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भारत में पाम ऑयलः तेज़ी से बढ़ता उत्पादन और स्वास्थ्य दावों की भरमार

भारतीय आहार में पाम ऑयल यानी ताड़ के तेल की उपस्थिति बढ़ी है, इसलिए अन्य वनस्पति तेलों की तुलना में इसके स्वास्थ्य प्रभावों पर अलग-अलग तरह की जानकारी उपलब्ध है। सीमा प्रसाद की जांच:
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<p>भारत में एक आदमी तेल की बड़ी कड़ाही में समोसे तलता हुआ। पाम ऑयल अन्य तेलों की तुलना में सस्ता होता है, लेकिन इसके स्वास्थ्य लाभ को लेकर किए जा रहे दावे विरोधाभासी हैं।  (फोटो: अलामी)</p>

भारत में एक आदमी तेल की बड़ी कड़ाही में समोसे तलता हुआ। पाम ऑयल अन्य तेलों की तुलना में सस्ता होता है, लेकिन इसके स्वास्थ्य लाभ को लेकर किए जा रहे दावे विरोधाभासी हैं।  (फोटो: अलामी)

पाम ऑयल अब हर जगह मिलता है। इस तेल में कई गुण है। इसे विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों में प्रिजर्वेटिव के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। शैंपू और अन्य सौंदर्य प्रसाधन व जैव ईंधन में भी इसका इस्तेमाल होता है। पाम का फल अन्य तैलीय फसलों की तुलना में अधिक तेल की मात्रा के लिए जाना जाता है।

चूंकि, भारत में तेल की खपत व्यापक तौर पर बढ़ गई है, इसलिए इसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों पर भी बहस छिड़ी हुई है। चर्चा के केंद्र में सैचरेटेड फैट सामग्री है, लेकिन इसमें भ्रामक जानकारी और अपने-अपने स्वार्थ के आधार पर गढ़े गए दावे भी शामिल हैं। यहां हम इनमें से कुछ चिंताओं और उनसे संबंधित विशेषज्ञों से बातचीत के कुछ अंश पेश कर रहे हैं।

भारत में पाम ऑयल की बढ़ती मांग

भारत पाम ऑयल का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।  भारत में 2000 के दशक से खपत बढ़कर हर साल करीब 90 लाख टन तक पहुंच गई है। अब भारत के खाद्य तेल का करीब 40 प्रतिशत हिस्सा  पाम ऑयल है। 

पाम ऑयल की इस मांग को पूरा करने के लिए देश पूरी तरह आयात पर निर्भर है, जिससे भारत दुनिया का सबसे बड़ा आयातक देश बन गया है। साल 1994 में 5 लाख टन तेल आता था, जो साल 2018 में बढ़कर 1 करोड़ टन पहुंच गया। इसमें से अधिकांश कच्चे तेल के तौर पर आता है, जो यहां परिष्कृत (रिफाइन) होने के लिए आता है, जबकि 30 प्रतिशत पहले से रिफाइन्ड होता है।

शेफील्ड विश्वविद्यालय में फूड एंड हेल्थ प्रोफेसरियल रिसर्च फेलो भवानी शंकर बताते हैं कि भारत ने जब तक बाहरी देशों के लिए अपना बाजार नहीं खोला था, तब तक भारतीय खाना पकाने में पाम ऑयल का बहुत ज्यादा इस्तेमाल नहीं होता था। उन्होंने कहा, “साल 1990 के दशक में जैसी ही भारत ने उदारवादी नीति अपनाई और बाहरी देशों के लिए रास्ते खोले। इसके बाद से हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए सस्ता पाम ऑयल का आयात आकर्षक बन गया। स्थानीय तिलहन की खेती में निवेश की कमी के चलते गिरावट आई थी। पाम ऑयल के प्रमुख निर्यातक देश इंडोनेशिया और मलेशिया भी भारत जैसे नए बाजार में अपने पाम तेल का जोर-शोर से प्रचार कर रहे थे।”

साल 2021 में भारत सरकार ने घरेलू पाम ऑयल के लिए खेती को बढ़ावा देने के लिए खाद्य तेलों पर एक राष्ट्रीय मिशन लॉन्च किया, जिसके जरिये पूर्वोत्तर क्षेत्र और अंडमानव निकोबार द्वीप समूह पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इस मिशन का लक्ष्य खाद्य तेल के लिए दूसरे देशों पर निर्भरता कम करना है।

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (एनआईएन) की निदेशक डॉ. आर हेमलता बताती हैं कि पाम ऑयल की बेहतर उत्पादकता इसे सबसे सस्ता तेल बनाती है। उन्होंने कहा, “हमारा देश तेल के आयात को कम करने और उत्पादन बढ़ाने के लिए पाम के बागानों के रकबे को भी बढ़ावा दे रहा है।”

जब पाम ऑयल के स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभावों पर ध्यान दिया जाता है तो हमारे फूड सिस्टम में विभिन्न प्रकार के तेल की ज़रूरत का मज़बूत तर्क बनता है।

