भारत का केंद्रीय बजट, यानी अगले वित्त वर्ष के लिए सरकार की योजनाओं का खाका, केवल वित्त क्षेत्र में काम करने वालों के लिए ही उत्सुकता का विषय नहीं है। यह खेती से लेकर इलेक्ट्रिक मोबिलिटी तक, सभी क्षेत्रों में आने वाले वर्ष के लिए देश की प्राथमिकताओं को बताता है। इससे यह पता चलता है कि उन क्षेत्रों में से प्रत्येक पर सरकार कितना खर्च करने की तैयारी में है।
ग्लासगो में हालिया संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता के बाद, जब प्रधानमंत्री ने भारत के 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन तक पहुंचने और दशक के अंत तक देश की आधी बिजली, अक्षय ऊर्जा स्रोतों से उत्पन्न करने का वादा किया, नरेंद्र मोदी सरकार के प्रशासन को अब ऐसे सवालों का सामना करना पड़ रहा है कि इन वादों को पूरा करने के लिए भुगतान कैसे होगा।
पर्यवेक्षकों में इस बात पर विभाजन है कि क्या इस वर्ष का बजट, जो देश को दो साल की महामारी के चलते उपजी मंदी से उबरने में मदद करने के लिए अधिकांश क्षेत्रों में खर्च बढ़ाता है, अब तक के सबसे महत्वाकांक्षी डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों में से एक को ठीक से शुरू करने के लिए एक मजबूत पर्याप्त आधार देता है। लेकिन भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने निश्चित रूप से इस दिशा में एक मजबूत संकेत का इरादा किया है। भारत को अपनी जलवायु महत्वाकांक्षाओं को प्राप्त करने में मदद के लिए केंद्रीय बजट 2022 में क्या है और क्या छूट गया है, यहां हम इस पर बात करेंगे।
बजट के लिहाज से जो बात अत्यधिक प्रत्याशित और उल्लेखनीय रूप से अनुपस्थित है, वह है स्टील, सीमेंट और परिवहन जैसे भारी प्रदूषण पैदा करने वाले क्षेत्रों के स्वच्छ संक्रमण के लिए स्पष्ट समर्थन और प्रौद्योगिकी के जरिये, जैसे हरित हाइड्रोजन, समस्या का समाधान।
भारत के 2022 के बजट में, सरकार ने घोषणा की है कि वह अपना पहला हरित बांड जारी करेगी, जो व्यवसायों को हरित बुनियादी ढांचे में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। गैर-लाभकारी संस्था, नेशनल रिसोर्स डिफेंस काउंसिल (एनआरडीसी), भारत, के साथ काम करने वाली एक वित्तीय क्षेत्र विशेषज्ञ, पूनम संधू का अनुमान है कि ग्रीन बॉन्ड योजना, हाइड्रोजन के साथ-साथ अन्य उभरती हरित प्रौद्योगिकियों को लक्षित कर सकती है। फिर भी, इस साल के बजट से वित्तीय और तकनीकी सहायता की मांग करने वाले उद्योग संघों को निराशा होगी।
विशेषज्ञों का क्या कहना है?
इस साल के बजट भाषण की कमियों की ओर इशारा करते हुए, थिंक टैंक, इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) में ऊर्जा अर्थशास्त्री, विभूति गर्ग ने कहा, “बजट भाषण में ऊर्जा रूपांतरण, जलवायु वित्त और समावेशी विकास जैसे शब्दजाल का कई बार उल्लेख है लेकिन घोषणाओं के लिहाज से देखें तो स्वच्छ ऊर्जा को त्वरित तरीके से बढ़ावा देने की कोशिशें कम हैं।”
उनका कहना है कि भारत ने 2030 तक 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा का एक बड़ा लक्ष्य निर्धारित किया है, और जबकि नवीकरणीय ऊर्जा, जीवाश्म ईंधन की तुलना में लागत-प्रतिस्पर्धी है, इसलिए नई प्रौद्योगिकियों को समर्थन की आवश्यकता होगी।
गर्ग ने यह भी कहा, “सरकार को रूफटॉप सोलर, स्टोरेज, ऑफ-शोर विंड और ग्रीन हाइड्रोजन की तैनाती की अनुमति देने के लिए बजट आवंटन और ड्यूटीज में कमी प्रदान करनी चाहिए थी। बजट में अक्षम जीवाश्म ईंधन संयंत्रों को बंद करने के लिए समर्थन का कोई उल्लेख शामिल नहीं है और न ही इसमें वायु प्रदूषण की बढ़ती समस्याओं से निपटने की कोई बात है।”
ऐसा लगता है कि घोषणाएं, त्वरित तरीके से स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने में विफल रही हैं।विभूति गर्ग, आईईईएफए
सोलर
मौजूदा सरकार, भारत की उस स्वच्छ ऊर्जा क्रांति की तैयारी के लिए गंभीर है जिसमें उसने 280 गीगावाट सोलर स्थापित करने वादा ग्लासगो में किया था। (अब तक यह लगभग 43 गीगावाट ही हो पाया है) इस मोर्चे पर निवेशकों की दिलचस्पी हमेशा की तरह अधिक है। लेकिन भारत की बात करें तो इतने बड़े पैमाने पर और गुणवत्ता वाले सौर पैनलों के उत्पादन क्षमता में वह सक्षम नहीं है। अब तक, भारत में चीन से बहुत बड़े पैमाने पर सौर पैनलों का आयात किया जाता है, जो इसके निर्माण में अग्रणी है। आयात पर निर्भरता कम करने के लिए भारत पहले ही चीन के इन उत्पादों पर उच्च सीमा शुल्क लगा चुका है। नए बजट के साथ, भारत अब उच्च दक्षता वाले पीवी मॉड्यूल के उत्पादन के लिए सब्सिडी बढ़ा रहा है। उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना में मौजूदा 60.2 करोड़ डॉलर में 2.61 बिलियन डॉलर की रकम जोड़ी जा रहा है। वैसे, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि चीन से होने वाले आयात से बचने के लिहाज से यह राशि पर्याप्त नहीं होगी क्योंकि उद्योग अभी तैयार नहीं है। हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इससे फर्क पड़ेगा।
विशेषज्ञों का क्या कहना है?
काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) थिंक टैंक में ऊर्जा वित्त विशेषज्ञ ऋषभ जैन आशावादी लोगों में से हैं। आगामी उच्च सीमा शुल्क के बावजूद, उनका कहना है कि सोलर टैरिफ कम बना हुआ है, जिससे वितरण कंपनियों के लिए स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन के लिहाज से नए समझौतों पर हस्ताक्षर करना आकर्षक है।
2021 में मॉड्यूल की कीमतों में उतार-चढ़ाव आया, “एकीकृत सौर विनिर्माण को बढ़ाने से कीमतों की अधिक स्थिरता के व्यवधान की घटनाओं में कमी आएगी”। जैन कहते हैं कि प्रोत्साहन पहले से ही है। 8 गीगावॉट सौर विनिर्माण इकाइयां पहले से ही पाइपलाइन में हैं। नए बड़े प्रोत्साहन से भारत घरेलू मांग को पूरा करने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हो सकता है।
भंडारण
भारत के नवीकरणीय ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र का अन्य गायब हिस्सा, ग्रिड में अनिरंतर स्वच्छ ऊर्जा को एकीकृत करने की क्षमता है। चूंकि सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन में, मौसम की स्थिति और दिन के समय के आधार पर उतार-चढ़ाव होता है, इसलिए बिजली के प्रवाह को स्थिर करने के लिए जीवाश्म ईंधन को आवश्यक माना गया है।
यह बैटरियों के बड़े पैमाने पर रोलआउट के साथ बदल सकता है, जो सही समय पर स्वच्छ ऊर्जा को स्टोर करने और रिलीज करने में सक्षम होगी।
यही कारण है कि सरकार, इस महीने के अंत में आने वाली संभावित भंडारण नीति से पहले भंडारण में निवेश करना आसान बना रही है। भंडारण प्रणालियों को अब एक विशेष ‘सुसंगत’ सूची,- बुनियादी ढांचे की एक सूची, जिस पर बैंक और वित्तीय संस्थान उधार के अवसरों की पहचान करने के लिए भरोसा करते हैं- में शामिल किया जाएगा। सरकार को उम्मीद है कि इससे इस क्षेत्र में अधिक निवेश का रास्ता खुल जाएगा।
वित्त
अपने भाषण में, वित्त मंत्री ने जलवायु कार्रवाई को “सूर्योदय के क्षेत्र” के रूप में वर्णित किया, जिसके तेजी से बढ़ने की संभावना है। उन्होंने निजी निवेश का लाभ उठाने के लिए सार्वजनिक धन का उपयोग करते हुए मिश्रित वित्त के लिए विशेष निधि शुरू करने का वादा किया, जिसमें अधिकतम सरकारी हिस्सेदारी 20 फीसदी होगी। इसके अलावा, सरकार के पहले हरित बांड का उद्देश्य व्यवसायों को हरित बुनियादी ढांचे में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
विशेषज्ञों का क्या कहना है?
