प्रकृति

विचार: बढ़ रही है बाघों की आबादी लेकिन संरक्षण के लिए अतिरिक्त प्रयास की है ज़रूरत

इस साल अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर बाघों की बढ़ती आबादी का जश्न ज़रूर मनाएंं लेकिन इस जश्न के बीच ये देखना ज़रुरी है कि दक्षिण एशिया के बाहर बाघों की आबादी की हालत निराशाजनक है।
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<p><span style="font-weight: 400;">भारत के </span><span class="Y2IQFc" lang="hi" style="font-family: Consolas, Monaco, monospace;">बांधवगढ़ </span><span style="font-family: Consolas, Monaco, monospace;">नैशनल पार्क में एक बाघ। पिछले एक दशक में बाघों की संख्या में सुधार हुआ है, लेकिन ये केवल दक्षिण एशिया में ही हुआ है। (फोटो: अलामी)</span></p>

भारत के बांधवगढ़ नैशनल पार्क में एक बाघ। पिछले एक दशक में बाघों की संख्या में सुधार हुआ है, लेकिन ये केवल दक्षिण एशिया में ही हुआ है। (फोटो: अलामी)

चीनी राशि चक्र के मुताबिक साल 2022 ‘बाघों का वर्ष’ है। इसके पहले साल 2010 ‘बाघों का वर्ष’ रह चुका है। उस साल 13 देशों ने मिलकर रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में बाघों के भविष्य से जुड़ा एक अहम और ऐतिहासिक फैसला लिया था। 2010 ग्लोबल टाइगर समिट का ये मकसद था कि अगले ‘बाघों का वर्ष’ आने तक वो इनकी वैश्विक आबादी को दुगना कर देंगे। इसकी अनुमानित संख्या करीब 3200 थी।

अब जब आखिरकार ‘बाघों का वर्ष’ आ चुका है, समय आ चुका है कि हम ये सवाल पूछें कि क्या इस संदर्भ में हमें कोई कामयाबी मिल पाई है? आज अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाते वक़्त क्या वो 13 देश अपनी कामयाबी का भी जश्न मना पाएंगे?

इसका साधारण और सीधा जवाब देना मुश्किल है। ठीक उसी तरह जिस तरह अक्सर कंज़र्वेशन या संरक्षण से जुड़े मामलों में होता है। कुछ देशों ने बहुत अच्छे परिणाम देखे हैं, संरक्षित इलाकों में बाघों की संख्या वाकई बढ़ी है। पिछले ही वर्ष नेपाल में उत्सव का माहौल था जब उन्होंने ये घोषित किया कि नेपाल बाघों की संख्या को दुगना करने के अपने लक्ष्य में कामयाब खड़ा उतरा। साल 2009 में जंगली बाघों की संख्या 121 थी। 2017-18 के सर्वे के दौरान ये संख्या बढ़ कर 235 हो गई।  

बाघों की आबादी को समझना पेचीदा है

दुनिया में जंगली प्रजातियों की खतरे की स्थिति का विश्लेषण करने वाला प्रमुख आधिकारिक संघ प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ यानी (आईयूसीएन) ने एक हफ़्ते पहले बाघों से जुड़ा एक नया असेस्मन्ट निकाला। बाघों को अभी भी ‘इन्डेन्जर्ड’ यानी उस श्रेणी में रखा गया है जिसमें जानवार विलुप्त होने के कगार पर होते हैं। नए डेटा के साथ इस असेस्मेंट में ग्लोबल टाइगर आबादी 4,500 बताई गई है। इसके अनुसार बाघों की संख्या में स्थिरता आई है और शायद ये संख्या और भी बढ़ रही है। इसका श्रेय जाता है दक्षिण एशिया में हो रहे संरक्षण के प्रयास को। 

जंगली बिल्ली प्रजातियों और उनके परिदृश्य के संरक्षण के लिए समर्पित संगठन पैंथेरा ने अपने नए असेस्मेंट पर आधारित एक प्रेस रिलीज़ में कहा कि जंगली बाघों की संख्या में वृद्धि दर्ज हुई है और इसका श्रेय दक्षिण एशिया में होने वाले संरक्षण प्रयास को जाता है। इन बयानों में एहतियात बरती गई है क्योंकि इस संख्या की तुलना पहले वाली संख्या से नहीं की जा सकती। ऐसा इसलिए क्योंकि सर्वे करने की तकनीकों में बदलाव आ चुके हैं। उनके अनुसार इस नई संख्या के पीछे “प्रजातियों की गिनती में सुधार या अधिक पूर्ण गिनती” हो सकती है। साथ ही, पिछले आकलन में “अत्यधिक कंजर्वटिव जनसंख्या अनुमान” का इस्तेमाल हुआ होगा या आबादी को “कम आंका गया होगा।”

