असम के गुमरा ग्रांट गांव में 300 से ज़्यादा घरों को तबाह करने वाली विनाशकारी बाढ़ के दो साल बाद, शाहरा बेगम और उनके तीन बच्चे जैसे निवासी अभी भी उस सदमे से उबर नहीं पाए हैं।
35 वर्षीय शाहरा बेगम कहती हैं, “मैं दो साल पहले आई बाढ़ को कभी नहीं भूल पाऊंगी। बारिश हो रही थी और जल्द ही हम छाती तक पानी में डूब गए। मैं अपने तीन बच्चों के साथ फंस गई थी। हम सिर्फ़ कीचड़ भरा पानी देख पा रहे थे, जिस पर मरे हुए मवेशी तैर रहे थे।”
गांव के लोग फंस गए थे। सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं हो पा रही थी। ऐसे में लोगों को केले के पेड़ों के तने से राफ्ट बनाकर ऊंची जगहों पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
कछार जिले में गुमरा ग्रांट, बांग्लादेश सीमा से सिर्फ़ 500 मीटर की दूरी पर स्थित है।
बेगम कहती हैं कि मई और जून 2022 की घटनाओं से पहले उनके गांव में इतनी भयंकर बाढ़ कभी नहीं देखी गई थी। इस बाढ़ ने पूरे असम में लगभग 54 लाख लोगों को प्रभावित किया और 200 लोगों की जान ले ली।
आपदा को कम से कम करने में विशेषज्ञता रखने वाली नई दिल्ली स्थित गैर-सरकारी संस्था सीड्स (सस्टेनेबल एनवायरनमेंट एंड इकोलॉजिकल डेवलपमेंट सोसाइटी) के निदेशक मनु गुप्ता ने कहा कि पिछले दो दशकों में प्राकृतिक आपदाओं की संख्या दोगुनी हो गई है। इससे भारत के बाढ़ के खतरे वाले मानचित्र में नए क्षेत्र जुड़ गए हैं।
गुप्ता कहते हैं, “सबसे ज़्यादा चिंता की बात यह है कि बराक घाटी में कछार जैसे क्षेत्रों को अब उच्च जोखिम वाले जिलों में माना जाता है। यहां न तो कोई चेतावनी प्रणाली थी और न ही आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली।” वर्तमान में, भारत के 225 जिले, जिनकी कुल आबादी 27 करोड़ है, जलवायु परिवर्तन से प्रेरित आपदाओं के कारण कई खतरों का सामना कर रहे हैं। चेतावनी देते हुए गुप्ता कहते हैं कि 2030 तक यह आंकड़ा बढ़कर 31.5 करोड़ हो सकता है।
वहीं, इसके रिस्पॉन्स के तौर पर सीड्स ने समुदाय-आधारित रणनीतियों को बढ़ावा देने पर फोकस किया है। इसमें जिला प्रशासन के साथ सहयोग करते हुए आपदा के प्रति रिजिलियन्स बढ़ाने पर काम किया गया।
इस आपदा में तमाम परेशानियां झेलने के बाद, बेगम आपदा की तैयारी पर केंद्रित 15-सदस्यीय ग्राम टास्क फोर्स में शामिल हो गईं। आठ पुरुषों और सात महिलाओं से बना यह समूह नियमित रूप से मॉक ड्रिल करता है और निवासियों को आपातकालीन प्रक्रियाओं में प्रशिक्षित करता है।
गुमरा ग्रांट टास्क फोर्स के अध्यक्ष अब्दुल सत्तार कहते हैं, “2022 की बाढ़ ने हमें सिखाया है कि हम आपदा के दौरान बचाव के लिए सरकार पर निर्भर नहीं रह सकते। ग्रामीणों ने सीख लिया है कि बेकार पड़ी प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग करके जीवन रक्षक जैकेट कैसे बनाएं, लोगों को कैसे निकालें और सुरक्षित पेयजल स्रोतों की पहचान कैसे करें।”
बाढ़ और एक नया जलवायु हॉटस्पॉट
भारत के कुल भूभाग में केवल 2.4 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाला असम का तकरीबन 9.4 फीसदी हिस्सा बाढ़ के लिहाज से संवेदनशील है। असम की 40 फीसदी से ज़्यादा ज़मीन को जोखिम में माना जाता है।
परंपरागत रूप से, ब्रह्मपुत्र घाटी बाढ़ का केंद्र बिंदु रही है, जो बराक घाटी को पीछे छोड़ती है। 2022 ने उस प्रवृत्ति को बदल दिया।
हालांकि कछार जैसे कुछ जिलों में 2022-23 के लिए आपदा प्रबंधन योजना थी, लेकिन बराक घाटी बाढ़ के लिए तैयार नहीं थी। असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि असम और मेघालय में 12 मई से 18 मई के बीच क्रमशः 327 फीसदी और 663 फीसदी अधिक वर्षा हुई। दूसरी लहर में, 12 जून से 18 जून के बीच, दोनों में 235 फीसदी और 329 फीसदी अधिक वर्षा दर्ज की गई।
