नीति आयोग द्वारा ड्राफ्ट की गई राष्टीय उर्जा नीति (एनईपी) 2017, भारत के उर्जा क्षेत्र के प्रक्षेप विकास की गति को स्थापित करने में एकीकृत उर्जा नीति (आईईपी) 2006 से आगे ले जाती है। एनआईपी सम्रग ऊर्जा क्षेत्र के लिए एक व्यापक ढांचा प्रस्तुत करता है,जिसमें कई प्रौद्योगिकी और ईंधन विकल्प शामिल हैं।
हालांकि एनईपी प्रारूप उस समय आया है जब उर्जा क्षेत्र, स्पष्टता की मांग कर रहा है। जब देश में तेजी से बढ़ती उर्जा गरीबी की परेशानी बरकरार है, ऐसे समय में अतिरिक्त उर्जा की दावों का सामना करने के लिए इस क्षेत्र के भविष्य के लिए स्पष्ट संकेतों की आवश्यकता है।
इस जरूरत को विशेष रूप से नवीकरणीय उर्जा दरों में तेजी से गिरावट और स्वच्छ उर्जा से संबंधित ग्रिड की संबद्ध और प्रस्तावित अनुपातिक दरों में बढ़ोतरी के तौर पर सुस्पष्ट किया जा रहा है।
एनईपी बनाम आईईपी
आईईपी और एनईपी के बीच के अंतर को उजागर करते हुए उर्जा, कोयला, नवीन व नवीनीकरणीय उर्जा और खनन मंत्री पीयूष गोयल ने कच्चे तेल की कीमत में भारी गिरावट, सौर उर्जा प्रौद्योगिकी में बदलाव, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर विशेष ध्यान और सरकार के ग्रामीण विद्युतीकरण एजेंडा को ध्यान में रखने के लिए एनईपी की सराहना की।
इसके अलावा पहले की योजना आयोग द्वारा आईईपी और नीति आयोग द्वारा एनईपी तैयार करने के लिए अंगीकृत किए गए व्यापक दृष्टिकोण में बहुत बड़ा अंतर है। आईईपी ने दिशानिर्देश तैयार किए और विशिष्ट उद्देश्यों को पूरा करने के लिए विशेष उपायों की टोकरी प्रदान की। उदाहरण के लिए, अक्षय उर्जा की उन्नति विशेषकर स्वच्छ उर्जा की तरक्की के लिए आईईपी ने नाबार्ड की तर्ज पर पुनर्नवीकरणीय उर्जा विकास एजेंसी (इरडा) को राष्टीय पुनर्वित्त संस्था में बदलने की सिफारिश की है।
हालांकि, एनईपी में सरकार द्वारा निर्धारित उद्देश्यों के लिए क्रियान्वयन की एक सामान्य सूची हैं, जिन्हें लागू करने के लिए सरकार द्वारा विचार किया जा रहा है।
क्या एनईपी पासा पलटने वाला साबित हो सकता है?
