं है।’ कुछ मुद्दे अभी भी बने हुए हैं।’

जलवायु संकट की तात्कालिकता की मांग है कि कॉप प्रक्रिया में तत्काल सुधार किए जाएं।
अरुणाभ घोष, काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वायरॉन्मेंट एंड वाटर। 

यह पूछे जाने पर कि क्या चीन कोयले को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने पर विचार करेगा, जलवायु दूत झी झेनहुआ की प्रतिक्रिया चीन की पहले बताई गई स्थिति के अनुरूप थी : ‘हम 2025 से पहले कोयले की खपत को सख्ती से नियंत्रित करेंगे। 2025 के बाद, हम इसे धीरे-धीरे कम करेंगे। हम विदेशों में कोयले से चलने वाले नए बिजली संयंत्र भी नहीं बनाएंगे, जैसा कि हम पहले ही घोषणा कर चुके हैं।’

इसी तरह, चीन के पारिस्थितिकी और पर्यावरण के उप मंत्री झाओ यिंगमिन ने चीन के दीर्घकालिक रुख को दोहराया: ‘जलवायु परिवर्तन के लिए विकसित देशों की एक अटल ऐतिहासिक जिम्मेदारी है और उन्हें जल्द से जल्द नेट जीरो को मूर्त रूप देने के लिए आगे आना चाहिए।’

उन्होंने कहा कि ऊर्जा परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न देशों की क्षमताओं और राष्ट्रीय परिस्थितियों का पूरी तरह से सम्मान करना चाहिए, और सभी देशों के लिए ‘एक समान’ संक्रमण जरूरत को लागू नहीं करना चाहिए।

जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की मेजबानी पांच क्षेत्रीय समूहों के बीच घूमती रहती है। अगले साल की वार्ता नवंबर, 2024 में अजरबैजान में होगी। यह एक ऐसा देश है, जो अपनी आय का दो तिहाई हिस्सा तेल और गैस से प्राप्त करता है। इसे देखते हुए, ऊर्जा परिवर्तन पर चर्चा केंद्र स्तर पर बनी रहने की संभावना है। फिर लैटिन अमेरिका की बारी होगी, ब्राजील 2025 में बेलेम शहर में कॉप 30 की मेजबानी करेगा, जहां देशों से नई जलवायु प्रतिज्ञाएं प्रस्तुत करने की उम्मीद की जाएगी।

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