दूषित भूजल से होने वाले खतरे एक बार फिर चर्चा में हैं। मीडिया की हालिया खबरों के मुताबिक, देश की राजधानी नई दिल्ली से सटे औद्योगिक क्षेत्र ग्रेटर नोएडा के पांच गांवों में पीने के पानी की वजह से कैंसर के मामले सामने आए हैं।
मामले में आगे की छानबीन के लिए जब चिकित्सा विशेषज्ञों और स्वास्थ्य विभाग का दल उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा के छपरौला औद्योगिक क्षेत्र में पहुंचा, तो गांव वालों ने बताया कि दूषित भूजल के कारण आंत के कैंसर, एक्जिमा, हेपेटाइटिस और लीवर संबंधी जानलेवा बीमारियां बहुत तेजी से बढ़ी हैं। गांव वालों का तो यह भी कहना है कि पिछले पांच साल के दौरान कई लोग इन बीमारियों की वजह से मारे जा चुके हैं।
इस तरह की खबरों के बाद देश के प्रमुख चिकित्सा संस्थान आल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्स), नई दिल्ली के शीर्ष कैंसर रोग विशेषज्ञों ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च से हालात पर निगरानी के लिए प्रभावित गांवों में एक कैंसर रजिस्ट्री स्थापित करने को कहा है। वहीं, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिलॉजी रिसर्च से इन गांवों के भूजल में संदूषण का पता लगाने को कहा है जहां अनेक अवैध उद्योग अशोधित कचरों का ढेर लगाते रहते हैं।
हालांकि यह तो जांच रिपोर्ट आने के बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि ग्रेटर नोएडा में कैंसर की वजह से होने वाली मौतों का कारण दूषित भूजल था या नहीं, लेकिन यह कोई पहली जगह नहीं है जहां भूजल के कारण स्थानीय लोग गंभीर बीमारियों का शिकार बने हों।
भारत में तकरीबन 80 फीसदी ग्रामीण आबादी पीने के पानी के लिए भूजल स्रोतों पर निर्भर है। इनमें उत्तर प्रदेश में ही स्थित गोरखपुर जैसे जिले भी शामिल हैं जहां संदूषित जल के कारण होने वाली महामारी हमेशा चर्चा में रहती है। यहां के भूजल में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन जैसे तत्व हैं जिसकी वजह से स्थानीय लोगों में इंसेफलाइटिस, पीलिया और टायफाइड जैसी बीमारियां तेजी से बढ़ी हैं। इन बीमारियों का शिकार ज्यादातर गरीब लोग हैं जो कि न्यूनतम स्वच्छता हालात में जिंदगी बिताते हैं।
2012 के एक अध्ययन-फिंगर प्रिंट ऑफ आर्सेनिक कन्टैमिनेटेड वाटर इन इंडिया-ए रिव्यू– के अनुसार, पूरे उत्तर भारतीय राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में आर्सेनिक संदूषण के मामले सामने आए हैं। पश्चिम बंगाल में गंगा के निचले मैदानी इलाकों, बांग्लादेश और नेपाल के तराई क्षेत्र में भूजल आर्सेनिक संदूषण के भी मामले चिह्नित किए गए हैं।
केंद्रीय भूजल बोर्ड की छानबीन से खुलासा हुआ है कि आर्सेनिक संदूषण से बिहार, असम और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य प्रभावित हो रहे हैं। बांग्लादेश की चौड़ी पट्टी को आच्छादित करने वाले बंगाल के डेल्टा मैदान और भारत में पश्चिम बंगाल, भूजल आर्सेनिक संदूषण से सबसे बुरी तरह प्रभावित हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय में भूविज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर शशांक शेखर के अनुसार, भूजल में सामान्य तौर पर आर्सेनिक और फ्लोराइड वहां पाया जाता है जहां स्रोत के अत्यधिक दोहन की वजह से मिट्टी के नीचे की चट्टान से रासायनिक तत्व रिसकर नीचे पहुंच जाते हैं।
अशोधित औद्योगिक कचरे से भारी धातुएं हमारी जल प्रणाली में समाहित हो जाती हैं जबकि अत्यधिक और लंबे समय तक उर्वरकों के इस्तेमाल से नाइट्रेट सतह पर जम जाता है। शेखर कहते हैं, ज्यादातर जल संदूषण मानव जनित कारकों के कारण बढ़ता है। मसलन, औद्योगिक अपशिष्ट का रिसकर जमीन के अंदर समाहित हो जाना। नदियों के विपरीत भूजल का संदूषण कठिन होता है लेकिन अगर ये एक बार संदूषित हो गया तो फिर इसमें सुधार होना बेहद कठिन है। ग्रेटर नोएडा जैसे शहरी क्षेत्रों में शीशा और क्रोमियम जैसी भारी धातुएं भी भूजल स्रोतों में समाहित हो गई हैं।
वह यह भी बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में किसानों द्वारा कीट नाशकों/खरपतवार नाशकों के अत्यधिक इस्तेमाल से स्थानीय जल आपूर्ति दूषित हो रही है।
