प्रदूषण

ऑड-ईवन दोबारा के सफलता पर उठते सवाल

वैसे तो, दिल्ली में ऑड-ईवन योजना को दूसरे चरण में भी लोगों ने स्वीकार किया, फिर भी आपात स्थिति जारी रहने के बावजूद इस दौरान उठाये गए आपातकालीन कदम को सफल कैसे करार दिया जा सकता है?
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<p>Volunteers on the road [image courtesy PTI]</p>

Volunteers on the road [image courtesy PTI]

15 दिनों तक चले ऑड-ईवन योजना का दूसरा चरण 30 अप्रैल को पूरा हुआ। इस दौरान सम और विषम नंबर की कारों को क्रमशः सम और विषम दिनांकों को सड़क पर चलने की अनुमति दी गई थी। दिल्ली सरकार ने इसे सफल बताया और एक धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम भी आयोजित किया। लेकिन इस बात को लेकर संशय बरकरार है कि इस सफलता के मानदंड क्या हैं।

उच्च स्वीकार्यता 
इस बारे में दिल्ली सरकार के परिवहन मंत्री गोपाल राय ने कहा, ”सम-विषय का प्रयोग आंशिक रूप से या पूर्णरूप से विश्व के कम से कम 14 देशों में किया जा रहा है, लेकिन भारत पहला ऐसा देश है, जिसने इसे दूसरे चरण में भी सफलतापूर्वक पूरा किया है। दूसरा चरण, पहले चरण के मुकाबले मुश्किल था। इस चरण में कुल 8,988 वाहनों के चालान हुए और इस आंकड़े के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस चरण में योजना की स्वीकार्यता दर 99.6 फीसदी रही।”

सम-विषम योजना को पहली बार इस वर्ष 1-15 जनवरी तक लागू किया गया था। इसका उद्देश्य देश की राजधानी में वायु प्रदूषण और यातायात की भीड़ में कमी लाना था। पहले चरण में योजना के पूर्ण होने पर नागरिकों की ओर से इसे व्यापक समर्थन मिला। बड़े स्तर पर कराए गए एक जनमत संग्रह में 81 प्रतिशत लोगों ने इस योजना को पुनः आरंभ करने के पक्ष में अपना मत दिया था।

क्या कारों की संख्या सीमित करने से प्रदूषण पर असर पड़ता है
दिल्ली की वायु गुणवत्ता, जिसका सीधा असर लोगों के स्वास्‍थ्य पर पड़ता है, बीते सालों में धूल, वाहन प्रदूषण और मौसम की स्थितियों की वजह से बदतर होती जा रही है। हालांकि यह बहस का विषय हो सकता है कि निजी वाहनों से कितना वायु प्रदूषण होता है। चूंकि दिल्ली में कार उपयोग करने वालों का अनुपात देश भर में सर्वाधिक है, अतः निजी वाहनों के उपयोग को प्रोत्साहित करने अथवा हतोत्साहित करने के प्रभाव का संदेश देश भर में उल्लेखनीय स्तर पर जाएगा। निजी वाहनों से यात्रा करने की दर अब भी भारत में बहुत कम है, और दिल्ली की केवल 10 प्रतिशत आबादी ही कार से यात्रा करती है। चूंकि सार्वजनिक वाहन प्रति उपभोक्ता कम प्रदूषण उत्पन्न करते हैं, कारों का उपयोग एक आदर्श बन जाए उससे पहले कारों के उपयोग को सीमित करना- वायु प्रदूषण से मुकाबले के लिए एक व्यापक उपाय साबित हो सकता है।
राय के मुताबिक, सम-विषम योजना के लागू होने से, कार उपभोक्ताओं की सोच में बदलाव आ रहा है। उन्होंने कहा कि योजना के प्रभावी होने के बाद से नए वाहनों के पंजीयन में कमी आई है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 1 सितंबर, 2015 से 31 दिसंबर, 2015 (सम-विषम के पहले चरण से चार महीने पूर्व) के बीच पंजीकृत वाहनों की संख्या 2,37,228 थी, जबकि 1 जनवरी से 30 अप्रैल (सम-विषम के पहले चरण से चार महीने तक) के दौरान यह संख्या घटकर 1,66,130 रह गई, इस प्रकार वाहन पंजीकरण में 30 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।
जहां तक वायु प्रदूषण और यातायात जाम का सवाल है, इस पर मिली-जुली प्रतिक्रिया आई है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की एक रिपोर्ट में कहा गया कि ऑड-ईवन के दूसरे चरण के पहले सप्ताह में प्रदूषण में कमी महसूस की गयी लेकिन बाद में हवा की गति में कमी, कचरे वाले स्थलों में आग लगाए जाने सहित फसल जलाए जाने और उत्तराखंड के जंगल में लगी आग के कारण वायु की गुणवत्ता में गिरावट दर्ज की गयी। डीपीसीसी ने 74 स्‍थानों पर वायु प्रदूषण का आकलन करके ये रिपोर्ट दी है।

