दक्षिण एशिया ने 2022 के पहले 6 महीनों में ही भीषण गर्मी के साथ-साथ भारी बाढ़ की भी मार झेली है। इस बाढ़ की वजह से बांग्लादेश और पूर्वोत्तर भारत को सबसे ज्यादा तबाही का सामना करना पड़ रहा है। यहां भयानक बाढ़ ने लाखों लोगों को विस्थापित होने पर मजबूर कर दिया है और इन लोगों की आजीविका भी नष्ट हो गई है।
इस क्षेत्र में 11 और 19 जून के बीच मूसलाधार बारिश हुई जिसकी वजह से ब्रह्मपुत्र और बराक नदियां उफान पर आ गईं। नतीजतन, यहां बाढ़ आ गई और सैकड़ों लोग मारे गए। इस आपदा से तकरीबन 55 लाख लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए हैं।
पूर्वोत्तर भारतीय राज्य असम के 35 जिलों में से 28 जिले जून के अंत तक बाढ़ से प्रभावित हुए। असम में सिलचर और बांग्लादेश में सिलहट जैसे बड़े शहर जलमग्न हो गए। मणिपुर में 29 जून को हुई लगातार बारिश के कारण हुए भूस्खलन में कम से कम 42 लोग मारे गए।
खतरनाक बारिश के पीछे असामान्य हवाओं का हाथ
असम में ब्रह्मपुत्र बेसिन और बांग्लादेश के निचले हिस्से में हर साल बाढ़ आती है। खासकर जून-सितंबर मॉनसून के दौरान जो दक्षिण एशिया में सालाना बारिश का अधिकांश हिस्सा है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक आर. के. जेनामणि कहते हैं कि इस साल पूर्वी हवाओं की अनुपस्थिति के कारण स्थिति और खराब हो गई है। ये पूर्वी हवाएं आमतौर पर मॉनसून के बादलों को सिंधु और गंगा के मैदानों की ओर धकेलती है।
जेनामणि ने द् थर्ड पोल के साथ बातचीत में कहा कि क्योंकि पूर्वोत्तर भारत में पानी से भरे बादल ठहर गए थे इसलिए इस क्षेत्र में लगातार बारिश हो रही है। इसकी वजह से ही बांग्लादेश और म्यांमार में भी सामान्य स्तर से अधिक वर्षा हुई है।
उन्होंने यह भी कहा, “साल में इस समय पूर्व से चलने वाली हवाएं अनुपस्थित हैं। इसके बजाय, हम बंगाल की खाड़ी के ऊपर तेज दक्षिण और दक्षिण-पश्चिमी हवाएं देख रहे हैं, जो ओडिशा से अपने साथ अधिक नमी लेकर आई हैं। इसके अलावा, ओडिशा में ‘पवन प्रणाली का गठन’ इस साल नहीं हुआ। ये आमतौर पर पूर्वोत्तर भारत की ओर जाने वाली हवाओं के प्रभाव को कम करता है।”
आमतौर पर गर्मियों के दौरान ओडिशा के ऊपर कम दबाव का क्षेत्र बनता है और हिंद महासागर से उच्च दबाव वाली हवाएं इस क्षेत्र की ओर चलती हैं, जिससे बारिश होती है।
3,345 मिमी
आठ दिनों में पूर्वोत्तर में 3,345 मिमी बारिश दर्ज की गई। यह पूरे मानसून के दौरान मुंबई में होने वाली बारिश के बराबर है।
जेनामणि ने एक और दुर्लभ घटना की ओर भी इशारा किया जिसने स्थिति को और खराब कर दिया है। इस साल जून के मध्य में, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से नमी वाली हवाएं एक ही समय में पूर्वोत्तर भारत की ओर बढ़ीं। आमतौर पर ये हवाएं अलग-अलग समय पर आती थी।
इन असामान्य घटनाओं के संयोजन की वजह से असम में बहुत उच्च स्तर की वर्षा हुई जिससे वहां विनाशकारी बाढ़ आई। जेनामणि कहते हैं, “केवल आठ दिनों [11-19 जून] में, पूर्वोत्तर में लगभग 3,345 मिमी बारिश हुई। यह उतनी बारिश की मात्रा है जितनी मुंबई को चार महीने के पूरे मानसून सीजन में प्राप्त होती है। इसी अवधि में दिल्ली में केवल 500 मिमी बारिश हुई।”
इस असामान्य मॉनसून का एक दूसरा पक्ष यह भी है कि इसकी वजह से दक्षिण एशिया के अन्य हिस्सों में बारिश में कमी दर्ज की गई है।
आईएमडी के आंकड़ों पर नजर डालें तो पाएंगे कि पूरे उत्तर और मध्य भारत में जून में औसत से कम वर्षा हुई है। ओडिशा में औसत से 37 फीसदी कम बारिश हुई है। 2022 में अब तक की भीषण गर्मी और जंगल की आग के कारण उत्तर भारत, पहले से ही कृषि, आजीविका और पारिस्थितिकी के भारी नुकसान का सामना कर रहा है।
उच्च तापमान के कारण फसल के मौसम के दौरान खड़ी फसल को काफ़ी नुकसान पहुंचा है। इसकी वजह से, भारत को इस साल गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। इससे गेहूं के वैश्विक बाजारों में हड़कंप मच गया।
विनाशकारी बदलाव लाने वाली हवाएं
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी), दिल्ली में सिविल इंजीनियरिंग (हाइड्रोलॉजी) विभाग के अशोक कुमार केशरी ने द् थर्ड पोल के साथ बातचीत में इस बात की पुष्टि की कि इस साल की तबाही के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
