प्रकृति

बांग्लादेश में घड़ियाल की उम्मीद

जब नर और मादा घड़ियाल ने मैथुन किया और अंडे दिये- हालांकि अंडों से बच्चे नहीं निकले- तो बांग्लादेश में घड़ियाल के प्रजनन को लेकर उम्मीद जगी।
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<p>The male gharial named Gorai surrounded by his admirers [image courtesy: IUCN]</p>

The male gharial named Gorai surrounded by his admirers [image courtesy: IUCN]

एक वक्त ऐसा भी था जब बांग्लादेश के खुल्ना जिले – जो कि उत्तर-पश्चिमी हिस्से के तटीय इलाके में है- में साल्टा नदी के किनारे घने पेड़ों के पास बच्चे खेलते थे और वहां कई बार घड़ियालों की वजह से आपाधापी मच जाती थी।

अपनी धुंधली यादों पर जोर देते हुए 72 साल की बुजुर्ग इंद्राणी मल्लिक 65 साल पहले की बात बताती हैं कि एक बार बच्चों का झुंड भौचक्का हो गया था जब एक घड़ियाल नदी के किनारे उछला और एक बतख को अपने जबड़े में उस समय दबा लिया जब एक महिला एक डंडा लेकर उस बतख के पीछे-पीछे दौड़ रही थी। वह बताती हैं कि उस समय मेरे माता-पिता और पड़ोसी, घड़ियालों की वजह से बहुत चिंतित हो गये थे। उस समय काफी घड़ियाल थे। उस वक्त घड़ियाल लगभग रोजाना पास के तालाब में मछलियों को अपना शिकार बनाते थे। मेरे दादा जी एक कोच (लोहे के छोटे से रॉड से बना हथियार) से घड़ियालों को मारने की कोशिश करते थे लेकिन वे अक्सर कोच को तोड़कर बच निकलते थे। मल्लिक की बचपन की ज्यादातर यादें उस वक्त की हैं जब खुल्ना यूनिवर्सिटी के पास उनका गांव झारभंगा होता था, जो कि नदी की वजह से अब एक पुश्ते के रूप में तब्दील हो गया है।

तैरता हुआ घड़ियाल देखने में बेहद सुकून देने वाला लगता है [image courtesy: IUCN]
साल्टा नदी घड़ियालों के लिए मूल प्राकृतिक वास हुआ करती थी लेकिन कोस्टल एम्बैंकमेंट प्रोजेक्ट (सीईपी) लागू होने के बाद ऐसा होना बंद हो गया। ये प्रोजेक्ट 1960 से 1970 के बीच लागू हुआ। इस प्रोजेक्ट की वजह से नदी का प्राकृतिक प्रवाह नष्ट हो गया। ये सूखने लगी और घड़ियालों का प्राकृतिक वास खत्म हो गया। इसका परिणाम है कि घड़ियाल, जो कि लंबे, मोटे जबड़ों वाला, एक भारी उभरे हुए विकास वाला, जीव जिसे घाड़ा के रूप में जाना जाता था, बांग्लादेश में विलुप्त प्रजाति का जीव हो चुका है।

ये हालात तब और बदतर हुए जब बैराज और बांधों का निर्माण हुआ। इससे घड़ियालों की बची हुई छोटी संख्या विभाजित हो गई और ये धीरे-धीरे विलुप्त की श्रेणी में आ गये। लेकिन ऐसे वक्त में जब ऐसा लग रहा था कि ये दुनिया घड़ियालों की प्रजाति को हमेशा के लिए अलविदा कहने पर मजबूर हो जाएगी तब राजशाही जू के अंदर से एक उम्मीद बंधी है जहां घड़ियाल ने अंडे देने शुरू किये हैं।

शाहिद एएचएम कमरुजमां बोटेनिकल गार्डन एंड जू के एक वेटरनेरी सर्जन फरहाद उद्दीन ने thethirdpole.net से बातचीत में कहा कि मछुआरों ने 1974 में पद्मा नदी से दो मादा घड़ियाल पकड़े थे। मैंने उन्हें हासिल किया और राजशाही जू में रखा। बाद में 2017 में मैंने आईयूसीएन के साथ संबंधित सरकारी अधिकारियों से एक एक्सचेंज प्रोग्राम चलाने को लेकर बात की। आखिरकार मुझे एक मादा घड़ियाल को ढाका जू के एक घड़ियाल के साथ एक्सचेंज की अनुमति मिली, जहां करीब चार नर घड़ियाल मौजूद थे। बाद में हमने पाया कि 41 साल का नर घड़ियाल गोराइ ने 35 साल के मादा घड़ियाल पद्मा से मैथुन किया और यहां से हमें इस प्रजाति को बचाने की उम्मीद बंधी।

नर घड़ियाल गौराइ और मादा घड़ियाल पद्मा की अंतरंगता की एक धुंधली तस्वीर [image by: Forhad Uddin]
वह बताते हैं कि इस उम्मीद में एक निराशा भी सामने आई। सात महीने पहले फरहाद उद्दीन और जू के अन्य कर्मचारियों ने देखा कि घड़ियाल के सड़े हुए अंडे पानी में तैर रहे हैं। वह कहते हैं कि इसके पीछे एक कारण ये भी हो सकता है कि मादा घड़ियाल या तो अंडे से बच्चा उत्पन्न के लिए तैयार नहीं था या इस बारे में जागरूक नहीं थी। वह कहते हैं कि पहली बार तो ये अंडे नष्ट हो गये लेकिन उम्मीद है कि अगली बार अंडों से बच्चे निकलेंगे क्योंकि हमने एक बड़े पिंजड़े के अंदर बालू का एक बड़ा टापू बनाया है।

प्रजनन का अगर ये प्रोजेक्ट सफल होता है तो बांग्लादेश इस जंगली प्रजाति को एक बार फिर से हासिल करने में कामयाब हो सकेगा [image courtesy: IUCN]
एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत ढाका जू में एक मादा घड़ियाल भेजी गई थी वहां से अभी तक कोई अच्छी खबर नहीं मिली है। जू में चार घड़ियालों के केयरटेकर्स में से एक तहाबुर रहमान कहते हैं कि हम घड़ियालों पर लगातार इस बात की निगरानी करते हैं कि कहीं अंडे तो नहीं दिये लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है।

बांग्लादेश के इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर्स घड़ियाल प्रोजेक्ट के सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर एबीएम सरोवर आलम अभी भी उम्मीद बांधे हुए हैं और कहते हैं कि अंडे तक की खबर भी उत्साह बढ़ाने वाली है। पहली बार हमने देखा कि मादा घड़ियाल ने अंडे दिये हैं, ये अलग बात है कि अभी तक पूरा सपना साकार नहीं हुआ है। वह ये भी कहते हैं कि आने वाले ब्रीडिंग सीजन में हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जरूरी प्रयास करेंगे।

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