संयुक्त राष्ट्र के कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन सम्मेलन (यूएनसीसीडी) में कार्यकारी सचिव मोनिक्यू बारबट ने कहा कि 2015 में जब सरकारों से जब पूछा गया कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए क्या करना चाहते हैं, तो 140 से ज्यादा देशों में क्यों मिट्टी का मुद्दा शामिल हैं? क्योंकि इसकी वजह सूखा है।
हाल ही में बून में हुए यूएन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में पत्रकारों के समूह के बीच बोलते हुए बारबट ने कहा कि सामाजिक एवं राजनैतिक कारकों के कारण अफ्रिका से यूरोप की ओर हो रहे विस्थापन को तुम सभी देख रहे हो। क्या आपको पता है? 100 प्रतिशत से ज्यादा लोग खूखी जमीन वाले भाग से विस्थापित हो रहे हैं?
वे आगे विस्तार से बताते हुए कहती हैं कि इस क्षेत्र में अधिकतर लोगों के लिए जमीन ही एकमात्र सम्पदा है और यह जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार कम उत्पादक होती जा रही है। हर साल जितने लोग अन्य आपदाओं के कारण मरते हैं, उससे कहीं अधिक लोग सूखे की वजह से मर रहे हैं। इस साल अफ्रीका के हार्न में 2.5 करोड़ लोग अपने लिए भोजन की पूर्ति न कर पाने के कारण मर गए।
बारबट के अनुसार इसका समाधान है, 300 अमेरिकी डॉलर प्रति एकड़ में जमीन को फिर से पुर्नजीवित किया जा सकता है और यह विश्व की बढ़ती आबादी के भोजन के लिए आवश्यक भी हैं। ऐसे में कुछ 40 लाख हेक्टेयर नई जमीन को हर साल उत्पादन के योग्य बनाया जा सकता है।
यह नई भूमि कहां से आएगी? इसका एकमात्र समाधान खराब जमीन को पुर्नजीवित करता है, जो कि 2 अरब हेक्टेयर के लगभग है। बारबट के अनुसार 30 करोड़ हेक्टेयर जमीन को पुर्नजीवित करके 2050 तक वैश्विक खाद्य सुऱक्षा को सुनिश्चित किया जा सकता है। यह एक तिहाई से कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन की खाई को भी पाट देगा।
यूएनसीसीडी प्रमुख के अनुसार जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ने के लिए कुछ और विचार भी आ रहे हैं, लेकिन यह किसी भी तरह की लोकप्रियता हासिल नहीं कर पाएगा क्योंकि इसमें अधिकतम खर्च मजदूर का है और बड़ी कम्पनियां इसमें शामिल नहीं हैं। लेकिन जमीन के पुर्नजीवित करने से मिट्टी से कार्बन जब्ती में सुधार होगा, जिससे इस क्षेत्र में और लोगों की रुचि बढ़ेगी।
तैयार रहें
बारबट का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के दौर में सभी देशों को सूखे के लिए तैयार रहना चाहिए। अमेरिका, आस्ट्रेलिया और इजराइल के पास सूखे से निजात पाने का तंत्र है।
यूएनसीसीटी ने सूखे से निजात पाने वाले तंत्र के लिए लैंड डीग्रेडेशन न्यूट्रेलिटी फंड (एलडीएन) की शुरुआत की है, जिसमें उम्मीद है कि 2018 तक 30 करोड़ अमेरिकी डॉलर एकत्र किया जा सकेगा, यह अक्षय उर्जा के बाद दूसरा सबसे बड़ा फंड होगा। बारबट कहती हैं कि इस फंड को अक्षय उर्जा फंड की तरह ही खर्च किया जाएगा, जिसमें अनुदान धन को बैंको में गांरटी के तौर पर रखकर काम किया जाएगा।
1.2 करोड़ हेक्टेयर जमीन हर साल अव्यवहारिक खेती और जलवायु परिवर्तन की वजह से खराब हो जाती है। बारबट कहती हैं कि हम 2030 तक तटस्थता प्राप्त करने के लिए हर साल इसी अनुपात में जमीन को पुर्नजीवित करेंगे।
बारबट ने पाया कि यह यूएनसीसीडी के लिए पर्याप्त नहीं है कि वह रेगिस्तान में वृक्षारोपण करें। इसके बजाय संस्थान इससे जुड़े प्रत्येक मुद्दों से संबंध रखे। उन्होंने कहा कि जमीन का अधिकार नहीं होना भी बंजर जमीर का कारण है। चरवाहों और किसानों के बीच पानी का संकट हर साल प्रत्येक जगह बढ़ रहा है। संस्थान पूरे विश्व में जलवायु परिवर्तन के दौर में कोशिश कर रहा है कि खेती की स्थिरता को पुर्नजीवित करें, विशेषतौर पर हाशिए के और वर्षा सिंचित खेतों में, जिससे उस नींव को बचाया जा सके जिसमें मानव सभ्यता 10,000 साल रह रही है।