प्रकृति

लौट आई असम के मानस नेशनल पार्क की शोभा

असम में बोडोलैंड विद्रोह की समाप्ति ने मानस नेशनल पार्क में प्राण फूंक दिए। यहां 22 से अधिक लुप्तप्राय प्रजातियां आकर्षण का केंद्र हैं।
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<p>असम के मानस नेशनल पार्क में लेपर्ड (Image: Alamy)</p>

असम के मानस नेशनल पार्क में लेपर्ड (Image: Alamy)

जतिन गायरी पूर्वोत्तर भारत में हिमालय की तलहटी स्थित असम के मानस राष्ट्रीय उद्यान पार्क में बाघ को देखकर हर बार खुशी से झूम उठते हैं। 40 वर्षीय जतिन कहते हैं, ‘मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि मैं उस दिन का साक्षी बनूंगा, जब वन्यजीव एक बार फिर उद्यान पर राज करेंगे। ऐसा लगता है जैसे कोई सपना साकार हो गया हो। हमने इस बात की उम्मीद ही छोड़ दी थी कि मानस राष्ट्रीय उद्यान की मूल जैव विविधता फिर से देखने को मिलेगी, लेकिन उन कड़े प्रयासों का अभार, जिनके चलते उद्यान में फिर से बहार छा गई।

जतिन गायरी बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) की ओर से भर्ती और भुगतान किए जाने वाले सेवा प्रदाताओं में से एक हैं। यह स्वायत्त जिला परिषद इस क्षेत्र के प्रशासनिक कार्य संभालती है। साथ ही वन विभाग के साथ काम करने का अनुबंध करती है।

बोडो आंदोलन बन गया था मानस की तबाही कारण

ब्रह्मपुत्र के उत्तरी तट के पास असम के बक्सा और चिरांग जिलों में ​स्थित मानस राष्ट्रीय उद्यान बोडो के लिए अलग राज्य की मांग करने वाले अलगाववादी आंदोलन से बुरी तरह प्रभावित हुआ था। बोडो यहां का मूलनिवासी समुदाय है, जिनकी अधिकांश आबादी जंगल और उसके आसपास रहती है। असम में अलग राज्य की मांग को लेकर राज्य सरकार और विद्रोहियों के बीच 1987 में हिंसक झड़पें शुरू हुईं, जो दो दशक से अधिक समय तक जारी रहीं। इस दौरान विद्रोही अक्सर इस जंगल में छिप जाते, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में से एक है, जहां सुरक्षाबलों के लिए प्रवेश करना मुश्किल होता था।

असम में पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण के लिए काम करने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन आरण्यक का बाघ अनुसंधान और संरक्षण प्रभाग के प्रबंधक दीपांकर लहकर ने बताया, ”सशस्त्र अलगाववादियों ने छिपने के लिए मानस राष्ट्रीय उद्यान को इसलिए चुना क्योंकि यह अरुणाचल प्रदेश और पड़ोसी राष्ट्र भूटान से सटा हुआ है, जिससे विद्रोहियों को पुलिस से बचकर भागने निकलने और जंगल में छिपने में ​मदद मिलती थी।

इसका परिणाम यह हुआ कि बड़ी तादाद में जंगली जानवरों का शिकार और तस्करी हुई। इस दौरान, भारत-भूटान सीमा पर फैला है और मानस नदी के दोनों किनारों पर स्थित इस जंगल में सरकारी अधिकारी और वन रक्षक भी जाने से बचते थे। बता दें कि मानस नदी भूटान से बहकर भारत में ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है। 

850 वर्ग किलोमीटर मानस राष्ट्रीय उद्यान 2,837 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले मानस टाइगर रिजर्व का केंद्र है। भूटान सीमा की ओर इसी तरह का रॉलय मानस नेशनल पार्क है, जो भूटान का सबसे पुराना संरक्षित इलाका है।

जमकर हुई जानवरों की अवैध तस्करी

Manas National Park (image: Gurvinder Singh)
पूर्वोत्तर भारतीय राज्य असम में हिमालय की तलहटी में स्थित है मानस नेशनल पार्क (Image: Gurvinder Singh)

दीपांकर लहकर के मुताबिक, तस्करों ने खुली सीमा का फायदा उठाकर जानवरों के अंगों की चीन में तस्करी की। चीन की पारंपारिक चिकित्सा के लिए वहां जंगली जानवरों की हड्डियां, खाल और बालों की भारी मांग रहती है, लेकिन वैज्ञानिक प्रमाण नहीं होने के चलते उसका कोई औषधीय महत्व नहीं है। बोडो विद्रोह के दौरान मानस राष्ट्रीय उद्यान में 70 से अधिक एक ​सींग वाले गैंडों को उनके सींग के लिए मार दिया।

