प्रकृति

वनों की रक्षा करने वालों के जीवन चित्रण की एक पहल

सोनाली प्रसाद ने अपने प्रोजेक्ट ‘रेंजर-रेंजर’ के बारे में www.thethirdpole.net से बात की। इस प्रोजेक्ट के माध्यम से वह भारत के वनरक्षकों और रेंजर्स की चुनौतियों और उनके जीवन का चित्रण कर रही हैं।
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<p>Sukhpali was the first female guard to be recruited on the field in the Sudasari range of Desert National Park (DNP) in 2013 [image by: Vibhor Yadav]</p>

Sukhpali was the first female guard to be recruited on the field in the Sudasari range of Desert National Park (DNP) in 2013 [image by: Vibhor Yadav]

हाल ही में नई दिल्ली के जोर बाग मेट्रो स्टेशन पर भारत की वनस्पतियों और जीवों की रक्षा करने वाले लोगों की 12 तस्वीरें और उन पर लिखी कुछ पंक्तियां वाला एक बड़ा पोस्टर लगाया गया। सोनाली प्रसाद को मिले पुलित्जर ट्रैवलिंग फैलोशिप पर आधारित ‘रेंजर-रेंजर’ प्रोजेक्ट को शुरू हुए 31 सितंबर, 2018 को एक वर्ष हो जाएगा। इनकी कहानियों में उत्तर-पश्चिमी भारत के रेगिस्तान से लेकर पूर्वोत्तर के उष्णकटिबंधीय जंगलों तक  और गैंडों से लेकर छिपकलियों तक शामिल हैं।

अपनी माताओं से अलग होने के बाद काजीरंगा में बचाए गये गैंडों के बच्चे निराशा-हताशा में मल त्याग करने से इनकार करते हैं।   [image by: Indrajeet Rajkhowa]
सोनाली प्रसाद ने https://www.thethirdpole.net को प्रोजेक्ट के उद्देश्य और ये इसकी शुरुआत कहां से हुई, इस बारे में बताया।

Omair Ahmad: इस प्रोजेक्ट का ख्याल आपको कैसे आया?

Sonali Prasad: मैंने अपना परास्नातक कोलंबिया विश्वविद्यालय से किया है और उनके लिए ही एक अनुसंधान संवाददाता के तौर पर काम कर रही थी। फिर मैंने इंटरनेशनल रेंजर फेडरेशन न्यूजलेटर में एक आलेख पढ़ा कि 2014 में भारतीय रेंजरों की मृत्यु दर विश्व में सर्वाधिक थी। मेरे अनुसार इसका कारण संसाधनों की कमी, सार्वजनिक पहचान की कमी (उदाहरण के लिए अमेरिका में पार्क रेंजरों एक सार्वजनिक हस्ती होता है और जिसकी सराहना की जाती है, वहीं भारत में हम यह भी नहीं जानते कि वे कौन हैं) या प्रशिक्षण की कमी है, लेकिन मैं इस मुद्दे को गहराई से जानना था। इस विचार के लिए ही मुझे फेलोशिप मिली।

Omair Ahmad: आप इसे व्यवहार में कैसे लाएंगी?

Sonali Prasad: मैं भारत के हरे गलियारों का भ्रमण करना चाहती थी, और मैं चाहती थी कि यहां की प्रत्यक्षता इन लोगों की जीवनगाथा बयां करें। यही लोग जानते थे कि भूमि में परिवर्तन कैसे आया और वनरक्षक और वन रखवाले ही प्रायः उन समुदायों का हिस्सा होते थे, जो ऐसे क्षेत्रों के आस-पास रहते हैं। उनके पास कोई लिखित दस्तावेज नहीं हैं, लेकिन फिर भी वे जानते हैं कि जलवायु कारकों और मानवीय हस्तक्षेपों ने कैसे जंगलों में अनाधिकार प्रवेश किया है और इससे चीजें कैसे बदल गई हैं।

जोरबाग मेट्रो स्टेशन पर ये पोस्टर लगाये गये।

Omair Ahmad: प्रोजेक्ट की अवधि क्या है?

Sonali Prasad: फेलोशिप 2016 में दी गई थी, लेकिन प्रोजेक्ट अगस्त, 2017 में शुरु हुआ। इसलिए समयावधि 18 माह थी, लेकिन हम इसे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए कई साझेदार (‘रेंजर-रेंजर’ वेब पत्रिका बनाने में मुखा मीडिया ने प्रसाद के साथ काम किया और मेट्रो स्टेशन पर प्रदर्शनी स्थापित करने डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया ने भागीदारी की), जो संस्थानों और लोगों की मद्द कर रहे हैं। मैंने फेलोशिप से अपना वेतन नहीं लिया और वाशिंगटन पोस्ट या अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क जैसी जगहों से मेरे लेखन से मिलने वाले पैसे पर आश्रित हूं। अभी ध्यान लॉजिस्टिक्स और सही फोटोग्राफर प्राप्त करने पर केंद्रित है, जो कि ज्यादातर उन स्थानों से हैं, जिन्हें मैं प्रकाशित करना चाहती हूं। उदाहरण के तौर पर, मेरे पास ऐसे फोटोग्राफर हैं, जो फैशन से लेकर आइस हॉकी तक कुछ भी कवर कर सकते हैं और उनमें अपनी एक समझ है।

वेब आधारित पत्रिका के लिए दृश्य बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। यह कहानी को और भी मजबूत व रोचक बनाती हैं, जो पाठक को आकर्षित करता है।

सोनाली प्रसाद [image by: Yashas Mitta]
Omair Ahmad: क्या रेंजर का काम ज्यादातर पुरुष ही करते हैं?