फ़िर भी इसे एक बड़ी खुश खबरी की तरह मनाया जा सकता है। भारत, थायलैंड और नेपाल के संरक्षित इलाको में जंगली बाघों की आबादी बढ़ रही है। इसके पीछे कई लोगों का हाथ है जो खतरों के बावजूद पूरी निष्ठा और मेहनत से संरक्षण का काम करते आए हैं।

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भारत के रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में एक जंगली बाघ। इस नैशनल पार्क में आबादी अच्छी नज़र आ रही है। (फोटो: अलामी)

दक्षिण पूर्व एशिया में बाघों की संख्या में भारी गिरावट

लेकिन इस नए ग्लोबल फिगर की वजह से इसके पीछे छुपा एक निराशाजनक सच फ़िर से दब सकता है। ये एक ऐसा तथ्य है जिसे अब लोग भूल चुके हैं। एक वक़्त था जब बाघ तुर्की से लेकर कोरिया तक, पाकिस्तान से लेकर वियतनाम तक घूमा करते थे। लेकिन अब हालात वैसे नहीं है। अब वो ज़्यादातर दक्षिण एशिया में ही पाए जाते हैं क्योंकि बाकी हर जगह उनकी प्रजाति विलुप्त हो चुकी है। 

साल 2010 में बाघों के सरंक्षण के लिए प्रण लेने वाले उन 13 देशों में से 3 देशों में अब बाघ पूरी तरह विलुप्त हो चुके हैं। ये तीन देश हैं: वियतनाम, कंबोडिया और लाओस। दुनिया की सबसे बड़ी और खतरनाक बिल्ली भी शिकारियों के अंधाधुन हमलों से मुकाबला नहीं कर पाए। शिकार के पीछे के कारण रहे हैं उनके शरीर के अंगों का अवैध बाज़ार और उन्हें जालों में फसाना जिसकी वजह से दक्षिण पूर्व एशिया में जंगलों के इकोसिस्टम की अखंडता खतरे में है। 

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स्रोत: आईयूसीएन एसएससी कैट स्पेशलिस्ट ग्रुप 2022। पैंथेरा टाइग्रिस। संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN लाल सूची • नक्शा: द् थर्ड पोल

म्यांमार और मलेशिया में भी हालत कुछ खास खुशनुमा नहीं है। एक आकलन के अनुसार, जंगलों की मौजूदगी के बावजूद, म्यांमार में सिर्फ़ 22 बाघों के ही जीवित रहने की आशंका है। शिकारियों की वजह से मलेशिया में बाघों की आबादी भी विलुप्त होने के कगार पर है। बाघों की संख्या में बड़ी गिरावट आई है। अभी वहां केवल 100 बाघ हैं, साल 2010 में ये संख्या 500 थी। 

अगर ये संख्या ज़्यादा भी बताई गई है तो ये फ़िर भी निराशाजनक है कि बाघों के लिए पर्याप्त और बड़े जंगल होने के बावजूद उनकी आबादी में गिरावट आई है, जिसका मतलब है कि शिकार को रोकने में मलेशिया असमर्थ रहा है और साथ ही, यह परिस्थिति बाघों के अंगों के मांग को कम करने की नाकामयाबी को दर्शाती है। इन जानवरों के शरीर के अंगों का इस्तेमाल लग्ज़री सजावट और गहनों में होता है। साथ ही, प्राचीन दवाइयों को बनाने की तैयारी में होता है जिन्हें ज़्यादातर चीन और वियतनाम के ग्राहक खरीदते हैं। 

उपभोक्ता देशों की तरफ़ से बाघ के शरीर के अंगों को खरीदना या उनके उपयोग को अवैध और अस्वीकार्य करने का एक स्पष्ट सरकारी निर्देश की अनुपस्थिति साफ़ है।

रूस, जहां साइबेरियाई बाघ रहते हैं, वहां भी अवैध शिकार का खतरा बना हुआ है। रूस और चीन की सीमा के पास बाघों की एक छोटी आबादी बढ़ रही है लेकिन चीन के बाकी हिस्सों में बाघ अब विलुप्त हो चुके हैं।

इसके पीछे का एक बड़ा कारण ये है कि आज भी लोग बाघों के शरीर के हिस्सों के लिए बड़ी रकम देने को तैयार है। ऐसे उदाहरण मौजूद है जहां बाज़ार में सही तरीके से प्रतिबंध लगाने की वजह से बाज़ार मे वाइल्ड्लाइफ प्रोडक्टस की कमी देखी गई है। जैसे अंतरराष्ट्रीय फैशन रनवे से जानवरों की खाल का इस्तेमाल ना होना और शाहतोश पर कार्रवाई के बाद तिब्बती मृग के संरक्षण पर भी काम हुआ है। लेकिन ऐसा कुछ बाघ के अंगों की अधिक मांग वाले बाजारों में वास्तव में कभी नहीं हुआ।

