भारत की नई भारतीय जनता पार्टी सरकार ने बांग्लादेश को आश्वासन दिया है कि दोनों देशों के बीच बहने वाली तीस्ता नदी के जल बंटवारे को लेकर एक संधि पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 25 से 27 जून, 2014 के बीच बांग्लादेश की अपनी तीन दिवसीय यात्रा के दौरान यह भरोसा दिलाया है।
ढाका में लोगों को संबोधित करते हुए स्वराज ने कहा, बांग्लादेश से जुड़े कई मुद्दे अभी अनसुलझे हैं जो मेरे संज्ञान में हैं। तीस्ता नदी के जल बंटवारे का मुद्दा भी उनमें से एक है। विभिन्न मंत्रालयों के हमारे मंत्री और वरिष्ठ अधिकारी इस चर्चा को आगे बढ़ाएंगे। संयुक्त नदी आयोग भी इसमें शामिल है।
भारत की तरफ से हालांकि ऐसा स्पष्ट आश्वासन नहीं दिया गया है कि इस संधि को कब अंतिम रूप दिया जाएगा और कब इस पर दस्तखत होंगे। वैसे, 2011 में ही तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के ढाका दौरे के वक्त तीस्ता संधि लिखी जा चुकी थी और दस्तखत के लिए तैयार थी। लेकिन आखिरी क्षणों में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विरोध के कारण इस संधि को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। बांग्लादेश पहुंचने से पहले तीस्ता पश्चिम बंगाल से होकर गुजरती है।
अपने समकक्ष के साथ बैठक के बाद बांग्लादेशी विदेश मंत्री अबुल हसन महमूद अली ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि स्वराज ने तीस्ता संधि को अस्तित्व में लाए जाने की उम्मीद जाहिर की है। अली ने स्वराज की उन पंक्तियों का भी हवाला दिया जिसमें उन्होंने कहा कि भारत हमेशा बांग्लादेश के साथ है। दोनों दक्षिण एशियाई देश 54 नदियों का साझा करते हैं। इनमें से तकरीबन हर नदी के लिए बांग्लादेश नीचे की ओर है। अब तक, दोनों देशों के बीच केवल गंगा के जल बंटवारे को लेकर संधि है।
तीस्ता पर गतिरोध
तीस्ता भारत के सिक्किम राज्य से शुरू होती है जहां कई जल विद्युत संयंत्रों की स्थापना की जा रही है। बांग्लादेश के पास भी जल विद्युत पैदा करने और सिंचाई के लिए नदी के दोहन की व्यापक योजनाएं हैं। इसके अलावा, अब जबकि जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून ज्यादा अनियमित हो गया है और सिंचाई के लिए भू-जल का इस्तेमाल बहुत ज्यादा होने लगा है, ऐसे में बांग्लादेश नदी जल पर ज्यादा आश्रित होता जा रहा है।
साल के गैर-मानसूनी आठ महीनों में उत्तर-पश्चिम बांग्लादेश में तीस्ता के प्रवाह में भारी कमी रहती है। इस क्षेत्र में देश के करीब 14 फीसदी फसल भूमि के लिए यह मुख्य नदी है। बांग्लादेश वाटर डेवलपमेंट बोर्ड (बीडब्ल्यूडीबी) के मुताबिक, इस साल अप्रैल में पानी का बहाव गिरकर तकरीबन 500 क्यूसिक पहुंच गया जो कि सूखे के मौसम में तीस्ता के सामान्य बहाव का केवल 10 फीसदी है। जल प्रवाह में गिरावट पिछले दो दशक से जारी है, जबसे भारत ने बांग्लादेश सीमा से करीब 100 किमी अपस्ट्रीम गजोलदोबा बैराज का निर्माण किया है।
बांग्लादेश तब से जल बंटवारे की एक संधि को लेकर दबाव बना रहा है, हालांकि इस नदी पर परियोजनाओं को लेकर बातचीत 1950 के दशक से चल रही है। तीस्ता चौथी सबसे बड़ी नदी है जो भारत से बांग्लादेश की ओर बहती है। 2011 में इस संधि पर दस्तखत न हो पाने के बाद से अब तक भारत के राष्ट्रपति, पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व वित्त मंत्री और पूर्व जल संसाधन मंत्री, सभी ने, इस संधि को अस्तित्व में लाने के लिए बांग्लादेश को आश्वासन दिया है। इस संधि की सबसे अहम बात यह है कि गाजोलबोदा बैराज के अपस्ट्रीम में हर जगह तीस्ता के जल का बंटवारा आधा-आधा होगा।
