प्रकृति

पर्यटन बढ़ाने के नाम पर कश्मीर में हो रही पर्यावरण कानूनों की अनदेखी 

पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील इलाकों में भी पर्यटन को खूब बढ़ावा दिया जा रहा है। ऐसी जगहों में काफी निर्माण कार्य हो रहे हैं। इन हालातों को देखकर अस्थिर विकास की आशंका बढ़ती जा रही है।
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<p>भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर स्थित गुरेज घाटी, पारिस्थितिकी के लिहाज से संवेदनशील जगह है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान गुरेज में हजारों पर्यटक पहुंचे हैं। इस वजह से यहां बुनियादी ढांचे और अन्य निर्माण कार्यों में काफी तेजी आई है। (फोटो: लीला / आलामी)</p>

भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर स्थित गुरेज घाटी, पारिस्थितिकी के लिहाज से संवेदनशील जगह है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान गुरेज में हजारों पर्यटक पहुंचे हैं। इस वजह से यहां बुनियादी ढांचे और अन्य निर्माण कार्यों में काफी तेजी आई है। (फोटो: लीला / आलामी)

गुरेज घाटी नियंत्रण रेखा के पास है। नियंत्रण रेखा ही, कभी रियासत रहे जम्मू व कश्मीर को दो हिस्सों में बांटती है। एक हिस्सा भारत में है और दूसरा पाकिस्तान प्रशासन के अधीन है। 

यह जगह सामरिक यानी स्ट्रैटेजिक लिहाज से बेहद अहम है। यहां परमाणु शक्ति से लैस दो देश अक्सर आमने-सामने रहते हैं। सशस्त्र सेनाओं का जमावड़ा रहता है। 

ये सब उन कारणों में से एक हो सकता है, जिसके कारण इस क्षेत्र में अब तक बुनियादी ढांचे का सीमित विकास हुआ हो। 

लेकिन कोविड-19 के बाद से पर्यटन को बढ़ाने का एक अभियान सा छेड़ दिया गया है। इस वजह से, यहां की एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र से समझौता होता दिखाई दे रहा है।

एक स्थानीय निवासी मुजम्मिल खान कहते हैं, “गुरेज में अनियंत्रित कंक्रीट निर्माण कार्य चल रहा है।” उन्हें याद है कि जब दावर गांव में छह कमरों वाला केवल एक लकड़ी का गेस्ट हाउस था। पिछले तीन से चार वर्षों में, “इस छोटी सी घाटी में 20 से अधिक गेस्ट हाउस, 10 बहुमंजिला होटल और कई होम स्टे” बन गए हैं। 

29 वर्षीय खान, गुरेज के युवा संघ की अध्यक्षता करते हैं। यह संघ, क्षेत्र के पर्यावरण और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए काम करने वाला एक एनजीओ है।

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पर्यावरणविदों का आरोप है कि पर्यटन बढ़ाने के नाम पर गुरेज घाटी में काफी निर्माण कार्य चल रहे हैं। इससे यह जगह कंक्रीट के जंगल में बदल रही है। (फोटो: मुजम्मिल खान)

खान के संगठन को क्षेत्र में विकास से कोई समस्या नहीं है, केवल विकास के तरीके से समस्या है। 

संगठन के एक अन्य सदस्य अरसलाम असलम ने डायलॉग अर्थ को बताया कि “हमारे संगठन की मुख्य और तत्काल मांग यह है कि हमारे क्षेत्र का विकास हो, लेकिन पर्यावरण कानूनों को सख्ती से लागू किया जाए”। 

गुरेज, वनस्पतियों और जीवों की एक समृद्ध श्रृंखला का घर है। इनमें कस्तूरी मृग और स्थानिक मछली प्रजातियां शामिल हैं जो क्षेत्र की किशनगंगा नदी में पाई जाती हैं। 