यातायात जाम पर प्रभाव 

एक स्वतंत्र एनजीओ, सेफ रोड फाउंडेशन ने भी अपने आकलन में पाया है कि योजना के पहले चरण के मुकाबले इस चरण में यातायात जाम अधिक रहा। सेफ रोड फाउंडेशन के संस्‍थापक मोहम्मद इमरान के मुताबिक पिछले चरण में सड़क पर यातायात जाम में 30-35 फीसदी की कमी आई थी, जबकि इस बार यातायात जाम में केवल 10-15 प्रतिशत की ही कमी आई। इमरान ने कहा, “इस चरण में लोगों में इस बात को लेकर काफी आक्रोश है कि उचित शोध किए बिना इस योजना को क्यों लागू किया गया? इस बार, हमने 100 से अधिक लोगों से बात की, लगभग सभी का यही कहना था। हमने लोगों को यह भी कहते सुना कि यदि इस व्यवस्‍था को स्‍थायी कर दिया जाता है, तब उन्हें मजबूरन दूसरी कार खरीदनी पड़ेगी। कुछ लोगों ने अपनी सुविधा के लिए सस्ती दरों पर उपलब्‍ध दूसरी कार खरीदी भी है। यह व्यवस्‍था पहली बार की तुलना में इस बार ज्यादा प्रभावी नहीं रही।” हालांकि, ओखला, पूर्वी दिल्‍ली में कार्यरत एक कर्मचारी नेहा, कहती हैं, ”इस बार भी यातायात जाम में निश्चित तौर पर कमी आई थी। मैंने इस दौरान ड्राइविंग का पूरा लुत्फ उठाया। हालांकि, मेरा मानना है कि महिला ड्राइवरों को भी सम-विषम व्यवस्‍था में छूट नहीं दी जानी चाहिए।” सुरक्षित और व्यवस्थित सार्वजनिक परिवहन की कमी के कारण महिलाओं और दुपहिया वाहन चालकों को इस योजना से बाहर रखा गया था। चूंकि, जनवरी की तरह इस बार स्कूल बंद नहीं थे, अतः यातायात जाम अधिक था।

सीमित आंकड़े 

प्रदूषण स्तर के सवाल पर, दिल्ली सरकार का आंकड़ा अभी जारी किया जाना बाकी है, मासेचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) ने अपने अध्ययन में पाया है कि, यद्यपि योजना की स्वीकारोक्ति अधिक थी, लेकिन इस बार अधिक लोगों ने दूसरी कार लेने का विकल्प चुना। एमआईटी ने अपने इस परियोजना के तहत आकस्मिक रूप से 900 से अधिक यात्रियों की प्रतिपुष्टि ली और 3,000 लोगों पर फोन के माध्यम से सर्वेक्षण किया था। एमआईटी की रिपोर्ट के मुताबिक 18.8 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्होंने यात्रा के लिए दूसरी कार का उपयोग किया, जबकि पहले चरण में यह आंकड़ा सात फीसदी था। इस प्रकार दूसरी कार का उपयोग करने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है।

