जलवायु

क्या भारत में चमगादड़ों को बढ़ती गर्मी के प्रकोप से बचाया जा सकता है?

भारत के कई हिस्सों में फ्रूट्स बैट यानी चमगादड़ों की एक विशेष प्रजाति की सामूहिक मौत के बाद, विशेषज्ञों ने इस पर शोध की आवश्यकता पर बल दिया है, क्योंकि उन्हें डर है कि इन चमगादड़ों के खत्म होने से पारिस्थितिकी तंत्र पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है।
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<p>राजस्थान के ब्यावर में दिसंबर 2019 की सर्द सुबह पेड़ों पर बैठे विशालकाय चमगादड़ों का बसेरा।  (फोटो: सुमित सारस्वत / पसिफ़िक प्रेस)</p>

राजस्थान के ब्यावर में दिसंबर 2019 की सर्द सुबह पेड़ों पर बैठे विशालकाय चमगादड़ों का बसेरा।  (फोटो: सुमित सारस्वत / पसिफ़िक प्रेस)

भारत के उत्तरी राज्यों में भीषण गर्मी के कारण फल खाने वाली चमगादड़ों की प्रजाति, इंडियन फ्लाइंग फॉक्स (टेरोपस गिंगटेस) की भारी संख्या में मौत हो गई है। राजस्थान में, जहां मई के महीने में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच गया था, वहां इनकी कई सामूहिक मौतें हुईं। इनमें एक मामले में 400 और दूसरे में 300 मौतें हुईं। 

राजस्थान के सेठ ज्ञानीराम बंसीधर पोद्दार कॉलेज में वन्यजीव शोधकर्ता और प्राणी विज्ञान विभाग के प्रमुख दाऊ लाल बोहरा ने कहा, “वे इसलिए मर गए क्योंकि उनके बसेरे के आस-पास के सभी जल स्रोत सूख गए थे और वे ठंडक पाने के लिए पानी में भीग नहीं सकते थे।” 

बोहरा ने कहा कि नगर निगम के अधिकारियों इस प्रजाति को राहत देने के लिए उनके बसेरों के पास पानी छिड़का, लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था। 

पिछले महीने झारखंड, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी चमगादड़ों की मौत होने की खबरें हैं। पिछले साल भी गर्मी के कारण इस प्रजाति के चमगादड़ों के मरने के मामले सामने आए थे लेकिन इस साल के मुकाबले तब संख्या कम थी। इस साल यह आंकड़ा सैकड़ों में है, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा दर्जनों में था। 

यह विशेष चमगादड़ प्रजाति केवल दक्षिण एशिया में पाई जाती है। इन चमगादड़ों को फूलों के रस और फल खाने वाली प्रमुख प्रजातियों के रूप में जाना जाता है, जो बीज प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इस प्रकार ये वनस्पति तंत्र के स्वास्थ्य और जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

हालांकि, हाल तक, इनको लेकर शोध की रुचि के मामले बहुत कम ही रहे हैं। इस प्रजाति को आईयूसीएन रेड लिस्ट में ‘सबसे कम चिंताजनक’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, जिसका अर्थ है कि यद्यपि इसकी आबादी घट रही है, फिर भी यह जंगल में प्रचुर मात्रा में हैं। कोई सटीक संख्या उपलब्ध नहीं है, लेकिन फल उत्पादकों के साथ संघर्ष के कारण मालदीव में काफी फ्लाइंग फॉक्स को मार दिया गया, जिससे इनकी 80 फीसदी आबादी खत्म हो गई। 

इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि, भयानक लू, उत्तरी भारत की सीमा से लगे दक्षिणी पाकिस्तान में इस प्रजाति के स्थानीय स्तर पर विलुप्त होने से जुड़ी हुई प्रतीत होती हैं।

गर्मी के प्रति संवेदनशील

हैदराबाद में उस्मानिया विश्वविद्यालय में जैव विविधता एवं संरक्षण अध्ययन केंद्र के निदेशक और प्राणी शास्त्र के प्रोफेसर सी श्रीनिवासुलु ने कहा कि मौसम के अत्यधिक उतार-चढ़ाव के कारण ऑस्ट्रेलिया में भी बड़े पैमाने पर चमगादड़ों की मौत हुई है। 2014 में, जब ऑस्ट्रेलिया ने अपनी सबसे गर्म गर्मियों में से एक का अनुभव किया, तो लगभग 23,000 स्पेक्टाकल्ड फ्लाइंग फॉक्स – एक संबंधित प्रजाति – मर गए।

भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, मोहाली के रिसर्च एसोसिएट बहीरथन मुरुगावेल ने कहा कि इंडियन फ्लाइंग फॉक्स दिन भर खुले पेड़ की शाखाओं में लटके रहते हैं, इस प्रकार तेज धूप के संपर्क में आते हैं, जिससे वे उच्च तापमान के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं। लेकिन भारत में, चमगादड़ों की आबादी पर हीट वेव के प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए बहुत कम अध्ययन हुए हैं। पश्चिम बंगाल में हीट वेव के कारण बड़े पैमाने पर मृत्यु की रिपोर्ट करने वाला ऐसा ही एक अध्ययन 2010 में किया गया था।

dozens of indian flying foxes died under a tree
मई 2024 में अत्यधिक गर्मी के कारण भारत के उत्तर-पश्चिमी राज्य राजस्थान में इंडियन फ्लाइंग फॉक्स की सामूहिक मृत्यु हो गई। (फोटो: दाऊ लाल बोहरा) 

नई दिल्ली में जीजीएस इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ एनवायर्नमेंटल साइंस के असिस्टेंट प्रोफेसर सुमित डूकिया ने कहा कि गर्मी के महीने इन चमगादड़ों के लिए प्रजनन का मौसम होता है, जो समस्या को और बढ़ा देता है। 

वह कहते हैं, “ये चमगादड़ साल में केवल एक ही बच्चा पैदा करते हैं, जिसका मतलब है कि अगर ये बच्चे अपनी माताओं के साथ गर्मी के कारण मर जाते हैं, और अगर उन्हें बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए, तो आबादी का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।” 

अपरिवर्तनीय पारिस्थितिक नुकसान और पशु जन्य रोगों का जोखिम 

इंडियन फ्लाइंग फॉक्स, बीजों के फैलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि ये प्रजाति एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवा प्रदान करते हैं। 

जब बीज इन स्तनधारियों की आंतों से गुजरते हैं, तो आंत में मौजूद एसिड बीजों की बाहरी परत को घोल देता है, जिससे उनके अंकुरित होने की संभावना बढ़ जाती है। 

चमगादड़ों द्वारा पारिस्थितिकी तंत्र के लिए किए जाने वाले कामों के चलते वनों के सतत प्रबंधन पर एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चमगादड़ों द्वारा फैलाए गए बीज, पौधों की खोई हुई आबादी के प्राकृतिक पुनः-उपनिवेशीकरण यानी नेचुरल रि-कोलोनाइजेशन को प्रभावित करते हैं। साथ ही ये कई स्थानिक पेड़ों के प्रसार को भी प्रभावित करते हैं जो अन्य लुप्तप्राय जीवों को बनाए रखते हैं।

श्रीनिवासुलु ने डायलॉग अर्थ को बताया, “हालांकि भारत में इस पर कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं है, [लेकिन हमारे अवलोकन] ने दिखाया है कि जिन स्थानों पर फल चमगादड़ों के बसेरे गायब हो गए हैं, वहां पेड़ों का पुनर्जनन कम हो गया है। 

वह कहते हैं कि हमारे पास भारत में पेड़ों की लगभग 200 प्रजातियां हैं जो परागण के लिए चमगादड़ों पर निर्भर हैं। 

उनका यह भी कहना है, “स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र में लगभग 18 से 20 फीसदी पौधे रात में खिलते हैं, और इनमें से लगभग 50 फीसदी परागण के लिए चमगादड़ों पर निर्भर हैं। इसका मतलब है कि अगर ये चमगादड़ यानी फ्रूट बैट्स गायब हो जाते हैं, तो पारिस्थितिकी तंत्र को बहुत नुकसान होगा।”

Three people using a hose to water trees
राजस्थान में भीषण गर्मी के प्रभाव को कम करने के प्रयास, जहां मई 2024 में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा। राजस्थान के मेनार के नगरपालिका अधिकारियों ने चमगादड़ों के बसेरों को ठंडा करने के लिए पेड़ों पर पानी छिड़का। (फोटो: दर्शन मेनारिया)

श्रीनिवासुलु ने कहा कि परागण के लिए उन पर निर्भर फ्रूट बैट्स और पौधे एक साथ विकसित हुए हैं। पौधों में चमगादड़ों के लिए रस पीने के लिए व्यापक फ़नल होते हैं। जब चमगादड़ रस पीते हैं, तो पौधों से पराग उनके चौड़े पंखों पर चिपक जाता है, और फिर जब चमगादड़ उड़ते हैं, तो परागण क्षेत्र में फैल जाता है। अगर चमगादड़ खत्म हो जाते हैं, तो इनमें से कई पौधों की प्रजातियां भी खत्म हो जाएंगी।

