जलवायु

जलवायु परिवर्तन के कारण भारत के जंगली इलाकों में बढ़ रहा मलेरिया

भारत में वैसे तो मलेरिया के कुल मामलों में कमी आई है, लेकिन विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण वन क्षेत्रों में मच्छरों के प्रजनन के लिहाज से अधिक अनुकूल परिस्थितियां बन सकती हैं।
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<p>राजस्थान में ब्यावर के एक सरकारी अस्पताल के बच्चों का वार्ड। यहां डेंगू और मलेरिया से संक्रमित मरीजों का इलाज चल रहा है। (फोटो: सुमित सारस्वत / पैसिफिक प्रेस / अलामी)</p>

राजस्थान में ब्यावर के एक सरकारी अस्पताल के बच्चों का वार्ड। यहां डेंगू और मलेरिया से संक्रमित मरीजों का इलाज चल रहा है। (फोटो: सुमित सारस्वत / पैसिफिक प्रेस / अलामी)

छत्तीसगढ़ की एक महिला मानवती नाग का विवाह 1994 में हुआ था। वह मूल रूप से बीजापुर जिले की रहने वाली थीं। विवाह के बाद मानवती, दंतेवाड़ा जिले के वन क्षेत्र वाले हलबारस गांव  चली गईं। यह जगह उनके माता-पिता वाली जगह से केवल 80 किलोमीटर दूर है। विवाह के समय उनकी उम्र केवल 19 साल थी। 

दरअसल, मानवती नाग का जीवन नाटकीय रूप से बदल गया है। वह अपने माता-पिता के घर में कभी गंभीर रूप से बीमार नहीं हुईं, लेकिन अपने नए घर में उनको बार-बार मलेरिया हुआ। उनका अनुमान है कि हर साल या दो साल में एक बार मलेरिया की चपेट में वह आई हैं। 

क्या है मलेरिया?

मलेरिया एक वेक्टर जनित बीमारी है। यह प्लाज्मोडियम परजीवियों के कारण होती है और संक्रमित मादा एनाफिलीज मच्छरों के काटने से फैलती है। इसके प्राइमरी स्ट्रेन्स, प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम (पीएफ) और प्लास्मोडियम विवैक्स (पीवी), भारत में असमान रूप से वितरित हैं। पीएफ अधिक घातक है। यह छत्तीसगढ़ के घने जंगलों और आदिवासी क्षेत्रों में काफी ज्यादा सक्रिय है। माना जा रहा है कि मलेरिया के आधे से अधिक मामलों के लिए यही जिम्मेदार है। 

हाल के वर्षों में, मलेरिया की चपेट में बार-बार आना मानवती नाग लिए बहुत तकलीफदेह बन चुका है। मानवती बताती हैं कि 2022 से, वह लगभग हर तीन महीने में बीमारी का शिकार रही हैं, चाहे वह गर्मी हो, मानसून हो या सर्दी।

मानवती नाग और भारत के जंगली इलाकों में रहने वाले अन्य लोग, मलेरिया के मामले में अलग तरह के हालात का सामना कर रहे हैं। दरअसल, देश के बाकी हिस्सों में मलेरिया के मामलों में गिरावट का ट्रेंड है जबकि इन क्षेत्रों में मलेरिया के मामलों में इजाफे का अनुमान है। 

भारी बारिश जैसी स्थितियों में इजाफा होना, इसके पीछे एक प्रमुख कारक हो सकता है।

जलवायु परिवर्तन एक अहम कारण 

विश्व स्वास्थ्य संगठन की विश्व मलेरिया रिपोर्ट में, 2023 में पहली बार जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और रोग प्रबंधन पर एक अध्याय शामिल किया गया। इसमें पाकिस्तान का एक उदाहरण दिया गया। दरअसल, पाकिस्तान में 2022 में भारी बाढ़ आई थी। इसका पानी जगह-जगह तालाबों और अन्य जगहों पर काफी समय तक भरा रहा। ऐसी ही जगहों पर मच्छर पनपते हैं। नतीजतन, वहां मलेरिया के मामले पांच गुना बढ़ गए। 

