पाकिस्तान और भारत के बीच संबंधों को अक्सर शत्रुतापूर्ण ही माना जाता है। इसलिए राजनीतिक जुड़ाव के लिए किए गए कुछ प्रयासों का पता लगाना आसान नहीं है। यह बात भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान विशेष रूप से सच कही जा सकती है। नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं जिसे एक हिंदू राष्ट्रवादी दल के रूप में देखा जाता है। यह भी माना जाता है कि इस दल को पाकिस्तान से कोई लगाव नहीं है। इस सबके बावजूद, नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपने पहले शपथ ग्रहण समारोह में अपने समकक्ष नवाज़ शरीफ़ – पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री – को आमंत्रित किया था।
वह संपर्क, जो लगभग एक साल तक चला और जिसमें 2015 में शरीफ़ की पोती की शादी में शामिल होने के लिए मोदी की अप्रत्याशित यात्रा भी शामिल थी, अब बहुत पहले खत्म हो चुका है। पिछले एक दशक में, दोनों देशों के बीच रिश्ते बहुत खराब हो गए हैं। इसलिए, इसमें कोई हैरानी की बात नहीं थी कि मोदी के तीसरे शपथ ग्रहण समारोह में किसी भी पाकिस्तानी अधिकारी को आमंत्रित नहीं किया गया था।
वर्तमान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने मोदी के लिए एक औपचारिक बधाई ट्वीट पोस्ट किया। वह इस क्षेत्र में किसी देश के एकमात्र नेता थे जिन्हें भारत के विदेश मंत्रालय द्वारा निमंत्रण नहीं दिया गया था। यह इसलिए आश्चर्यजनक था कि नवाज शरीफ – शाहबाज के बड़े भाई और सत्तारूढ़ पार्टी के नेता – ने सोशल मीडिया पर मोदी को एक गर्मजोशी भरा संदेश दिया।
हालांकि, नवाज़ को मोदी की प्रतिक्रिया ने किसी भी तरह की उम्मीदों को कम कर दिया है। इस हफ्ते कश्मीर में बड़े आतंकवादी हमले हुए, जिससे स्थिति और भी खराब हो गई। अतीत में, नई दिल्ली की तरफ़ से पाकिस्तान पर यह आरोप लगाए जाते रहे हैं कि वह भारत के खिलाफ आतंकवादी समूहों को मदद करता है।
Appreciate your message @NawazSharifMNS. The people of India have always stood for peace, security and progressive ideas. Advancing the well-being and security of our people shall always remain our priority. https://t.co/PKK47YKAog
— Narendra Modi (@narendramodi) June 10, 2024
अपने संदेश में जहां शरीफ़ ने दक्षिण एशिया के लिए सामूहिक भविष्य की बात की, वहीं मोदी का जवाब सिर्फ़ भारत पर केंद्रित था। उम्मीद को लेकर उनके संदेश के जवाब में, भारतीय प्रधानमंत्री सुरक्षा के बारे में बात करने के लिए इच्छुक दिखे।
भारत के साथ दोस्ती पर शरीफ़ का रुख नया नहीं है। फरवरी 2024 के चुनाव-पूर्व साक्षात्कार में, शरीफ़ ने भारत के साथ अच्छे संबंधों के नुकसान पर दुख जताते हुए कहा कि पाकिस्तान एक “जीवंत विदेश नीति” रखने में विफल रहा है और वह “ऐसी वास्तविकता में रहने का जोखिम नहीं उठा सकता” जहां वह अपने पड़ोसियों से अलग-थलग हो।
लेकिन आज शरीफ़ विदेश नीति पर फैसला लेने की स्थिति में नहीं हैं। न केवल इसलिए कि वे प्रधानमंत्री नहीं हैं, बल्कि इसलिए भी कि उनकी सरकार विवादों से घिरे सैन्य-नियंत्रित चुनाव के बाद सत्ता में आई है।
देश में कुछ लोग तर्क देते हैं कि उनकी पार्टी के पास शासन करने का जनादेश नहीं है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि मोदी पाकिस्तान के साथ बातचीत करने में रुचि नहीं रखते हैं।
भारत में हुए आम चुनाव में भाजपा को कुछ झटका लगा। मोदी को सरकार बनाने में मदद के लिए गठबंधन की आवश्यकता हुई। इन स्थितियों के बावजूद मोदी ने अपने पुराने साथियों के लिए महत्वपूर्ण कैबिनेट पदों को बरकरार रखा है। यह इस बात का संकेत है कि हालांकि कुछ चीजें जरूर बदल गई हैं, लेकिन विदेश नीति के मुद्दों पर मोदी का दबदबा वैसा ही बना हुआ है।
दोनों देशों के बीच अविश्वास कायम है: भारत, पाकिस्तान पर सीमा पार आतंकवाद का आरोप लगाता रहता है। इस विषय को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दूसरे कार्यकाल के लिए केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ लेने के तुरंत बाद उजागर किया था। पाकिस्तान, कश्मीर के लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त करता रहता है और क्षेत्र की अर्ध-स्वायत्त स्थिति को छीने जाने का विरोध करता है। हाल ही में, द् गार्जियन की एक रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि भारत सरकार ने पाकिस्तान में हत्याओं का आदेश दिया है, जिसने मामले को और जटिल बना दिया है।
