भारत का एक बहुत बड़ा हिस्सा हर साल बाढ़ से प्रभावित होता है। इस तरह की आपदा में लोग मारे जाते हैं और संपत्तियों का भी भारी नुकसान होता है। इस सबको देखते हुए देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मौजूदा बजट में, बाढ़ से बचाव से जुड़ी परियोजनाओं के लिए काफी ध्यान देने की बात कही। वित्त मंत्री ने 23 जुलाई के अपने भाषण में इन सबका जिक्र किया।
बाढ़ से बचाव की परियोजनाओं के लिए बिहार को 115 अरब रुपये दिये जाने की घोषणा की गई है। इसके अलावा, असम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम के लिए भी इसी तरह की घोषणा की गई, हालांकि रकम के आवंटन का स्पष्ट जिक्र नहीं किया गया है।
वित्त मंत्री के इस भाषण के कुछ हफ्ते बाद ही, देश में ऐसी कई बाढ़ आपदाएं आईं जिनसे यह स्पष्ट हो गया है कि भारत को इस दिशा में तत्काल और बेहद गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। बाढ़ से बचाव के लिए ठोस प्रयास के अलावा भारत के पास अब कोई और विकल्प नहीं है।
बाढ़ आपदा में भारी तबाही
दक्षिण के राज्य केरल में 30 जुलाई को भयानक बाढ़ आई। माना जा रहा है कि केरल में अब तक आई सबसे विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में से यह एक है। अचानक से बाढ़ आई। भूस्खलन हुए। इस कारण कम से कम 231 लोगों की मौत हो गई। तकरीबन 700 घर और कारोबारी प्रतिष्ठान तबाह हो गये।
इस आपदा के अगले ही दिन, भारत के दूसरे छोर पर, हिमाचल प्रदेश में बादल फटने की एक के बाद एक कई घटनाएं हुईं। इनमें कम से कम एक दर्जन लोग मारे गए। कई दर्जन लोग लापता हो गए। पुल बह गए। सड़कें बह गईं। जल विद्युत परियोजनाओं को काफी नुकसान हुआ। सैकड़ों इमारतें क्षतिग्रस्त हो गईं।
बाढ़ से प्रभावित रहने वाले एक अन्य राज्य असम की बात करें तो इस आपदा के कारण 25 जुलाई तक यहां के 117 लोगों की मौत हो चुकी थी। असम में 2 अगस्त तक 18,000 लोग प्रभावित हुए थे।
इसी सप्ताह, पश्चिमी राज्य गुजरात में भी बाढ़ आई। इसके कारण 29 अगस्त तक कम से कम 35 लोगों की मौत हो गई और लगभग 8,500 लोगों को दूसरे स्थानों पर भेजा गया।
देश में बाढ़ आपदाएं बहुत बड़े पैमाने पर हो रही हैं। इनका भौगोलिक विस्तार भी बहुत ज्यादा है। ऐसे में, निर्मला सीतारमण के भाषण में जो कुछ भी कहा गया है और मौजूदा बजट में बाढ़ प्रबंधन को लेकर जो भी प्रावधान किए गए हैं, इन हालात में ये सब बेहद कम और काफी देर से किए जाने वाले प्रयास नज़र आ रहे हैं।
बाढ़ से होने वाली मौतें और इससे होने वाले विनाश से प्रभावित राज्यों के लिए ये सब कोई नई घटना नहीं है। पिछले साल हिमाचल प्रदेश में अचानक आई बाढ़ के कारण 367 लोगों की मौत हो गई थी और करोड़ों का नुकसान हुआ था। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने जुलाई में संसद को बताया कि पिछले पांच सालों में असम में बाढ़ के कारण 880 लोगों की मौत हुई है।
निर्मला सीतारमण के भाषण में फ्लड ज़ोनिंग का कोई ज़िक्र नहीं था।
क्या है फ्लड ज़ोनिंग?
