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जम्मू और कश्मीर में निर्माण परियोजनाओं की दिक्कतों से जूझ रहे निवासियों को सताने लगा लिथियम माइनिंग का डर

जम्मू और कश्मीर के अधिकारी, रियासी में लिथियम माइनिंग की तैयारी कर रहे हैं। इस पहाड़ी जिले में, बुनियादी ढांचे से जुड़ी बड़ी परियोजनाओं के अनुभवों को देखते हुए, स्थानीय लोगों को पर्यावरण और समाज पर इसके नकारात्मक प्रभावों का डर सता रहा है।
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<p><span style="font-weight: 400;">जम्मू और कश्मीर के रियासी जिले का सलाल गांव। यह तस्वीर 2 अप्रैल, 2023 के शाम की है। (फोटो: आशीष कुमार कटारिया)</span></p>

जम्मू और कश्मीर के रियासी जिले का सलाल गांव। यह तस्वीर 2 अप्रैल, 2023 के शाम की है। (फोटो: आशीष कुमार कटारिया)

इस साल फरवरी में भारत की प्रमुख वैज्ञानिक एजेंसी ने घोषणा की कि उसे 59 लाख टन लिथियम भंडार के “अनुमानित स्रोत” मिले हैं। यह घोषणा जम्मू और कश्मीर के रियासी ज़िले में रहने वाले लोगों के लिए खुशी की बात नहीं थी। सरकार ने पहले ही इस ज़िले में कीमती लिथियम के खनन की सुविधा के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। इस बीच यहां के रहने वालों, जिनकी आय का प्रमुख स्रोत कृषि है, को डर सता रहा है कि लिथियम खनन से उनकी भूमि और आजीविका का नुकसान होगा।

द् थर्ड पोल के साथ बात करने वाले निवासियों के अनुसार, इस अविकसित ज़िले में रहने वाले लोगों ने सलाल जलविद्युत परियोजना जैसी बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं से केवल नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों का अनुभव किया है।

वैश्विक लिथियम भंडार

लिथियम एक महत्वपूर्ण लेकिन काफ़ी दुर्लभ खनिज है। यह लिथियम-आयन बैटरी के उत्पादन के लिए ज़रूरी है। लिथियम-आयन बैटरियां, मौजूदा इलेक्ट्रिक वाहनों के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण हैं। अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार, दुनिया में केवल 9.8 करोड़ टन लिथियम भंडार हैं। इसमें भारत के संभावित भंडारों की गिनती नहीं है। 

अगर भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा लगाया गया अनुमान सही निकलता है और वहां 59 लाख टन लिथियम मिलता है तो इसका मतलब यह होगा कि भारत के पास दुनिया का 8वां सबसे बड़ा लिथियम भंडार है।

रियासी ज़िले के सलाल गांव के 47 वर्षीय रवि दास को अपने खेतों को खोने का डर है। द् थर्ड पोल के साथ बातचीत में वह कहते हैं, “मेरी पूरी आजीविका [मेरी भूमि] पर निर्भर है, लेकिन अगर खनन शुरू होता है, तो इसे छीन लिया जाएगा, और मैं असहाय हो जाऊंगा।” उनका यह भी कहना है, “साथ ही कई अन्य लोगों की भूमि ली जाएगी। हमें पर्यावरण के नुकसान के परिणाम भुगतने होंगे … मेरे पास कुछ भी नहीं बचेगा।”

Ravi Das, 47, a resident of Salal village in Reasi district, Jammu and Kashmir stands in his agricultural field which he believes will be taken away after lithium mining kicks off in the coming years.
जम्मू और कश्मीर के रियासी जिले के सलाल गांव के निवासी, 47 वर्षीय रवि दास उसी खेत में खड़े हैं, जिसके बारे में उनका मानना है कि क्षेत्र में लिथियम माइनिंग शुरू होने पर इसे ले लिया जाएगा। (फोटो: आशीष कुमार कटारिया)

