उर्जा

विचार : जम्मू-कश्मीर में छोटे जल विद्युत संयंत्रों को बढ़ावा देने की जरूरत

सिमी थंबी और शकील ए रोमशो का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में जल विद्युत क्षमता का नाममात्र ही हिस्सा प्रयोग किया गया है, जिससे बहुत बड़ी उर्जा क्षति हो रही है। हालांकि छोटे जल विद्युत संयंत्रों को आगे बढ़ाया जा सकता है।
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<p>Unlike large hydropower projects, micro hydel projects have relatively little impact on their surroundings [image by: Zofeen T. Ebrahim]</p>

Unlike large hydropower projects, micro hydel projects have relatively little impact on their surroundings [image by: Zofeen T. Ebrahim]

सिंधु नदी में असीमित जल विद्युत क्षमता है, जिसका अधिकांश हिस्सा अप्रयुक्त बना हुआ है। भारतीय राज्य जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक स्थिति सिंधु नदी की तीन प्रमुख नदियों की जल विद्युत क्षमता का प्रयोग करने का अनूठा लाभ देती हैं। राज्य में स्थापित विद्युत क्षमता का लगभग 100 फीसदी जल विद्युत से आता है। यह राज्य की अनुमानित 20,000 मेगावॉट जलविद्युत क्षमता का लगभग 15 प्रतिशत है, इसलिए अभी भी बाकी की 85 प्रतिशत क्षमता का प्रयोग कने की बहुत ज्यादा गुंजाइश है।राज्य में पिछले पांच वर्षों में विद्युत की मांग पांच से छह प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ी हैं।

प्रत्येक वर्ष यह राज्य 20-25 प्रतिशत तक विद्युत कमी की परेशानी का सामना करता है, जो कि तीन प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत बहुत अधिक है।

राज्य की बिजली आपूर्ति की समस्या के लिए जल संसाधनों का प्रयोग न कर पाने की असमर्थता का सबसे प्रमुख कारण वित्त की कमी है। संयुक्त उपक्रमों और सार्वजनिक-निजी साझेदारी राज्य में विद्युत उत्पादन के लिए आवश्यक निरंतरता को गति दे सकताहै। यह न केवल राज्य में बिजली कमी को प्रत्यक्ष रूप से  सुधारेगा, बल्कि सामाजिक- आर्थिक विकास पर भी व्यापक असर होगा।

सिंधु जल संधि

सिंधु नदी पर विकसित होने वाला कोई भी जल आधारित संरचना, विश्व बैंक के निर्देशन में1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई सिंधु जल संधि के अनुरूप होनी चाहिए। इस संधि के अनुसार पश्चिमी नदियां- झेलम, चेनाब और सिंधु नदी पाकिस्तान के लिए आरक्षित हैं, बशर्ते भारत उनका प्रयोग सिंचाई, घरेलू प्रयोग, नदी जल विद्युत उत्पादन और अन्य गैर-उपभोगीय प्रयोग के लिए करें, लेकिन उनकी डिजाइन, जल संग्रह और अन्य कारक संधि की शर्तों के अनुसार हो।

कुछ परियोजनाओं के कार्यान्वयन पर दोनों देश असहमत हैं। ऐसी मुद्दों को सुलझाने केलिए संधि में एक पारदर्शी और जीवंत विवाद समाधान व्यवस्था है। उदाहरण के तौर पर, जब पाकिस्तान ने भारत द्वारा पश्चिमी नदियों विशेष रूप से भागीलर और किशन गंगा परियोजनाओं पर जल विद्युत के उत्पादन पर असहमति जताई थी, तब इस मुद्दे को संधि के प्रावधानों के अनुसार सुलझाया गया था। हाल ही में, दोनों देशों के बीच सिंधु नदी जल के साझाकरण, जिसमें जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, ग्लेशियर का पिघलना, भूजल शोषण, जल गुणवत्ता और न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह शामिल है, में कुछ समस्याएं सामने आईं थी। दोनों देश अपनी क्षेत्रीय सीमाओं के भीतर रहकर ही सामान्य समस्याएं साझा कर रहे हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए एक संयुक्त व्यवस्था की आवश्यकता है।

छोटी जलविद्युत परियोजनाओं के लाभ

इससे महत्वपूर्ण बात यह है कि क्षेत्र की पर्यावरणीय विविधता और आर्थिक बाधाओं को देखते हुए, बड़ी जलविद्युत परियोजना को बढ़ावा देकर राज्य की जलविद्युत क्षमता को जगजाहिर करता, अच्छी रणनीति का प्रमाण नहीं होगा। राज्य में 25 मेगावॉट तक की श्रेणी की लघु जलविद्युत परियोजना (एसएचपी) की अपार संभावनाएं हैं, 1500 मेगावॉट से अधिक सामथ् र्य वाले जलविद्युत परियोजना के उपयोग में परिणाम निराशाजनक रहे हैं।

छोटी, सूक्ष्म या लघु जलविद्युत परियोजना बड़ी और मध्यम परियोजनाओं की तुलना में कहीं अधिक पर्यावरण अनुकूल हैं, क्योंकि इनके लिए न्यूनतम जलाशयों और निर्माण कार्य की आवश्यकता होती है। वर्तमान में, यहां तक कि वित्तीय संस्थान (एफआईएस) भी भारी पूंजी निवेश पर अपर्याप्त वापसी और लंबी अवधि के कारण बड़ी और मध्यम श्रेणी की जलविद्युत परियोजनाओं को वित्तपोषित कने के लिए उतनी उत्सुक नहीं हैं। नतीजतन, राज्य में अभी तक केवल 3,263.46 मेगावॉट जलविद्युत का प्रयोग किया गया है।