खान का कहना है कि पर्यटन और उससे जुड़े बुनियादी ढांचे में वृद्धि से इन आवासों और नदी के पानी की गुणवत्ता पर दबाव पड़ेगा, “विशेष रूप से सीवेज ट्रीटमेंट सुविधा न होने की स्थिति में”। 

कानूनों को ठीक से लागू नहीं किया जा रहा

पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, कश्मीर घाटी में पर्यावरण कानूनों का कमजोर कार्यान्वयन एक महत्वपूर्ण समस्या है। 

एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद् फैज बख्शी कहते हैं कि जम्मू और कश्मीर वन (संरक्षण) अधिनियम और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम में “कुछ भी गलत नहीं है”, लेकिन “उन्हें सख्ती से लागू नहीं किया जा रहा है।” 

बख्शी कहते हैं, “इससे पर्यावरण को गंभीर नुकसान होता है, जैसा कि अब बंगस घाटी और गुरेज में देखा जा रहा है।” 

मैंने जो देखा है, वह यह है कि पर्यटन के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे के निर्माण और पर्यटन को बढ़ावा देने के दौरान पर्यावरण कानूनों को दरकिनार कर दिया जाता है।
सलीम बेग, संरक्षणवादी और जम्मू एवं कश्मीर में पर्यटन के पूर्व महानिदेशक 

गुरेज की तरह, बंगस घाटी भी पर्यावरण के लिहाज से महत्वपूर्ण है। कश्मीर विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग में पर्यावरण विशेषज्ञ और प्रोफेसर समी उल्लाह भट कहते हैं, “बंगस घाटी घास के मैदान के पारिस्थितिकी तंत्र की अनूठी विशेषताओं की पेशकश करने में अद्वितीय है। यहां आमतौर पर छोटी घासें होती हैं। यह जगह वनस्पतियों और जीवों की समृद्ध जैव विविधता का निवास स्थान है। इनमें कस्तूरी मृग, तीतर और मोनाल शामिल हैं।” 

उनकी आशंका यह है कि यहां तक लोगों की आसान पहुंच और इसके बाद आने वालों की बढ़ती संख्या ठोस अपशिष्ट प्रदूषण को बढ़ाएगी। 

डायलॉग अर्थ ने जम्मू और कश्मीर में पर्यटन के पूर्व महानिदेशक और एक प्रमुख संरक्षणवादी सलीम बेग से भी बात की। वह अब भारतीय राष्ट्रीय कला और सांस्कृतिक विरासत ट्रस्ट (आईएनटीएसीएच) के जम्मू एवं कश्मीर विभाग के प्रमुख हैं। 

बेग कहते हैं, “मैंने देखा है कि पर्यटन संबंधी बुनियादी ढांचे के निर्माण और पर्यटन को बढ़ावा देने के दौरान पर्यावरण संबंधी कानूनों को नजरअंदाज कर दिया जाता है।”

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गुरेज में किशनगंगा नदी के तट पर फेंका गया कचरा (फोटो: मुजम्मिल खान)

बेग 2006 में इस क्षेत्र की सुरक्षा के प्रयासों को याद करते हैं। वह कहते हैं, “पर्यटन मंत्रालय ने बंगस घाटी के विकास के लिए एक अध्ययन शुरू किया था। आईएनटीएसीएच को अध्ययन करने के लिए कहा गया था। हमने बंगस को बायोस्फीयर घोषित करने का प्रस्ताव दिया। जहां मुख्य बंगस मानव निर्मित हस्तक्षेप, जैसे कि बुनियादी ढांचे के विकास से सुरक्षित एक मुख्य क्षेत्र होगा। लेकिन आज, बंगस को सोनमर्ग और दूधपथरी [विकसित पर्यटन स्थल] जैसे खतरे का सामना करना पड़ रहा है।” 

2020 में बनी जम्मू और कश्मीर सरकार की पर्यटन नीति में पर्यावरण संरक्षण को समायोजित किया गया है। इसमें कहा गया है कि पर्यटन विभाग “सामाजिक और पर्यावरणीय पहलुओं पर विचार करके टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल पर्यटन के विकास को सुनिश्चित करेगा।” साथ ही, “सभी पर्यटन स्थलों में स्वच्छता और स्वच्छता के उच्च मानकों को बनाए रखा जाएगा।” 