दीपांकर याद करते हुए बताते हैं कि वन्यजीवों को मांस और अवैध व्यापार के लिए बेरहमी से मारा गया। विद्रोहियों को भोजन पहुंचाने वाले शिकारियों ने भी जानवरों का शिकार किया। इसके चलते धीरे-धीरे मानस राष्ट्रीय उद्यान की पूरी वनस्पति और जीव-जंतुओं का सफाया हो गया। मानस से करीब 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित बारपेटा रोड से अपना कार्यालय चलाकर वन​ विभाग पूरी तरह से निष्क्रय हो गया। जानवरों की सुरक्षा के लिए उद्यान के अंदर कोई नहीं था।

इस क्षेत्र में लंबे समय से अस्थिरता बनी हुई थी, लेकिन 2003 के बाद स्थिति में तब सुधार शुरू हुआ, जब भारत सरकार और विद्रोही समूहों के बीच बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इसमें बोडोलैंड टेरीटोरियल काउंसिल (बीटीसी) द्वारा शासित एक नया अर्ध-स्वायत्त प्रशासनिक क्षेत्र शामिल है।

वन्यजीवों की रक्षा के लिए पहल शुरू

बीटीसी बनने के बाद वन विभाग के अधिकारी और गार्ड वापस चले गए। मानस राष्ट्रीय उद्यान के फील्ड डायरेक्टर अमल चंद्र सरमा ने द थर्ड पोल को बताया कि विद्रोही आंदोलन के वक्त स्थिति बेहद भयानक थी। वन शिविरों पर हमले किए गए, हथियार छीन लिए गए और 14 से ज्यादा वनकर्मी मारे गए। संरक्षण के प्रयास बुनियादी ढांचे में सुधार और स्थानीय समुदायों को जंगल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए शामिल करने के साथ शुरू हुए।

मानस राष्ट्रीय उद्यान की पुनरुद्धार प्रक्रिया को याद करते हुए सरमा कहते हैं, ”वर्ष 2008 में असम के पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य से एक गैंडे को लाया गया। वर्ष 1989 से पहले उद्यान में करीब 70 से अधिक गैंडे थे, लेकिन विद्रोही आंदोलन के दौरान सभी मारे गए। गैंडों के अलावा हमारी चिंता बाघों के लिए थी, जो रिजर्व में दिखाई नहीं दे रहे थे। 2005-06 में कैमरे पर एक बाद्य नजर आया, जिससे हमारा आत्मविश्वास बढ़ा। इसके बाद हमने निगरानी तेज कर दी। कुछ शिकारियों को जंगल की सुरक्षा के लिए सेवा प्रदाता के रूप में भर्ती किया। वर्ष 2011 में हुई भारत और भूटान सीमा पर मानस संरक्षण क्षेत्र की स्थापना पुनरुद्धार प्रक्रिया में नींव का पत्थर साबित हुई। इसका उद्देश्य दोनों देशों की ओर से संयुक्त रूप से जंगल के विकास और प्रबंधन के लिए प्रयासों में समन्वय बनाना था। ”

Jatin Gayary (image: Gurvnder Singh)
सेवा प्रदाताओं में से एक जतिन गायरी, मानस नेशनल पार्क में जंगलों की रक्षा करते हैं। (Image: Gurvinder Singh)

अभी मानस में जतिन गायरी और उनके 134 सहयोगी हैं, जो बीटीसी की ओर भर्ती किए गए सेवा प्रदाता हैं। ये लोग राष्ट्रीय उद्यान की जैव-विविधता को सुरक्षित रखने के लिए हर रोज अपनी जान को जोखिम में डालते हैं। जतिन बताते हैं, ”जंगल में कई बार हम लोगों को शिकारियों का सामना करना पड़ता है। कई बार उनके साथ मुठभेड़ भी हुई। हमने कई शिकारियों को गिरफ्तार कर उनके हथियार जब्त करने में वन विभाग की मदद की।”

इस तरह धीरे-धीरे जंगल फिर से हराभरा हो गया। कैमरा ट्रैप से पता चला कि बाघों की आबादी- एक कीस्टोन प्रजाति जो पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को दर्शाती है की संख्या 2011 में बढ़कर 11 हो गई। यह संख्या 2015 में बढ़कर 15, 2020 में 30 और इस साल 48 पहुंच गई है।

आरण्यक और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के साथ मिलकर असम वन विभाग की ओर से एनुअल कैमरा ट्रैप सर्वे के माध्यम से मानस राष्ट्रीय उद्यान में बाघों की गणना 2010 से की जा रही है।

A member of a WWF India team installs a camera trap in Manas National Park (image: Gurvinder Singh)
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया की टीम मानस नेशनल पार्क में कैमरा ट्रैप सर्वे का काम कर रही है। (Image: Gurvinder Singh)

असम में अब करीब 200 से बाघ हैं। राज्य में सबसे अधिक बाघों के मामले में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के बाद मानस दूसरे नंबर पर है। 

