शहर ग्रीन हाउस उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत हैं। दरअसल, विश्व स्तर पर ग्रीन हाउस गैसों के कुल उत्सर्जन में तकरीबन 60 फीसदी हिस्सेदारी शहरों की है। और जैसा कि हमें पता ही है कि हमारा वातावरण, इन्हीं ग्रीन हाउस गैसों के कारण गर्म हो रहा है। मौजूदा समय में, शहरी क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति बेहद संवेदनशील हो चुके हैं। एशिया में यह स्थिति खास तौर पर है, जहां 100 शहरों में से 99 शहर, पर्यावरण संबंधी जोखिमों के लिहाज से सबसे गंभीर हालात में हैं।
इसलिए कई शहर, ऐसी योजनाएं बना रहे हैं जो बदलती जलवायु के अनुकूल होने के साथ ही उत्सर्जन को भी कम करने वाली हों। इन योजनाओं में बहुत कुछ समान है, और विभिन्न शहरों के लिए एक-दूसरे से सीखने की काफी गुंजाइश है।
दक्षिण एशिया के 14 शहरों ने 2012 से अर्बन लो इमिशंस डेवलपमेंट स्ट्रेटेजी (अर्बन-लेड्स) को अपनाया है या उसके साथ सहयोग कर रहे हैं। यह शहरों में उत्सर्जन को कम करने की एक रणनीति है। अर्बन-लेड्स, यूएन-हैबिटेट और एनजीओ आईसीएलईआई की एक पहल है, जो शहरों के साथ मिलकर ऐसे विकास को गति देने के लिए काम करता है जिसमें उत्सर्जन कम हो, जो रेजिलिएंट यानी लोचशील हो और इन्क्लूसिव यानी समावेशी, मतलब सबको साथ लेकर चलने वाला हो। यह मौजूदा समय में चल रही विकास योजनाओं और प्रक्रियाओं में ही इसे जोड़कर काम करता है। इसका उद्देश्य शहरों को उस स्तर पर लाना है जो आर्थिक उत्पादकता सुनिश्चित करते हुए सभी को स्थायी रूप से बुनियादी सेवाएं प्रदान करते हैं।
बांग्लादेश में नारायणगंज व राजशाही, और भारत में नागपुर व ठाणे ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने आईसीएलईआई दक्षिण एशिया के साथ साझेदारी में अर्बन-लेड्स का उपयोग, अपनी अनुकूलन योजनाओं (ऐडैप्टेशन प्लांस) को विकसित करने के लिए किया है।
कार्बन डाइऑक्साइड में भारी कटौती करेगा नारायणगंज
2022 में तैयार, नारायणगंज के ऐडैप्टेशन प्लान के हिसाब से 2026-27 तक वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 12.6 फीसदी की कमी लाने का प्रयास करना है। इसका बेसलाइन वर्ष 2018-19 है। ऐसा करने के लिए, इस शहर की सरकार ने 2026-27 तक प्रति वर्ष 133,346 टन कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने की क्षमता की पहचान की है। इसके अलावा, जलवायु संबंधी स्थानीय खतरों से निपटने के लिए ठोस अपशिष्ट, भवनों, परिवहन, जल आपूर्ति, स्ट्रीट लाइटिंग, अपशिष्ट जल व जल निकासी, शहरी जैव विविधता व एयर क्वालिटी के इर्द-गिर्द काम करने की योजना है।
नारायणगंज ने चार वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणाली (एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग सिस्टम्स) स्थापित की हैं, जो प्रमुख स्थानों पर डिस्प्ले बोर्ड के जरिए नागरिकों को जानकारी प्रदान करती हैं। दो सार्वजनिक इमारतों पर रूफटॉप सोलर पैनल सिस्टम से लगभग 15,023 किलोवाट घंटा की ऊर्जा बचत हुई है और प्रत्येक भवन के हिसाब से 9,735 टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम हुआ है। शहर की सरकार ने, अपने सतही जल स्रोतों और नेटवर्क (सरफेस वाटर सोर्सेज एंड नेटवर्क्स) को दोबारा से दुरुस्त करने के लिए फंडिंग की भी मांग की है।
गर्मी से बचने का राजशाही का तरीका
राजशाही की योजना ने एक ऐसे शहर का विचार दिया है जहां उत्सर्जन में कटौती के साथ ही, सूखे, गर्मी और पानी की कमी जैसे खतरों का भी समाधान खोजा जा सकता है।
स्थानीय सरकार 2026-27 तक हर साल, अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 9.64 फीसदी तक कम करना चाहती है। इसका बेस लाइन 2017-18 है। इसका क्लाइमेट रेजिलिएंट सिटी एक्शन प्लान, जो कि अर्बन-लेड्स का हिस्सा है और दिसंबर 2021 में इसको मंजूरी मिली थी, हर साल 60,748 टन कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने की क्षमता की पहचान करता है। इसके साथ ही, यह नारायणगंज जैसे कई अन्य क्षेत्रों में जलवायु संबंधी स्थानीय खतरों के समाधान की भी बात करता है। जैव विविधता से समृद्ध और इकोसिस्टम संबंधी सेवाओं को सहयोग देने वाले एक पब्लिक स्पेस के लिए, नदी तटबंध में एक डेमन्स्ट्रेशन प्रोजेक्ट के साथ एक सिटी-लेवल नेचुरल एसेट मैप तैयार किया गया था।
