पूर्वी हिमालय के दूरदराज इलाके में बड़े पैमाने पर लोगों की आजीविका बुगुन लियोसिचला को देखने आने वाले पर्यटकों पर निर्भर है। बुगुन लियोसिचला चिड़िया की नई प्रजाति है। पुणे के रहने वाले मशहूर पक्षीविद रामना अथरेया ने वर्ष 2006 में अरुणाचल प्रदेश के ईगलनेस्ट वन्यजीव अभयारण्य में इस छोटी और बेहद खूबसूरत चिड़िया की खोज की थी। भारत की आजादी के बाद से यह अब तक की सबसे महत्वपूर्ण खोज रही है। बुगुन लियोसिचला पक्षी वर्ष 2006 से पहले अंतरराष्ट्रीय विज्ञान के लिए अज्ञात था।
बुगुन लियोसिचला पक्षी गौरैया चिड़िया की प्रजाति परिवार से निकटता रखती है। भारत में इसे पहली बार वर्ष 1995 में अरुणाचल प्रदेश में देखा गया था। वर्ष 2006 में इसकी पहचान नई प्रजाति के रूप में की गई। इस विलुप्तप्राय चिड़िया का नाम बुगुन जनजातीय समुदाय को सम्मान देने के लिए उसके नाम पर रखा गया है। इस समुदाय की सांस्कृतिक प्रथाओं में शिकार करने पर प्रतिबंधित, क्षेत्र की अमूल्य जैव विविधता के अस्तित्व को बनाए रखना जैसे नियम शामिल हैं। इस प्रजाति के पक्षियों की संख्या 14 से 20 है, जो 2,200 मीटर के क्षेत्र में रहते हैं और ये इलाका पूरी तरह से सिंगचुंग बुगुन के अंडर में आता है।
दुनिया भर से पूर्वोत्तर भारत में अरुणाचल प्रदेश के ईगलनेस्ट वन्यजीव अभयारण्य आने वाले पर्यटकों के आकर्षक के केंद्रों की सूची में पीले, लाल और हरे रंग के चमकदार पंखों वाली चिड़िया बुगुन लियोसीचला पहले नंबर पर होती है।
दुनिया भर में अब तक ईगलनेस्ट वन्यजीव अभयारण्य एकमात्र स्थान है, जहां बुगुन लियोसिचला की खोज हुई है। अब यह स्थान बेलीथ का ट्रैगोपन, वार्ड का ट्रोगन, सुंदर नटचैच और फायर टेल्ड मायजोर्निस जैसी प्रजातियों के चलते भारत और उसके बाहर पक्षी प्रेमियों के लिए एक विशेष स्थान बन गया है। पूर्वोत्तर भारत के इस क्षेत्र में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जैव विविधता हो सकती है, जबकि दूसरी उत्तरी एंडीज में है। साथ ही यहां दुनिया की लुप्तप्राय प्रजातियों की सघनता है।
बुगुन लियोसिचला चिड़िया शुरुआत में ईगलनेस्ट वन्यजीव अभयारण्य की सीमाओं के बाहर पाई गई थी। इसके बाद बुगुन समुदाय ने अरुणाचल प्रदेश के वन विभाग और शोधकर्ताओं के साथ मिलकर गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों के घर की औपचारिक रूप से रक्षा करने के लिए काम किया। इस पक्षी की वैश्विक आबादी एक अनुमान के तहत 50 से भी कम है। सिंगचुन बुगुन गांव 6 फरवरी, 2017 को अरुणाचल प्रदेश के वन विभाग की कोशिशों के बाद बनाया गया था। वर्ष 2017 में ही 17 वर्ग किलोमीटर में फैले सिंगचुंग बुगुन गांव को औपचारिक रूप से कम्युनिटी रिजर्व यानी सामुदायिक संरक्षित क्षेत्र घोषित किया, जिसमें इस प्रजाति के सभी ज्ञात प्रजनन क्षेत्रों को शामिल किया गया।