पाम ऑयल सस्ता होने के चलते भारत के गरीब तबके के बीच खाना पकाने के लिए काफी लोकप्रिय है। साल 2019 तक भारत की लगभग 10.2 प्रतिशत आबादी अत्यधिक गरीबी में जिंदगी जी रही थी, जिसकी हर दिन प्रति व्यक्ति आय 1.90 अमेरिकी डॉलर से भी कम थी। भारत में ब्रांडेड पाम ऑयल अन्य खाद्य तेलों की तुलना में 30 से 100 रुपये प्रति लीटर सस्ता है।

कर्नाटक स्थित कंपनी नंदगुड़ी ऑयल्स एंड एग्रो इंडस्ट्रीज के सीईओ सागर नंदगुड़ी कहते हैं, “15 किलो पाम ऑयल के एक टीन की कीमत 2,550 रुपये है, जबकि सूरजमुखी के इतने ही तेल की कीमत 2,990 रुपये और सोयाबीन के तेल की कीमत 2,700 रुपये है।” नंदगुड़ी ऑयल्स एंड एग्रो इंडस्ट्रीज कंपनी पाम ऑयल को रिफाइन करके होलसेल में बेचती है।

प्रोफेसर शंकर कहते हैं कि अन्य कोई भी खाद्य तेल ताड़ के तेल जितना सस्ता नहीं हो सकता है, लेकिन जब पाम ऑयल के स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभावों पर ध्यान दिया जाता है तो हमारे फूड सिस्टम में विभिन्न प्रकार के तेल की ज़रूरत का मज़बूत तर्क बनता है।

शंकर कहते हैं कि डाईवर्सफकेशन नुकसान से बचाव कर सकता है। उन्होंने कहा, “हम यूक्रेन युद्ध के नतीजे देख रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप सूरजमुखी के तेल में बढ़ोतरी दर्ज की गइ्र है, वहीं ताड़ के तेल की कीमतें इसे लोगों के लिए कम किफायती बना रही हैं। यदि हमारी खाद्य प्रणाली में कई तरह के तेल हैं तो किसी विशेष तेल से लगने वाले झटके से राहत मिलती है।”

आहार संबंधी बहसः पाम ऑयल, रेड पाम ऑयल और विटामिन-ए

भारत में इस तेल को आमतौर पर विटामिन-ए की कमी के लिए इलाज के तौर पर भोजन में लिया जाता है। विटामिन-ए आंखों की रोशनी दुरुस्त रखने, इम्यून सिस्टम को स्ट्रांग करने और हड्डियों की मजबूती को बनाए रखने में मदद कर कसता है। भारत समेत विकासशील देशों के बच्चों में विटामिन -ए की कमी होना आम बात है। विटामिन-ए की गंभीर कमी से शरीर का विकास अवरुद्ध हो सकता है। यह अंधापन का भी कारण बन सकता है।

कैरोटीनॉयड पिगमेंट्स होते हैं, जो पौधों, फलों और सब्जियों को चमकीला और रंगीन बनाते हैं। ऐसा ही एक बीटा कैरोटीन जिसे शरीर विटामिन-ए में परिवर्तित कर सकता हैं। बिना रिफाइन किए गए कच्चे पाम ऑयल के एक फल में 500 से 700 मिलियन कैरोटीनॉयड होते हैं, लेकिन रिफाइनिंग प्रोसेस के दौरान पाम ऑयल से कैरोटीनॉयड हटा दिए जाते हैं।

इसके उलट रेड पाम ऑयल कम रिफाइन किया जाता है, इस कारण इसमें बीटा कैरोटीन 70 से 90 प्रतिशत तक बरकरार रहता है। पाम ऑयल रिफाइन करने वालों का कहना है कि यह बेचने के लायक नहीं होता है, क्योंकि इसका लाल रंग उपभोक्ताओं को कम आकर्षित करता है। लोग रंग देखकर इसको लेना पसंद नहीं करते हैं। द इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ऑयल पाम रिसर्च के पूर्व प्रमुख वैज्ञानिक मनोरम कामिरेड्डी बताते हैं कि इसकी व्यावसायिक बिक्री का आंकड़ा बहुत ज्यादा नहीं रहा है। 

कुआला लंपुर स्थित यूसीएसआई विश्वविद्यालय में एप्लाइड साइंस के प्रोफेसर राचेल टेन चुन हुई के मुताबिक, भारत के विपरीत मलेशिया में दो प्रमुख ब्रांड हैं, जो रेड पाम ऑयल का उत्पादन करते हैं। वे कैरोटीन, पाम ऑयल, कैनोला और हार्विस्ट का मिश्रण हैं, जो कि 100 फीसदी रेड पाम ऑयल होता है। राचेल ने हाल ही में पाम ऑयल की बेहतर रिफाइन प्रोसेस पर एक समीक्षा लिखी है। इसमें उन्होंने इस धारणा का समर्थन किया है कि विटामिन-ए की कमी को पूरा करने के लिए रेड पाम ऑयल एक बेहतर विकल्प है। वह रेड पाम ऑयल के कम रिफाइन कर इसके कैरोटीनॉयड को बरकरार रखने की अवधारणा पर जोर देती हैं।