सरकार ने 1970 के दशक की शुरुआत में सलाल जलविद्युत बांध परियोजना के लिए दास के परिवार की भूमि का अधिग्रहण किया था। उस समय रवि दास बच्चे थे। लेकिन वह याद करते हैं कि मुआवजा बहुत कम था। जब द् थर्ड पोल ने अधिकारियों से मुआवजे की राशि और नीतियों के बारे में पूछा, तो उन्होंने कोई विवरण साझा करने से इनकार कर दिया। 

निवासियों का कहना है कि बांध परियोजना के कारण वनों की कटाई हुई, पहाड़ियों और सड़कों का कटाव हुआ, और उनकी दीवारों में दरारें आने के बाद कई घर नष्ट हो गए।

1987 में शुरू हुए बांध के जलाशय में, एक साल के भीतर गाद जमने लगी थी। इसने 1988 और 1992 में दो बड़ी बाढ़ों के प्रभाव को बढ़ा दिया। बाद में, दो पुल बह गए जिनसे इस इलाके को बहुत जरूरी कनेक्टिविटी प्राप्त थी। बाढ़ ने न केवल बांध परियोजना को प्रभावित किया, बल्कि कई निवासियों को सलाल से जिले के अन्य हिस्सों में जाने के लिए मजबूर किया।

42 साल के करतार नाथ याद करते हैं कि कैसे करीब 15 साल पहले सलाल के कई घरों की दीवारों में दरारें आने लगी थीं। स्थानीय लोगों ने सुझाव दिया कि यह बांध निर्माण का परिणाम था। लेकिन कोई आधिकारिक जांच नहीं की गई। बांध के अधिकारियों ने संपर्क करने पर द् थर्ड पोल के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करने से इनकार कर दिया और सुझाव दिया कि हम भारत सरकार से संपर्क करें। 

सलाल के एक अन्य निवासी महेश्वर सिंह कहते हैं कि निवासियों को यह नहीं पता था कि मुआवजे के लिए अधिकारियों से कैसे संपर्क किया जाए। इसलिए ग्रामीणों ने खुद मरम्मत के लिए भुगतान किया।

नाथ कहते हैं, “अब, लिथियम के बारे में सुनने के बाद, मुझे यह सोचना होगा कि हमारा भविष्य क्या होगा और हमें कहां जाना है। अगर मुझे यहां से जाना है, तो मुझे जीरो से शुरू करना होगा क्योंकि इस छोटी सी दुकान के अलावा मेरी और कोई आय नहीं है।”

Kartar Nath, 42, fears the loss of the network of clients he has built over the years in
Salal village if he has to move due to lithium exploration and mining. (Image : Ashish Kumar Kataria)
अगर लिथियम के लिए खोज और खनन का काम शुरू हो गया तो 42 वर्षीय करतार नाथ को अपनी यह दुकान छोड़कर कहीं और जाना होगा। इससे उन्हें सलाल गांव में वर्षों से बनाए गए ग्राहकों के नेटवर्क को खोने का डर है। (फोटो: आशीष कुमार कटारिया)
Nath shows a photograph while pointing to the cracks found on the walls of his house some 15 years back due to the construction of a dam in the nearby area of Salal. (Image: Ashish Kumar Kataria)
इस तस्वीर में, नाथ उन दरारों की ओर इशारा करते हैं, जो 15 साल पहले उनके घर की दीवारों पर, पास के एक बांध के निर्माण के बाद दिखाई दी थीं (फोटो: आशीष कुमार कटारिया)
The Salal Hydro Power Project as seen from Jyotipur village in Reasi district of Jammu and Kashmir. (Image: Ashish Kumar Kataria)
जम्मू और कश्मीर के रियासी जिले के ज्योतिपुर गांव से दिख रहा सलाल जलविद्युत बांध (फोटो: आशीष कुमार कटारिया)