Sonali Prasad : आम तौर पर भी आप रेंजरों और वनरक्षकों के बीच  महिलाएं नहीं देखते हैं। जंगलों में दिन-रात व्यतीत करना, बुनियादी ढांचे की कमी और भारतीय सामाजिक बाधाएं, इनके अनुकूल नहीं हैं। कहा जाता है कि यहां क्षेत्र में आने वाली कई महिलाएं हैं। 2013 में डेजर्ट राष्ट्रीय उद्यान (डीएनपी) में प्रथम महिला के तौर पर नियुक्त होने वाली सुखपाली पर हमने जो कहानी की थी, वह बहुत ही रोचक थी। उसने अपने बच्चे का पालन-पोषण डीएनपी में अपने साथ किया, जहां संसाधनों के नाम पर ‘झुम्पा’ (एक पारंपरिक झोपड़ी) में सौर उर्जा द्वारा प्रदान की गई बिजली के अतिरिक्त और कुछ भी न था। कोहिमा में हम चार रेंजर्स से मिले, चारों ही महिलाएं थीं। यह महिलाएं लोगों की सोच को बदल रही हैं।

कोहिमा, नगालैंड में एक महिला फॉरेस्टर   [image by: Indrajeet Rajkhowa]
Omair Ahmad: आपके लिए सबसे संतोषजनक और चुनौतीपूर्ण क्या रहा?

Sonali Prasad : मुझे फील्ड रिर्पोटिंग बेहद पसंद हैं और इस कार्य में मुझे उन लोगों के साथ रहने को मिला, जिनको जानकारी मैं लंबे समय से देती रही हूं। सुखपाली की कहानी पर, हम उसके साथ खुले रेगिस्तान में रहे। इससे हमें उनके तरह का जीवन जीने का मौका मिला और उनकी कहानियों को मानव स्तर पर लेखन का अवसर मिला। चुनौतियों की बारे करें, तो मुद्दा उन तक पहुंचने की थी। वनरक्षक और गार्ड इस बात को लेकर बेहद बेचैन रहते हैं कि उन्हें किस तरह प्रदर्शित किया जाएगा। इसके लिए मुझे उन्हें इस बात के लिए मनाना पड़ा कि मैं सच्ची पत्रकारिता कर रही हूं। मैं उनकी समस्याओं को नहीं छुपाऊंगी, लेकिन मैं उनका प्रचार भी नहीं करूंगी। प्रकाशित होने के बाद कहानियों को साझा करने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है। और सभी जगह के तथ्य हैं, तो तथ्यों की जांच करने की जरूरत है। इसके लिए मैं अपने अमेरिकी समाचार कक्षों की आभारी हूं, जो बहुत गहन जांच करता है।

भारत में वन रक्षक, सीमित उपकरणों और भारी दबाव के बीच अपना काम करते हैं। [image by: Nirvair Singh]
Omair Ahmad: गार्डों व वनरक्षकों के लिए क्या चुनौतियां हैं?

Sonali Prasad : यह बहुल्यतः स्थान पर निर्भर करता है, लेकिन इसमें अधिकांशतः संसाधनों के बारे में हैं। रेगिस्तान में विद्युत का एकमात्र स्त्रोत सौर उर्जा है, जल की उपलब्धता शायद ही कहीं हैं, और सुखपाली के पास जो भी है, वह है लाठी। सरिस्का में कुछ गार्डों को ठंड से बचने के लिए स्वेटर की अत्यधिक आवश्यकता थी। और हां, अवैध शिकार के कारण 2005 में रिजर्व ने अपने सभी बाघों को खो दिया था, इसलिए वन रक्षकों पर भ्रष्टाचार के आरोप और दबाव दोनों ही बहुत ज्यादा था। बहुत से वनरक्षकों में वैज्ञानिक प्रशिक्षण की कमी थी। नगालैंड में एक घरेलू छिपकली की खोज के दौरान मुझे यह जानकर अचरज हुआ कि लोगों को यह भी नहीं पता था कि वह कैसी दिखती है।

Omair Ahmad: वन्य आरक्षित क्षेत्रों और राष्ट्रीय उद्यानों में रहने वाले समुदायों की क्या महत्ता है जहां रेंजर्स अपना काम करते हैं?

Sonali Prasad : बहुत महत्वपूर्ण है। यह ऐसे स्थानों के लिए सबसे कठिन चुनौतियों में से एक हैं, जहां अलग-अलग नियम लागू होने के कारण यह दुविधा बनी रहती है कि यह एक जंगल है या कोई निवासीय भूमि। कभी-कभी ऐसी स्थिति से विवाद उत्पन्न हो जाता है, लेकिन फिर भी आग या अन्य कोई समस्या होने पर रेंजर्स की मद्द के लिए भी यही समुदाय आगे आते हैं, क्योंकि केवल यही लोग उस समय वहां उपलब्ध होते हैं।

Omair Ahmad: अब आप कहां जा रही हैं?

Sonali Prasad : गोवा। वहां मैं मशरूम की देखभाल कर रहे एक गार्ड की कहानी, जो पौधों पर है, को मैं कवर करना चाहती हूं। मुझे लगता है, इस तरह की कहानियों को लोगों के सामने लाने की जरूरत है, क्योंकि कोई भी मशरूम की देखभाल कर रहे गार्ड की कहानी को सामने नहीं लाता है।

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