वन विभाग के मुताबिक, मानस राष्ट्रीय उद्यान में बाघों के अलावा अब 47 गैंडे, 1,000 से अधिक जंगली हाथी और 22 से अधिक लुप्तप्राय प्रजातियां मौजूद हैं, जिनमें पिग्मी हॉग, क्लाउडेड लेपर्ड, असम रूफ्ड टर्टल, हिसपिड हरे, गोल्डन लंगूर, और बंगाल फ्लोरिकन आदि शामिल हैं। इसके अलावा, यह जंगल बारहसिंगा, जंगली भैंसे, एशियाई वाइल्ड डॉग, लेपर्ड और काली गर्दन वाले सारस के लिए भी प्रसिद्ध है।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम कर रहा वन पुनरुद्धार

इस वन क्षेत्र के पुनरुद्धार से भारत और भूटान की सीमा के पूरे इलाके में भूजल की समस्या से राहत मिली है। साथ ही वर्ष भर नदियों और नालों में पानी बहता रहता है। इसमें दक्षिण एशिया में वार्षिक मानसून से पहले के सबसे शुष्क महीने भी शामिल हैं। बता दें कि जलवायु परिवर्तन ने मानसून की वर्षा को और अधिक अनिश्चित बना दिया है, जिससे सूखा और बाढ़ जैसी समस्याएं बढ़ गईं। इस स्थिति में किसानों को साल भर पानी की सप्लाई मिलना किसी वरदान से कम नहीं है।

भूटान और भारत में बॉर्डर के पास के गांवों के लोगों ने स्थानीय स्तर पर​ ‘सिंचाई और बाढ़ चेतावनी प्रणाली’ को संयुक्त रूप से विकसित करके बड़ी मदद की है। इस प्रणाली को विकसित के लिए इन लोगों ने दोनों देशों की राजधानियों और नौकरशाही से किसी तरह का सहयोग नहीं लिया है।

संरक्षण में एनजीओ निभा रहे बड़ी भूमिका

स्थानीय निवासियों की जंगल पर निर्भरता कम करने के लिए आरण्यक एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। एनजीओ आरण्यक से जुड़े वाइल्डलाइफ बायोलॉजिस्ट फिरोज अहमद ने The Third Pole को बताया, ”वर्ष 2016 में हमने जंगल के करीब रहने वाले 1,400 घरों के साथ मिलकर काम करना शुरू किया। हमने उन्हें कृषि, ऑर्गेनिक डाई मेकिंग, बुनाई समेत अन्य कौशल के लिए प्रशिक्षित किया। हमने उनके बीच पशुधन भी वितरित किया। इस सबका उद्देश्य उन्हें ​वैकल्पिक आजीविका प्रदान करना था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे नियमित रूप से जंगल ना जाएं।”

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के लैंडस्केप कॉर्डिनेटर देबा कुमार दत्ता बताते हैं कि कोरोना महामारी के प्रसार को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के दौरान दक्षिण एशिया के कई जंगलों में अवैध शिकार बढ़ गया, लेकिन पर्यटन की दृष्टि से अहम मानस राष्ट्रीय उद्यान को शोर और इंसानी गतिविधियों की कमी का फायदा मिला। कोरोना के दौरान उद्यान को पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया था। इस दौरान, बाघों और अन्य जानवरों की आबादी में बढ़ोतरी देखने को मिली। इसके अलावा, हमने पार्क के भीतर 262 हेक्टेयर में आवास और घास के मैदान तैयार किए हैं।

पिछले साल भारत और भूटान के दो निकटवर्ती संरक्षित क्षेत्रों ने संयुक्त रूप से ‘ग्लोबल टाइगर कंजर्वेशन एक्सीलेंस अवार्ड’ जीता। इसके बाद आईयूसीएन-डब्ल्यूसीपीए का इंटरनेशनल रेंजर अवार्ड भी मिला।

पर्यटन को बढ़ावा देना है उद्देश्य

वन विभाग ने कोरोना महामारी के चलते लागू पाबंदियों में ढील मिलने के बाद से पर्यटन को बढ़ावा देने के अपने प्रयास तेज कर दिए हैं। 12 ​अगस्त को विश्व हाथी दिवस, उद्यान के 48 पालतू हाथियों के साथ मनाया गया, जिनको स्वास्थ्य जांच और स्नान के बाद गश्त करने वालों ने फलों की टोकरियां दीं।

Domesticated elephants of the Assam forest department being fed on World Elephant Day, 12 August (image: Gurvinder Singh)
असम वन विभाग के पालतू हाथियों को विश्व हाथी दिवस, 12 अगस्त 2021 को खिलाया जा रहा है (Image: Gurvinder Singh)

भारत में हाथियों के डॉक्टर के तौर पर लोकप्रिय वरिष्ठ पशु चिकित्सक केके सरमा ने बताया कि दो साल पहले उत्तर प्रदेश के दुधवा नेशनल पार्क में इस तरह का कार्यक्रम देखन के बाद हमने पहली बार मानस में यह आयोजन किया। उनका कहना है कि इस तरह के आयोजन से उग्रवाद से प्रभावित हुए मानस राष्ट्रीय उद्यान की ओर लोगों का ध्यान फिर से आकर्षित करने में मदद मिलेगी। साथ ही पर्यटन और वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा भी मिलेगा।

(इस आलेख में एडिशनल रिपोर्टिंग Joydeep Gupta की है)

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