नई दिल्ली के निवासी नितिन जैन गर्मी से बचने के लिए अपने परिवार के साथ कश्मीर गए थे।
लेकिन 26 जून, 2024 को उन्होंने स्वयं को प्रसिद्ध डल झील के किनारे माथे से पसीना पोंछते हुए पाया। एक दिन पहले, श्रीनगर स्थित भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने हीटवेव अलर्ट (लू की चेतावनी) जारी किया था, जिसमें संवेदनशील लोगों को लू से बचने और पानी पीते रहने की चेतावनी दी गई थी। अपने प्रवास के बाकी समय में जैन का परिवार दिन के समय बाहर निकलने के बजाय ज्यादातर अपने होटल में ही रहा।
भारत में हीटवेव (लू) का प्रकोप असामान्य नहीं है और इस साल मानसून में देरी के चलते पूरा उत्तर भारत लंबे समय से लू का सामना कर रहा है। लेकिन बढ़ती गर्मी केवल मैदानी इलाकों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उच्च हिमालयी इलाकों में भी तापमान बढ़ रहा है, जहां भीषण गर्मी से बचने के लिए पर्यटक आते हैं।
वर्ष 2019 के एक अध्ययन बताता है कि कश्मीर में औसत वार्षिक तापमान 37 वर्षों (1980-2016) में 0.8 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है और पिछले कुछ वर्षों में गर्मियों में कई बार रिकॉर्ड तोड़ तापमान देखा गया है।
17 अगस्त, 2020 को 39 वर्षों में घाटी में सबसे गर्म अगस्त दर्ज किया गया, जिसमें तापमान 35.7 डिग्री सेल्सियस था। अगले वर्ष, 18 जुलाई 2021 को श्रीनगर में आठ वर्षों में जुलाई के दिन को सबसे गर्म दर्ज किया गया, क्योंकि शहर में अधिकतम तापमान 35 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। 2022 की गर्मियां तो और भी गर्म रहीं, जब कुछ क्षेत्रों में तापमान 35 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया, और मार्च का महीना तो 131 वर्षों में सबसे गर्म रहा। पिछले साल, श्रीनगर में 53 वर्षों में सबसे गर्म सितंबर के दिन को तापमान 34.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था।
यह सिलसिला इस साल भी जारी रहा और शुष्क सर्दी का मौसम लंबे समय तक चला। मौसम विभाग के मुताबिक, जनवरी, 2024 पिछले 43 वर्षों में सबसे सूखा और गर्म महीनों में से एक था। 23 मई को श्रीनगर में कम से कम एक दशक में मई का सर्वाधिक तापमान दर्ज किया गया।
बढ़ता हुआ तापमान
लंबे समय से मालूम है कि हिमालयी क्षेत्रों में तापमान वृद्धि वैश्विक औसत से ज्यादा है। वर्ष 2019 में इस क्षेत्र पर प्रकाशित पहली व्यापक रिपोर्ट में इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) ने बताया कि, “भले ही ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित हो, लेकिन हिंदूकुश हिमालय (एचकेएच) में तापमान के कम से कम 0.3 डिग्री सेल्सियस ज्यादा होने की आशंका है।”
वर्ष 2020 में प्रकाशित एक वैज्ञानिक शोध-पत्र में भविष्यवाणी की गई थी कि उत्सर्जन के तरीकों के आधार पर इस सदी के अंत तक कश्मीर में वार्षिक तापमान विशेष रूप से 4 से 7 डिग्री सेल्सियस के बीच बढ़ जाएगा।
कश्मीर विश्वविद्यालय के सेंटर ऑफ एक्सिलेंस फॉर ग्लेशियल स्टडीज की छात्रा जसिया बशीर ने डॉयलॉग अर्थ को बताया कि श्रीनगर और अन्य पहाड़ी बस्तियों का तेजी से शहरीकरण भी बढ़ते तापमान में योगदान देता है, लेकिन बढ़ते तापमान के लिए व्यापक जलवायु परिवर्तन मुख्य कारक है। उन्होंने बताया कि, “शहरी क्षेत्रों में घनी इमारतों और कम वनस्पतियों के कारण भीषण गर्मी का एहसास होता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों सहित पूरा क्षेत्र सामान्य [ग्लोबल] वार्मिंग की प्रवृत्ति से प्रभावित होता है।”
कश्मीर तीन क्षेत्रों में विभाजित हैः उत्तर (कुपवाड़ा), मध्य (श्रीनगर) और दक्षिण (काजीगुंड)। वर्ष 2010 से 2023 के आंकड़े बताते हैं कि मध्य कश्मीर की तुलना में उत्तर और दक्षिण कश्मीर में लू ज्यादा चलती है।
