मोनिका डेका हफ्ते में दो बार पूर्वोत्तर भारत के राज्य असम में कोठारा और बाड़ीगांव गांवों की सीमा पर बने 30 फुट ऊंचे और नीले रंग के चमकीले वॉटर एटीएम तक की यात्रा करती हैं। मोनिका अपने हाथों को सैनिटाइज करती हुई पीने के पानी के लिए लगाई गई मशीन की स्क्रीन पर एक प्रीप्रेड कार्ड स्वाइप करती हैं। बटन दबाती हैं और 20 लीटर पानी उसके कंटेनर में गिरता है, जिसे वह अपने साथ लाई थी।
मोनिका डेका बड़ीगांव में ग्राम पंचायत (स्थानीय रूप से निर्वाचित ग्राम प्रशासन) की प्रमुख है। मोनिका कहती हैं कि मैं इस पानी के बिना जी नहीं सकती। मैं कहीं दौरे पर भी जाती हूं, तब भी यह पानी साथ लेकर जाती हूं।
टाटा वॉटर मिशन (टीडब्ल्यूएम) के सहयोग से एक गैर सरकारी संगठन ग्राम्य विकास मंच (जीवीएम) ने 2017 में यह वॉटर एटीएम लगाया था। वॉटर एटीएम लगने से पहले वह ट्यूबवेल का पानी पीती थीं। ट्यूबवेल के जरिये भूजल से जो पीने का पानी आता था, उसमें खतरनाक उच्च स्तरीय आर्सेनिक आता था।
जल और स्वच्छता के लिए काम करने वाले जल शक्ति मंत्रालय के मुताबिक, पूरे असम में आर्सेनिक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है, जिससे करीब 16 लाख से अधिक लोग प्रभावित होते हैं। मंत्रालय ने दूषित जल वाले कुओं को लाल रंग से चिन्हित कर लोगों को इनसे पानी न पीने के लिए चेतावनी दी, लेकिन वैकल्पिक जल स्रोतों के बिना मोनिका डेका जैसे लाखों लोग उन कुओं से भरकर पानी पीने को मजबूर हैं।
ट्यूबवेल का पानी पीने के चलते डेका की हथेलियों में मस्से हो गए। उन्होंने सीने में भी दर्द महसूस किया, जिससे राहत पाने के लिए गैस और पाचन में मदद करने वाली आमेज और पैन-डी जैसी दवाओं को प्रतिदिन लेना शुरू कर दिया, लेकिन कुछ दिनों बाद दवाओं से आराम नहीं मिला। इसके बाद घरेलू कामकाज करना छोड़ना पड़ा और पूरी तरह बेड रेस्ट करने की जरूरत पड़ गई। डेका के समुदाय के कई लोगों में कैंसर की पुष्टि हुई। एक के मुंह में कैंसर, तीन में पित्ताशय की थैली का कैंसर। हथेलियों में मस्से, पेट में दर्द और कैंसर ये सभी बीमारियां आर्सेनिक विषाक्तता के चलते होती हैं।
असम के भूजल में खतरनाक स्तर का आर्सेनिक
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, अगर एक लीटर पानी में 10 माइक्रोग्राम से अधिक मात्रा में आर्सेनिक मौजूद है, तो उस पानी को नहीं पीना चाहिए। ग्राम्य विकास मंच की ओर से किए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि बाड़ीगांव और उसके आसपास के क्षेत्र के नलकूपों से निकलने वाले एक लीटर पानी में 240 माइक्रोग्राम आर्सेनिक मौजूद रहता है।
जल संसाधन राज्यमंत्री रतन लाल कटारिया ने फरवरी में राज्य विधानसभा को बताया कि असम के 34 जिलों में से 12 में जिलों की 1,247 बस्तियां (भारत सरकार ने 10-100 घरों के समूह को एक बस्ती के रूप में परिभाषित किया है) आर्सेनिक प्रभावित हैं। असम का नलबाड़ी जिला, जहां बड़ीगांव और कोठारा गांव स्थित हैं, जहां 454 से अधिक बस्तियां आर्सेनिक विषाक्तता से बुरी तरह प्रभावित हैं।
