पूर्वोत्तर भारत में पहाड़ी राज्य नागालैंड पृथ्वी पर सबसे अधिक जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है। राज्य का आधे से अधिक हिस्सा अभी भी वनों से आच्छादित है। केवल एक छोटे से राष्ट्रीय उद्यान और दो वन्यजीव अभयारण्यों के साथ, नागालैंड के 88% वनों का स्वामित्व और प्रबंधन वहां के समुदायों द्वारा किया जाता है।
इस साल, दुनिया की सरकारें जैव विविधता पर विनाशकारी नुकसान और पारिस्थितिकी तंत्र के पतन को रोकने के लिए जैव विविधता पर कन्वेंशन के तहत लक्ष्य के एक नए ढांचे पर बातचीत कर रही हैं। इस ओर ध्यान गया है कि जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट में रहने वाले समुदायों के लिए 30% भूमि और समुद्र की रक्षा करने जैसे लक्ष्यों का क्या अर्थ होगा। ऐसी मान्यता को काफी बल मिल चुका है कि मूल निवासियों के अनुभव और दृष्टिकोण, संरक्षित क्षेत्र प्रबंधन और डिजाइन में सबसे महत्वपूर्ण होने चाहिए।
रम्या नायर एक शोधकर्ता हैं जो एक एनजीओ वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया (डब्ल्यूपीएसआई) के साथ जुड़ी हैं। ये भारत-म्यांमार सीमा पर थानामीर गांव, नागालैंड में एक प्रोजेक्ट का नेतृत्व कर रही हैं। यहां के मूल निवासी यिमखिउंग नागा लगभग 65 वर्ग किलोमीटर के सामुदायिक जंगल के मालिक हैं और वही उसका प्रबंधन करते हैं।
The Third Pole ने रम्या नायर के साथ बातचीत करके जानना चाहा कि किस तरह थानामीर के लोगों के साथ मिलकर किए गए उनके शोध का उद्देश्य, वन्यजीवों और स्थानीय आजीविका दोनों के हित में उनके जंगलों के प्रबंधन मूल निवासियों को प्रदान करने की संस्तुति का है। साथ ही यह भी जानने की कोशिश की गई कि किस तरह स्थानीय प्रथाओं ने किस तरह से जैव विविधता को जीवित रखा है।
The Third Pole (TTP): आपका प्रोजेक्ट कैसा बना और इसके उद्देश्य क्या हैं?
Ramya Nair (RN): यह प्रोजेक्ट तब शुरू हुआ जब स्थानीय समुदाय ने डब्ल्यूपीएसआई से संपर्क किया और कहा, ‘हम जानना चाहते हैं कि कौन से जानवर यहां रहते हैं और उनकी बेहतर सुरक्षा कैसे करें। डब्ल्यूपीएसआई की स्थानीय टीमों ने कुछ साल स्तनपायी विविधता पर तदर्थ सर्वेक्षण किया था, लेकिन कोई व्यवस्थित शोध नहीं हुआ था। मैं इस काम के इर्द-गिर्द बेहतर संरचना विकसित करने और मजबूत सामाजिक-पारिस्थितिक आधार रेखा तैयार करने के विचार के साथ प्रोजेक्ट में शामिल हुई। लेकिन हमारा ध्यान सिर्फ पारिस्थितिकी नहीं है। हम उन जटिल संबंधों को भी समझना चाहते हैं जो लोग प्राकृतिक दुनिया के साथ साझा करते हैं, जिसमें प्रकृति पर निर्भरता भी शामिल है। अंततः, हम वन प्रबंधन पर ग्राम परिषद को डाटा और सिफारिशें प्रदान करना चाहते हैं, जो पारिस्थितिक और सामुदायिक भलाई पर आधारित हैं।
हम जितना संभव हो सके प्रक्रिया के हर चरण में स्थानीय लोगों की समान भागीदारी के साथ एक सहयोगी मॉडल का पालन करने का प्रयास कर रहे हैं। हमारी आठ लोगों की टीम में सात स्थानीय निवासी हैं, जो सामुदायिक जंगल में कैमरा ट्रैप्स लगाने का काम कर रहे हैं। कैमरा ट्रैप्स लगाते समय, हम एक सप्ताह से लेकर 10 दिनों तक के लिए जंगल में जाते हैं। हम अक्सर सुबह-शाम बर्डिंग पर जाते हैं। इसके बाद वह अपनी आजीविका के लिए कामकाज करते हैं।
यह समुदाय ही है जिसने सबसे पहले पहल की और इस प्रोजेक्ट के लिए प्रेरित किया
TTP: इन वनों और उनके वन्य जीवन के सामने मुख्य खतरे क्या हैं?