‘टाइगर फार्म्स’ के पीछे का तर्क

चीन में साल 1993 में पारंपरिक चिकित्सा में बाघ की हड्डी के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। लेकिन इसके बाद भी चीन में बड़े ‘टाइगर फार्म्स’ बनाए गए जहां हजारों बाघों को ऐसी हालत में रखा जाता है जिसके बाद वो जंगल में नहीं छोड़े जा सकते।  इनमें से कई ‘फार्मों’ पर टाइगर बोन वाइन बेचने का आरोप लगाया गया है। फिर साल 2018 में, दवा में बाघ की हड्डी के उपयोग को वैध बनाने के लिए एक सरकारी नोटिस सामने आई। फ़िलहाल इस प्रतिबंध की स्थिति अस्पष्ट बनी हुई है।

लाओस में बंदी-नस्ल के बाघों में अवैध व्यापार में बहुत कामयाबी देखी गई है। वहां की सरकार ने साल  2016 में बाघों के ‘फार्म्स’ को समाप्त करने का संकल्प लिया। यह काम अभी तक नहीं हो पाया। जंगली और बंदी बाघों से शरीर के अंगों की तस्करी जारी है। इस बीच उपभोक्ता देशों की तरफ़ से बाघ के शरीर के अंगों को खरीदना या उनके उपयोग को अवैध और अस्वीकार्य करने का एक स्पष्ट सरकारी निर्देश की अनुपस्थिति साफ़ है। 

ग्लोबल टाइगर समिट से पहले अतिरिक्त प्रयास की है ज़रूरत

कुछ ऐसी दिलचस्प योजनाएं भी है जिसके कामयाब होने पर जंगली बाघ को एशिया के उन हिस्सों में वापस लाया जा सकता है जहां शिकार के वजह से वो विलुप्त हो गए थे। काफ़ी वर्षों से बाघों को कंबोडिया में वापस लाने की चर्चा चल रही है।  हालांकि कंबोडिया के जंगल शिकारियों द्वारा बिछाए गए जालों की वजह से नष्ट होते जा रहे हैं। कजाकिस्तान में – अंतिम कैस्पियन बाघ की मृत्यु के दशकों बाद – बाघ की वापसी की तैयारियां चल रही हैं। इस परियोजना में संभावित शिकार प्रजातियों का पुनरुत्पादन भी शामिल है।

ये संभावनाएं रोमांचक हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि इस बात से ध्यान हटाया जाए कि दक्षिण एशिया में जंगली बाघों की संख्या में लगातार वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कड़ी मेहनत की ज़रूरत है। अवैध शिकार अभी  दूर नहीं हुआ है – भारतीय वन्यजीव संरक्षण सोसायटी के मुताबिक साल 2021 में 56 बाघों का शिकार या अवैध व्यापार हुआ है। आवास की रक्षा और अवैध शिकार विरोधी में निरंतर निवेश की आवश्यकता है। 

एशिया के शीर्ष शिकारी को सिर्फ़ दक्षिण एशिया में ही जीवित देखना पूरे महाद्वीप के इकोसिस्टम और संस्कृतियों के लिए एक त्रासदी होगी। ऐसा होने नहीं दिया जा सकता।

इसके अलावा, भारत, नेपाल और भूटान  इस साल के अंत में अगले वैश्विक बाघ शिखर सम्मेलन में जाने के लिए नए संरक्षण योजना तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं, इस बीच उन्हें सफलता की योजना बनानी चाहिए। चूंकि टाइगर रिजर्व क्षमता तक पहुंच गया है, इसलिए आवास गलियारों और सामुदायिक जुड़ाव कार्यक्रमों में निवेश की अत्यधिक आवश्यकता है। इस संभावित घातक शिकारी के साथ रहने वाले लोगों की जरूरतें, सुरक्षा और दृष्टिकोण नीति डिजाइन में सबसे आगे होने चाहिए।

दक्षिण एशिया से परे, बाघ रेंज वाले  देशों को यह देखना चाहिए कि कौनसे प्रयास सही काम कर रहे हैं: अच्छी तरह से संरक्षित आवास, अच्छी तरह से संसाधन वाले अवैध शिकार विरोधी कार्यक्रम और एक स्पष्ट संदेश कि जीवित बाघों की कीमत मृत से अधिक है। एशिया के शीर्ष शिकारी को सिर्फ़ दक्षिण एशिया में ही जीवित देखना पूरे महाद्वीप के इकोसिस्टम और संस्कृतियों के लिए एक त्रासदी होगी। ऐसा होने नहीं दिया जा सकता।

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