कश्मीर विश्वविद्यालय में जियोइंफॉर्मेटिक्स के सहायक प्रोफेसर इरफान रशीद ने बताया कि उत्तरी कश्मीर की कम ऊंचाई के कारण तापमान ज्यादा होता है। रशीद ने कहा, “जितना हम ऊपर जाते हैं, उतना ही ठंड का एहसास होता है और जितना ही नीचे आते हैं, उतनी ही गर्मी का एहसास होता है।”
कश्मीर में स्वतंत्र रूप से मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाले फैजान आरिफ केंग का कहना है कि घाटी में न्यूनतम और अधिकतम तापमान में वृद्धि हुई है, जबकि वर्षा की मात्रा में कमी आई है।
उन्होंने बताया कि 1980-1999 की अवधि की तुलना में 2000-2019 की अवधि के दौरान श्रीनगर शहर में अधिकतम तापमान में 1.05 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखी गई है। उन्होंने कहा कि न्यूनतम तापमान में भी 0.41 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है, जबकि वर्षा में 4.36 मिलीमीटर की कमी आई है।
ग्लेशियर पर असर
बढ़ते तापमान का क्रायोस्फीयर (जमे हुए पानी वाले क्षेत्र) पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जम्मू एवं कश्मीर में लगभग 18,000 ग्लेशियर हैं। मार्च, 2024 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि उत्तर-पश्चिमी हिमालय में नून और कुन पर्वत की जुड़वां चोटियों के आसपास के 48 ग्लेशियर, जिन्हें नून-कुन ग्लेशियर समूह (एनकेजीजी) के रूप में जाना जाता है, 2000-2020 के दौरान 4.5 फीसदी ±3.4 फीसदी पीछे हट गए हैं, उनके स्नाउट (ग्लेशियर का सबसे निचला छोर) 6.4±1.6 मीटर प्रति वर्ष की दर से पीछे हट रहे हैं।
एक दूसरे अध्ययन में पाया गया कि हिमालयी क्रायोस्फीयर के सिकुड़ने का संबंध हिमालयी नदियों में जल प्रवाह में कमी से जुड़ा है, जो संभावित रूप से नीचे की ओर जल उपलब्धता को प्रभावित कर सकता है। अध्ययन ने 1972 और 2018 के बीच कोलाहोई ग्लेशियर से झेलम बेसिन में दो धाराओं के बहाव में बदलाव का आकलन किया। उपग्रह से प्राप्त आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि कश्मीर घाटी में ग्लेशियर की कमी के कारण पहले ही नीचे की ओर जल प्रवाह में कमी आई है। आर्थिक कारकों और अनियोजित भूमि परिवर्तन के चलते भूमि प्रणाली में परिवर्तन (जैसे कि कृषि क्षेत्रों को शहरी क्षेत्रों में बदलना) भी इस कमी से जुड़े हैं।
अवंतीपोरा स्थित इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के कुलपति और जाने-माने ग्लेशियोलॉजिस्ट शकील अहमद रोमशू ने डायलॉग अर्थ को बताया कि पिछले चार-पांच वर्षों से वसंत ऋतु में तापमान औसत से अधिक रहा है। उन्होंने कहा कि उच्च तापमान के चलते ग्लेशियरों के पिघलने की प्रक्रिया तेज होती है, जिससे उनका आकार और द्रव्यमान घट जाता है। उन्होंने बताया कि इससे सिंधु बेसिन में पानी, भोजन और ऊर्जा सुरक्षा प्रभावित होगी।
हिमालयी क्षेत्र के लिए चिंता
अभी तक कश्मीर में गर्मी के कारण किसी की मौत नहीं हुई है, लेकिन गर्मी से जुड़ी अन्य बीमारियां बढ़ रही हैं। श्रीनगर के मेडिकल कॉलेज अस्पताल के शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के वरिष्ठ त्वचा विशेषज्ञ फराह समीम ने डायलॉग अर्थ को बताया कि मई के दौरान सनबर्न के कई मामले सामने आए थे, साथ ही “सोरायसिस और फंगल संक्रमण” के भी कई मरीज आए थे।
एक अन्य त्वचा विशेषज्ञ इमरान मजीद ने बताया, “पिछले चार वर्षों में त्वचा संबंधी ये समस्याएं बढ़ रही हैं और खुले क्षेत्रों में काम करने वाले लोग इनके प्रति ज्यादा संवेदनशील हैं।”
हीटवेव (लू) को गंभीरता से लेते हुए जम्मू-कश्मीर सरकार ने 2024-25 के लिए अपनी पहली हीटवेव कार्य योजना तैयार कर ली है। एक अधिकारी ने प्रेस से बात करने के लिए अधिकृत न होने के कारण ऑफ द रिकॉर्ड डायलॉग अर्थ को बताया कि इसे लागू किया जा रहा है। हालांकि जमीनी स्तर पर किसी भी कार्रवाई के सबूत बमुश्किल ही दिखाई दे रहे हैं।
इस बीच, जैन और उनके परिवार जैसे पर्यटक, जो सोचते थे कि वे गर्मी से बचने के लिए कश्मीर जा सकते हैं, पाते हैं कि हिमालय के पास भी तपती गर्मी से बचने का कोई उपाय नहीं है।