प्रकृति

विचार: बढ़ती तस्करी से पैंगोलिंस के अस्तित्व पर संकट

भारत में पैंगोलिन के अवैध व्यापार को लेकर आए एक नए विश्लेषण से पता चलता है कि बहुत बड़े पैमाने पर व्यापार हो रहा है। इसे रोकने के लिए तत्काल ज़रूरी कदम उठाने की बात भी इस विश्लेषण में स्पष्ट रूप से कही गई है।
हिन्दी
<p>गुजरात में एक लुप्तप्राय भारतीय पैंगोलिन (फोटो: विकी चौहान / अलामी)</p>

गुजरात में एक लुप्तप्राय भारतीय पैंगोलिन (फोटो: विकी चौहान / अलामी)

अगर किसी की क़िस्मत अच्छी हो तो वह भारत के जंगलों, घास के मैदानों और झाड़ियों में, बाघों, तेंदुओं, हाथियों, हिरण की विभिन्न प्रजातियों और असंख्य पक्षियों को तो देख सकता है लेकिन पैंगोलिन के दर्शन के लिए किसी बहुत ज़्यादा भाग्यशाली होना होगा। 

बिल, पैंगोलिन का निवास स्थान है। चीटियां उनका भोजन है। स्वभाव से वो डरपोक हैं। यह दुनिया का एकमात्र परतदार स्तनधारी है। इकोसिस्टम इंजीनियर्स के रूप में पैंगोलिंस की भूमिका बहुत ज़रूरी है। 

ये अपना बिल बनाते हैं और मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों को फैलाने में मदद करते हैं। इससे मिट्टी की नमी और वायु-संचारण बढ़ता है। यह प्रक्रिया पौधों के लिए बहुत फायदेमंद है। चींटियों और दीमकों को खाकर वे कीड़ों की आबादी को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।

विश्व स्तर पर, पैंगोलिन की आठ प्रजातियां अफ्रीका और एशिया में पाई जाती हैं। दो प्रजातियों का घर भारत है: इंडियन पैंगोलिन और चाइनीज़ पैंगोलिन। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) रेड लिस्ट में, विश्व स्तर पर लुप्तप्राय के रूप में चिह्नित किया गया इंडियन पैंगोलिन, भारत में हिमालय की तलहटी तक पाया जाता है, जबकि चीनी पैंगोलिन, जो कि आईयूसीएन रेड लिस्ट में लुप्तप्राय बताया गया है, पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत की तराई तक सीमित है।

वन्यजीवों के अवैध व्यापार के कारण पैंगोलिन प्रजाति के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। दरअसल, पैंगोलिन के स्केल्स यानी शरीर की ऊपरी कड़ी परत का उपयोग पारंपरिक दवाओं में किया जाता है। विशेष रूप से इस तरह का उपयोग पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में किया जाता है। भारत सहित कई देशों में पैंगोलिन के मांस को भी लोग खाना पसंद करते हैं। 

द् कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन इन्डैन्जर्ड स्पीशीज ऑफ फौना एंड फ्लोरा (सीआईटीईएस) के तहत सभी पैंगोलिन प्रजातियों, उनके शरीर के अंगों और डेरिवेटिव्स का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार निषिद्ध है, फिर भी ऐसा पाया गया है कि पैंगोलिन, दुनिया में सबसे अधिक तस्करी किए जाने वाला जंगली स्तनधारी है।

भारत में, इंडियन और चाइनीज़ दोनों पैंगोलिन को वन्य जीवन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2022 की अनुसूची I में सूचीबद्ध किया गया है। यह शिकार, व्यापार और प्रजातियों या उनके शरीर के अंगों व डेरिवेटिव के उपयोग के किसी अन्य तरीके को प्रतिबंधित करता है।

भारत में पैंगोलिन की तस्करी – आंकड़े

एक गैर-सरकारी संगठन, ट्रैफिक के भारतीय कार्यालय की नई फैक्टशीट में 2018 से 2022 तक भारत में पैंगोलिन और उनके अंगों की ज़ब्ती का विश्लेषण है। इसमें प्रिंट और ऑनलाइन मीडिया की रिपोर्टों को आधार बनाया है। यह विश्लेषण भारत में लुप्तप्राय प्रजातियों- विशेष रूप से जिनके बारे में कम जानकारी है और अनुसूची I की प्रजातियों- को प्रभावित करने वाले अवैध व्यापार को उजागर करने के ट्रैफिक के निरंतर प्रयासों का हिस्सा है।