RN: नकद आय के बहुत सारे स्रोत नहीं हैं, इसलिए अधिकांश लोग किसी न किसी तरह से प्रकृति पर निर्भर हैं। खेती काफी हद तक निर्वाह के लिए है और इससे ज्यादा आय नहीं होती है। सरकारी सहायता मिलना मुश्किल है। बच्चों के स्कूल की फीस जैसे बुनियादी खर्चों के लिए लोग लकड़ी काटने और सीमित शिकार पर निर्भर हैं। इससे जंगल और वन्य जीवन पर दबाव उत्पन्न होता है। हम वहां शिकार को समावेशी कह सकते हैं जहां एक स्वस्थ वन्यजीव आबादी है, स्थानीय प्रथाओं के साथ जुड़ा हुआ है और जहां खपत मुख्य रूप से स्थानीय स्तर पर है, लेकिन अगर ये निरंतर नकद आय के लिए किया जाने लगे तो इसको समावेशी नहीं कहा जा सकता।
TTP: वर्तमान में वन को किस प्रकार की सुरक्षा प्राप्त है?
RN: भारत के अधिकांश हिस्सों के विपरीत, नागालैंड के अधिकांश वन कानूनी रूप से स्थानीय समुदायों के स्वामित्व में हैं और वही इनका प्रबंधन करते हैं। प्रत्येक गांव का अपना जंगल होता है जिसमें विभिन्न प्रबंधन प्रणालियां होती हैं। ग्राम स्तर पर शासन ग्राम परिषदों के माध्यम से होता है। इसके साथ ही, बहुत सक्रिय छात्र संघ हैं जो शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
2014 में, थानामीर छात्र संघ ने जंगल में शिकार पर कई स्तरों पर प्रतिबंध लगाया। एक छोटा क्षेत्र है, शायद जंगल का 5 फीसदी, जहां सभी शिकार और निष्कर्षण निषिद्ध है। रिजर्व के दूसरे हिस्से में शिकार पर मौसमी पांच महीने के प्रतिबंध हैं। पूरे जंगल में प्रजाति-विशिष्ट के शिकार पर भी प्रतिबंध हैं। उदाहरण के लिए, टाइगर्स, हूलॉक गिबन्स, गाउर (दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के मूल निवासी), सांबर (हिरण) और ट्रैगोपन (तीतर की एक प्रजाति) पूरी तरह से प्रतिबंधित है।
भले ही नागालैंड में अब लगभग 98 फीसदी ईसाई हों, लेकिन राज्य के अधिकांश हिस्सों की स्थानीय मान्यताओं में एनिमिस्टिक बिलीफ और बाइबिल की शिक्षाओं का एक जटिल मिश्रण है। अधिकांश नागा लोगों के लिए बाघों का शिकार वर्जित है, और कई समुदायों में बाघों की आत्माओं के बारे में कथाएं अभी भी प्रचलित हैं। हालांकि, पिछले कई दशकों में बाघों का दिखना दुर्लभ होता गया है।
TTP: आपको किस तरह का वन्यजीवन मिला?