एनआरडीसी इंडिया में वित्तीय क्षेत्र के विशेषज्ञ संधू बताते हैं कि बांड शुरू में केवल घरेलू बाजारों को लक्षित करेंगे, और उनका आकार भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के समन्वय में तय किया जाएगा। इसलिए, हालांकि ये एक स्वागत योग्य कदम हैं, लेकिन हम अभी भी नहीं जानते कि वे कैसे होंगे। हालांकि, अगर ग्रीन बॉन्ड पर्याप्त रुचि आकर्षित करने में विफल होते हैं, तो हरित बुनियादी ढांचे की योजना, उधार के अन्य रूपों के माध्यम से वैसे भी आगे ही बढ़ेगी।
इलेक्ट्रिक वाहन
भारत में स्थानीय रूप से निर्मित इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी), विशेष रूप से मोटर चालित रिक्शा और बसों, को तेजी से अपनाने के लिए प्रोत्साहन नीति है। अब तक, यह औंधे मुंह गिरा हुआ है, क्योंकि सौर निर्माताओं की तरह, वाहन निर्माता अभी भी काफी हद तक चीनी आयात पर निर्भर हैं। इस साल सरकार इस पहेली के दूसरे पहलू पर ध्यान केंद्रित कर रही है, वह है अधिक इलेक्ट्रिक वाहनों को समायोजित करने के लिए सही बुनियादी ढांचा स्थापित करना।
इसको अपनाने वाले आशावादी लोग वाहनों की रेंज- बैटरी खत्म होने से पहले वे कितनी देर तक ड्राइव कर सकते हैं- के बारे में चिंतित रहते हैं। व्यस्त शहरों में चार्जिंग पॉइंट के सघन नेटवर्क के लिए पर्याप्त जगह नहीं हो सकती है, इसलिए सरकार बैटरी की अदला-बदली पर दांव लगा रही है, जिसके तहत वाहन चलाने वाले, बैटरी के मालिक होने के बजाय उसे किराए पर ले सकें और जब यह पूरी तरह से खत्म हो जाए तो किसी स्वैपिंग प्वाइंट्स पर इसे बदल लें। यह प्रणाली चार्जिंग समय में कटौती करती है और कई वाहनों को सेवा प्रदान करती है, जबकि एक मानक चार्जिंग पॉइंट एक निश्चित समय में केवल एक या दो की ही जरूरतों को पूरा कर सकेगा। भारत के 2022 के बजट में, सरकार ने बैटरी-स्वैपिंग नीति का वादा किया है जो इस प्रणाली के उत्थान को प्रोत्साहित कर सकता है।
विशेषज्ञों का क्या कहना है?
सोसाइटी ऑफ मैन्युफैक्चरर्स ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (एसएमईवी) के उद्योग निकाय के महानिदेशक सोहिंदर गिल इस प्रस्ताव से प्रसन्न हैं। वह कहते हैं, “बैटरी स्वैपिंग नीति पेश करने से चार्जिंग के बुनियादी ढांचे को विकसित करने और सार्वजनिक परिवहन में ईवी के उपयोग को बढ़ाने में मदद मिलेगी।” उनका कहना है, “यह डिलीवरी और कार एग्रीगेशन व्यवसायों में लगे लोगों को अपने बेड़े में इलेक्ट्रिक वाहनों को शामिल करने के लिए प्रेरित करेगा और अधिक व्यवसायों को बैटरी-स्वैपिंग क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।”
भारत के शहर और सर्कुलर इकोनॉमी
ऐसा अनुमान है कि 2050 तक भारत की आधी आबादी शहरों में रहने लगेगी। भविष्य की इस आमद के लिहाज से आज के शहरों को तैयार करना महत्वपूर्ण है। सरकार ने एक विशेष शहरी नियोजन आयोग की स्थापना का प्रस्ताव दिया है और “शहरी नियोजन और डिजाइन में इंडिया-स्पेसिफिक नॉलेज” विकसित करने के लिए पांच शैक्षणिक केंद्रों को 3.3 करोड़ डॉलर आवंटित करना चाहती है।
भारत का 2022 का बजट सर्कुलर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए नीतियों के बुके का भी वादा करता है, जो इलेक्ट्रॉनिक कचरा, एंड-ऑफ-लाइफ वाहन, प्रयुक्त तेल अपशिष्ट, और जहरीले व खतरनाक औद्योगिक अपशिष्ट जैसे 10 क्षेत्रों में फैला हुआ है।
विशेषज्ञों का क्या कहना है?
सीईईडब्ल्यू के एक सीनियर रिस्क एंड एडॉप्टेशन एक्सपर्ट अविनाश मोहंती कहते हैं, “हालांकि शहरी नियोजन पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करना बजट में प्रमुख बातों में से एक था, लेकिन इनके निवेशों और बुनियादी ढांचे के क्लाइमेट-प्रूफिंग का कोई उल्लेख नहीं था।
वह बताते हैं कि 75 फीसदी से अधिक भारतीय जिले, मौसम संबंधी गंभीर आपदाओं को झेलने वाले अतिसंवेदनशील स्थान बन चुके हैं। इसके परिणामस्वरूप भारत को 87 बिलियन डॉलर का वार्षिक औसत नुकसान हुआ है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन के भाषण में प्रस्तावित मिश्रित जलवायु वित्त, बुनियादी ढांचे और आजीविका में आवश्यक बढ़े हुए निवेश को देखते हुए क्लाइमेट-प्रूफ के लिहाज से अपर्याप्त है।
यह आलेख पहले Lights On द्वारा प्रकाशित किया गया।