नीति आयोग एक कुशल बिजली बाजार बनाने के लिए पूरे बिजली क्षेत्र की मूल्य श्रृंखला को निजी निवेश के लिए खोलने जैसे कुछ क्रांतिकारी सुधारों की सिफारिश के कारण एनआईपी कामयाब घटनाओं से गुजर रहा है। प्रस्तावित सुधार को एक अलग क्षमता बाजार और थर्मल पावर के लिए सहायक बाजार के निर्माण की सिफारिश करने के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है। इससे प्रभावी लागत तरीकों से नवीकरणीय स्त्रोतों से आंतरिक बिजली के पूरक के लिए लचीली उर्जा आपूर्ति को प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
इसके अलावा नीति आयोग ने उर्जा के परिप्रेक्ष्य में वायु गुणवत्ता अैर मानव संसाधन विकास जैसे ज्वलंत मुद्दों को पहचानने और संबोधित करके एक उत्साहवर्धक कदम उठाया है। एनआईपी में वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए परिवहन, बिजली और शहरी परिवारों जैसे विभिन्न क्षेत्रों में दक्षता सुधार के लिए विशेष सिफारिशें शामिल हैं।
एनईपी की कमी
एनईपी ऐसे कई मुद्दों के लिए समुचित रूपरेखा देने में विफल रही है, जो भारत के चल रहे उर्जा के परिवर्तन के दौरान उत्पन्न हुए और तेज हो गए, जोकि अभी तक प्रारंभिक अवस्था में हैं।
अक्षय उर्जा के मोर्चे पर, एनईपी लगातार अनिश्चितताओं विशेषकर अक्षय क्रय दायित्वों (आरपीओ) और अक्षय उर्जा प्रमाणपत्र (आरईसी) को दूर करने नाकाम रही है। प्रस्ताव में वितरण कंपनियों पर अधूरे मन से सांत्वना लक्षित की गई है, जिन्हें आरपीओ और आरईसी दायित्वों के क्रियान्वयन के लिए सरकार का समर्थन सुनिश्चित किया गया है। आरपीओ प्रणाली ने अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए अपने उर्जा मिश्रण में स्वच्छ उर्जा को शामिल करने के लिए नवीकरणीय उर्जा क्षमता वाले राज्यों को दबाने का काम पहले ही किया है। जैसे ही नवीकरणीय ऊर्जा व्यवसायिक रूप से और अधिक व्यवहार्य बन जाती है, तब राज्यों को यह निर्धारित करने के लिए छोड़ा जा सकता है कि अपने प्रणाली में उर्जा के स्त्रोतों को क्या, कब और कैसे एकीकृत करना है क्योंकि दायित्वों के नितांत आवश्यक प्रवर्तन प्रदान करने के लिए कोई भी स्पष्ट पैमाना को अपनाया नहीं गया है।
ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए आधारभूत विद्युत भार की आवश्यकता को हासिल करने के लिए कोयला संचालित थर्मल पावर प्लांट के उपयोग पर एनईपी को ध्यान केंद्रित होना, नीति की अनिश्चितता को और अधिक उजागर करता है। उर्जा की रणनीति मंत्रालय के अनुसार, इस क्षेत्र के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए वर्तमान में मौजूद कई कोयला संयंत्र या तो निम्न क्षमता पर चले रहे हैं या तो समय से पहले ही सेवानिवृत्त हो गए हैं। हालांकि, इस बाजार की वास्तविकता के बावजूद, एनईपी की स्वच्छ उर्जा पर भारत की प्रतिबद्धता के बारे में थर्मल विद्युत उर्जा के संशयवाद पर निर्भरता, नवीकरणीय क्षेत्र में निवेशकों के विश्वास को खत्म कर सकता है।
वायु गुणवत्ता और जलवायु नेतृत्व दोनों के संदर्भ में इन संयंत्रों में दक्षता सुधार और उत्सर्जन में कमी के लिए पर्याप्त प्रौद्योगिकी की उपलब्धता के बिना भारत के लिए अपनी थर्मल पावर क्षमता 2012 में 125 गीगावॉट से 2040 में 441 गीगावॉट बढ़ाने (जैसा कि एनईपी में प्रस्तावित है) पर जोर देना उपयुक्त नहीं होगा। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2015 में कोयला आधारित थर्मल पावर उत्पादकों पर कठोर रुख लिया था और सल्फर डाई आक्साइड, नाइटोजन ऑक्साइड, मर्करी के उत्सर्जन और पानी के कम प्रयोग के संशोधित मानदंडों को पूरा करने के लिए दिसंबर 2017 समय सीमा निर्धारित की गई थी। हालांकि डेवलपर्स अपनी परियोजनाओं के नए मानकों (प्रति मेगावॉट एक करोड़ रुपये या 1.56 मिलियन अमेरिकन डॉलर) को पूरा करने के लिए उच्च लागत को अवशोषित करने में सहमत नहीं है, जबकि सरकार दिसंबर 2019 तक अनुपालन के लिए समय सीमा तय करने की संभावना रखती है। वहनीय प्रौद्योगिकी की कमी उच्च लागत और अनुपालन से संबंधित अनिच्छा के प्रमुख कारणों में से एक है।
उर्जा क्षेत्र के विकास के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी को विकसित और हासिल करने के लिए कैसे काम करना चाहिए, इसके लिए एनईपी ने व्यापक सिफारिशें की हैं। हालांकि यह नीति जैसा कि चीन में है, तकनीकी विकास के लिए लगातार और मजबूत नीति और आर्थिक समर्थन की सिफारिश नहीं करती है। चीन की सफलता और अपने स्वच्छ उर्जा अभियान को चलाने के लिए चीन के आयात पर भारत की निर्भरता के बावजूद, भारत में भारत के उर्जा भविष्य को बनाने के लिए एनआईपी में पर्याप्त तत्कालिकता व्यक्त नहीं की गई है।
ग्रिड बनाम ऑफ ग्रिड
एनईपी सभी परिवारों को भारत के प्राथमिक प्रयास के लिए ग्रिड आधारित आपूर्ति का निर्धारण करता है, साथ ही जहां ग्रिड बिजली उपलब्ध नहीं है, वहां अक्षय उर्जा के उपयोग की पहुंच के मुद्दे को परिपालित कर रहा है। इस उदाहरण में नीति आयोग ने विनेमयता के अनुसार नवीकरणीय उर्जा शब्द को विकेंद्रीकृत नवीकरणीय उर्जा के साथ इस्तेमाल किया है। भले ही सरकार विकेंद्रीकृत विद्युतीकरण कार्यक्रमों को बढावा दे रही है, लेकिन इस स्थिति के लिए कारण-विवरण इंगित नहीं किया गया है।
ग्रिड आधारित विद्युतीकरण को बढ़ावा देने की स्थिति का रहस्योद्धाटन जारी है कि ग्रिड से जुड़े घरों का एक महत्वपूर्ण प्रतिशत बिजली के प्रयोग का पर्याप्त स्तर भी नहीं छू पाता है। यह उर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) के भारत के सबसे ज्यादा उर्जा वंचित छह राज्यों उर्जा प्रयोग की स्थिति पर आधारित अध्ययन में मान्य किया गया है। अध्ययन में पाया गया कि यद्यपि 96 प्रतिशत गांव विद्युतीकृत माने गए हैं, जबकि सर्वेक्षण किए गए सभी घरों में 69 प्रतिशत घरों में एक बिजली कनेक्शन हैं, मात्र 37 प्रतिशत घरों में बिजली प्रयोग का सार्थक स्तर है। विद्युतीकरण के एक विशेष साधन को बढावा देने के बजाए, एनईपी आर्थिक व्यवहार्यता, उपभोक्ता मांग और आकांक्षा, सामथ्र्य के साथ ही साथ बिजली के विश्वसनीय प्रावधान पर विचार करके, संदर्भ विशिष्ट विद्युतीकरण दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करना चाहिए।
वैश्विक उर्जा बाजार में जैसे-जैसे भारत की भूमिका और महत्ता बढ़ती जाएगी, वैसे-वैसे उर्जा नियोजन का रणनीतिक होने की भी जरूरत अहम होती जाएगी। हालिया गत सफलताओं जैसे कि रिकॉर्ड कम दरें, उर्जा क्षेत्र में निवेश में बढ़ोतरी, पवन परियोजनाओं के लिए नीलामी आधारित बोली लगाने की सफल शुरुआत और अन्य जैसे गत हालिया सफलताओं को हासिल करते रहने के लिए यह गति अस्पष्ट उर्जा मार्गों और नीति अनिश्चितता के कारण कम नहीं होने दे सकती है।
यद्यपि एनईपी बिजली उत्पादकों, वितरकों और निवेशकों के लिए अनिश्चितता कम करने के लिए बहुत कुछ करता है, जैसे-जैसे बाजार विकसित होता है, यह सरकार को टेलर्ड समाधान के क्रियान्वयन में पर्याप्त जगह प्रदान करता है।
(अंजली विश्वमोहन उर्जा, पर्यावरण और जल परिषद में शोध विश्लेषक हैं, जबकि कनिका चावला एक वरिष्ठ प्रोग्राम लीडर हैं।)