यह बाढ़ को लेकर उनकी भयावहता के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों की पहचान और वर्गीकरण की एक प्रक्रिया है। इसमें अक्सर बाढ़ के लिहाज से नाजुक क्षेत्रों की मैपिंग करनी होती है। इसके अलावा, बाढ़ की घटनाओं के दौरान नुकसान को कम करने के लिए निर्माण कार्यों और भूमि उपयोग पर नियम निर्धारित करना होता है।
यह प्रक्रिया महत्वपूर्ण है। इसके बावजूद, कई भारतीय राज्यों ने अभी तक फ्लड ज़ोनिंग को लागू नहीं किया है जिससे उनको बार-बार ऐसी आपदाओं को झेलना पड़ रहा है।
समस्या का एक हिस्सा यह है कि भारत की सालाना बारिश का 70 फीसदी जून और सितंबर के बीच होता है। ये मानसून के चार मुख्य महीने हैं। इन महीनों में सबसे ज्यादा बारिश होने के कारण नदियों का फैलाव उनकी सामान्य क्षमता से ज्यादा होता है। उत्तर में एक जटिल मुद्दा हिमालय है। यह तुलनात्मक रूप से युवा पर्वत श्रृंखला है। भारतीय उपमहाद्वीप में यूरेशियन प्लेट के टकराव के परिणामस्वरूप हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ है।
हिमालय की नदियां खड़ी ढलान वाली हैं। ये काफी सारा तलछट लेकर नीचे की तरफ आती हैं। ये नदियां जब मैदानी इलाकों में पहुंचती हैं, तो उनकी उनकी रफ्तार और तलछट उन्हें फैलने के लिहाज से ज्यादा उपयुक्त बनाती हैं। इससे नदी के मार्ग बदल सकते हैं।
जलवायु परिवर्तन इन चुनौतियों में इजाफा कर रहा है। जैसे-जैसे वातावरण गर्म होता है, इसका बारिश पर विशेष प्रभाव पड़ता है: गर्म हवा अधिक पानी को रोक सकती है, और इसलिए वर्षा कम होती है लेकिन अधिक तीव्र होती है। लगातार बारिश की लंबी अवधि, अब भारी बारिश के छोटे विस्फोट में बदल रही है।
पैसों की अहम भूमिका
इन आपदाओं पर करीब से नजर डालने से पता चलता है कि केवल यही वे मुद्दे नहीं हैं, जो समस्या हैं। दरअसल, बाढ़ को कम करने वाली बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाएं इस समस्या से निपटने में विफल रही हैं। (पिछले दशकों में बिहार में 3,800 किलोमीटर से ज़्यादा तटबंध बनाए गए हैं, लेकिन बाढ़ की समस्या बनी हुई है।) बाढ़ को कम करने के लिए दूसरे प्रयास भी किए जा रहे हैं, लेकिन उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है।
उदाहरण के लिए, 2011 में, पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल ने स्पष्ट रूप से अनुरोध किया था कि केरल के कुछ क्षेत्रों को पारिस्थितिकी-नाजुक क्षेत्र बनाया जाए। इससे किसी भी नए भारी बुनियादी ढांचे या इमारतों पर रोक लग जाती। उनमें से कुछ क्षेत्र इस साल बाढ़ से प्रभावित हुए थे।
हिमाचल प्रदेश में 2023 और 2024 के दौरान जलविद्युत संयंत्रों को होने वाले नुकसान से पता चलता है कि इन बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को ऐसी चुनौतियों को ध्यान में रखकर नहीं बनाया गया था। स्थानीय लोगों के अनुसार, 5 अगस्त को असम की राजधानी गुवाहाटी में आई बाढ़ भी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और नालों पर उनके प्रभाव से जुड़ी हुई लगती है। हालांकि असम के मुख्यमंत्री ने पड़ोसी राज्य मेघालय के एक विश्वविद्यालय पर “फ्लड जिहाद” करने का आरोप लगाया।
असहाय जल शक्ति मंत्रालय
इस साल बड़ी आपदाओं का सामना करने वाले किसी भी राज्य ने फ्लड ज़ोनिंग नहीं की थी। दरअसल, 2022 में, जल शक्ति मंत्रालय (जो पानी से संबंधित मुद्दों का प्रबंधन करता है) ने शिकायत की कि केवल मणिपुर, राजस्थान, उत्तराखंड और तत्कालीन जम्मू व कश्मीर राज्य ने फ्लड जोनिंग के लिए कानून बनाया था। और उन जगहों पर भी, बाढ़ के मैदानों का सीमांकन होना बाकी था।
दो साल बाद, जल शक्ति मंत्रालय ने एक बार फिर प्रेस को बताया कि किस तरह से विभिन्न राज्यों की सरकारें इसको गंभीरता से नहीं ले रही हैं।
क्या फंडिंग का नुकसान झेलेंगे राजनीतिक दल?