इस विश्लेषण में ज़ब्ती के 342 मामलों की रिपोर्ट को शामिल किया गया। विश्लेषण के मुताबिक, भारत में अवैध व्यापार के लिए कम से कम 1,203 पैंगोलिन जंगलों से लाए गए। ज़्यादातर मामलों में, प्रजातियों (इंडियन या चाइनीज़) का ब्योरा नहीं था। बरामदगी की 50 फीसदी घटनाओं में जीवित पैंगोलिन शामिल थे। यह संख्या 199 थी। बरामदगी के 40 फीसदी मामलों में पैंगोलिन के स्केल्स पाए गए। अनुमान है कि 943 पैंगोलिन से ये स्केल्स निकाले गए। ज़ब्त किए गए अन्य पैंगोलिन डेरिवेटिव में शव (11 बरामदगी से 15 जानवर), खाल (सात बरामदगी से 29 जानवर), पंजे, मांस और हड्डियां शामिल हैं। 

भारत के विभिन्न राज्यों की अगर बात करें तो पाएंगे कि ओडिशा में सबसे ज़्यादा बरामदगी हुई। यहां 74 मामले सामने आए। इसी राज्य में जीवित पैंगोलिन की बरामदगी के भी सबसे ज्यादा मामले सामने आए। इसमें 45 मामलों में 50 पैंगोलिन बरामद किए गए। इसके बाद, महाराष्ट्र का नंबर है जहां 27 मामलों में 32 पैंगोलिन बरामद किए गए। 

पैंगोलिन स्केल्स की बरामदगी के बारे में बात करें तो ओडिशा (30 घटनाओं में 103 पैंगोलिन) और मध्य प्रदेश (26 घटनाओं में 111 पैंगोलिन) टॉप पर हैं। लेकिन अगर पैंगोलिन स्केल्स की बरामदगी में शामिल पैंगोनिल्स की संख्या की बात करेंगे तो कर्नाटक टॉप पर रहा। कर्नाटक में 14 घटनाओं में 129 पैंगोलिन के बराबर स्केल्स ज़ब्त किए गए। इसके बाद तमिलनाडु का नंबर रहा, जहां केवल तीन घटनाओं में 125 पैंगोलिन के बराबर स्केल्स जब्त किए गए।

कम से कम 1,203 पैंगोलिन

2018 से 2022 के बीच भारत में अवैध व्यापार के लिए जंगलों से लाए गए। ये बात बरामदगी के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चली।

भारत में पैंगोलिन व्यापार को लेकर ट्रैफिक के पिछले विश्लेषण की तुलना में, आंकड़े बताते हैं कि राज्यों में ज़ब्ती की रिपोर्टिंग में मामूली बदलाव है।

नए आकलन में भारत के पूर्वी और मध्य क्षेत्रों से अधिकांश ज़ब्ती की रिपोर्ट है। वर्ष 2009-17 के बीच जब्ती की रिपोर्ट में उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर सबसे ऊपर है। 

पूर्वी और मध्य भारत के राज्यों में अभी भी संरक्षित क्षेत्रों के अतिरिक्त, महत्वपूर्ण वन क्षेत्र हैं। ऐसे संकेत हैं कि पैंगोलिन के अवैध व्यापार के लिए शिकारियों द्वारा इन वन क्षेत्रों को निशाना बनाया जा रहा है। 

हालांकि, ऐसा भी हो सकता है कि संरक्षण कानूनों को लागू करने वाली एजेंसियों के बढ़ते प्रयासों के चलते ऐसे मामले ज्यादा सामने आ रहे हों। रिपोर्टिंग से जुड़े प्रयास निश्चित रूप से आंकड़ों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं।

ओपन-सोर्स डाटा से तस्करी के रास्तों के बारे में निष्कर्ष निकालना मुश्किल है। कुछ स्रोतों ने भारत से चीन की तरफ़ होने वाली पैंगोलिन की तस्करी के रास्तों के बारे में बताया है जिनमें म्यांमार और नेपाल वाला रास्ता भी शामिल है। 

अवैध पैंगोलिन का व्यापार इतना बड़ा है कि यह भारत में पैंगोलिन के भविष्य की एक गंभीर तस्वीर पेश करता है। हालांकि, भारत के पैंगोलिन के लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय पर मजबूत सुरक्षा उपायों और अवैध शिकार व तस्करी को रोकने के लिए प्रवर्तन कार्रवाइयों (जैसा कि पूरे भारत में जब्ती की घटनाओं की संख्या से स्पष्ट है) के माध्यम से इनके भविष्य को सुरक्षित करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। विभिन्न हितधारकों के बीच, इस मुद्दे के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों की पहल से, इन प्रयासों को पूरा किया जा रहा है।