कपड़ा, खाद्य पदार्थ और दवा में इस्तेमाल होने वाले पौधे, जैसे रेशमी कपास का पेड़ (सेमल), कड़वी फलियां, काजू और महुआ भारत में चमगादड़ द्वारा परागित कुछ पौधों की प्रजातियों के उदाहरण हैं। इन पौधों से मिलने वाले आर्थिक लाभ बहुत ज़्यादा हैं और कई क्षेत्रों में फैले हुए हैं।

मुरुगावेल बताते हैं, “इंडियन फ्लाइंग फॉक्स 100 किलोमीटर से ज्यादा दूर तक बीजों को ले जा सकते हैं… और इन चमगादड़ों की संख्या में कमी से सीधे तौर पर उनसे मिलने वाली पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रभावित होंगी। लेकिन दुर्भाग्य से, हमारे पास भारत में नुकसान का आकलन करने के लिए बहुत ज्यादा शोध नहीं है।” 

एक और चिंता यह है कि अगर चमगादड़ों की आबादी में तेजी से गिरावट आती है, तो उनसे इंसानों में बीमारियां फैल सकती हैं। कुछ स्रोतों के अनुसार, कोविड-19 महामारी चमगादड़ों में पाए जाने वाले वायरस से जुड़ी हुई थी। 

श्रीनिवासुलु ने कहा, “जब हम चमगादड़ों के बसेरों को बाधित करते हैं, तो उनका तनाव बढ़ जाता है, जिससे वायरस अधिक विषैले हो जाते हैं। तनाव से प्रेरित यह विषाणु एक मेजबान से दूसरे में वायरस के प्रसार को जन्म दे सकता है, जो चमगादड़ों में जूनोटिक यानी पशुजन्य रोगों को फैलाने की क्षमता को रेखांकित करता है।” 

उन्होंने आगे कहा, “मनुष्यों सहित हर जीवित जीव एक संभावित जूनोटिक वेक्टर है। कुछ जीवों में दूसरों की तुलना में अधिक वायरल लोड होता है, जबकि कुछ, जैसे चमगादड़, में इतनी मजबूत प्रतिरक्षा होती है कि रोगजनकों का उन पर न्यूनतम प्रभाव पड़ता है।” 

फिर भी, उन्होंने सुझाव दिया कि जूनोटिक रोगों के जोखिम पर जोर देना उल्टा हो सकता है, क्योंकि बड़े चमगादड़ों के बारे में गलत सूचना ने पहले ही अनावश्यक भय पैदा कर दिया है, जिससे चमगादड़ों को अंधाधुंध तरीके से मारा जा रहा है। 

विवादास्पद स्थिति, शहरीकरण और स्टिग्मा से संरक्षण में बाधा 

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के नवीनतम संशोधन तक, इंडियन फ्लाइंग फॉक्स को अधिनियम की अनुसूची V के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया था, क्योंकि वे फलदार पेड़ों पर भोजन करते हैं – जिससे उनकी हत्या स्वीकार्य हो जाती है। ऐसे बागों के रखवाले और मालिक इस तरह के भोजन को अपनी फसलों के लिए नुकसान मानते थे। हालांकि, इंडियन फ्लाइंग फॉक्स को 2022 में अधिनियम के नवीनतम संशोधन के बाद अनुसूची V से अनुसूची II में स्थानांतरित कर दिया गया, जिसमें जानवरों को मारने के लिए कठोर दंड का प्रावधान है।

लेकिन पारिस्थितिकी तंत्र के समग्र क्षरण के हिस्से के रूप में चमगादड़ भी पीड़ित हैं। हरियाणा के एक अध्ययन से पता चलता है कि ये चमगादड़ चौड़े छतरियों वाले ऊंचे पेड़ों को पसंद करते हैं, लेकिन ऐसे पेड़ मिलना मुश्किल होता जा रहा है। ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच के अनुसार 2001 से 2023 तक 23.3 लाख हेक्टेयर वृक्षों का आवरण खो गया।

श्रीनिवासुलु कहते हैं कि वर्टिकल बुनियादी ढांचे का विकास इन चमगादड़ों की कॉलोनियों को प्रभावित करता है क्योंकि वे एक ही पेड़ पर 50 से 60 साल तक रहते हैं। जैसे-जैसे शहरी क्षेत्र बढ़ते जाएंगे, ये चमगादड़ अपने उपयुक्त बसेरे खो देंगे। 

वह कहते हैं कि उनके अनुमान के अनुसार, भारत में वर्तमान में ज्ञात भारतीय फ्लाइंग फॉक्स के बसेरों में से लगभग 80 फीसदी अगले 30 वर्षों में नष्ट हो जाएंगे।

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