खाद्य तेल उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाला संगठन द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बीवी मेहता के मुताबिक, रेड पाम ऑयल में बीटा कैरोटीन की मात्रा और इसके अन्य स्वास्थ्य लाभ के बारे में उपभोक्ताओं में जागरूकता की कमी है, इसलिए इसका मार्केट अभी भी छोटा है।

उन्होंने कहा, “उदाहरण के लिए भारत में जैतून के तेल के हेल्थ बेनिफिट हर कोई जानता है, इसलिए लोग उसके लिए भुगतान करने को तैयार हैं। किसी भी वस्तु का बाजार तीन चीजों पर निर्भर होता है- जागरूकता, खरीदने की सामर्थ्य और मार्केटिंग।” 

कोलेस्ट्रॉल और दिल की बीमारी

भारत समेत दुनिया भर में ताड़ का तेल दिल की सेहत को दुरुस्त करने अथवा बिगाड़ने को लेकर तमाम आधिकारिक सोर्स के जरिए ढेर सारी जानकारी उपलब्ध है। इनमें से कुछ दिल की सेहत के लिए पाम ऑयल को अच्छा बताते हैं तो वहीं कुछ इसे दिल की सेहत बिगाड़कर गंभीर बीमारी की गिरफ्त में पहुंचाने वाला बताते हैं। कई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पाम ऑयल के सेवन से कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ता है, जबकि कुछ रिपोर्ट में इसे खारिज किया गया है। हालांकि, इस बहस के जल्दी सुलझने की संभावना नजर नहीं आ रही है, लेकिन पाम ऑयल में क्या होता है, इस पर नजर डाल सकते हैं ताकि लोग खुद फैसला ले सकें कि पाम ऑयल सेहत के लिए अच्छा है या बुरा।

डॉ. हेमलता ने जोर देकर कहा कि पाम ऑयल कोलेस्ट्रॉल के संबंध में अन्य वनस्पति तेलों से बेहतर नहीं हैं। इस पर 1975 से 2018 के बीच किए गए परीक्षणों का साल 2019 में विश्लेषण किया गया। हेमलता इस विश्लेषण का जिक्र करते हुए कहती हैं कि पाम ऑयल की खपत ने अन्य वनस्पति तेलों की तुलना में कोलेस्ट्रॉल के लेवल को बहुत अधिक नहीं बदला है।

अमेरिकन सोसाइटी फॉर न्यूट्रिशन के साल 2015 में किए गए अध्ययन के मुताबिक, पाम ऑयल में संभावित लाभकारी एसिड हैं, लेकिन सैचुरेटेड फैट सामग्री भी है। इस कारण इसका सेवन कोलेस्ट्रॉल के लेवल को बढा सकता है। इसी तरह दिल की बीमारियों का जोखिम भी बढ़ सकता है। अमेरिकन सोसाइटी फॉर न्यूट्रिशन ने पाम ऑयल के इस्तेमाल को कम करने की सलाह दी है। 

द इंस्टीट्यूट ऑफ होम इकोनॉमिक्स ने नई दिल्ली स्थित सर गंगा राम अस्पताल और दिल्ली विश्वविद्यालय के साथ मिलकर साल 2016 में खाद्य तेलों पर एक अध्ययन किया। इसमें विभिन्न खाद्य तेलों में सैचुरेटेड फेट कंटेट की तुलना पाम ऑयल में उपस्थित लॉन्ग चैन सैचुरेटेड फैटी एसिड से की गई। पामिटिक एसिड और स्टीयरिक एसिड जैसे एसिड अन्य सैचुरेटेड फैट की तुलना में  हृदय संबंधी सूजन और फैट बढ़ाने में योगदान देने के लिए जाने जाते हैं। इस अध्ययन के लेखक पाम ऑयल पर निर्भरता कम करने और आहार में अन्य खाद्य तेलों को चुनने की सलाह देते हैं। ज्यादातर विशेषज्ञों ने  इस निष्कर्ष पर जोर दिया कि खाद्य तेलों की विविधिता को बढ़ाने के महत्व को रेखांकित किया जाना चाहिए। 

डॉ. हेमलता ने कहा कि किसी भी एक वनस्पति तेल पर पूरी तरह निर्भर होने से सभी फैटी एसिड का संतुलन शरीर में नहीं पहुंच पाएगा। इसलिए आईसीएमआर-एनआईएन पाम ऑयल समेत विभिन्न प्रकार के वनस्पति तेलों का सेवन करने की सलाह देते हैं, किसी एक तेल पर निर्भर होने की नहीं।

विशेषज्ञों के मुताबिक, बैलेंस और हेल्दी डाइट और स्वस्थ जीवन शैली के लिए जरूरी है कि सभी खाद्य तेलों का सेवन किया जाए। 

ये आर्टिकल सबसे पहले चाइना डाइअलॉग द्वारा प्रकाशित किया गया था।

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