RN: यह शानदार था, हमें वन्यजीवों की बहुतायत मिली: रोडेंट्स को छोड़कर 23 स्तनपायी प्रजातियां। हमें क्लाउडेड लेपर्ड, एशियन गोल्डन कैट्स, मार्बल्ड कैट्स और लेपर्ड कैट्स, एशियाई जंगली कुत्ते, एशियाई काले भालू, भारतीय हिरण, लाल सीरो (एक जंगली बकरी), विशाल गिलहरी, चित्तीदार लिंसांग, पीले नेवले इत्यादि मिले। हमारे पास मैकाक की दो प्रजातियां भी थीं- असमिया मैकाक और स्टंप-टेल्ड मैकाक। इनमें से अधिकांश प्रजातियों से स्थानीय समुदाय परिचित था। बड़ों और शिकारियों को गोल्डन कैट की पहचान करने में थोड़ी परेशानी हुई। इसके पीछे एक बड़ा कारण इसका रंग भिन्नताओं का होना है। क्लाउडेड लेपर्ड के स्थानीय नाम पर भी अटकलें लगाई जा रही थीं, क्योंकि इसे बहुत कम लोगों ने देखा है।
हमें नागालैंड के राज्य पक्षी ब्लिथ ट्रैगोपान (Blyth Tragopan) की कुछ बेहद शानदार तस्वीरें मिलीं। हमें पता चला कि मौसमी शिकार पर प्रतिबंध पक्षियों को ध्यान में रखकर लगाया गया था। यह प्रतिबंध उन स्थानों पर है जहां लोगों का कहना था कि यहां पक्षी पनपते हैं। हम पक्षियों की आबादी की व्यवस्थित रूप से निगरानी करके इसका परीक्षण करना चाहते थे। इसलिए हमने पक्षी विविधता और आबादी का सर्वेक्षण करने के लिए प्रशिक्षण लिया। तीन महीनों के भीतर, हम 210 से अधिक पक्षी प्रजातियों का दस्तावेजीकरण कर चुके हैं।
मेरी टीम को सैकड़ों पक्षी प्रजातियों का अविश्वसनीय स्थानीय ज्ञान है, जिसमें उनके व्यवहार और प्रवासी पैटर्न शामिल हैं। अब वे अंग्रेजी नाम, फील्ड गाइड का उपयोग कैसे करें और सर्वेक्षण कैसे करें इत्यादि सीखने के लिए वास्तव में कड़ी मेहनत कर रहे हैं। यह उन्हें काफी विदेशी लग सकता है क्योंकि वे शिकारी हैं, इसलिए यह सामान्य रूप से पक्षियों और जानवरों के साथ उनके संबंधों में एक अलग आयाम ला रहा है। वे अब स्वतंत्र रूप से पक्षी विविधता और जनसंख्या पर सर्वेक्षणों के माध्यम से डाटा एकत्र करते हैं, और इस डाटा को सिटीजन साइंस प्लेटफार्मों जैसे ईबर्ड (eBird) पर साझा करते हैं।
TTP: क्या इस क्षेत्र में बहुत अधिक पारिस्थितिक पर्यटन गतिविधि है?
RN: थानामीर सामुदायिक वन में नागालैंड की सबसे ऊंची चोटी – माउंट सारामती- है। इसलिए बहुत सारे ट्रैकर्स कोविड से पहले आते रहे हैं। अभी हालांकि यहां पक्षी संबंधी कोई भी इकोटूरिज्म नहीं है। हम इस पर काम करने की कोशिश कर रहे हैं। प्रशिक्षण के साथ हमारा इरादा एक निगरानी प्रणाली स्थापित करना और हमारी टीम को बर्ड गाइड बनने में मदद करना था। यह एक अविश्वसनीय जगह है, भले ही आप गांव में घूमें, आप अक्सर एक घंटे में 30-40 प्रजातियां देख सकते हैं, जिनमें बहुत सारे दुर्लभ मौसमी प्रवासी भी शामिल हैं।
TTP: इस परियोजना में कितनी महिलाएं शामिल हैं?
RN: दुर्भाग्य से मैं टीम में अकेली महिला हूं। यह कुछ ऐसा था जिसने मुझे शुरुआत में परेशान किया। जंगल को पुरुषों का स्थान माना जाता है। यह काफी हद तक पितृसत्तात्मक समाज है। टीम में शामिल होने के लिए अधिक स्थानीय महिलाओं को ढूंढना और उनका सहयोग करना अब हमारी प्राथमिकता है।
TTP: क्या आप उम्मीद करती हैं कि जिस आधार रेखा पर आप काम कर रही हैं, वह इस क्षेत्र में समावेशी शिकार को परिभाषित करने में मदद कर सकती है?
RN: मुझे उम्मीद है कि लंबे समय में यह हो सकता है। यदि हम परिभाषित नहीं भी कर सकते, तो भी इस तथ्य पर अधिक प्रकाश डाल सकते हैं कि कुछ स्तर तक के शिकार के साथ स्वस्थ वन्यजीव आबादी बनी रह सकती है, खासकर जब लोगों के वन्यजीवों के साथ इस तरह के परस्पर संबंध होते हैं।
TTP: आप कैसे कहेंगी कि आपका प्रोजेक्ट अन्य संरक्षण परियोजनाओं से अलग है?