माना जा रहा है कि इस दिशा में विभिन्न राज्य सरकारों के आगे न बढ़ने की एक वजह विभिन्न राजनीतिक दलों को मिलने वाली फंडिंग हो सकती है। दरअसल, विभिन्न राजनीतिक दलों को रियल एस्टेट सेक्टर से मोटी फंडिंग होती है।
अमेरिका में, बाढ़ के लिहाज से नाजुक क्षेत्रों का मतलब रियल एस्टेट कंपनियों के लिए कम मांग और उच्च बीमा लागत है। वास्तव में, चूंकि कई प्रॉपर्टी डेवलपर्स बाढ़ के जोखिम की कीमत को ध्यान में नहीं रखते, इसलिए यह अनुमान लगाया गया है कि अमेरिकी हाउसिंग मार्केट का मूल्यांकन, वास्तविक स्थिति से 10-19 खरब रुपयों से अधिक है।
यदि भारत में फ्लड जोनिंग को प्रभावी ढंग से लागू किया गया, तो यह निश्चित रूप से रियल एस्टेट को प्रभावित करेगा। कीमतों में गिरावट आएगी क्योंकि लोगों को उन क्षेत्रों में संपत्ति खरीदने के जोखिमों का एहसास होगा।
और भारत में रियल एस्टेट कंपनियां राजनीतिक दलों के साथ बेहद करीब से जुड़ी हुई हैं। पिछले साल, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावी बॉन्ड के बारे में गोपनीयता की स्थिति को अमान्य कर दिया। इसके तहत कंपनियां बॉन्ड खरीद कर राजनीतिक दलों को गोपनीय तरीके से चंदा देती थीं। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद इस बात का खुलासा हुआ कि रियल एस्टेट सेक्टर से जुड़ी कंपनियों ने 9.2 अरब रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदकर विभिन्न राजनीतिक दलों को चंदा दिया।
सरल शब्दों में कहें तो, यदि भारत में विभिन्न राज्यों की सरकारें फ्लड जोनिंग को लेकर गंभीरता से काम करने लगीं, तो विभिन्न राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदों के तरीकों में से एक पर गहरा नकारात्मक असर पड़ेगा।
कब तक झेलते रहेंगे विनाश?
जलवायु परिवर्तन की वजह से अब बाढ़ बार-बार आ रही है। इस तरह की आपदाएं दिनों-दिन ज्यादा विनाशकारी होती जा रही हैं। इन हालात में देश के नागरिकों को अब खुद से पूछना होगा कि क्या वे यथास्थिति से सहज हैं।
बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के रूप में राजनेताओं द्वारा पेश किए गए समाधान मददगार नहीं रहे हैं। नौकरशाहों द्वारा सुझाए गए समाधान लागू नहीं किए जा रहे हैं। इस बीच, लोग मरते रहते हैं। लोगों की संपत्तियां नष्ट हो जाती हैं। दरअसल, बाढ़ के लिहाज से नाजुक क्षेत्रों में भी घर बनते रहते हैं और बुनियादी ढांचा भी स्थापित होता रहता है। और यहां बार-बार तबाही मचती रहती है।