रियासी में जल संकट

रवि दास यह भी कहते हैं कि दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे पुल, चिनाब रेल ब्रिज के निर्माण के बाद बारहमासी धाराओं यानी स्ट्रीम्स के सूख जाने से, रियासी के कई गांव, पर्याप्त पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वह कहते हैं, “अधिकांश गांव पीने के पानी के लिए विभिन्न संसाधनों पर निर्भर हैं क्योंकि घरों में पाइप कनेक्शन नहीं हैं। ऐसे में या तो पानी के टैंकर आते हैं, या हमें बर्तनों में पानी इकट्ठा करने के लिए पास के झरनों तक जाना पड़ता है।” 

सरकारी स्वामित्व वाले उत्तर रेलवे द्वारा एक पुल का निर्माण 2004 में शुरू हुआ था। इसके पूरा होने का लंबा इंतजार किया गया। अब इसके दिसंबर 2023 तक पूरा होने की संभावना है। 2015 में, ग्राम मोढ़ और बक्कल गांव के बीच 6 किमी लंबी रेलवे सुरंग के निर्माण से सड़कें कट गईं। वनों की कटाई हुई। इन सबकी वजह से एक स्ट्रीम, अंजी, सूख गई, जिससे पांच गांव (सेर मेघन, सरहनपुरा, बक्कल, सेर सोंधावन और ब्लाडा) बिना पानी के हो गए।

A boy carries a bucket of water after filling it from a nearby spring at Kauri village of Reasi
रियासी जिले के कौरी गांव के पास झरने से पानी की बाल्टी ले जाता एक लड़का (फोटो: आशीष कुमार कटारिया)
A tanker being filled with water from a spring to be transported in surrounding villages of Reasi
पानी की कमी का सामना कर रहे रियासी जिले के आसपास के गांवों में ले जाने के लिए एक झरने के पानी से भरा एक टैंकर (फोटो: आशीष कुमार कटारिया)
Overview of Chenab Rail Bridge visibly showing the hill and road cutting in between Bakkal and Kauri villages of Reasi district in Jammu and Kashmir. (Image : Ashish Kumar Kataria)
निर्माणाधीन चिनाब रेल ब्रिज के इस दृश्य में, रियासी जिले के बक्कल और कौड़ी गांवों के बीच पहाड़ी और सड़क की कटाई साफ देखी जा सकती है। यह पुल उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक परियोजना (यूएसबीआरएल) के अंतर्गत आता है, जो पहली बार शेष भारत से कश्मीर घाटी को हर मौसम में रेल संपर्क प्रदान करेगा। 
(फोटो: आशीष कुमार कटारिया)

रियासी के जिला विकास परिषद के अध्यक्ष और कश्मीर प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी सराफ सिंह नाग के अनुसार, “जिले में कटरा शहर और सवालाकोट गांव के बीच रेलवे विभाग द्वारा 13 भूमिगत सुरंगों का निर्माण किया गया है। 

इन सुरंगों के निर्माण के लिए रेलवे द्वारा की जा रही भूमिगत गतिविधियों के कारण, पांच गांवों को भारी जल संकट का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि सभी भूजल स्रोत या तो सूखने लगे हैं या ट्यूब्स से रसायनों के रिसाव के कारण प्रदूषित हो गए हैं। यहां तक कि पिछले सात वर्षों में भूजल भी 60 फीसदी तक गिर गया है, जिससे लोग पानी के टैंकरों पर निर्भर हैं। अब, 90 फीसदी गांवों को लिफ्ट इरिगेशन का उपयोग करके पानी उपलब्ध कराया जा रहा है, जबकि अन्य गांवों को गुरुत्वाकर्षण स्रोतों का उपयोग करके पानी उपलब्ध कराया जा रहा है।”

उत्तर रेलवे ने इन मुद्दों पर टिप्पणी करने के द् थर्ड पोल के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया, लेकिन यह स्वीकार किया कि वे निवासियों की पानी की कुछ जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रभावित गांवों में पानी के टैंकर उपलब्ध करा रहे हैं।

उस क्षेत्र के पांच गांवों में जहां पारंपरिक वाटर फ्लोर मिल्स चलती थीं, पानी के संकट के कारण सभी मिल मालिकों ने अपना कारोबार बंद कर दिया है। मिल के पुराने वर्कर्स या तो दिहाड़ी करने लगे हैं या बेरोजगार हैं।