ढाका को उम्मीद है कि भारत की नई सरकार अपने यहां के केंद्र-राज्य समस्या को सुलझाने के मामले में ज्यादा मजबूत स्थिति में होगी। बांग्लादेशी विदेश मंत्री महमूद अली ने कहा, इस मुद्दे पर भारत में आंतरिक सहमति बनाने की कोशिशें हो रही हैं।
ताजा पहल पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए तीस्ता बचाओ आंदोलन के संयोजक फरीदुल इस्लाम फिरोज कहते हैं कि दोनों देश संधि पर हस्ताक्षर कर सकते हैं लेकिन इससे तीस्ता के आसपास रहने वालों की जिंदगी के दुख कम होने वाले नहीं हैं। उनका कहना है कि नदी प्रबंधन के लिए एक व्यापक कार्यक्रम की जरूरत है क्योंकि इसके किनारे गाद से भरे हुए हैं और उन्हें नीचे नहीं धकेला जा रहा है। अचानक पानी छोड़े जाने पर बाढ़ की स्थिति भयानक हो जाएगी जिसे अब हर मानसून में देखा जा सकता है।
वह कहते हैं, अभी दो महीने पहले तक जल प्रवाह केवल 500 क्यूसिक था। अभी यह 5,000 क्यूसिक पर पहुंच गया है। कुछ दिनों के भीतर इसमें और इजाफा होगा। दक्षिण एशियाई मानसून आमतौर पर जून से सितंबर के बीच रहता है।
बीडब्ल्यूडीबी के एक अधिकारी का कहना है कि भारत की सीमा से सटे उत्तरी बांग्लादेश के एक जिले लालमोनिरहाट में तीस्ता सिंचाई परियोजना के नजदीक 27 जून को जलस्तर खतरे के निशान के करीब था। जल प्रवाह में भारी उतार-चढ़ाव दूसरी तरह की समस्याओं का कारण है। फिरोज कहते हैं, नदी में अब मछलियां नहीं हैं। मछलियों की कई प्रजातियां जो कि एक दशक पहले तक प्रचुर मात्रा में पाई जाती थीं, अब दुर्लभ हो गई हैं। इसकी वजह यह है कि हर साल के कुछ महीने नदी सूखी रहती है।
लालमोनिरहाट जिले के मत्स्य अधिकारी अबुल हसनत कहते हैं, ऊपर की तरफ से पानी छोड़ जाने की वजह से नदी के तटों पर जीवनयापन करने वाले हजारों मछुआरों और अन्य लोगों की जीविका तबाह हो गई है। असामान्य तरीके से जल स्तर में गिरावट के कारण मदर फिश का अस्तित्व खतरे में पड़ गया जिससे मछलियों की आम प्रजातियां गायब हो गईं। वह कहते हैं कि हर साल के आठ महीने में केवल इसी जिले के 7000 से 8000 मछुआरों के पास आय का कोई स्रोत नहीं होता। इस वजह सरकार पर उन लोगों की जीविका के वैकल्पिक साधन खोजने का दबाव है।
बांग्लादेश-भारत संयुक्त अध्ययन, तीस्ता नदी बेसिन का राजनीतिक आर्थिक विश्लेषण में पिछले साल कहा गया कि नदी के सहारे अपनी जीविका चलाने वाले मछुआरे, सूखे के मौसम में दूसरे जिलों में जाकर खेतिहर मजदूर के रूप में काम मांगने के लिए मजबूर हैं।
2011 में इस संधि के असफल हो जाने के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने नदी विशेषज्ञ कल्याण रुद्र से समाधान खोजने के लिए कहा। उन्होंने 2012 की अपनी रिपोर्ट में कहा कि पानी की कमी सीमा के काफी दूर अपस्ट्रीम से शुरू हो जाती है और इसकी मुख्य वजह जल विद्युत परियोजनाएं हैं। भारत की नई सरकार जल विद्युत परियोजनाओं का समर्थन कर रही है, ऐसे में यह समस्या कैसे दूर हो सकती है, यह देखने वाली बात है।