भारत में शुरू से ही बांधों और तटबंधों का इतिहास बुरा रहने के कारण सरकार अब गंगा के किनारे नौसेना को बढ़ावा देने के लिए योजना बना रही है।
देश की सबसे महत्वपूर्ण नदी गंगा के बारे में विशेषज्ञ दिनेश मिश्रा कहते हैं कि सबसे पहले बिहार में दो विशाल बांधों का निर्माण किया गया। 1962 में कोसी बैराज बनकर तैयार हुआ, जिसका मुख्य उद्देश्य कोसी नदी के प्रकोप पर काबू पाना था। कोसी, जो कई बार अपने उतार-चढ़ाव पर रहती है और कई बार बाढ़ जैसे हालात पैदा कर अपना कहर बरपाती है, इसलिए इसे ‘बिहार का शोक’ भी कहा जाता है। फिर 1975 में फरक्का बैराज का निर्माण किया गया, जिसका उद्देश्य कोलकाता बंदरगाह पर नौगम्यता को बनाए रखना और इसके निर्माण में मदद करना। लेकिन अंतत: दोनों बैराज अपने उद्देश्य में नाकाम ही साबित हुए। जहां एक तरफ कई सालों से कोसी नदी बिहार में लगातार नुकसान करती आ रही है वहीं कोलकाता बंदरगाह ने भी वहां के गाद (Silt) के कारण दम घुटने जैसा काम किया है। यही नहीं, बांग्लादेश ने भी फरक्का बैराज से नदियों में बढ़ते खारेपन के कारण समय-समय पर परेशान करता रहा है।
यहां पर थोड़ा यह बताना जरूरी है कि, केंद्र सरकार द्वारा जलमार्ग परियोजना में गंगा नदी के किनारे पर जिन 15 छोटे बैराजों का निर्माण होना है, उन पर बिहार के मंत्रियों ने जोरदार विरोध किया है, इसकी वजह क्या है? दरअसल, कुछ दिनों पहले संसद में राष्ट्रीय जलमार्ग कानून को लेकर एक प्रस्ताव पास किया गया था जिसके तुरंत बाद बिहार के मंत्रियों ने इसका विरोध करना शुरू किया। बिहार के जल संसाधन मंत्री, राजीव रंजन सिंह ने विधानसभा को संबोधित करते हुए कहा कि ”इस योजना से न सिर्फ पर्यावरण को खतरा पैदा होगा बल्कि राज्य में बाढ़ जैसे हालात भी पैदा होंगे”।
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा ”जलमार्ग के लिए इतने सारे बांधों का निर्माण करने से गंगा में रेत और गाद का भयंकर जमाव पैदा होगा। जिससे राज्य में इस नदी के आस-पास बसे करीब 36 कस्बों पर बाढ़ का खतरा मंडराएगा।
परियोजना
बिल में राष्ट्रीय जल परिवहन को बढ़ावा देने के लिए कुल 111 नदियों को प्रयोग में लाकर परिवहन क्षमता का विकास करने की बात है। जिसका लक्ष्य 14,500 किमी तक नौगम्य जलमार्ग का लक्ष्य रखा गया है और इसकी लागत करीब 700 अरब आंकी गई है।
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने संसद को संबोधित करते हुए बताया कि भारत में सिर्फ 3.5 प्रतिशत व्यापार जलमार्ग के द्वारा होता है, वहीं इसकी तुलना में, चीन में 47 प्रतिशत, यूरोप में 40 प्रतिशत, जापान में 44 प्रतिशत और कोरिया एवं बांग्लादेश में 35 प्रतिशत व्यापार जलमार्गों के द्वारा होता हैं।
साथ ही पर्यावरण संबंधी चिंता जताते हुए नितिन गडकरी ने बताया कि सड़क परिवहन से सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलता है और हर साल करीब 5 लाख से ज्यादा सड़क दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है जिनमें से करीब डेढ़ लाख लोगों की मौत हर साल होती है। उन्होंने बताया कि सड़क परियोजना के लिए छह बार बजट निकालने पर 550 अरब का खर्चा आता हैं इसके तुलना में पर्यावरण के अनुकूल जहाज परियोजना में सिर्फ 80 अरब की लागत आती हैं।
इस प्रोजेक्ट में कुल छह राष्ट्रीय जलमार्ग का निर्माण होना है। सबसे लंबे 1,620 किमी राष्ट्रीय जलमार्ग 1 (एन डब्ल्यू-1) गंगा नदी पर हल्दिया से इलाहाबाद तक बनकर तैयार होगा, जो कि देश के चार राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से होकर गुजरेगा। वहीं, राष्ट्रीय जलमार्ग 2 से 6 क्रमश: ब्रह्मपुत्र, पश्चिमी तट नहर, गोदावरी-कृष्णा, ब्राह्मणी और बराक नदी पर बनेगा।