भारी बारिश के कारण सिलचर के पास बराक नदी के तटबंध के टूटने और पड़ोसी राज्यों मेघालय और नागालैंड में कई भूस्खलन के कारण सड़क और रेलवे नेटवर्क बाधित होने से क्षेत्र में हाहाकार मच गया। गुमरा ग्रांट की 60 वर्षीय ग्रामीण शेफाली दास कहती हैं, “हमारे पास कई नदियां हैं जो बराक नदी से मिलती हैं और बांग्लादेश में बहती हैं। हम ऐसी घटनाओं से अनजान नहीं हैं, लेकिन वे छोटी-मोटी घटनाएं हुआ करती थीं। मैंने कभी ऐसा कुछ नहीं देखा जो दो साल पहले हुआ था और हमें सरकार से कोई मुआवजा नहीं मिला।”
महादेवपुर पार्ट 1 गांव में भी यही कहानी है। 68 वर्षीय विधवा प्रोमिला दास कहती हैं, “मेरा घर और शौचालय बाढ़ में बह गए। मुझे सरकार से मेरे नुकसान के लिए कोई मुआवज़ा नहीं मिला है। मेरा टिन की छत वाला घर अभी भी आधा टूटा हुआ है।”
उसी गांव के 60 वर्षीय सुनंदो दास कहते हैं, “बाढ़ में मुझे कम से कम 30,000 रुपये का नुकसान हुआ है, लेकिन सरकार ने मुझे एक भी रुपया नहीं दिया है।”
शासन और बुनियादी ढांचे की विफलताएं
शमीम अहमद लस्कर, कछार के जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में जिला परियोजना अधिकारी हैं। जिला प्रशासन की विफलताओं को स्वीकार करते हुए वह कहते हैं, “हमें पता है कि 2022 की बाढ़ के कारण जिले में कुल चार से पांच लाख परिवार प्रभावित हुए, लेकिन हमने केवल 81,544 परिवारों को मुआवज़ा दिया और 40 करोड़ रुपये वितरित किए। राजस्व विभाग सभी बाढ़ प्रभावित लोगों का नाम दर्ज करने में विफल रहा।”
स्लुइस गेट और तटबंधों की लंबे समय से उपेक्षा को लस्कर 2022 की घटनाओं में अहम भूमिका निभाने वाला बताते हैं। वह कहते हैं कि बारिश के पैटर्न में बदलाव, अनियोजित शहरीकरण और सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी ने बाढ़ के प्रति कछार की संवेदनशीलता को बढ़ाने में योगदान दिया।
महादेवपुर पार्ट 1 गांव में कुछ स्लुइस गेट लगभग 30 वर्षों से बंद पड़े थे। लस्कर कहते हैं कि इसका नतीजा यह हुआ कि “स्लुइस गेट के अनुपयोगी होने के कारण बाढ़ का अतिरिक्त पानी बाहर नहीं निकल पाया और कई गांव हफ्तों तक जलमग्न रहे।”
वह आगे कहते हैं: “बराक नदी के तटबंधों की 1965 से कोई मरम्मत नहीं हुई थी। जब भारी बारिश हुई, तो सिलचर शहर के पास तटबंध का एक हिस्सा टूट गया, जिससे भयंकर बाढ़ आ गई।”
पिछली चेतावनियों को भी नज़रअंदाज़ कर दिया गया। असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को सौंपी गई 2014 की रिपोर्ट में कहा गया है कि बाढ़ से निपटने के लिए 26 प्रमुख जलद्वार और लगभग 738 किलोमीटर लंबे तटबंध बनाए गए थे, लेकिन “इनमें से अधिकांश तटबंधों की आयु समाप्त हो चुकी है” जिसके कारण मानसून के मौसम में नियमित रूप से उनमें दरार आ जाती है। इस कारण बाढ़ से बड़े पैमाने पर नुकसान होता है।
असम विश्वविद्यालय में पारिस्थितिकी और पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रमुख पार्थंकर चौधरी बताते हैं कि कैसे अनियोजित विकास पहले से ही खराब स्थिति को और भी बदतर बना देता है।
वह सवाल करते हैं, “सिलचर में बरसाती पानी की नालियां 50-60 साल पुरानी हैं। पहाड़ियों को काटा जा रहा है, जिससे भूस्खलन हो रहा है। विकास के लिए निचले इलाकों और आर्द्रभूमि यानी वेटलैंड को भर दिया गया है। ग्रामीण इलाकों में लोग बाढ़ के पानी से बचने के लिए निचली ज़मीनों को भर रहे हैं और अपने घरों को ऊंचा कर रहे हैं। बहता पानी कहां जाएगा?”
