सुकेन गायारी को 15 दिसंबर, 2021 की रात एक झटका लगा। पूर्वोत्तर भारतीय राज्य असम के डौरेबारी गांव के रहने वाले बुजुर्ग ने अभी-अभी रात का खाना खत्म किया था और रात बिताने की तैयारी में लगे ही थे कि उनके रसोईघर में जोर की गड़गड़ाहट सुनाई दी। गायारी आवाज की ओर दौड़े और देखा कि रसोई का दरवाजा टूटा हुआ था। जब उन्होंने अंदर झांका, तो घबरा गये और देखा कि एक बड़ा काला भालू बचे हुए चावल और करी के बर्तन का स्वाद ले रहा है।
गायारी कहते हैं, “भालू ने 18 अंडे और कुछ चूजे भी खाए थे, जो हाल ही में पैदा हुए थे।” इस झटके के बाद भी उन्होंने कोई आवाज नहीं की। वह बताते हैं, “मैं चुपचाप अपने कमरे में चला गया। भालू अंततः सो गया और पूरी रात रसोई में रहा। सुबह साढ़े छह बजे पहुंचे वन अधिकारियों को मैंने इसकी सूचना दी। उन्होंने भालू को शामक औषधि देकर शांत किया और बाद में उसे जंगलों में छोड़ दिया।”
एक पशु चिकित्सक ने उसका चिकित्सीय परीक्षण किया। इसकी पहचान एक वृद्ध एशियाई काले भालू के रूप में हुई, जिसके बारे में संदेह था कि वह जंगलों में भोजन के लिए शिकार करने के लिए संघर्ष कर रहा था।
भालू के देखे जाने में अचानक वृद्धि
गायारी के घर में भालू का आना, हिमालय की तलहटी में स्थित मानस नेशनल पार्क के आसपास की कई हालिया घटनाओं में से एक है।
मानस टाइगर रिजर्व (मानस नेशनल पार्क का मुख्य हिस्सा) के प्रभात बसुमतारी और वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के दाओहारू बारो के अनुसार, अक्टूबर 2021 और फरवरी 2022 के बीच, 18 मौके ऐसे थे, जब एशियाई काले भालू, राष्ट्रीय उद्यान की सीमा के बाहर देखे गए थे और उनको दोबारा जंगलों में ले जाकर वापस छोड़ना पड़ा। दोनों पशु चिकित्सा अधिकारी हैं जो राष्ट्रीय उद्यान से बाहर भटकने वाले जानवरों को पकड़ने और उनकी देखभाल करने के प्रभारी हैं। द् थर्ड पोल को बताया गया कि दो मौकों पर भालुओं ने लोगों पर हमला भी किया हालांकि पहले भालुओं को उकसाया गया था।
इसके विपरीत, अधिकारियों के रिकॉर्ड के अनुसार, 2009 और 2016 के बीच केवल आठ ऐसी घटनाएं हुई थीं। बासुमतारी कहते हैं कि पिछले वर्षों के समान आंकड़ों के साथ 2017 और 2020 के बीच औसतन एक साल में, एक भालू, पार्क के बाहर देखा गया था। लेकिन अकेले नवंबर 2021 में पांच ऐसी घटनाएं थीं, जिनमें भालुओं को वापस जंगलों में ले जाना पड़ा। अगले महीने ऐसी 10 घटनाएं हुईं। मार्च 2022 में इनका इस तरह दिखना बंद रहा है। सीमा पार पड़ोसी देश भूटान से भी ऐसी सूचनाएं मिलीं जिनमें भालू जंगलों से बाहर निकले और हमले किये।
गायारी का गांव डौरेबारी, मानस नेशनल पार्क के किनारे लगभग 50 बस्तियों में से एक है, जो 950 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है। यह भारत के वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की अनुसूची 1 में सूचीबद्ध 21 जानवरों की प्रजातियों का घर है – जिन्हें सबसे अधिक संरक्षण दिया गया है। एशियाई काला भालू, पूर्वोत्तर भारत में पाए जाने वाले भालुओं की तीन प्रजातियों में से एक है। इनके साथ, यहां स्लॉथ बियर और सन बियर भी पाये जाते हैं।