Illegally traded pangolin scales seized by Hong Kong customs authorities
हांगकांग में कस्टम के अधिकारियों द्वारा 2014 में जब्त पैंगोलिन स्केल्स (फोटो: एलेक्स हॉफ़र्ड / यूएसएआईडी एशिया, सीसी बीवाई-एनसी)

क्या करने की ज़रूरत है

अवैध व्यापार को समझने, प्रजातियों की रक्षा और संरक्षण के लिए उपयुक्त निर्णय लेने के लिहाज से, पैंगोलिन के बारे में जानकारी और समझ- मसलन, भारत की दो प्रजातियों के बीच अंतर कैसे करें- भारत के वन विभाग के अधिकारियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

चूंकि पैंगोलिन की तस्करी का मामला कई सीमाओं तक फैला हुआ है, इसलिए पैंगोलिन स्केल्स की पहचान करने के लिए किसी मानक तकनीक और अवैध शिकार से प्रभावित होने वाली प्रजातियों और क्षेत्रों को इंगित यानी पिन प्वाइंट करने के लिए डीएनए-आधारित तरीकों की मौजूदा समय में आवश्यकता है।

हर राज्य के फॉरेस्ट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट्स, पुलिस ट्रेनिंग एकेडमीज, द् नेशनल एकेडमी ऑफ कस्टम्स, इनडायरेक्ट टैक्सेस एंड नारकोटिक्स और सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्सेस के ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट्स जैसी एजेंसियों में कंजर्वेशन लॉ एनफोर्समेंट यानी संरक्षण संबंधी कानूनों को ठीक ढंग से लागू करने के लिए, पैंगोलिन डेरिवेटिव्स की पहचान को लेकर, संस्थागत प्रशिक्षण से, इस प्रयास में काफी मदद मिल सकती है।

ज़रूरत इस बात की है कि भारत के नीति निर्माता बिलों में रहने वाले पैंगोलिन की दुर्दशा को दफ़न न रहने दें।  

पैंगोलिन के अवैध व्यापार को भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी देखा जा रहा है, जो एक गंभीर चिंता का विषय है। ट्रैफिक के विश्लेषण ने भारत में पैंगोलिन और उनके डेरिवेटिव्स के ऑनलाइन कारोबार की आठ घटनाओं को दर्ज किया। इस तरह के प्लेटफॉर्म्स, तस्करों और खरीदारों के बीच सीधे व्यापार और पैसे का लेन-देन करा सकते हैं। ऐसे में, कानूनी तरीके से हस्तक्षेप करना मुश्किल हो सकता है।

इस बात की तत्काल आवश्यकता है कि लॉ एनफोर्समेंट एजेंसीज, ई-कॉमर्स और सोशल मीडिया कंपनियों के जरिए पैंगोलिन और अन्य संरक्षित प्रजातियों के ऑनलाइन व्यापार की निगरानी करें। कोलिशन टू एंड वाइल्डलाइफ ट्रैफिकिंग ऑनलाइन जैसे आपसी सहयोग वाले मौजूदा प्रयास दुनिया भर में सकारात्मक परिणाम दिखा रहे हैं। और इस तरह के प्रयासों को भारत के भीतर भी करने की जरूरत है।

ज़रूरत इस बात की है कि भारत के नीति निर्माता बिलों में रहने वाले पैंगोलिन की दुर्दशा को दफ़न न रहने दें। मतलब, पैंगोलिन की यही दुर्दशा बरकरार न रहे, इसके लिए जरूरी प्रयासों की आवश्यकता है।

अगर पैंगोलिन के अवैध व्यापार पर प्रभावी तरीके से लगाम लगाई जाती है तो भारत की कीमती और नाजुक जैव विविधता का दोहन करने से संगठित अपराध नेटवर्क को रोका जा सकेगा। पैंगोलिन की आबादी को बचाने से वे भारत के हैबिटेट्स को स्वस्थ रखने में अपनी महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी भूमिका निभाना जारी रख सकेंगे।

Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.

Strictly Necessary Cookies

Strictly Necessary Cookie should be enabled at all times so that we can save your preferences for cookie settings.

Analytics

This website uses Google Analytics to collect anonymous information such as the number of visitors to the site, and the most popular pages.

Keeping this cookie enabled helps us to improve our website.

Marketing

This website uses the following additional cookies:

(List the cookies that you are using on the website here.)