A view of the tunnel from the under-construction site of the Chenab Rail Bridge
जम्मू और कश्मीर के रियासी जिले में चिनाब रेल पुल निर्माण स्थल पर एक सुरंग (फोटो: आशीष कुमार कटारिया)
Perennial streams emerging from the Chenab river, which flows through various villages of Reasi, can be seen in a dried state from the rail bridge site between Bakkal and Kauri
किसी वक्त रियासी के विभिन्न गांवों से होकर बहने वाली बारहमासी धाराएं, अब रेल पुल स्थल से सूखी देखी जा सकती हैं (फोटो: आशीष कुमार कटारिया)

द् थर्ड पोल से बात करने वाले निवासियों का दावा है कि उन्होंने मदद के लिए विभिन्न विभागों, अधिकारियों और मंत्रियों से संपर्क किया है, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। 

नाग का कहना है कि जब केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दिसंबर 2021 में रियासी का दौरा किया था, तो उन्हें “जल स्रोतों की कमी के बारे में बताया गया था और निवासियों ने  अपनी चिंताओं को उनसे साझा किया था”।

नाग ने द् थर्ड पोल को बताया कि दौरे के बाद, वैष्णव ने वाटर एंड पावर कंसल्टेंसी सर्विसेज लिमिटेड (डब्ल्यूएपीसीओएस) – भारत सरकार का उद्यम – की एक टीम से एक विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन करने के लिए कहा था। इस अध्ययन, इसके दायरे, कंपोजीशन या निष्कर्ष के बारे में कोई सार्वजनिक जानकारी नहीं है। नाग के मुताबिक, “टीम ने सिर्फ बक्कल गांव का दौरा किया…और वहां के लोगों और टीम के बीच गलतफहमियों के चलते टीम ने रिपोर्ट को यह कहकर खत्म किया कि पानी का संकट सिर्फ एक गांव में है, दूसरे गांवों में नहीं। रिपोर्ट के बाद, आश्चर्यजनक रूप से, बक्कल के लिए जलापूर्ति योजना की घोषणा की गई, लेकिन अन्य प्रभावित गांवों के लिए ऐसा नहीं हुआ।”

Photographs showing sediments mixed with Chenab river and its tributaries due to the construction of the Chenab Rail Bridge. The dumping of debris has led to the contamination of the water of the Chenab river which is used for drinking and other activities.
Photographs showing sediments mixed with Chenab river and its tributaries due to the construction of the Chenab Rail Bridge. The dumping of debris has led to the contamination of the water of the Chenab river which is used for drinking and other activities.
चिनाब नदी में तलछट दिखाती तस्वीरें। निवासियों का कहना है कि रेल पुल निर्माण से निकलने वाले मलबे के कारण नदी का पानी दूषित हो गया है, जिसका उपयोग पीने और अन्य उद्देश्यों के लिए किया जाता है। (फोटो: आशीष कुमार कटारिया)

नाग पुल निर्माण से संबंधित पहाड़ी और सड़क काटने से निकले मलबे की अनुचित डंपिंग को लेकर भी चिंतित हैं। वह कहते हैं, “नियमों के अनुसार, इंजीनियरिंग परियोजना में मलबा डंप करने के लिए एक डंपिंग साइट है। लेकिन चिनाब रेल ब्रिज के निर्माण के दौरान, मलबा सीधे चिनाब नदी में फेंक दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप इसका पानी दूषित हो गया और यह किसी भी गतिविधि के लिए अनुपयोगी हो गया … हमने रेलवे से संपर्क किया, लेकिन फिर से वही हुआ, उठाए गए मुद्दे को उन्होंने नजरअंदाज कर दिया। यह बहुत परेशान करने वाला और चिंताजनक है।” द् थर्ड पोल द्वारा इस बारे में पूछे जाने पर उत्तर रेलवे ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