इन लंबे समय से चले आ रहे विवादों ने दोनों देशों के बीच तकरार को बनाए रखा है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में एक नया खतरा पैदा हुआ है जो दोनों देशों को प्रभावित करता है: जलवायु परिवर्तन से होने वाली आपदाएं। दोनों देश कश्मीर, आतंकवाद या व्यापार के बारे में बात किए बिना रह सकते हैं, लेकिन अपनी आबादी और बड़े पैमाने पर उपमहाद्वीप की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को अनदेखा करने की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
भीषण गर्मी, बाढ़ और बढ़ते खाद्य एवं जल संकट से जूझ रहे क्षेत्र में रहने वाले दो अरब लोगों को उनकी सरकारें विफल कर देंगी, जिसका सबसे ज्यादा असर कम आय वाले, हाशिए पर पड़े और कमजोर समुदायों पर पड़ेगा। अब तक, दोनों देशों ने आपदाओं के दौरान समन्वय करने में बहुत कम काम किया है, जबकि इसी तरह की आपदाओं ने सीमाओं के पार लोगों की जान और आजीविका को नुकसान पहुंचाया है।
भीषण गर्मी, बाढ़ और बढ़ते खाद्य एवं जल संकट से पीड़ित दो अरब लोगों को निराश किया जाएगा, जिसका सबसे ज्यादा खामियाजा सबसे कमज़ोर लोगों को भुगतना पड़ेगा।आतिका रहमान
जब 2022 में बाढ़ ने पाकिस्तान के एक तिहाई प्रांतों को तबाह कर दिया, तो उसी मौसम प्रणाली ने भारत में बाढ़ ला दी, जिसके कारण कई राज्यों में भूस्खलन और जानमाल की हानि हुई।
भयानक लू यानी हीटवेव के कारण मई 2024 के अंत में भारत के बिहार राज्य में दर्जनों लोगों की मौत हो गई। इसी के चलते पाकिस्तान के कई हिस्सों में कई लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।
दोनों देशों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले उच्च उत्सर्जन के लिए उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। तापमान और मौसम के पैटर्न में बदलाव के कारण दोनों ही देश तेजी से कमजोर होते जा रहे हैं।
जलवायु सहयोग के अवसर और प्रभाव बहुत व्यापक हैं। विशेषज्ञों का तर्क है कि दोनों देशों के बीच सहयोग से प्रदूषण में कमी आ सकती है और वायु गुणवत्ता में सुधार हो सकता है। इससे दोनों देशों की आबादी का स्वास्थ्य और कल्याण बेहतर हो सकता है। सिंधु जल संधि को अपडेट करने की आवश्यकता है ताकि पानी के बंटवारे के विचार से हटकर संयुक्त और टिकाऊ प्रबंधन की ओर कदम बढ़ाया जा सके।
हाल ही में हिमालय के एक शीर्ष ग्लेशियोलॉजिस्ट के साथ हुए साक्षात्कार में पता चला कि भारतीय और पाकिस्तानी वैज्ञानिकों के बीच सहयोग न के बराबर है।
भारतीय कश्मीर के अवंतीपोरा में इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के कुलपति शकील अहमद रोमशू ने कहा, “ये क्षेत्र वैज्ञानिक रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, जहां अपस्ट्रीम गतिविधियां डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों को प्रभावित करती हैं। हालांकि, दक्षिण एशिया में जटिल राजनीतिक संबंधों के कारण, बेसिन के कुछ हिस्सों तक पहुंच, विशेष रूप से राष्ट्रीय सीमाओं के पार, मेरे जैसे वैज्ञानिकों के लिए बहुत सीमित है।”
जल कानून विशेषज्ञ एरम सत्तार ने डायलॉग अर्थ को बताया: “यह दशक दक्षिण एशिया के जल संसाधनों और इसके समग्र जलवायु संतुलन को संरक्षित करने की नींव रखने में मदद करने के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि इतिहास में बहुत कुछ ऐसा है जो विभाजन करता है, लेकिन असुरक्षा को बढ़ावा देने वाले डर में पड़ना खुद को नुकसान पहुंचाना है।”
राजनीतिक अर्थशास्त्री उजैर यूनुस ने कहा: “उपमहाद्वीप एक और रिकॉर्ड तोड़ने वाली हीटवेव बीच में है। भयानक प्रदूषण वाली धुंध पिछले कुछ वर्षों से एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बनी हुई है और अब लोगों को हीटवेव का कहर झेलना पड़ रहा है। कम से कम भारत और पाकिस्तान को अपने नागरिकों के लिए वायु गुणवत्ता में सुधार करने और हीटवेव की मैपिंग करने के लिए समन्वय करना चाहिए, ताकि दोनों तरफ लोगों की जान बचाई जा सके।
दक्षिण एशिया में, कुल आबादी का लगभग 21 फीसदी हिस्सा खाद्य असुरक्षा के दायरे में है। फिर भी, एक ही मुख्य फसल (गेहूं, चावल और मक्का) होने और कृषि अर्थव्यवस्था होने के बावजूद, भारत और पाकिस्तान इस बात पर विशेषज्ञता साझा नहीं करते हैं कि बदलते और अनिश्चित मौसम व गर्मी के पैटर्न पैदावार को कैसे प्रभावित करते हैं।
पाकिस्तान राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहा है और भारत आर्थिक असमानता और बढ़ती लागतों का सामना कर रहा है, ऐसे में इन दोनों देशों के नेताओं को यह स्वीकार करना चाहिए कि अपरिवर्तनीय रूप से गर्म दुनिया के विनाशकारी प्रभाव राजनयिक जुड़ाव के लिए इंतजार नहीं करेंगे।