ऊर्जा दक्षता, इस योजना की एक प्रमुख विशेषता थी। राजशाही नगर निगम ने अपने कार्यालय को ऊर्जा-दक्ष यानी एनर्जी-इफिशन्ट उपकरणों से सुसज्जित किया। शहर भर में, यह बिजली की खपत को सालाना 10.7 फीसदी कम करने की योजना बना रहा है। और इलेक्ट्रिक मिनी बसेस के लिए फंडिंग की भी मांग की है।
उत्सर्जन में 20 फीसदी की कटौती करेगा नागपुर
2018 में नागपुर ने हीट एक्शन प्लान के साथ शुरुआत की जिसे सबसे पहले अहमदाबाद में विकसित किया गया था और तब से इसे दक्षिण एशिया के कई शहरों द्वारा अपनाया गया है। इसकी अर्बन-लेड्स योजना का कहना है कि यह 2017-18 के स्तर से 2025 तक उत्सर्जन को 20 फीसदी तक कम कर देगी। साथ ही, इसमें 2025-26 तक प्रति वर्ष 614,376 टन के बराबर कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने के लिए जरूरी उपायों की पहचान की गई है।
नागपुर की सिटी गवर्नमेंट भी, शहर में जैव विविधता को बढ़ाने पर ध्यान देना चाहती थी। लोकल गवर्नमेंट ने शहर के पेड़ों के एक हिस्से का सर्वेक्षण किया। शहर भर में प्राकृतिक संपत्ति यानी नेचुरल एसेट का नक्शा तैयार करवाया और जागरूकता बढ़ाने के लिए एक ट्री हैंडबुक वितरित करवाया। दो सरकारी स्कूलों में ग्राउंडवाटर रिचार्ज यानी भूजल पुनर्भरण की निगरानी करने वाले सेंसर्स के साथ रेनवाटर-हार्वेस्टिंग सिस्टम्स यानी वर्षा जल संचयन प्रणाली स्थापित की गई है। नागपुर में अब बच्चों का ‘क्लाइमेट रेजिलिएंट पार्क’ भी है। इसका फोकस स्थानीय प्रजातियों, अर्बन फार्मिंग, बर्ड फीडर्स, रेनवाटर हार्वेस्टिंग, एक सेंसरी वॉकवे, ट्री लेबल्स और सस्टेनेबल लाइफस्टाइल्स पर सूचना बोर्ड लगाने पर है।
सिटी गवर्नमेंट ने साइकिलें खरीदने के लिए फंडिंग की मांग की है। इन साइकिलों को बस स्टॉप और रेलवे स्टेशनों पर उपलब्ध कराने की योजना है। यहां किराये पर साइकिल लेकर लोग अपने नजदीकी गंतव्य पर जा सकेंगे। लास्ट-माइल कनेक्टिविटी के लिहाज से यह पहल बेहद महत्वपूर्ण हो सकती है।
ठाणे में प्राकृतिक बाढ़ नियंत्रण
ठाणे शहर की सरकार का लक्ष्य 2025-26 तक वार्षिक उत्सर्जन को 22 फीसदी तक कम करना है। इसका बेसलाइन 2017-18 है। इसने 2025-26 तक वार्षिक आधार पर 511,338 टन के बराबर कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने के लिए जरूरी उपायों की पहचान की है।
ठाणे उच्च वर्षा वाले क्षेत्र में है और समुद्र के स्तर में वृद्धि के प्रभावों का भी सामना करता है। अर्बन-लेड्स परियोजना के तहत विकसित ठाणे अर्बन फ्लड अलर्ट नेटवर्क का बाढ़ के मामले में परीक्षण पहले ही किया जा चुका है। सरकार का अनुमान है कि शहर में पेड़, मैंग्रोव और मिट्टी 16 लाख टन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड को अलग कर सकते हैं।
स्थानीय सरकार ने शहर की अति संवेदनशीलता में योगदान के रूप में शहर के लोकेशन, अनधिकृत बस्तियों, अतिक्रमण, अपर्याप्त शहरी बुनियादी ढांचे व परिवहन, बुनियादी नगरपालिका सेवाओं तक अपर्याप्त पहुंच और खराब आर्थिक स्थितियों जैसे कारकों की पहचान की है।
एक जैसी प्राथमिकताएं, एक जैसे समाधान
इन चार शहरों के साथ ही साथ पूरे दक्षिण एशिया में हजारों शहर इसी तरह की अनेक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। मसलन, अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का कारण है, और हरित आवरण का नुकसान भी कर रही है।
इन समस्याओं से निपटने के उपाय भी एक जैसे हैं। इन योजनाओं में आमतौर पर अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार, वृक्षों के आवरण को बढ़ाने और इंस्टीट्यूशन बिल्डिंग्स के ऊपर सोलर रूफटॉप सिस्टम्स स्थापित करने की शुरुआत इत्यादि हैं। अर्बन-लेड्स परियोजना के तहत, शहरों की सरकारें अपने अनुभवों-चुनौतियों और सफलताओं दोनों का आदान-प्रदान करती हैं। इन सबको देखते हुए कहा जा सकता है कि शहरी अनुकूलन योजनाओं यानी अर्बन ऐडैप्टेशन स्कीम्स में अधिक क्षेत्रीय सहयोग की काफी गुंजाइश है।
यह कार्य विश्व बैंक, ICIMOD और द् थर्ड पोल के बीच एक सहयोगी संपादकीय श्रृंखला का हिस्सा है जो “दक्षिण एशिया में जलवायु रेज़िलिएंस के लिए क्षेत्रीय सहयोग” पर जलवायु विशेषज्ञों और क्षेत्रीय आवाज़ों को एक साथ लाता है। लेखक द्वारा व्यक्त किए गए विचार उनके अपने हैं। इस सीरीज़ को यूनाइटेड किंगडम के विदेश, राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय द्वारा प्रोग्राम फॉर एशिया रेज़िलिएंस टू क्लाइमेट चेंज – विश्व बैंक द्वारा प्रशासित एक ट्रस्ट फंड के माध्यम से फंड किया गया है।