वर्ष 2019 में मंजूर की गई 10 वर्षीय प्रबंधन योजना के अनुसार, अरुणाचल प्रदेश वन विभाग की ओर से 10 कर्मचारियों के भुगतान समेत सामुदायिक संरक्षित क्षेत्र की सुरक्षा के लिए वार्षिक बजट मुहैया कराया जाता है, जबकि पर्यटकों से एकत्र किए गए प्रवेश शुल्क का उपयोग वन गश्ती के लिए पेट्रोल, बुगुन निवासियों, शोधकर्ताओं और वन विभाग के प्रतिनिधियों की एक प्रबंधन समिति का संचालन के लिए किया जाता था। हाल के वर्षों में प्रतिवर्ष करीब 200 विदेशी पर्यटकों ने इस क्षेत्र का दौरा किया, जिससे स्थानीय पक्षी गाइड को बड़ी संख्या ग्राहक मिले।
प्रबंधन योजना तैयार करने के दौरान किए गए एक आधारभूत सर्वेक्षण के मुताबिक, 92 फीसदी लोगों का मानना है कि क्षेत को सामुदायिक संरक्षित करना भविष्य की पीढ़ियों के लिए वनों की रक्षा करने का एक अच्छा तरीका है, जबकि 84 फीसदी का कहना है कि यह उनकी संस्कृति को संरक्षित करने में मदद करेगा।
ईकोटूरिज्म के लिए भारी झटका
भारत में मार्च, 2020 में कोरोना संक्रमण फैलने के बाद लॉकडाउन लगा दिया गया। तब से विदेशी पर्यटकों का आना बंद हो गया, जबकि घरेलू पर्यटकों की संख्या में 95 फीसदी तक की कमी आई। अगस्त, 2020 के बाद पहले लॉकडाउन में ढील दी गई, जिसके बाद घरेलू पर्यटकों का आना शुरू हो गया, लेकिन ईकोटूरिज्म की गाड़ी जब तक पटरी पर आती, उससे पहले ही कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने अपना कहर बरपाना शुरू कर दिया। इसके बाद से ईकोटूरिज्म एकदम ठप पड़ा हुआ है।
पिछले छह साल से ईगलनेस्ट वन्यजीव अभयारण्य क्षेत्र में फ्रीलैन्स बर्ड गाइड के तौर पर काम करने वाले डोम्बे प्रधान ने The Third Pole को बताया कि कोरोना महामारी से पहले की कमाई की तुलना में 20 फीसदी से भी कम आय हुई है। उन्होंने कहा, ‘किसी ने नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ भी हो जाएगा। जिन शहरों में गाइड का काम करते थे, वहां कोरोना संक्रमण के मामलों में वृद्धि होने के चलते चार ग्रुप ने अपनी बुकिंग अप्रैल, 2021 में कैंसिल कर दी।’ तेनजिंग ग्लो जिनके पिता इंडी ग्लो बर्ड टूरिज्म के खोजकर्ताओं में से एक थे ने कहा,’हमें अभी भी उम्मीद रखनी है कि कोरोना के बाद पर्यटक बड़ी संख्या में आएंगे।’
ग्लो परिवार के दो पर्यटक शिविर हैं, जहां से वे पर्यटकों को इलाके की सैर कराते हैं, विलुप्तप्राय प्रजाति के पक्षी दिखाने ले जाते हैं और आसपास के गांव के लोगों को रोजगार देते हैं। पर्यटकों की संख्या में कमी आने से उनके व्यवसाय को भारतीय मुद्रा के अनुसार करीब 10 लाख रुपये का नुकसान हुआ है। मौजूदा समय में वे अपने पांच कर्मचारियों को पूरा वेतन देने में असमर्थ हैं। उन्होंने कहा कि महामारी से पहले 10 से 12 लोग हमारे यहां स्थायी तौर पर कार्यरत थे, लेकिन अब उतना भुगतान नहीं कर सकते हैं, इसलिए जितना करने की स्थिति में हूं, उतना कर रहा हूं। मेरे कर्मचारी भी इस बात को समझ रहे हैं।
