जलवायु

ब्रह्मपुत्र का विलाप

स्थानीय समुदाय अपने गीत से सब कुछ गवां देने का दर्द व्यक्त कर रहे हैं। हमने ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे यात्रा की और उनके गाने रिकॉर्ड किए।

प्राचीन काल से लेकर अब तक सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक और पर्यावरणीय परिवर्तन को नई पीढ़ी ने गीतों के माध्यम से जाना और समझा है। गीत यानी स्वर, पद और ताल से युक्त वह गान, जिसने कभी सुनने वालों में जोश भरा, तो कभी मायूस हो चुके लोगों में आशा और खुशी की लहर दौड़ाने का काम किया। कभी अपनों को खोने का दर्द महसूस कराया, तो कभी विरह की अग्नि का आभास कराया, तो कभी भक्त की करुण पुकार सुन कर स्वयं प्रभु भी दौड़े चले आए।

कई लोकप्रिय गायकों ने अपने गीतों के जरिये जलवायु संकट के प्रभाव को उकेरने के साथ ही लोगों को इस संकट के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया, जिनमें अमेरिकन गायिका बिली इलिश का ‘ऑल द गुड गर्ल्स गो टू हेल’, ब्रिटिश संगीतकार केली ओवेन्स का ‘मेल्ट’, ब्रिटिश गायिका एनोहनी का ‘4 डिग्री’ आदि कुछ नाम शामिल हैं। इसी तरह पूर्वोत्तर भारत के असम में गीतकारों ने अपने गीतों के जरिये प्रकृति के बदलाव और प्रकोप का दर्द बखूबी बयां किया है।

इन गीतों में बयां दर्द से लोगों को रुबरू कराने के लिए The Third Pole ने असम में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे यात्रा की और कई गाने रिकॉर्ड किए। 

असम और जलवायु परिवर्तन

असम जलवायु परिवर्तन के मामले में बेहद संवेदनशील है। राज्य का अधिकांश भाग ब्रह्मपुत्र के बेसिन में है। ब्रह्मपुत्र एक ऐसी नदी है, जिसने इतिहास में कई बार अपनी गहराई और चौड़ाई बदली है। जलवायु परिवर्तन के चलते अब बाढ़ और विकराल रूप धारण करती जा रही है, जबकि कटाव होने की प्रक्रिया पहले की अपेक्षा और बढ़ गया है क्योंकि नदी में पहले की तरह गाद नहीं रह गई है। गाद अब ऊपर की ओर बांधों में फंस रही है। यह सब वर्ष 1950 में आए 8.7 तीव्रता के भूकंप के बाद और भीषण हो गया, जिसने इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति को बदल दिया। इसके बाद से नदी के किनारे पर रहने वाले लोगों का बड़े पैमाने पर विस्थापन शुरू हो गया, जोकि अब और तेज हो गया है। इनमें से कई लोगों ने ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे अपने घरों और आजीविका खोने के दर्द को बयां करने के लिए गीतों का सहारा लिया।

विस्थापन का दर्द बयां करते गीत

सुनें हिंदू-मुसलमान/बोली एकती दुखेर गान/ब्रह्मपुत्र भिंगा निलो ताराबारी ग्राम यानी कि हिंदू-मुस्लिम सुनो/ मुझे एक दर्द भरा गीत गाने दो/ब्रह्मपुत्र ने तबाह किया ताराबारी गांव आदि। 

72 वर्षीय मोइनुल भुयान के गीत के शुरुआती बोल एक ऐसे मुद्दे का उल्लेख करते हैं, जिसने यहां के रहने वाली सभी लोगों को प्रभावित किया, कोई भी उससे अछूता नहीं रहा, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय को क्यों न हो। भुयान का गीत उनके गांव ताराबारी के बारे में है, जो भूकंप आने के बाद ब्रह्मपुत्र नदी में बह गया था। भुयान याद करते हुए बताते हैं, ”1950 के दशक से पहले ताराबारी एक बड़ा व्यापारिक केंद्र था। एक पारंपरिक डॉकयार्ड था, जहां बड़े जहाज व्यापार और वाणिज्य के लिए आकर रुकते थे। हम वहां से जूट का व्यापार करते थे।

वीडियो: Chandrani Sinha / The Third Pole

ताराबारी असम के बारपेटा जिले में था, जहां स्कूल, कॉलेज, एक पुस्तकालय, एक अस्पताल, मंदिर और मस्जिद, पुलिस स्टेशन और एक खेल का मैदान भी था। भूकंप के बाद आई बाढ़ में यह सब बह गया और आज ताराबारी के लोग पूरे राज्य और उसके बाहर बिखरे हुए हैं।” त

ाराबारी के पूर्व निवासी मुशर्रफ खान अब बारपेटा के एक इस्लामिक मदरसा में पढ़ाते हैं। मुशर्रफ खान ने कहा, ” अगर ब्रह्मपुत्र ने ताराबारी को हमसे नहीं छीना होता, तो मुझे नहीं लगता कि मुझे किसी छोटे स्कूल में सेवा देने की आवश्यकता पड़ती।

वीडियो: Chandrani Sinha / The Third Pole

मिसिंग लोग के गाने

असम और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में रहने वाला समुदाय मिसिंग, जिसे मिरी भी कहा जाता है। इन लोगों ने जब से होश संभाला है, तब से अपने पुरखों को नदी के किनारे ही रहते देखा है। ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे करीब सात लाख से अधिक मिसिंग समुदाय के लोग रह रहे हैं।