असम के भूगर्भ जल में प्राकृतिक रूप से आर्सेनिक पाया जाता है। ब्रह्मपुत्र नदी आर्सेनिक युक्त आयरन ऑक्साइड कणों को हिमालय से अपने साथ बहाकर नीचे ले आती है। अमेरिका स्थित नॉर्थ डकोटा स्टेट यूनिवर्सिटी में सिविल और पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर अचिंत्य बेजबरुआ ने बताया कि आयरन ऑक्साइड कण सूक्ष्म जीवों द्वारा तोड़ दिए जाते हैं, उसके बाद वे आयरन को परिमार्जन करते हैं और भूजल में आर्सेनिक छोड़ते हैं।
वॉटर एटीएम के कम्युनिटी इंचार्ज
बड़ीगांव के निवासी भाबेन डेका 16 सदस्यी जल प्रबंधन समिति के सदस्यों में शामिल हैं। जल प्रबंधन समिति के सदस्य महीने में एक बार पानी के वितरण संबंधी समस्या का समाधान निकालने के लिए बैठक करती है।
वॉटर एटीएम के उपयोगकर्ता 20 लीटर पानी के लिए भारतीय मुद्रा के अनुसार, 30 रुपये (0.4 अमेरिकी डॉलर) या फिर पूरे महीने के लिए 210 रुपये शुल्क का भुगतान कर सकते हैं। वॉटर एटीएम से पानी की यह कीमत आम सहमति से तय की गई है।
भाबेन डेका ने बताया, ‘हमने ग्रामीणों से उनका बजट और आय पर चर्चा करने के बाद ही पानी की यह कीमत तय की है। गांव में छह गरीब परिवार ऐसे हैं, जिनसे वॉटर एटीएम का उपयोग करने के लिए भुगतान नहीं लिया जाता है। इनमें से एक परिवार में कमाने वाले व्यक्ति की कैंसर से मौत हो गई और अब परिवार का पालन-पोषण ही बमुश्किल हो पाता है। यह देखते हुए परिवार को निशुल्क पानी देने का फैसला किया गया है।
भाबेन डेका उन लोगों के घरों तक पानी पहुंचाने की व्यवस्था भी करते हैं, जिनको वॉटर एटीएम से पानी ले जाने में परेशानी होती या फिर जो दूर रहते हैं। वॉटर एटीएम मशीन प्रतिदिन 4,650 स्वच्छ पेयजल पानी का उत्पादन करती है, जिससे उस इलाके के 3-4 किलोमीटर के भीतर के पांच गांवों के लोग स्वच्छ जल मिलता है। हर दिन करीब 250 लोगों को वॉटर एटीएम पर पानी के लिए लाइन में लगा देखा जा सकता है।
कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दौरान जब गांव हॉटस्पॉट बनने लगे, तब जल प्रबंधन समिति के एक अन्य सदस्य जीवन कालिता ने सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक वॉटर एटीएम को खोलने की पहल की ताकि भीड़ न जुटे और संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। इससे पहले वॉटर एटीएम सुबह 8 से 10 बजे और शाम 4 से 6 बजे तक खुलता था।
कार्यवाहक शशांक बेजबरुआ वॉटर एटीएम का रखरखाव करते हैं। भूजल से आयरन और आर्सेनिक को हटाने के लिए नैनो-आधारित आयन एक्सचेंज राल का उपयोग किया जाता है। बेजबरुआ हर दिन मशीन की रेजिन में एकत्रित हुए प्रदूषकों को साफ करते हैं।
स्वच्छ पानी के वैकल्पिक स्रोतों की पहचान करने के लिए जीवीएम और स्थानीय समुदाय के साथ काम करने वाले टाटा वॉटर मिशन के पूर्व सलाहकार रोहित सार ने कहा, ‘अगर आप रेजिन को साफ नहीं करते हैं, तो सिस्टम पानी को स्वच्छ करने की अपनी प्रभावशीलता खो देगा। इससे गंदा पानी आ सकता है और पानी में हटाए गए आर्सेनिक के कण भी आ सकते हैं।”
वॉटर एटीएम जिस जमीन पर लगाया गया है, उसे बड़ीगांव के किसान बिपुल डेका पट्टे पर दी थी। जल प्रबंधन समिति ने पानी लेने वालों से जुटाए गए धन से बेजबरुआ को 10 हजार रुपये मासिक वेतन का भुगतान करती है। इसके अलावा उपयोगकर्ताओं से लिए गए पैसे से हर महीने 800-1,200 रुपये बिजली का बिल व रखरखाव संबंधित अन्य खर्च चलाती है।
क्या बाड़ीगांव के वॉटर एटीएम की सफलता दोहराई जा सकती है?
