जलवायु

वीडियो: भारत में हीटवेव के दौरान ज़िंदगी कैसी नज़र आती है?

एक ऐतिहासिक हीटवेव के दौरान उत्तर प्रदेश की एक पत्रकार, कुमकुम यादव भीषण गर्मी और बार-बार बिजली जाने की परेशानियों से जूझते हुए अपना काम और पढ़ाई करती हैं
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संपादक का नोट: यह व्लॉग बताता है कि भारत के गर्म कस्बों और शहरों में लोग भीषण गर्मी से कैसे गुज़र रहे हैं। ये व्लॉग पिछले साल मई में फ़िल्माया गया था जब देश में हीटवेव ऊंचाई पर था। देश में इस साल भी हीटवेव आने का अनुमान है। भीषण गर्म मौसम आने से पहले हम इस व्लॉग को साझा कर रहे हैं जिसमें एक पत्रकार अपने जीवन में एक दिन साझा करने के लिए वीडियो डायरी का उपयोग कर रही हैं।

उनके अनुभवों के माध्यम से हम बढ़ते तापमान के मानवीय प्रभावों को दर्शाना चाहते हैं। जलवायु संकट के विज्ञान पर हमने रिपोर्टिंग और विश्लेषण किया है लेकिन इस व्लॉग से हम ये दिखाना चाहते हैं कि उन इलाक़ों में ज़िंदगी कैसी नज़र आती है जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।

जब भारत या पूरा दक्षिण एशिया गर्मी की लहर से झुलस रहा हो तो एयर कंडीशनर और रेफ्रिजरेटर कुछ घरों के अंदर गर्मी को मात देने में मदद कर सकते हैं। लेकिन ये रास्ता सभी के लिए खुला नहीं है। अगर किसानों या छात्रों की बात करें तो ज़रूरत इस बात की है कि पूरे दक्षिण एशिया में ठंडे रहने के अन्य तरीकों को ढूँढ़ा जाए। कुमकुम यादव के लिए भीषण गर्मी का मतलब है कि वो सुबह जल्दी काम पर जाए, बाहर जाने से पहले वो अपना चेहरा और हाथ ढंके और पढ़ने के लिए वॉशरूम का सहारा लें।

कुमकुम अयोध्या में खबर लहरिया नाम के न्यूज़ आउटलेट में काम करने वाली एक युवा पत्रकार हैं। कुमकुम भारत की सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रही हैं। लेकिन गर्मी की चिलचिलाती धूप उनके लिए पढ़ाई को मुश्किल बना देती है। चुनौती तब और बढ़ जाती है जब लगातार बिजली कटौती होने लगती है। इसकी वजह से पंखे भी नहीं चलते जो गर्मी से बचाव का उनके लिए इकलौता रास्ता है।

इस साल भारत साल 1901 के बाद से सबसे गर्म फरवरी रिकॉर्ड कर चुका है। देश अब एक और हीटवेव की तैयारी कर रहा है। उम्मीद है कि ये हीटवेव मार्च और मई के बीच आएगा

पिछले साल अप्रैल में पूरे दक्षिण एशिया में गर्म हवाएं समाचारों की सुर्खियां बन चुकी थी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शुरुआती गर्मी की लहर अचानक से आ गई और लोग गर्मी की शुरुआत के लिए तैयार नहीं थे। पिछले साल मार्च का औसत अधिकतम तापमान 40.2C था, जो 2010 के बाद से सबसे गर्म था। गर्मी असामान्य रूप से शुरु हुई। देश ने पिछले साल मार्च और अप्रैल में चार बार हीटवेव देखा। 2021 की तुलना में तापमान औसत से 8C अधिक बढ़ गया था और हीटवेव दिनों की संख्या पांच गुना अधिक हो गई थी।

पिछले साल बढ़ते तापमान ने गेहूं की फसलों के पोषण मूल्य और पैदावार को प्रभावित किया। तेज़ी से बढ़ती गर्मी भारत के कृषि और खाद्य सुरक्षा के भविष्य के लिए चिंता का विषय है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट कहती है कि एक ऐसे देश में जहां 75% कार्यबल या 380 मिलियन लोग गर्मी से प्रभावित श्रम पर निर्भर हैं, वैसे देश में बढ़ता तापमान आर्थिक उत्पादकता को प्रभावित कर सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत जल्द ही उन जगहों में से एक हो सकता है जहां गर्मी की लहरें लोगों के जीवित रहने की सीमा को तोड़ सकती है।

लोगों और वातावरण को ठंडा रखने के लिए नई टेक्नोलॉजी और तकनीकों की ज़रूरत है। विशेषज्ञों का कहना है कि ठंडक की अत्यधिक आवश्यकता के बीच, हीटवेव से मुक़ाबला करने के लिए अर्ली वार्निंग सिस्टम यानी पूर्व चेतावनी प्रणाली और हीट एक्शन प्लान की ज़रूरत है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि गर्मी से सबसे अधिक प्रभावित लोगों को उनकी ज़रूरत का समर्थन मिले, वातावरण को और अधिक गर्म किए बिना कम प्रभाव वाली ठंडक तकनीकों को विकास रणनीतियों में शामिल किया जाना चाहिए।

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