वह कहते हैं, “बढ़ते तापमान के कारण, हवाओं के चलने के पैटर्न बदल रहे हैं। बाढ़ कंवेक्षनल यानी संवहनीय वर्षा के कारण होती है। यानी पृथ्वी की सतह से गर्म होने वाली हवा पानी के भाप के साथ ऊपर उठती है, फिर ठंडी और संघनित होती है। ये दबाव पैटर्न बनाता है। इस तरह, मौसम का मिजाज अप्रत्याशित होता जा रहा है।”
केशरी ने बताया कि भले ही बारिश की तीव्रता बढ़ी है, लेकिन पूरे भारत में बारिश होने वाले दिनों की संख्या कम होती जा रही है। दूसरे शब्दों में, अधिकांश क्षेत्रों, विशेषकर पूर्वोत्तर में, कम समय में बहुत भारी वर्षा जैसे हालात का सामना करना पड़ा। भले ही, एक महीने या एक मौसम में होने वाली कुल वर्षा में कोई बड़ा बदलाव न हो, लेकिन सूखे दिनों की संख्या में बदलाव आया है।
वह कहते हैं, “आम तौर पर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से हवाएं अलग-अलग समय में चरम पर होती हैं। लेकिन इस साल, यह एक साथ हुआ, इसलिए प्रभाव बढ़ गया। दुर्भाग्य से, ऐसी घटनाएं भविष्य में बढ़ेंगी।”
जैसा कि जलवायु परिवर्तन, भूमि और पानी के तापमान को प्रभावित करता है, उच्च और निम्न दबाव के पैटर्न बदल जाएंगे। इसका अर्थ है वर्षा के कम अनुमानित पैटर्न।
विशेषज्ञों का कहना है कि मॉनसूनी बारिश के पैटर्न में बदलाव के पीछे एक कारण है मरीन हीटवेव (एमएचडब्ल्यू) की घटना में वृद्धि। इसका मतलब है कि समुद्र या महासागर के किसी विशेष क्षेत्र में असामान्य रूप से उच्च तापमान जो दबाव पैटर्न को प्रभावित करती है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटिओरॉलॉजी के एक वरिष्ठ जलवायु वैज्ञानिक और इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की नवीनतम रिपोर्ट के प्रमुख लेखक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने हाल के एक अध्ययन में लिखा है: “पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में एमएचडब्ल्यू में सबसे अधिक वृद्धि हुई है। प्रति दशक इनकी दर 1.2 से 1.5 है। उसके बाद बंगाल की उत्तरी खाड़ी में, प्रति दशक 0.4-0.5 की दर से वृद्धि हुई है। इससे मध्य भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून की बारिश में कमी के मामले बढ़ रहे हैं।”
क्या किया जा सकता है?
असम भारत का सबसे अधिक जलवायु-संवेदनशील राज्य है। यहां देश के 20 सबसे अधिक जलवायु-संवेदनशील जिलों में से 11 स्थित हैं। राज्यों की सरकार, भोजन, दवाओं और आश्रय के प्रावधान जैसे कुछ जरूरी उपाय कर सकती हैं, तटबंधों को मजबूत कर सकती हैं, लेकिन बाढ़ और जलवायु परिवर्तन के अन्य प्रभावों से निपटने के लिए लंबे समय में आर्थिक रूप से सही हालत में आना बेहद महत्वपूर्ण है।
आपदाओं के प्रति राज्यों के दृष्टिकोण में बड़े बदलाव की आवश्यकता है।आदित्य वालियाथन पिल्लई, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च, नई दिल्ली
नई दिल्ली के एक थिंक टैंक, द् सेंटर फॉर रिसर्च के द् इनीशिएटिव फॉर क्लाइमेट, एनर्जी एंड एनवायरनमेंट के एक फेलो आदित्य वालियानाथन पिल्लई कहते हैं, “राज्यों के पास संसाधनों को फिर से उभारने के लिए बजट और योजना की क्षमता होनी ही चाहिए, जिससे उनको आर्थिक बोझ से उबरने में मदद मिल सके। बाढ़ के खत्म होने के बाद आपदा और राहत का काम करने वाले दल चले जाएंगे। इसके बाद इस आपदा से प्रभावित लोगों को एक धूमिल आर्थिक भविष्य का सामना करना पड़ेगा।” उन्होंने यह भी कहा कि जब जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम के जरिए होने वाली आपदाएं एक ही साथ आ जाएं तो उनसे ठीक तरह से निपटने के लिए विभिन्न स्तरों पर गवर्नेंस योजना की आवश्यकता होती है।
पिल्लई ने कहा, “राज्यों द्वारा आपदाओं से निपटने के तरीकों में परिवर्तनकारी बदलाव की जरूरत है। राज्यों को मजबूत कार्य योजनाओं की आवश्यकता है, जो जलवायु परिवर्तन के लिए भी अनुकूल हों। यह तभी हो सकता है जब विभिन्न स्तरों पर गवर्नेंस हो। हालांकि इसमें सीधे तौर पर केंद्र को आने की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए वह राज्यों को पालन करने के लिए मुख्य नीति निर्माण को बढ़ावा दे सकता है और सुविधाएं प्रदान कर सकता है … यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि राज्यों पर्याप्त संसाधन और धन तक पहुंच सके।