हालांकि भालुओं का कभी-कभार मानस नेशनल पार्क की सीमाओं से भटक जाना आम बात है, लेकिन बढ़ी हुई संख्या ग्रामीणों और वन अधिकारियों के लिए चिंता का विषय बन गया। कुछ भालू जंगल से 10-12 किलोमीटर दूर निकल गये और मानव बस्तियों में भटक गए। उनमें से ज्यादातर वयस्क नर थे, जिनका वजन कम से कम 80 किलोग्राम था। ग्रामीणों ने बकरी, सुअर और मुर्गी सहित अन्य पशुओं के नुकसान की सूचना दी है। देश के इस हिस्से में मानव-हाथी संघर्ष सामान्य है, लेकिन मानव-भालू संघर्ष पहले काफी हद तक अनसुना था।
डौरेबारी के पास राजाबील गांव में रहने वाले बुजुर्ग रूपनल खेरकतारी कहते हैं, “5 दिसंबर की रात, एक भालू ने मेरे पड़ोसी के घर में एक छोटी बकरी खा ली। भालू ने बकरी के दो अंगों को छोड़ दिया। मैंने ऐसी घटनाओं के बारे में पहले कभी नहीं सुना या देखा। ”
मानस टाइगर रिजर्व के वन पशु चिकित्सा अधिकारी प्रभात बसुमतारी बचाव के 18 में से 13 मामलों में शामिल रहे हैं। वह कहते हैं, “मैं जबसे 2006 में मानस में आया, मुझे भालुओं के मानव बस्तियों में भटकने के कुछ मामले मिले लेकिन ये बहुत कम थे। लेकिन यह पिछले साल अभूतपूर्व ढंग से ऐसे मामले बड़े पैमाने पर सामने आए और फरवरी तक जारी रहे। ”
भालुओं को शामक औषधि देकर शांत किया जाता है फिर उसके बाद एक पशु चिकित्सक उनका एक चिकित्सा परीक्षण करता है। उनका वजन किया जाता है और उनकी उम्र निर्धारित करने के लिए उनके दांतों की जांच की जाती है। जिन्हें इलाज की जरूरत है उन्हें पास के बचाव केंद्र में भेजा जाता है और ठीक होने पर जंगलों में छोड़ दिया जाता है। अब तक बचाए गए सभी भालुओं को जंगलों में छोड़ दिया गया है।
जंगलों से निकलकर भालू क्यों बाहर आ रहे हैं?
मानस राष्ट्रीय उद्यान को पुनर्जीवित और संरक्षित करने के लिए 2003 से काम करने वाला एक समुदाय-आधारित समूह मानस मौजिगेंद्री इकोटूरिज्म सोसाइटी के एक प्रमुख सदस्य महेंद्र बसुमतारी कहते हैं, “कुछ लोग कह रहे हैं कि यह आने वाले भूकंप का संकेत है। वन अधिकारी कह रहे हैं कि भालुओं की संख्या में वृद्धि हुई होगी या भालू जाड़े के मौसम में भूटान से नीचे आए होंगे।”
मानस राष्ट्रीय उद्यान का उत्तरी हिस्सा भूटान में रॉयल मानस राष्ट्रीय उद्यान से जुड़ा है। भालुओं को भूटान के पहाड़ों से उतरकर भारतीय सीमा में आने के लिए जाना जाता है।
गुजरात के पाटन में हेमचंद्राचार्य उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय में आईयूसीएन स्लॉथ बियर स्पेशलिस्ट और एसोसिएट प्रोफेसर निशीथ धरैया के अनुसार, भारत में और एशिया के अन्य हिस्सों में एशियाई काले भालुओं का मानव बस्तियों में प्रवेश करना और पशुओं को मारना आम बात है। लेकिन क्या उन पांच महीनों में उनका यह व्यवहार अचानक बढ़ गया? धरैया मानव बस्तियों में भालुओं के भटकने के तीन संभावित कारण बताते हैं: जंगल में भोजन की कमी, उनके आवास का क्षरण और भालू की आबादी में वृद्धि। संरक्षण पर काम करने वाले एक एनजीओ कॉर्बेट फाउंडेशन के उप निदेशक हरेंद्र सिंह बरगली ने धरैया की बात को ठीक माना है।
इस क्षेत्र के सबसे वरिष्ठ वन सेवा अधिकारी बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल के मुख्य वन संरक्षक अनुराग सिंह ने कहा, “भालू आमतौर पर भूटान के ऊपरी क्षेत्रों में रहते हैं। ठंड के मौसम में, सर्दियों की शुरुआत में, कभी-कभी भोजन और पानी की उपलब्धता एक समस्या बन सकती है। तभी भालू भोजन की तलाश में नीचे आते हैं। भालुओं की असामान्य संख्या के बाहर भटकने के पीछे ये कुछ कारण हो सकते हैं, लेकिन जब तक हम एक उचित अध्ययन नहीं करते हैं, तब तक हम पुष्टि नहीं कर सकते। ऐसा हर साल नहीं होता है।”