इसमें यह भी कहा गया है कि “पारिस्थितिकी के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों” में “नई संरचनाएं और विस्तार” वन संरक्षण अधिनियम, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम और किसी भी अन्य प्रासंगिक अधिनियम या नियमों के अनुसार किए जाने चाहिए।

व्यवहार में, इन दिशा-निर्देशों का अक्सर पालन नहीं किया जाता है। यह कहना है एक स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता रसीख रसूल का, जिन्होंने मई में भारत के नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी में एक जनहित याचिका दायर की थी। 

वह बंगस घाटी में और उसके आसपास बेतरतीब निर्माण पर हस्तक्षेप चाहते हैं। रसूल बताते हैं, “वन संरक्षण अधिनियम में स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं कि सड़क का निर्माण केवल तभी किया जाना चाहिए जब कोई विकल्प न हो।” “लेकिन सरकार के संबंधित विभाग ने बंगस घाटी की ओर जाने वाली दो अन्य सड़कों के बावजूद, एक खुले, घने जंगल के बीच से सड़क बनाने का विकल्प चुना।”

रसूल का आरोप है कि सड़क परियोजना में कम से कम 25,000 वन वृक्षों को काटना शामिल था। हालांकि, राष्ट्रीय हरित अधिकरण को अपनी जून 2024 की रिपोर्ट में, सरकार ने केवल “1,023 कैल और देवदार के पेड़ों” को हटाने की बात स्वीकार की।

इसके अलावा, रसूल कहते हैं कि पिछले दो साल में बंगस में पांच लाख से ज्यादा पर्यटक आए हैं, लेकिन ठोस और तरल कचरे के निपटान के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है। हाल के हफ्तों में, स्थानीय और राष्ट्रीय प्रेस ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि किस तरह से गुरेज और बंगस क्षेत्र प्रदूषण और कुप्रबंधन से पीड़ित हैं। 

पर्यटन बढ़ने के प्रभाव 

भारत के पर्यटन मंत्री ने अगस्त के आखिर में एक घोषणा की। इसके मुताबिक इस दशक के अंत से पहले राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में पर्यटन क्षेत्र का योगदान 7.9 फीसदी से बढ़कर 10 फीसदी हो जाएगा। 

दस दिन बाद, जम्मू एवं कश्मीर में पर्यटन की कमिश्नर सेक्रेटरी यशा मुदगल ने विश्व बैंक की एक सभा में इस एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए कहा: “अतिरिक्त पर्यटन स्थलों के विकास की जरूरत पारंपरिक स्थलों पर दबाव को कम करने के लिए है, क्योंकि इन स्थानों पर इनकी क्षमता से ज्यादा पर्यटक आ रहे हैं।” 

बंगस और गुरेज का हवाला देते हुए, बेग कहते हैं कि सरकार द्वारा कम-ज्ञात पर्यटन स्थलों को बढ़ावा देने का मतलब है कि “पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में भारी हस्तक्षेप किया जा रहा है।”

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स्थानीय पर्यावरणविदों के अनुसार, सोनमर्ग में बुनियादी ढांचे के विस्तार ने इसके हेल्थ रिसॉर्ट की साख को कम कर दिया है (फोटो: अथर परवेज)

भारतीय शहरों के लिए आम तौर पर, मास्टर प्लान, शहरी सीमाओं के भीतर भूमि उपयोग को विनियमित करने के लिए बनाए गए सरकारी दस्तावेज हैं। 