भारत के जंगली इलाकों में, विशेषकर छत्तीसगढ़ के एक बड़े हिस्से में, गर्मी के साथ-साथ ह्यूमिडिटी भी काफी होती है। इसके अलावा, वहां के पेड़ों का ऊपरी हिस्सा छतरीनुमा होता है। यह बारिश के पानी के इकट्ठा होने के लिहाज से अनुकूल वातावरण है।

भारी बारिश वाले दिनों में इजाफा 

इसके अलावा, भारत में भारी बारिश वाले दिन बढ़ रहे हैं। एक थिंक टैंक, काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर का एक अध्ययन 2024 में प्रकाशित हुआ। इसमें बताया गया है कि 2012 और 2022 के बीच, भारत के 55 फीसदी उप-जिलों (तहसीलों) में मानसून की शुरुआती अवधि के दौरान भारी बारिश के दिनों में वृद्धि हुई है। अध्ययन में बताया गया कि 1982-2011 में हुई बारिश की तुलना जब 2012-2022 में हुई बारिश से की जाती है तो यह निष्कर्ष निकलता है। अनियमित बारिश के पैटर्न में इस बढ़ोतरी के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया गया है।

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छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में भारी बारिश के कारण हलबारस बस्ती में कई जगह रुके हुए पानी के कुंड बन गए हैं। मच्छरों के प्रजनन के लिए यह एक उपयुक्त वातावरण बन गया है। (फोटो: ज्योति ठाकुर)

गर्म हवा ज्यादा पानी को इकट्ठा करती है। यह ग्रह धीरे-धीरे गर्म होता जा रहा है। इसका मतलब सूखे दिनों की अवधि का लंबा होना है। साथ ही, छोटी अवधि में बारिश होगी और यह बारिश बहुत ज्यादा होगी। 

भारी बारिश वाले दिनों की यह वृद्धि मलेरिया को मिटाने के भारत के प्रयासों को कमजोर कर सकती है। ये प्रयास विशेष रूप से वन क्षेत्रों में ज्यादा कमजोर पड़ सकते हैं। 

जलवायु परिवर्तन और भारत की मलेरिया चुनौती

मलेरिया के मामलों में कमी लाने को लेकर भारत ने हाल के वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति की है। दुनिया भर में 2022 में मलेरिया के मामलों में इजाफे के रुझान रहे। लेकिन भारत में 2021 की तुलना में मलेरिया के मामलों में 30 फीसदी की कमी आई और 34 फीसदी कम मौतें हुईं। 

भारत में वैश्विक मलेरिया के मामलों का सिर्फ 1.7 फीसदी हिस्सा 2020 में था। इसका लक्ष्य 2030 तक मलेरिया मुक्त स्थिति हासिल करना है। 

लेकिन अपने ही क्षेत्र में – जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दक्षिण-पूर्व एशिया के रूप में परिभाषित किया गया है – भारत में अभी भी सबसे ज्यादा मामले हैं, जहां 2022 में मलेरिया का बोझ 66 फीसदी था। 

जंगल वाले इलाके मलेरिया को लेकर सबसे ज्यादा नाज़ुक

देश के जंगल वाले इलाके मलेरिया को लेकर सबसे ज्यादा नाजुक हैं। यहां की आबादी में 2019 में मलेरिया के 21 फीसदी मामले आए और 53 फीसदी मौतें हुईं। देश की आबादी में इनकी हिस्सेदारी हालांकि 7 फीसदी से भी कम है। 

छत्तीसगढ़ राज्य, जहां नाग रहती हैं, भारत में सबसे ज्यादा वन क्षेत्रों में से एक है।

मलेरिया के सबसे ज्यादा मामलों को लेकर 2020 से देश में छत्तीसगढ़ की प्रतिस्पर्धा ओडिशा – एक और घने वनाच्छादित राज्य – के साथ रही है। और 2022 को छोड़कर मलेरिया से सबसे ज्यादा मौतें इसी राज्य में हुई हैं, जबकि महाराष्ट्र राज्य में कुछ ज्यादा मामले थे। 