डोम्बे प्रधान आमतौर पर अक्तूबर और मई के बीच पक्षी देखने आने वाले 12 से 14 ग्रुप को लीड करते थे। बारिश के मौसम में वे पूर्वोत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में अकेले समय बिताते थे। इस दौरान वे पक्षियों को पहचान करने के लिए ज्ञान बढ़ाते थे। साथ ही टूर ऑपरेटरों के साथ अपना नेटवर्क भी बढ़ाते थे, लेकिन इस साल वह अपने परिवार के सदस्यों के साथ खेती के काम में मदद कर रहे हैं ताकि वे अपने परिवार के खाने के लिए पर्याप्त कमा सकें।
प्रधान ने कहा, ‘कोरोना वायरस के कारण हम और कुछ नहीं कर सकते हैं। वर्ष 2020 में कोविड-19 की पहली लहर के दौरान 60 किलोमीटर दूर दिरांग के एक टूर ऑपरेटर ने क्षेत्र के कुछ बर्ड गाइड और उनके परिवारों को मदद पहुंचाते हुए राशन व अन्य जरूरी सामान भेजे थे।
सिंगचुंग बुगुन गांव सामुदायिक संरक्षित के पास ही रहने वाले 28 वर्षीय बर्ड गाइड और अनुसंधान सहायक मीका राय ने कहा कि जंगल के पास ही रहने का लाभ मिला और टेंगा घाटी के कइ परिवार इस बात से सहमत होंगे कि जंगली फर्न (एक प्रकार का जंगली पौधा) ने हमें जीने में मदद की। मीका राय ने कहा कि पौधों की प्रजातियों जैसे— खाद्य सब्जी फर्न की कटाई करना और उसका इस्तेमाल करना सामान्य है। अब तक इसका कोई स्पष्ट प्रभाव नहीं देखा गया है।
फिर से बढ़ने लगे वन्यजीव और लचीला वन रक्षण
बर्ड गाइड ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान आमतौर पर शर्मीली प्रजाति के वन्यजीवों के दिखाई देने की प्रवृत्ति में बढ़ोतरी हुई है। इसके लिए पर्यटकों और प्लेबैक के न्यूनतम उपयोग (पक्षियों को बुलाने के लिए रिकॉर्डिंग बजाता ताकि वे प्रतिक्रिया दें और आसानी से दिखाई दे सकें।) को धन्यवाद दिया जा सकता है।
मीका राय ने कहा कि ब्लिथ ट्रैगोपान- एक प्रकार की तीतर की प्रजाति है, जिसे संरक्षित क्षेत्र से गुजरने वाली सड़क पर अक्सर देखा जाता है। राय ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान ऐसी ही बहुत सारी प्रजातियां देखीं गई। इस बीच, राय, तेनजिंग और डोम्बे सभी ने बताया कि बुगुन लियोसिचला को प्लेबैक का उपयोग किए बिना ही सामुदायिक संरक्षित क्षेत्र के भीतर पर्यटक शिविर शौचालयों के पीछे अक्सर देखा गया। राय ने बेहद दुर्लभ ही नजर आने वाली एशियाई सुनहरी बिल्ली को भी देखा है। इस दौरान हाथी परेशानी का सबब बन गए, जिन्होंने पिछले साल अक्तूबर में तेनजिंग ग्लो और उनके पिता के स्वामित्व वाले लामा शिविर में भोजन क्षेत्र को क्षतिग्रस्त कर दिया था। यह बुगुन लियोसिचला को देखने के लिए दुनिया की सबसे अच्छी जगह थी।
बुगुन फिल्म निर्माता और सामुदायिक संरक्षित क्षेत्र में फ्रंट-लाइन एंटी पोचिंग फॉरेस्ट स्टाफ सदस्य शालीना फिन्या ने The Third Pole को बताया कि कोरोना महामारी के दौरान वन विभाग और बुगुन समुदाय के 10 फ्रंट-लाइन कर्मचारी जंगलों की रक्षा के लिए हरसंभव प्रयास करते रहे। विशेषकर कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान जब स्थानीय लोगों ने अपने मनोरंजन के लिए शिकार करना शुरू कर दिया था। शालीना ने महामारी के दौरान यह देखते हुए कि खाद्य सामग्री मिलना मुश्किल हो जाएगा, अपना खुद का सब्जी उद्यान शुरू कर दिया। फिन्या ने बताया कि जब हम शिकार के बारे में सुनते हैं, तो हमारी टीम की एकता और बढ़ जाती है।