दिल्ली के सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा 2004 के एक अध्ययन में पाया गया था कि पंजाब के भटिंडा और रोपण जिलों के कुछ किसानों के खून में कीटनाशकों की मात्रा काफी उच्च स्तर पर थी।
शेखर बताते हैं, पंजाब में बड़े पैमाने पर खेती होती है जिसके लिए किसान कीटनाशकों का इस्तेमाल भी खूब करते हैं। पंजाब, देश में सबसे ज्यादा रसायनों का इस्तेमाल करने वाले राज्यों में से एक है और भोजन में भी इसके अवशिष्ट पाए जाते हैं। वह कहते हैं, किसानों के बीच आम धारणा है कि कीटनाशकों के ज्यादा इस्तेमाल से अच्छी फसल पैदा होती है। दरअसल, उर्वरकों पर भारी सब्सिडी दी जाती है, जिसका नतीजा यह है कि इसका इस्तेमाल आवश्यकतानुसार होने के बजाय अंधाधुंध है। जब तक इस गलत धारणा को ठीक नहीं किया जाता, तब तक क्षेत्र के अन्न और जल लगातार दूषित होते रहेंगे।
जनसंख्या विस्फोट के कारण भूजल संसाधनों का अंधाधुंध दोहन हुआ है जिसने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में इस समस्या को और भी ज्यादा बढ़ा दिया है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड का अनुमान है कि दिल्ली के 9 में से 7 जिले भूजल संसाधन गतिशीलता के मामले में अत्यधिक दोहन वाली श्रेणी में हैं।
जल संसाधन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश के 639 में से 158 जिलों के कई हिस्सों में भूजल खारा हो चुका है और उनमें प्रदूषण का स्तर सरकारी सुरक्षा मानकों को पार कर गया है।
दिल्ली में नजफगढ़ नाले के साथ लगे दक्षिण पश्चिम, पश्चिम और उत्तरी जिलों के जलदायी स्तर में शीशे की मात्रा मौजूद है। दक्षिण पश्चिम जिले में कैडमियम और उत्तर पश्चिम, दक्षिण और पूर्वी दिल्ली में क्रोमियम की मात्रा है। ये तत्व पानी को मानव स्वास्थ्य के लिए जहरीला बनाते हैं।
सर गंगा राम हॉस्पिटल, दिल्ली के कंसलटेंट फिजीशियन डॉक्टर अतुल गोगिया कहते हैं, भारत में संक्रमण का पहला कारण दूषित जल है जो टायफाइड, हैजा, पीलिया, तीव्र आंत्रशोध और ज्यादा गंभीर मामलों में कैंसर का कारण बनता है।
वह कहते हैं, मैंने अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप में भी काम किया है लेकिन संदूषण का स्तर भारत के बराबर कहीं और नहीं है।
डॉक्टर गोगिया बताते हैं कि फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा वाला जल फ्लुओरोसिस का कारण बनता है जिसकी वजह से दांत और हड्डियों की स्थायी क्षति का खतरा बढ़ जाता है। आर्सेनिक हमारे तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। यह बच्चों में दिमागी विकार का कारण बन सकता है और यह कैंसर होने की वजह भी बन सकता है। क्रोमियम भी कैंसर का कारण बन सकता है जबकि पीने के पानी में नाइट्रेट की मात्रा होने से सांस और पाचन संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। नवजात शिशुओं के मामले में विशेषरूप से यह खतरनाक होता है।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली में सैद्धांतिक भौतिकी के प्रोफेसर और जाने-माने जल विशेषज्ञ डॉक्टर विक्रम सोनी के अनुसार, अनियंत्रित और दीर्घकालिक औद्योगीकरण की वजह से दो प्रमुख जल प्रणालियां – हिंडन और यमुना नदियां – प्रदूषित हो गईं जिनका बहाव उत्तर प्रदेश में भीड़भाड़ वाले बाढ़ के मैदानों से होकर है।
उत्तर प्रदेश में और आस-पास के प्रदूषण के प्रभावों पर अध्ययन के लिए यमुना फ्लडप्लेन प्रोजेक्ट पर काम करने वाले प्रोफेसर सोनी कहते हैं, यह क्षेत्र की सबसे प्रदूषित पट्टी है जहां दिल्ली और गाजियाबाद के कई टन सीवेज से दोनों प्राथमिक जल प्रणालियां प्रदूषित हो गईं।
वह कहते हैं कि बाढ़ मैदान वाले जल के अंधाधुंध दोहन, अत्यधिक निर्माण कार्य और बालू खनन के चलते यमुना और हिंडन से प्रदूषित जल मैदानी इलाके के जलदायी स्तर तक पहुंच जाता है। इसका समाधान निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाना और जल के स्रोत को मैदान से अलग रखना है। सोनी कहते हैं, लगातार साफ जल आपूर्ति प्राप्त करने का सबसे बेहतर तरीका भूजल भंडार का दोहन न करना है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में देश भर में साफ-सफाई के लिए बड़े स्तर पर और जोर-शोर से स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया है। लेकिन जब तक हर भारतीय को पीने का साफ पानी नहीं मिल जाता, तब तक यह अभियान पूरा नहीं हो सकता।