2020 में, छत्तीसगढ़ के सात वन क्षेत्रों वाले जिलों, जिनमें नाग का दंतेवाड़ा जिला भी शामिल है, में राज्य के मलेरिया के लगभग 83 फीसदी मामले सामने आए।

वन क्षेत्र के उच्चतम प्रतिशत वाले राज्य मिजोरम में, 2023 के एक अध्ययन से पता चला है कि हाल के वर्षों में मलेरिया के मामलों में वृद्धि हुई है, जो राष्ट्रीय प्रवृत्ति के विपरीत है। और आगे भी इसके बढ़ने का अनुमान है। पश्चिमी मिजोरम में पिछले तीन दशकों में वर्षा में अनुमानित 34 मिमी वार्षिक वृद्धि हुई है, जिसमें 2015 के बाद से वृद्धि दर्ज की गई है। 

अध्ययन में कहा गया है, “अगर भारी बारिश होती है और ज्यादा बार ऐसी बारिश होती है, तो इससे मच्छरों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो सकती है।” 

इस बीच, 2022 के एक अध्ययन में पाया गया कि ओडिशा में, 2020, 2050 और 2080 के लिए पूर्वानुमानों से पता चलता है कि पूरे राज्य में मलेरिया संचरण की तीव्रता क्रमशः 5 फीसदी, 13 फीसदी और 15 फीसदी कम होगी। हालांकि सदी के अंत तक “वन क्षेत्र और ज्यादा ऊंचाई वाले जिलों में दूरदराज के ग्रामीण आदिवासी बस्तियों” में 10-30 फीसदी की वृद्धि होगी।

इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मॉडलिंग एंड क्लाइमेट सॉल्यूशंस के एक डॉक्टर और निदेशक कौशिक सरकार बताते हैं, “मलेरिया एक जलवायु-संवेदनशील बीमारी है और इसका संचरण यानी इसका फैलना तापमान, आर्द्रता और वर्षा में किसी भी बदलाव से काफी प्रभावित होता है।”

जंगल में रहने वाली आबादी और गर्भवती महिलाएं अधिक असुरक्षित हैं

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को अक्सर मलेरिया से अपनी लड़ाई के लिए अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे गरीबी, कुपोषण और अपर्याप्त चिकित्सा बुनियादी ढांचा। ये सब उन्हें विशेष रूप से असुरक्षित बनाता है।

इन इलाकों में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली बेहद कमजोर है। इसलिए यहां मलेरिया का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। इससे बीमारी का ठीक से इलाज नहीं हो पाता है। 

मानवती नाग जब हाल ही में फिर से मलेरिया की चपेट में आईं तो उनका इलाज आर्टीमिसिनिन कॉम्बिनेशन थेरेपी से हुआ। उनको प्राइमाक्वीन की एक खुराक दी गई थी। मलेरिया के इलाज के लिए इसको बेहद प्रभावी माना जाता है। मानवती को यह दवा उनके गांव की एक हेल्थ वर्कर अरुणलता चंद्रवंशी द्वारा दी गई। चंद्रवंशी को संदेह है कि मलेरिया परजीवी अभी भी नाग के रक्त प्रवाह में हो सकता है। 

वह कहती हैं, “हम ऐसे कई मामलों को देख रहे हैं, जहां मलेरिया परजीवी ठीक से साफ नहीं होते हैं, और रोगी फिर से बीमारी से ग्रस्त हो जाता है।”

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छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव में रहने वाली हेमलता नायक, मलेरिया के लक्षण महसूस होने के दो दिन बाद पास के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गईं। बारिश और एम्बुलेंस की कमी के कारण अस्पताल पहुंचने में उनको दो दिन की देरी हुई। (फोटो : ज्योति ठाकुर)

मलेरिया के मामलों में वृद्धि विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं के लिए चिंताजनक है। गैर-गर्भवती महिलाओं की तुलना में गर्भवती महिलाओं में गंभीर बीमारियों के विकसित होने की संभावना तीन गुना अधिक है। मलेरिया से संक्रमित महिलाओं से पैदा होने वाले शिशुओं के जन्म के समय कम वजन होने की संभावना दोगुनी से भी अधिक होती है।