RN: सबसे अहम बात यह है कि समुदाय ने ही सबसे पहले पहल की और इस प्रोजेक्ट के लिए प्रेरित किया। शिकार के संबंध में हम जो बारीकियां और संवेदनशीलता लाने की कोशिश कर रहे हैं, वह मेरे लिए सबसे अलग है। हम इस पर कोई नैतिक रुख नहीं अपना रहे हैं, और हम बाहरी लोगों के रूप में आने और इसे तुरंत बदलने की कोशिश करने के बजाय पहले से मौजूद प्रणाली के माध्यम से काम कर रहे हैं। मुझे नहीं लगता कि शिकार को पूरी तरह से मिटाया जा सकता है, या इस तरह के लैंडस्केप में भी होना चाहिए। नागालैंड में खाने की आदतों के बारे में बहुत कुछ कहा गया है कि कैसे भारत के बड़े पॉलिटिकल लैंडस्केप में यहां खाए जाने वाले भोजन को भोजन नहीं माना जाता है। मुझे लगता है कि जब हम इस तरह के लैंडस्केप में आते हैं और शिकार पर नैतिक दृष्टिकोण रखते हैं, तो यह स्थानीय लोगों के लिए अपमानजनक हो सकता है और शिकार के आसपास की प्रेरणाओं का अनादर और अवहेलना भी कर सकता है।
मानव इतिहास में शिकार करना कोई नई बात नहीं है। वास्तव में, अगर अधिकांश विकासवादी इतिहास की बात करें तो आधुनिक मानव शिकारी-संग्रहकर्ता के रूप में मौजूद रहे हैं। और आज भी, विलुप्त होने के चल रहे संकट के युग में, सभी शिकार समान नहीं हैं।
यह सारा का सारा बहुत गहन और वैश्विक व्यापार के लिए नहीं है। बहुत से लोग आसानी से शिकार को व्यापार या सिर्फ प्रोटीन के सेवन से जोड़ते हैं, लेकिन हम अक्सर इस बात से चूक जाते हैं कि जंगली मांस के लिए लोगों की प्राथमिकता हो सकती है और लोग शिकार किए गए जानवर के साथ जटिल संबंध बनाए रखते हैं। कई लोगों के लिए जंगली जानवरों के कई अर्थ होते हैं। हमें इन मौजूदा जैव-सांस्कृतिक प्रणालियों के साथ सम्मानजनक, सूक्ष्म और खुले विचारों वाले तरीके से पेश आने की जरूरत है। हम पहले से ही जरूरी बदलाव को प्रेरित करने के मामले में पीछे हैं।
स्थानीय नेतृत्व ने हमेशा इन जंगलों को कायम रखा है और मुझे आशा है कि यह जारी रहेगा
TTP: इस काम के प्रभाव के लिए आपकी क्या उम्मीदें हैं?
RN: मुझे उम्मीद है कि यहां के युवा और आम जनता इस काम को आगे बढ़ाएगी। स्थानीय नेतृत्व ने हमेशा इन जंगलों को कायम रखा है और मुझे उम्मीद है कि यह जारी रहेगा। मैं यह भी उम्मीद कर रही हूं कि यह पड़ोसी समुदायों को नेतृत्व करने और संरक्षण पर अधिक बातचीत में संलग्न होने के लिए प्रेरित करेगा।
एक और चीज जिसकी मैं उम्मीद कर रही हूं, वह यह है कि हम स्थानीय संरक्षण के वैकल्पिक मॉडल देखते हैं, विशेष रूप से नागालैंड जैसे लैंडस्केप में जहां शिकार जटिल और बहुआयामी है। नागालैंड से बहुत सारे नैरेटिव निकलते हैं कि ये खाली जंगल हैं, सब कुछ शिकार कर लिया गया है। लेकिन जब आप वास्तव में ऐसे स्थानों के साथ अधिक अर्थपूर्ण तरीके से जुड़ते हैं, न कि खारिज करने के तरीकों से, तो यह वास्तव में आपको आश्चर्यचकित करने की क्षमता रखता है। लोग आपको आश्चर्यचकित करते हैं और जिस तरह से वे साथ रहते हैं और वन्यजीवों के साथ जुड़ते हैं, वह बहुत गूढ़ है। इन बारीकियों को सामने लाने से संरक्षण के बारे में हमारे सोचने के तरीके को बदलने और लोगों के साथ अधिक सार्थक, न्यायसंगत और सम्मानजनक तरीके से जुड़ने की क्षमता बढ़ती है।