उन्होंने यह भी कहा कि बोडोलैंड वन विभाग, भूटान की सरकार के संपर्क में है। हम वहां के वन विभाग के साथ संवाद कर रहे हैं और इस मुद्दे को समझने की कोशिश कर रहे हैं। स्थिति का अध्ययन करने और सरकार को रिपोर्ट करने के लिए मानस में एक कोर ग्रुप का गठन किया गया है। लेकिन महामारी के कारण भूटान अभी बंद है, और हम वास्तव में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकते, जब तक हम उनके आवास का अध्ययन नहीं करते। इसके अतिरिक्त, हमें संयुक्त अध्ययन करने में सक्षम होने के लिए, अनुमति लेने और आधिकारिक प्रक्रियाओं को पूरा करने की भी आवश्यकता है।
आंकड़ों और अनुसंधान की कमी
बरगली कहते हैं कि चिंता की बात यह है कि भारत में भालू की आबादी या उनके आवास की स्थिति पर सीमित आंकड़े हैं। इसका मतलब यह जानने का कोई तरीका नहीं है कि भालू की आबादी अचानक बढ़ गई है या नहीं। वह कहते हैं, “कोई भी जानवर, इंसानों के साथ किसी भी तरह के संघर्ष में नहीं पड़ना चाहता। लेकिन भारत में भालुओं की सभी प्रजातियां इंसानों के साथ संघर्ष में हैं। हमें भारत में भालुओं की स्थिति और वितरण का अध्ययन करना चाहिए और ये भी पता करना चाहिए कि ये संघर्ष क्यों हो रहे हैं। वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के तहत अनुसूची 1 का जानवर होने के बावजूद, भारत में भालुओं की उपेक्षा की जाती है, क्योंकि बाघ, गैंडे, शेर और हाथियों जैसे अन्य जानवरों को प्राथमिकता मिलती है। ज्यादातर फंड उन जानवरों पर शोध के लिए खर्च किये जाते हैं।
भारत में भालू की उपेक्षा की जाती है, क्योंकि बाघ, गैंडे, शेर और हाथी जैसे अन्य जानवरों को प्राथमिकता मिलती है। ज्यादातर फंड उन जानवरों पर शोध के लिए खर्च किये जाते हैं।हरेंद्र सिंह बरगली, उप निदेशक, कॉर्बेट फाउंडेशन
गुवाहाटी स्थित एनजीओ आरण्यक के डिवीजन हेड बिभूति लहकर कहते हैं कि उचित शोध के बिना, यह सुझाव देना असंभव है कि क्या किया जाए। हमें इस व्यवहार को समझने और मानव-भालू संघर्षों व भविष्य में किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए अध्ययन करने की आवश्यकता है।
उचित अनुसंधान के बिना कोई भी नीति लागू करने से भय और तेजी से फैल सकता है जिसके लोगों और वन्यजीवों के लिए प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं। जनवरी में, कोइमारी में ग्रामीणों ने एक भालू के शावक को मार डाला और उसे नदी के किनारे दफना दिया। जब शावक की मौत की खबर फैली तो वन विभाग को सूचित किया गया और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया।
ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए, धरैया कहते हैं कि शोधकर्ताओं को यह देखना होगा कि स्थानीय लोग भालू के भटकने को कैसे देखते हैं। साथ ही, जानवरों की आवाजाही और विभिन्न मौसमों के दौरान भोजन की उपलब्धता के भी अध्ययन की जरूरत है। निष्कर्षों के आधार पर, विभिन्न मौसमों के लिए एक खाद्य कैलेंडर तैयार किया जा सकता है ताकि जंगल में कुछ पेड़ और झाड़ियां उगाई जा सकें। यह भालुओं को भोजन की तलाश में भटकने से रोक सकता है।