सदियों से उन्होंने बाढ़ में अपना सब कुछ तबाह होते देखना और फिर से उसी मलबे पर अपनी झोपड़ियों को बनाना और जिंदगी को नए सिरे से शुरू करना सीखा है। ये झोपड़ियां बांस से बनी होती हैं और जरूरत पड़ने पर आसानी से बन जाती हैं, लेकिन अब यहां रहने वाले लोगों की समस्या यह है कि उनके पैरों तले से जमीन ही खिसकती जा रही है और बड़ी संख्या में लोग बेघर होते जा रहे हैं। ऐसे कई बेघर हुए लोग माजुली में रह रहे हैं। माजुली ब्रह्मपुत्र नदी पर एक द्वीप है, जो लगातार डूबता जा रहा है।

55 वर्षीय नीलामोनी नगेटी ने बताया कि कैसे उनके रिश्तेदारों और पड़ोसियों को यहां से अपना सबकुछ छोड़कर जाना पड़ा क्योंकि नदी उनके खेतों और घरों को अपने साथ बहा ले गई। उन्होंने बताया, “हमने आंधी, भारी बारिश, बाढ़ देखी। हमारे दादा-दादी उस समय हमारी रक्षा करते थे। हम अभी भी डरते थे। वे भयानक दृश्य हमारे जेहन में अब भी ताजा हैं।” उनका गीत ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बाढ़ और लोगों के बीच संबंधों के बारे में है।

वीडियो: Chandrani Sinha / The Third Pole

मिसिंग जनजाति की तरह ही देवरी जनजाति के लोगों भी रहते हैं, जिनका एक पूरा कबीला बाढ़ में लापता हो गया। भारतीय देवरी समुदाय की एक 45 वर्षीय महिला ने कहा, “हम बाढ़ के कारण सादिया से चले गए। देवरियों के अलग-अलग कुल हैं। प्रवासन में एक कबीला पूरी तरह से लापता हो गया था, जो आज तक नहीं मिला।”

देवरी समुदाय के लोग एक प्रेम गीत गाते हैं, जो अपने प्रिय को खोने के दर्द की तुलना बाढ़ से आई तबाही से करते हैं।

वीडियो: Chandrani Sinha / The Third Pole

यूनान के लोग

सदियों पहले चीन के यूनान से ताई फाके लोग पूर्वी असम के नाहरकटिया चले गए। राज्य का एकमात्र बौद्ध समुदाय के ये लोग ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियों में से एक बूढ़ी दिहिंग नदी के किनारे रहते हैं। कटाव होते-होते नदी नाम फाके गांव में स्थित उनकी प्राचीन मानस्टेरी की दीवारों तक पहुंचने लगी है।

60 वर्षीय अम चाव चाखप ने बताया कि ताई फाके लोग जातीय रूप से थाई थे और सदियों पहले भारत आकर बस गए थे क्योंकि भूमि इतनी उपजाऊ थी। चाखप याद करती है, ” हमने वो बुरा वक्त भी देखा, जब नदी हमारे गांव का एक हिस्सा अपने साथ बहा ले गई थी। नदी उफान पर थी, सब कुछ बहाकर ले जा रही थी और हम देख रहे थे। हालांकि, नदी के हम कई प्रकार से ऋणी भी हैं। यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है, लेकिन हर साल आने वाली बाढ़ और कटाव होने के कारण बहुत सारे लोग हमारे गांव से पलायन कर गए हैं।”

वीडियो: Chandrani Sinha / The Third Pole

चाय जनजाति

19वीं शताब्दी में अंग्रेज पूरे भारत से लोगों को चाय बागानों में काम करने के लिए असम ले गए। बाद में ये लोग यहीं बस गए और इन श्रमिकों को चाय जनजाति यानी कि टी ट्राइब्स समुदाय के रूप में जाना जाता है।

टी ट्राइब्स समुदाय के नेता भद्रा रजवार ब्रह्मपुत्र की एक अन्य सहायक नदी दिखो के पास नजीरा में रहते हैं। वे जलवायु परिवर्तन पर गीत गाते हैं, जिनमें बताते हैं कि कैसे कुछ चाय बागान मजदूर खेती करना चाहते थे और उन्होंने इसकी शुरुआत भी की, लेकिन खेतों का बाढ़ में कटाव हो गया।

उन्होंने अपनी जमीन खो दी और कर्ज में डूब गए क्योंकि उन लोगों ने खेती को पट्टे पर लेने के लिए उधार लिया था। रजवार ने कहा कि नदी में बाढ़ आने के चलते बहुत सारे चाय बागान भी नष्ट हो गए। यह समुदाय के लिए एक बड़ी क्षति रही।

वीडियो: Chandrani Sinha / The Third Pole

भाषा अलग, लेकिन दुख एक जैसा

55 वर्षीय खगेन संन्यासी एक स्थानीय रेडियो स्टेशन पर बंगाली भाषा के नियति गायक हैं, जिन्होंने जलावयु परिवर्तन के चलते अप्रत्याशित बाढ़ के चलते गरीब और बेघर लोगों पर कई गीत गाए।

असम की राजधानी गुवाहाटी से लगभग 100 किलोमीटर पूर्व में मोरीगांव जिले के एक छोटे से गांव भूरागांव के निवासी संन्यासी ने बताया कि उनके परिवार की जमीन नदी के कटाव में चली गई। संन्यासी कहते हैं कि यह एक पागल नदी है, हर साल हम लोगों को बेघर और वंचित बनाने की योजना बनाती है।

अपने गीतों में उन्होंने अपने सभी दुखों के लिए ब्रह्मपुत्र नदी को दोषी ठहराया। उन्होंने प्रभावित क्षेत्रों को सूचीबद्ध भी किया है।

वीडियो: Chandrani Sinha / The Third Pole

All illustrations: Vipin Sketchplore

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