बाड़ीगांव का वॉटर एटीएम राज्य में अपनी तरह का यह पहला एटीएम था। इसके बाद पांच और वॉटर एटीएम स्थापित किए गए। हालांकि, उनमें से केवल तीन ही चालू हैं। जीवीएम स्टाफ के एक सदस्य ने The Third Pole को बताया कि मरम्मत का काम चल रहा था। अचिंत्य बेजबरुआ ने कहा कि बाड़ीगांव में मॉडल की सफलता के बाद असम में आर्सेनिक विषाक्तता को रोकने के लिए राज्य सरकार की योजना इसी तरह के 172 वॉटर एटीएम लगाने की है। वॉटर एटीएम की मुख्य चुनौती टेक्नोलॉजी नहीं है, बल्कि सहयोग है। पूर्वी भारत में जल संकट पर काम करने वाले एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट मेघ पायने अभियान के प्रबंध न्यासी एकलव्य प्रसाद ने कहा कि इस तरह की पहल की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि स्थानीय संस्थान उनका समर्थन करते हैं या नहीं।
अलग-अलग समाधान और राजनीति इच्छाशक्ति की कमी
असम में वर्ष 1990 हैजा और दस्त से निपटने के लिए नलकूप लगाए गए थे, लेकिन वर्षों से उनका आर्सेनिक या फ्लोराइड के लिए परीक्षण नहीं किया गया। वर्ष 2004 में असम के सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग (पीएचईडी) के पूर्व मुख्य अभियंता एबी पॉल ने पहली बार पानी में आर्सेनिक का पता लगाया था।
केंद्र सरकार ने वर्ष 2019 में जल जीवन मिशन को लागू करने के लिए राज्यों के साथ भागीदारी की, जिसका उद्देश्य वर्ष 2024 तक देश के हर घर, हर नल तक स्वच्छ जल पहुंचाना है। जल जीवन मिशन के तहत आर्सेनिक और फ्लोराइड युक्त पानी से सबसे अधिक प्रभावित बस्तियों को प्राथमिकता दी जाएगी। दुर्भाग्य से, राज्य और केंद्र सरकारों की ओर से आर्सेनिक प्रभावित बस्तियों और शमन पर उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के बीच विसंगति ने इसका मजाक बना दिया है।
असम में आर्सेनिक की कमी पर अंतर-मंत्रालयी समूह की वर्ष 2015 की रिपोर्ट में कहा गया कि राज्य की 2,571 प्रभावित बस्तियों में से 2,212 में पाइप जलापूर्ति योजनाओं या नए खोदे गए कुओं के माध्यम से आर्सेनिक में कमी लाने के उपाय किए। केवल 359 बस्तियों में काम होना बाकी है। इसके विपरीत असम पीएचईडी द्वारा 2017 के आंकड़ों में कहा गया है कि 6,681 बस्तियों में से 4,523 बस्तियों में अभी तक स्वच्छ जल के लिए कोई उपाय नहीं किए गए हैं।
पूर्व मुख्य अभियंता एबी पॉल ने कुछ साल पहले बाड़ीगांव से चार किलोमीटर दूर एक पाइप की खोज की जो जुड़ा हुआ था, लेकिन उपयोग में नहीं था। उन्होंने इसकी जानकारी सरकार को दी, लेकिन कोई सुधारात्मक कार्रवाई नहीं की गई। पॉल ने The Third Pole को बताया कि भूजल की आपूर्ति करने वाला वह पाइप आसानी से 4,000 से अधिक लोगों के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी की आपूर्ति कर सकता था।
जलवायु परिवर्तन ने बढ़ाई चुनौतियां
किसान बिपुल डेका अपने खेतों में गोभी, फूलगोभी, पत्तेदार साग, लौकी और प्याज समेत कई तरह की फसलें उगाते हैं। बिपुल ने बताया कि इस साल सूखे के चलते उनकी फसल की पैदावार उम्मीद से छह गुना तक कई हुई है। दिहाड़ी मजदूरों से खेती कराने और उसका खर्च निकालने के बाद वह कुछ नहीं कर सकता है, उसे कुछ नहीं बचता।
वर्ष 2011 में एक अध्ययन में जलवायु परिवर्तन के कारण असम के कुछ हिस्सों में मानसून के महीनों में सूखे के हफ्तों में 25 फीसदी वृद्धि की भविष्यवाणी की गई थी। यहां की जनता को सूखे का गंभीर प्रभाव भुगतने पड़ते है। गर्मी के महीनों में भूजल स्तर कम हो जाता है, जिसके चलते पानी में आयरन और आर्सेनिक की मात्रा अधिक हो जाती है।
टीडब्ल्यूएम के एक सलाहकार रोहित सार ने कहा कि वॉटर एटीएम को एक निश्चित एकाग्रता तक पानी फिल्टर करने के लिए डिजाइन किया गया है।
हालांकि, बाड़ीगांव में वॉटर एटीएम सामुदायिकता एकता को मजबूत करता है, लेकिन अभी भी लोग भूजल का उपयोग कर रहे हैं। असम में सरकारी और निजी जलापूर्ति योजनाओं के तहत पहले से ही भूजल का अत्यधिक दोहन हो रहा है और भूगर्भ में आर्सेनिक छोड़ा जा रहा है। इसके बजाय सतही जल का विकल्प अभी भी बेहद महंगा है।
नॉर्थ डकोटा स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अचिंत्य बेजबरुआ ने सुझाव दिया कि हर घर स्वच्छ जल पहुंचाने के लिए ब्रह्मपुत्र नदी का पानी ही इसका उपाय हो सकता है। उन्होंने कहा, अगर नदी से प्रतिदिन 135 लीटर पीने के पानी की आपूर्ति की जाती है, तो हम इसके शुष्क-मौसम प्रवाह के केवल एक अंश का उपयोग करेंगे।