फ्रंट-लाइन कम्युनिटी रिजर्व स्टाफ ने जून के अंत में कोरोना वैक्सीन की पहली डोज ली। स्टाफ के सदस्य ‘कोविड ड्यूटी’ के साथ ही गश्त भी कर रहे हैं। ‘कोविड ड्यूटी’ में संक्रमण के नए मामले मिलने पर मिनी लॉकडाउन लागू कराने के लिए ग्राम परिषद और जिला प्रशासन के साथ काम करना शामिल है। फिन्या ने बताया कि जब हम कोविड की ड्यूटी में लगे होते हैं, तब हम एक-दूसरे को समझते हैं। उन्होंने कहा कि जंगल में गश्त और कोविड प्रबंधन में मदद सुनिश्चित करने के लिए एक टैग-टीम प्रणाली बनाई।
ईगलनेस्ट वन्यजीव अभयारण्य और सिंगचुंग बुगुन विलेज कम्युनिटी रिजर्व 3,500 वर्ग किलोमीटर कामेंग संरक्षित क्षेत्र परिसर का केवल एक छोटा टुकड़ा (217 वर्ग किलोमीटर) है, जो दो राज्यों और पांच संरक्षित क्षेत्रों में फैला हुआ है और जहां अलग-अलग तरह के खतरे हैं। सितंबर, 2020 में ईगलनेस्ट की सीमा तक सड़क निर्माण होने के बाद से संरक्षित क्षेत्र परिसर के निचले क्षेत्रों में अवैध कटाई और शिकार का खतरा मंडराता रहता है। उसी क्षेत्र में ईगलनेस्ट वन्यजीव अभयारण्य के बाहर एक गंभीर रूप से लुप्तप्राय चीनी पैंगोलिन को अप्रैल, 2021 में एक बिल के बाहर देखा गया था, जिसमें आग के लक्षण दिखाई दिए। दुनिया में सबसे अधिक तस्करी किए जाने वाले स्तनपायी पैंगोलिन का उपयोग धूम्रपान करने के लिए किया जाता है।
पर्यटन क्षेत्र के लिए ऊंट के मुंह में जीरा है सरकारी राहत
भारत के पर्यटन क्षेत्र के लिए वैश्विक महामारी की शुरुआत होने के करीब डेढ़ साल बाद जून, 2021 के अंत में एक वित्तीय राहत पैकेज की घोषणा की गई थी। जानकर हैरानी होगी कि कई लोगों से इस बारे में बात की, लेकिन क्षेत्र में प्रकृति आधारित पर्यटन के लिए पर्यटन राहत पैकेज का क्या मतलब है, यह किसी को भी नहीं पता था। जमीनी सुरक्षा के संदर्भ में कम्युनिटी रिजर्व स्टाफ के वेतन भुगतान में कोई खास देरी नहीं हुई, लेकिन अरुणाचल प्रदेश में अन्य संरक्षित क्षेत्रों के लिए ऐसा नहीं था। कोविड-19 से निपटने की मांगों के चलते स्वीकृत राशि का केवल 80 प्रतिशत ही जारी किया गया था। इस वित्तीय वर्ष नई अनिश्चितता ला सकता है क्योंकि धन एक के बजाय चार छोटी किस्तों में जारी किया जाएगा।
डोम्बे का कहना है कि उन्हें आशान्वित रहना है। घरेलू पर्यटक अभी भी उन्हें कॉल कर कहते हैं कि एक बार चीजें खुल जाएंगे तो वे इस क्षेत्र में आएंगे। लेकिन अभी कोरोना महामारी की दूसरी लहर चल रही है। इसे देखते हुए बुगुन समुदाय सख्ती बरत रहा है। ऐसे में अब समय ही बताएगा कि क्या वे इस अक्टूबर में पर्यटन सीजन को फिर से शुरू कर सकते हैं।