हम दूषित पानी का सेवन करते हैं। अगर कोई बीमारी फैलती है तो कौन जिम्मेदार होगा? हम किसके पास जाएं, यहां कोई सुनने वाला नहीं है।
रियासी के अरनास गांव की रहने वाली उषा देवी

चिनाब नदी की ओर इशारा करते हुए, जिसे उनके घर से देखा जा सकता है, रियासी के अरनास गांव की 39 वर्षीय उषा देवी कहती हैं: “निर्माण सामग्री के भंडार चिनाब नदी और उसकी सहायक नदियों में मिल गए हैं। उसी पानी को हम पीने और घरेलू कामों में इस्तेमाल करते हैं। हम दूषित जल का सेवन करते हैं – यदि कोई बीमारी फैलती है, तो कौन जिम्मेदार होगा? हम किसी के भी पास जाएं, हमारी बात सुनने के लिए यहां कोई नहीं है और यह विस्थापन का एक और कारण होगा।”

An agricultural field in the Salal village of Reasi district in Jammu and Kashmir. The farmers practise step farming for mostly growing maize and wheat. (Image: Ashish Kumar Kataria)
जम्मू और कश्मीर में रियासी जिले के सलाल गांव में एक कृषि क्षेत्र। किसान ज्यादातर मक्का और गेहूं उगाने के लिए सीढ़ीदार खेती करते हैं। (फोटो: आशीष कुमार कटारिया)

लिथियम खनन का दीर्घकालिक प्रभाव

लिथियम निकालने की पर्यावरणीय लागत महत्वपूर्ण हो सकती है, क्योंकि इस गतिविधि के लिए बड़ी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, और इसके परिणामस्वरूप वायु और जल प्रदूषण होता है। ऊर्जा-गहन, खनन प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप उच्च कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन होता है। साथ ही, बड़े पैमाने पर खनिज अपशिष्ट उत्पन्न होता है।

वायर्ड की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, एक टन लिथियम का उत्पादन करने में लगभग 20 लाख लीटर पानी लगता है। और चिली के सालार डी अटाकामा क्षेत्र में लिथियम खनन में “क्षेत्र के पानी का 65 फीसदी” खपत होता है।

कश्मीर में श्रीनगर के एक भूविज्ञानी गुलाम अहमद जिलानी ने द् थर्ड पोल को बताया: “खनन कंपनियों को [लिथियम के] बुरे प्रभावों पर विचार करना होगा और पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट नहीं करना होगा। नई प्रौद्योगिकियां उपलब्ध हैं, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए कि खनन क्षेत्र प्रभावित न हो, पर्यावरण और पुनर्वास से जुड़ी सख्त नीतियों पर विचार करना सबसे महत्वपूर्ण है।

रियासी के अरनास में एक स्टोर के मालिक सुनील अबरोल क्षेत्र की वनस्पति पर लिथियम खनन के प्रभाव को लेकर डरे हुए हैं।

Sunil Abrol, 55, an electronics store owner from Arnas in Reasi district, Jammu and Kashmir stands past the Chenab river in Arnas where maximum sand mining activity takes place.  (Image : Ashish Kumar Kataria)
55 वर्षीय सुनील अबरोल, जम्मू और कश्मीर के रियासी जिले के अरनास में एक इलेक्ट्रॉनिक्स स्टोर के मालिक हैं (फोटो : आशीष कुमार कटारिया)

वह कहते हैं, “हमारे पास सीमित अवसर हैं और क्षेत्र के साथ-साथ अन्य राज्यों के बाजारों तक हमारी पहुंच नहीं है।” उन्हें डर है कि खनन के नकारात्मक प्रभाव उनके सीमित अवसरों को नष्ट कर देंगे।

रियासी के कोटली गांव की 16 वर्षीया स्कूली छात्रा वैशाली देवी को खनन शुरू होने के बाद विस्थापित होने का डर है। वह कहती हैं, “हमारा घर हमसे छीन लिया जाएगा, और न केवल मेरा घर बल्कि मेरा स्कूल भी मुझसे छिन जाएगा।” वैशाली देवी कहती हैं, “मैं अपनी जड़ों से दूर नहीं रह सकती, और मैं अपनी यादों के साथ और दोस्तों के बिना नहीं जीना चाहती।”