उपरी सिंधु बेसिन पर एसएचपी, छोटी और सूक्ष्म जलविद्युत परियोजनाओं के लिए अद्भुत संभावनाएं हैं। बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं के विपरीत, एचएसपी में लंबी अवधि केनिर्माण कार्य की आवश्यकता नहीं होती, जिससे यह उत्पादन के जल्द ही तैयार हो जाते हैं। हालांकि, विभिन्न राज्य एजेंसियों से आवश्यक खर्च की मंजूरी की त्वरित प्रक्रिया के किसी भी नीति और दिशानिर्देशों के अभाव ने बेसिन पर एसएचपी, मिनी और सूक्ष्म जलविद्युत परियोजना को बढ़ावा देने के प्रयासों ने अभी तक आकांक्षित परिणाम नहीं दिए हैं। विद्युत विकास एजेंसियों को समय पर मंजूरी प्राप्त करने के लिए प्रमोटरों के लिए एक सक्रिय सुविधाकर्ता की भूमिका बनाना और एकल खिड़की प्रणाली स्थापित करनी चाहिए। इसी प्रकार, इस क्षेत्र में जल संसाधनों के प्रयोग के लिए निम्न समुदार संचालित परियोजनाएं भी एक बेहतर विकल्प होंगी।

सफलताओं से सीख

पर्यावरण और वन मंत्रालय (एमएनआरई) द्वारा संकलित नवीकरणीय उर्जा के सर्वोत्तम स्रोतों पर आधारित एक रिपोर्ट यूआरईडीए (उत्तराखंड नवीकरणीय उर्जा विकास एजेंसी)की पहल जखाना एसएचपी, समुदाय द्वारा संचालित एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करती है। यह परियोजना ग्राम उर्जा समिति के गठन के माध्यम से स्थानीय समुदाय की योजना और निर्माण में सक्रिय भागीदारी द्वारा पूरी की गई थी। यह सपमित ही एसएचपीके नियमित रखरखाव का भी प्रबंधन करती है। इसी तरह, पाकिस्तान में भी समुदाय आधारित एसएचपी स्थापित करने में कुछ उल्लेखनीय पहल की गई है। आगा खान ग्रामीण सहायता कार्यक्रम और सरहद ग्रामीण सहायता कार्यक्रम ने स्थानीय समुदायों की सहायता के साथ सूक्ष्म जलविद्युत परियोजना के माध्यम ये उत्तरी पाकिस्तान के दूरस्थ ग्रामीण गांवों में उर्जा की पहुंच बढ़ाने में महारत हासिल की है। स्थानीय समुदाय इन परियोजनाओं के लिए अपना समय और श्रम लगाते हैं, जो इन परियोजना की स्थिरता और उनमें स्वामित्व की भावना पैदा करता है। सिंधु बेसिन पर उर्जा के नए और अक्षय संसाधनों के अधिकतम प्रयोग के लिए दोनों सीमाओं की इन सफल कहानियों और सर्वश्रेष्ठ प्रयोग से सीखना उपयोगी होगा।

जम्मू-कश्मीर में जलविद्युत को बढ़ावा देने के लिए पिछले वर्ष राज्य ने एक लघु जलविद्युत नीति सामने लाई थी। इस नीति का उद्देश्य जल विद्युत संसाधनों के अधिकतम प्रयोग के लिए एक ढांचा तैयार करना और उद्यमिता व निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देना है, जिससे लघु जलविद्युत को एक आकर्षक आर्थिक उद्यम के रूप में बढ़ावामिल सके। यह नीति, इन परियोजनाओं के लिए प्रारंभिक स्तर पर मशीनों की स्थापना या

रख-रखाव पर प्रवेश कर या विक्रय कर और आयकर में छूट जैसे राजस्व और वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है। इसके अलावा, हाल ही में औद्योगिक नीति व संवर्धन विभाग ने 2022 तक की अवधि के लिए जल विद्युत उत्पादन में शामिल नई औद्योगिक इकाईयों को बढ़ावा देने के लिए नए प्रोत्साहनों का भी अनावरण किया है।

वित्तीय प्रस्तावों पर विचार करते समय, अन्य व्यवहारिक कारकों के अतिरिक्त वित्तीय संस्थान, बिजली खरीद समझौतों से भी संतुष्ट हैं। एसएचनह की नीति के तहत, बिजली खरीद की तीस प्रतिशत प्रतिबद्धता पर, स्वतंत्र उर्जा परियोजनाओं को अपने ऋण की पुर्नभुगतान क्षमता वित्तीय संस्थानों को संतुष्ट कराना भी मुश्किल नहीं होगा। इसके अतिरिक्त, संयुक्त राष्ट निकाय के स्वच्छ विकास व्यवस्था, जो विकासशील देशों में कम उत्सर्जन परियोजनाओं को प्रोत्साहित करती है, के तहत अतिरिक्त लाभ मिलने की भी गुंजाइश है। यह सभी प्रयास निवेशकों को इन परियोजनाओं में निवेश करने के लिएआकर्षित करेंगे। भविष्य में, जम्मू-कश्मीर में लघु जलविद्युत परियोजनाओं पर केंद्रित तीव्र विद्युत विकास की उम्मीद की जा सकती है।

(सिमी थंबी नीति आयोग के उर्जा और जलवायु परिवर्तन वर्टिकल में युवा पेशेवर और शकील ए रोमशो कश्मीर विश्वविद्यालय में पृथ्वी विज्ञान विभाग के प्रोफेसर व प्रमुख हैं। इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं और उनके संगठनों के विचारों को प्रतिविंबित नहीं करता है।)