सोनमर्ग जैसे पारंपरिक पर्यटन वाले क्षेत्रों में, पर्यटन में उछाल के सबूत देखे जा सकते हैं, जो सरकार के विनियमन या योजना बनाने के प्रयासों से कहीं ज्यादा है। 2020 के एक वैज्ञानिक अध्ययन ने हाई-रिजॉल्यूशन वाले उपग्रह डेटा का उपयोग करके यह पता लगाया कि, 2015 तक, सोनमर्ग पहले ही “2025 के लिए मास्टर प्लान के तहत निर्धारित अनुमानित विकास गतिविधियों के स्तर को पार कर चुका था”। 

यानी जितना ढांचागत विकास 2015 तक होना चाहिए था, उससे ज्यादा 2015 से पहले ही हो चुका था। 

योजना में 2025 तक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए लगभग 60 हेक्टेयर भूमि के उपयोग का प्रस्ताव है। अध्ययन में सोनमर्ग में लगभग 58 हेक्टेयर भूमि की पहचान की गई है। इसका उपयोग 2015 तक इस उद्देश्य के लिए किया जा चुका था।

यशा मुदगल के साथ ही, कश्मीर के पर्यटन निदेशक और इसके संभागीय आयुक्त से टिप्पणी प्राप्त करने के लिए ई-मेल, टेलीफोन और व्यक्तिगत रूप से कई प्रयास किए गए हैं। प्रकाशन के समय, डायलॉग अर्थ को अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी। 

हिमाचल और उत्तराखंड की आपदाओं से सीखना चाहिए 

गुरेज में, मुजम्मिल खान भविष्य को लेकर चिंतित हैं। एक आईटीआई के जवाब में, स्थानीय सरकारी अधिकारियों ने उन्हें बताया कि 1 मई से जुलाई की शुरुआत के बीच 10 सप्ताह में गुरेज में 46,026 पर्यटक आए। खान का अनुमान है कि, 2019 से पहले, पूरे वर्ष के लिए पर्यटकों की संख्या हजारों में रहती होगी। यह दसियों हजार तक कभी नहीं पहुंची। 

सुमित महार के अनुसार, भारतीय हिमालयी राज्य हिमाचल प्रदेश के लिए इसी तरह के पर्यटन उछाल “पहले से ही विनाशकारी” रहे हैं। महार, क्षेत्र के हिमधारा एनवायरनमेंट रिसर्च एंड एक्शन कलेक्टिव का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह 2020 में अटल सुरंग के उद्घाटन की ओर इशारा करते हैं, जिससे 2022 तक वार्षिक आगंतुकों की संख्या 130,000 से बढ़कर 740,000 हो गई। महार कहते हैं कि कथित घटिया सड़क निर्माण ने राज्य में 2023 की बाढ़ के प्रभावों को भी बढ़ा दिया।

भारत के एक अन्य हिमालयी राज्य उत्तराखंड में, महार का दावा है कि चार धाम सड़क परियोजना के लिए “पहाड़ों को अंधाधुंध काटा गया”, “अधिक पर्यटकों को लाने के लिए पर्यावरण मानकों की अनदेखी की गई”। वह कहते हैं कि “इसके परिणाम भूस्खलन, गांवों में [घरों में] दरारें और जल स्रोतों के सूखने के रूप में देखे जा रहे हैं।”

बेग का मानना है कि “हमारे जैसे देश में बड़े पैमाने पर पर्यटन को रोका नहीं जा सकता, जहां होटल व्यवसायी, ट्रैवल एजेंट, उभरता हुआ मध्यम वर्ग और – सबसे बढ़कर – सरकार पर्यटन को बढ़ावा दे रही है”। वह सरकार से “सस्ते आवास की सुविधा न देने” का आग्रह करते हैं, ताकि निम्न-गुणवत्ता वाले विकास को रोका जा सके।

खान कहते हैं कि ये चेतावनियां हैं जिन्हें कश्मीर नजरअंदाज नहीं कर सकता। “गुरेज़ घाटी में पर्यटन को नियंत्रित और विनियमित करने की तत्काल आवश्यकता है। अगर यह विनाश जारी रहा तो गुरेज देखने कौन आएगा?”