Vaishali Devi (Centre), 16, a school student with her siblings, Jyoti & Poonam pose for a photograph at their home in Kotli village of Reasi district in Jammu and Kashmir. (Image : Ashish Kumar Kataria)
16 वर्षीया वैशाली देवी (बीच में) और उनके भाई-बहन ज्योति और पूनम, रियासी जिले के कोटली गांव में अपने घर पर एक तस्वीर के लिए पोज देते हुए (फोटो: आशीष कुमार कटारिया)

सलाल में 55 वर्षीय, ग्राम प्रधान प्रीतम सिंह गांव के निवासियों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। वह कहते हैं, “लिथियम का पता लगने के बाद लोग आशंकित हैं और असुरक्षित महसूस कर हैं क्योंकि उन्हें विस्थापन का डर है। हम यहां के निवासियों के लिए उचित पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। यदि निवासियों को उनकी जमीन का मुआवजा दिया जाता है, तो वह पैसा कब तक टिकेगा? इसलिए, उचित पुनर्वास जरूरी है।”

सिंह का कहना है कि जब लीथियम की खोज खबरों में थी तो यहां निवासी शुरू में खुश थे। “लेकिन बाद में, एक बार जब उन्हें, खनन के, उन पर और पारिस्थितिकी तंत्र पर दीर्घकालिक प्रभाव का एहसास हुआ, तो उनमें आशंकाएं पनप आईं और वे चिंतित हो गए। अन्य दो बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के प्रभावों को देखते हुए, निवासी लगातार मुझसे पूछ रहे हैं कि उनका भविष्य क्या होगा, सरकार ने क्या फैसला किया है और अगर उन्हें विस्थापित होना पड़ा तो स्थानीय प्रशासन उनके लिए क्या कर रहा है।

Pritam Singh, 55, village head of Salal, stands over the point where for the first time lithium testing was conducted by the Geological Survey of India at Salal-Haimana in Reasi district of Jammu and Kashmir. The presence of lithium reserves at Salal was already mapped in 1999. (Image : Ashish Kumar Kataria)
सलाल के ग्राम प्रधान, 55 वर्षीय प्रीतम सिंह उस बिंदु पर खड़े हैं, जहां पहली बार भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले के सलाल-हैमानम में लिथियम परीक्षण किया गया था। सलाल में लिथियम भंडार की उपस्थिति को 1999 की शुरुआत में मैप किया गया था। (फोटो: आशीष कुमार कटारिया)

सिंह कहते हैं, “हम अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं और प्रशासन से संपर्क कर रहे हैं। साथ ही, उनके सामने निवासियों की चिंताओं को उठा रहे हैं। हम शहरवासियों की उम्मीदों को मरने नहीं देंगे और उन्हें तड़पने देंगे। यदि खनन होने जा रहा है, तो सरकार को उचित पुनर्वास प्रदान करना होगा, और हम वही मांग कर रहे हैं।” 

श्रीनगर स्थित एक पर्यावरणविद कासिम अहमद का कहना है कि लिथियम खनन के दीर्घकालिक परिणाम हैं जो “मानव और पारिस्थितिकी क्षति दोनों” को जन्म दे सकते हैं। 

वह पानी की कमी, जमीन की अस्थिरता, मिट्टी के कटाव, वायु व जल प्रदूषण और जैव विविधता के नुकसान की ओर इशारा करते हैं। उनका यह भी कहना है कि खनन से जल स्रोत अधिक खारे हो सकते हैं, जिससे पानी उपयोग के लिए असुरक्षित हो जाता है।

अहमद कहते हैं, “पारिस्थितिकी और जिले के निवासियों की सुरक्षा के लिए, सरकार और खनन कंपनियों को सस्टेनेबल और प्रॉफिटेबल प्रैक्टिसेस को प्राथमिकता देना होगा ताकि खनन के दीर्घकालिक प्रभावों के कारण जिला प्रभावित न हो।”

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