मलेरिया फैलने के पीछे विशेष कारणों के बारे में विवरण कम है, लेकिन भारत के वन क्षेत्रों में गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद, सभी कारणों से होने वाली मातृ मृत्यु दर सबसे अधिक है। जैसे-जैसे जलवायु संबंधी परिस्थितियां बिगड़ती जा रहे हैं, डर है कि और भी अधिक माताओं और उनके शिशुओं का जीवन खतरे में पड़ जाएगा।

जुलाई के आखिर में, हलबारस से सिर्फ 15 मिनट की दूरी पर गायता गांव की हेमलता नायक को बुखार हो गया, उस समय वह सात महीने की गर्भवती थीं। इसके बाद उन्होंने अपने इलाज के लिए प्रयास किया। उस समय भारी बारिश हो रही थी और एंबुलेंस की भी कमी थी। इसलिए उनको पास के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में जाने में दो दिन की देरी हुई, जो केवल 2 मील दूर है।

हेमलता नायक भाग्यशाली रहीं कि उन्हें अस्पताल पहुंचने पर तुरंत मलेरिया-रोधी उपचार मिल गया। लेकिन देरी से उपचार से गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं, जिनमें आयरन की कमी और ब्लैकवाटर बुखार शामिल हैं। ब्लैकवाटर बुखार से लोग पीलिया की चपेट में आ सकते हैं। इससे बुखार आ सकता है और शरीर के लिए जरूरी विटामिन खतरनाक स्तर तक नीचे आ सकता है। 

राज्य अपने स्तर पर कर रहे हैं प्रयास 

मलेरिया से जूझ रहे छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों ने इससे जुड़े मामलों का पता लगाने और मरीजों के इलाज करने के लिए अपने स्तर से प्रयास किए हैं। 

उदाहरण के लिए, छत्तीसगढ़ अपना मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम चलाता है। इसके तहत पीक सीजन के दौरान घर-घर जाकर जांच करने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की जाती है। 

ये लोग किसी भी ऐसे महीने में जब अनियमित बारिश हो जाती है, तो उसके बाद भी मलेरिया के मामलों का जल्द पता लगाने और उपचार प्रदान करने के लिए परीक्षण का काम करते हैं। साथ ही, मच्छरदानी वितरित करते हैं और रोकथाम के उपायों के बारे में जागरूकता बढ़ाते हैं। 

इसी तरह, ओडिशा का अपना प्रमुख दुर्गमा अंचलारे मलेरिया निराकरण कार्यक्रम है। यह कार्यक्रम भी बड़े पैमाने पर जांच, उपचार और मच्छरदानी के वितरण पर केंद्रित है।

हालांकि, इन कार्यक्रमों से परे, विशेषज्ञों का कहना है कि दूरदराज के क्षेत्रों में मलेरिया के प्रसार को समझना महत्वपूर्ण होगा। 

राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के पूर्व निदेशक और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के प्रधान सलाहकार पी.के. सेन कहते हैं, “मलेरिया के मामलों के बोझ को पूरी तरह से समझने के लिए अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। दरअसल, भारत एक विशाल देश है। यहां भौगोलिक विविधताएं बहुत ज्यादा हैं। अलग-अलग क्षेत्रों में उस जगह के तमाम स्थानीय और वंचित समुदाय आम तौर पर बिखरे हुए बसे हैं। इन लोगों को जरूरी स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करना अपने आप में बड़ी चुनौती है।”

सरकार कहते हैं कि बीमारी को खत्म करने में भारत की सफलता काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगी कि किस तरह से मध्य, पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत के उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में बीमारी को बेहतर ढंग से समझने के लिए आंकड़ों पर काम किया जाता है। 

इस बीच, हेमलता नायक, जिन्हें उनके उपचार के बाद उनके भ्रूण की स्थिति की जांच के लिए अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह दी गई थी, एक सप्ताह से बारिश रुकने का इंतजार कर रही हैं।

वह कहती हैं, “अगर मैं मलेरिया के प्रभावों से इतना पीड़ित हूं, तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकती कि मेरे बच्चे के साथ क्या हो रहा होगा।”