वायु गुणवत्ता के मोर्चे पर सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरन्मेंट (सीएसई) के शोधकर्ता फिलहाल दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) द्वारा जुटाये गए आंकड़ों का विश्लेषण कर रहे हैं। सीएसई को सम-विषम व्यवस्‍था के दूसरे सप्ताह में ओजोन के स्तर में स्पाइक दिखाई पड़े थे। सीएसई के क्लीन एयर एंड सस्टेनेबल मोबिलिटी के शोधकर्ता, पोलाश मुखर्जी का कहना है कि शोधकर्ताओं के बीच सर्वाधिक चर्चा ओजोन पर हुई।

ओजोन की चिंता

पोलाश मुखर्जी के अनुसार ओजोन एक समग्र प्रदूषक है, जिसमें नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड और सल्फर डाई ऑक्साइड भी शामिल होते हैं। अतः इसकी उपस्थिति, अन्य प्रदूषकों की उपस्थिति का सूचक है। मुखर्जी अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि दूसरे सप्ताह में तापमान अधिक था, और शायद इसी वजह से स्पाइक उत्पन्न हुए। उन्होंने स्पष्ट किया कि उच्च तापमान की उपस्थिति में सल्फर डाई ऑक्साइड और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड ऑक्सीकृत हो जाते हैं, जो उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं और उप उत्पाद के तौर पर ओजोन तैयार होता है।
ओजोन के लिए राष्ट्रीय परिवेश सुरक्षा मानक 180 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। सीएसई ने कहा कि यह 29 अप्रैल को 420 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया। तब भी यह गत अप्रैल की तुलना में नीचे था।

एक आपात हल 

सीएसई ने चेताया कि सम-विषम योजना की सफलता का आकलन प्रदूषण के स्तर पर या यातायात जाम के आधार पर करने की बजाए इसे एक आपात हल के रूप में देखा जाना चाहिए। जब कभी शहर में प्रदूषण का स्तर खतरनाक हो जाए तब सम-विषम व्यवस्‍था को सभी कारों और स्कूटरों पर लागू किया जाना चाहिए। इस बार शुरुआती दस दिनों में प्रदूषण के स्तर में गिरावट आई लेकिन पड़ोसी राज्यों में वनों में आग लगने और फसलों के अवशेष को जलाने से प्रदूषण स्तर में पुनः बढ़ोतरी दर्ज की गई। हालांकि यह दिखाता है कि यह योजना प्रभावी रही, साथ ही इसने यह भी रेखांकित किया है कि दिल्ली के वायु प्रदूषण से मुकाबला करने में बड़ी चुनौती का कार प्रदूषण केवल एक हिस्सा भर है। इसका तात्पर्य यह निकलता है कि सरकार को ऐसे उपाय करने होंगे, जिससे इस प्रकार की आपात स्थिति की पुनरावृत्ति न हो। इसके लिए, दिल्ली को अल्पकालीन और दीर्घकालीन उपायों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। लंबे वक्त तक वायु प्रदूषण में कमी लाने के लिए स्वच्छ ईंधन, कठोर पार्किंग नियम और बेहतर सार्वजनिक परिवहन ढांचे पर जोर देना होगा।
इसी दौरान दिल्ली सरकार सम-विषम योजना को जुलाई महीने में पुनः लाने पर विचार कर रही है, क्योंकि तब स्कूल बंद होंगे और अभिभावकों को अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने वाली परेशानी नहीं होगी। सरकार ने कहा है कि इस व्यवस्‍था को स्‍थायी करने से पहले वह सितंबर तक इंतजार करेगी। लेकिन क्या आपात की स्‍थायी स्थिति वास्तव में सफलता की सूचक है?

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