सार्वजनिक सेवाएं और इमारतें, जैसे कि कटिगोराह में जलालपुर ब्लॉक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, भी इसके चपेट में आए।
केंद्र के सामुदायिक संयोजक देबज्योति रॉय कहते हैं, “चूंकि हमारी इमारत पुरानी है, इसलिए यह नए निर्माणों की तुलना में निचले स्तर पर है। बाढ़ की पहली लहर में, हमारा आउटपेशेंट और इन-पेशेंट विभाग पानी में डूब गया। मुश्किल से हम संभले थे कि दूसरी लहर आ गई।”
बाढ़ के बाद बेहतर तरीके से पुनर्निर्माण
जिले के दोषपूर्ण बुनियादी ढांचे और शासन को उजागर करने के साथ-साथ, 2022 की बाढ़ एक चेतावनी थी कि और अधिक काम करने की आवश्यकता है। सरकार द्वारा शुरू की गई नई पहलों में 421 स्वयंसेवकों को आपदा मित्र, आपदा प्रतिक्रिया समन्वयक के रूप में प्रशिक्षित करना, बहुउद्देशीय बाढ़ केंद्र स्थापित करना और राहत नामक आपातकालीन प्रतिक्रिया ऐप विकसित करना शामिल है। समुदायों ने भी सक्रिय कदम उठाए हैं। बालेश्वर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, जो कई सप्ताह तक जलमग्न रहा, जिसके फर्नीचर और उपकरण नष्ट हो गए, अब छात्रों के लिए अनुकरणीय अभ्यास आयोजित करता है।
स्कूल के प्रिंसिपल मुचब्बीर अली कहते हैं, “हमारे स्कूल प्रबंधन विकास समिति के माध्यम से, जिसमें माता-पिता सदस्य हैं, समुदाय को भी आपदा की तैयारी में प्रशिक्षित किया जा रहा है।”
जलालपुर बीपीएचसी के रॉय कहते हैं कि 180 फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ता, जिन्हें मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता या संक्षेप में आशा के रूप में जाना जाता है, को भी “सीपीआर [कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन] देने, राहत शिविर आयोजित करने और पानी को कीटाणुरहित करने” के लिए प्रशिक्षित किया गया है।
जल सुरक्षा को संबोधित करने के लिए, सीड्स ने खारे भूजल से ग्रस्त कछार गांवों में टेरा फिल्टर लगाए हैं। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित ये फिल्टर बाढ़ के दौरान भी काम करते रहने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, जो 1,500 परिवारों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराते हैं।
दो साल बाद, बराक घाटी में रिजिलियन्स और तैयारियों की कहानी अभी भी सामने आ रही है। जिला प्रशासन का दावा है कि वे भविष्य की आपदाओं से निपटने के लिए बेहतर तरीके से सुसज्जित हैं।
लस्कर के अनुसार, आवश्यक मरम्मत की गई है, फिर भी इन उपायों और चल रहे रखरखाव की प्रभावशीलता केवल भविष्य की आपदाओं से ही सही मायने में सत्यापित होगी। मॉनसून के मौसम के स्पष्ट रूप से जल्दी आने के साथ, इन तैयारियों की असली परीक्षा अभी शुरू हुई है।