करीब 42 अरब लागत का राष्ट्रीय जलमार्ग-1 का प्रोजेक्ट बनकर तैयार भी हो गया है जिसके लिए विश्व बैंक से वित्तीय मदद ली जाएगी। आगे इसे वाराणासी से हल्दिया तक बढ़ाया जाने का मुख्य उद्देश्य होगा। इस जलमार्ग को वाराणसी से हल्दिया तक पहुंचने के लिए पूरे बिहार से होकर गुजरना होगा। यही वो प्रोजेक्ट है जिसकी वजह से बिहार के राजनेताओं के लिए चिंता का सबब बनकर खड़ा है।
खौफ
राष्ट्रीय जलमार्ग-1 के लिए 1,600 किमी लंबी गंगा नदी के प्रति 100 किमी पर बैराजों का निर्माण किया जाएगा। बिहार के जल संसाधन मंत्री राजीव रंजन के अनुसार ”इन बैराजों से गंगा नदी में कितना गाद (Silt) जमा होगा इसका कोई पैमाना नहीं है वहीं यह गाद जल के स्तर को बढ़ाएगा और बाढ़ जैसे हालात पैदा करेगा।”
बिहार के आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार (BSDMA) बिहार के कुल क्षेत्रफल का लगभग 74 प्रतिशत क्षेत्र बाढ़ ग्रसित इलाकों में आते हैं। हर साल राज्य के 28 जिले बाढ़ के सामना करते हैं जिनमें से प्रत्येक मानसून में 15 जिलों की हालत बद से बदतर हो जाती हैं।
राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिकारी, नुपूर बोस के अनुसार बिहार में गंगा का जल-विज्ञान (Hydrology) यूरोप की नदियों से अलग है।
“नदी का प्रमुख खिचांव भूकंपीय क्षेत्र में निहित है, ऐसे में गंगा पर 15 बैराजों का निर्माण करना, खतरे से खाली नहीं है साथ ही इस प्रोजेक्ट पर एक सही पर्यावरण आकलन की जरूरत है।” नुपूर आगे बताती हैं कि इन बैरोजों से वो आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिलेगी जो फरक्का बैराज में देखा गया है।
उन्होंने बताया कि ”फरक्का बैराज के कारण हिल्सा मछली पूरी तरह से लुप्त हो चुकी है ऐसे में गंगा में जलमार्ग प्रोजेक्ट के कारण डॉलफिन मछलियां भी खत्म हो जाएगी। हमें भूलना नहीं चाहिए कि गंगा का पूरा जलमार्ग डॉलफिन के आवास द्वारा ही चलता है।”
उनके अनुसार इस परियोजना को पूरी तरह से खारिज भी नहीं किया जा सकता क्योंकि यह परियोजना देश के परिवहन क्षेत्र एक बड़ा बदलाव ला सकती है। लेकिन इस प्रकार की बड़ी परियोजनाओं को लागू करने से पहले इस पर पूरी स्टड़ी करने की जरूरत है।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन के केंद्रीय मंत्रालय की क्षेत्रीय समिति सशक्तिकरण के एक सदस्य अशोक घोष के अनुसार, इस जलमार्ग परियोजना से काफी हद तक लाभ होगा।
उनके अनुसार डीजल पर चलने वाले वाहन लोगों और माल के लिए प्रयोग में लिये जाते हैं, वहीं जल परिवहन के बाद थोड़ा आसान हो जाएगा। इस प्रोजेक्ट में गाद बहुत बड़ी चिंता का विषय होगा, इससे कैसे निपटा जाए यह बहुत बड़ा सवाल है।
बांध और नदियों पर दक्षिण एशिया नेटवर्क के सहयोगी हिमांशु ठक्कर बताते हैं कि बिल में जलमार्ग परियोजना के दौरान किसी तकनीकी और पर्यावरण नुकसान का आंकलन तक नहीं किया गया है।
ठक्कर बताते हैं “मुझे नहीं लगता कि गंगा नदी पर इतना बड़ा प्रोजेक्ट कभी सफल भी हो पाएगा क्योंकि अभी तक इसकी रूपरेखा बनकर तैयार नहीं हो पायी है। सरकार नौगम्यता को सुनिश्चित करने के लिए निष्कर्षण की विधि (method of dredging) को अपनाएगी लेकिन उसके बाद जो गाद निकलेगा वो कहां प्रवाहित होगा यह बताना मुश्किल है। मुझे लगता इस मिस्ट्री को सुलझाने के लिए एक बड़ी स्टड़ी की जरूरत है।”
खराब इंजीनियरिंग का इतिहास
दिनेश मिश्रा के अनुसार 1952 में बिहार में 60 किमी लंबा तटबंध था लेकिन आज इस तटबंध की लंबाई बढ़कर 3,700 से भी ज्यादा हो गई है। बैराजों और तटबंधों के अनुचित निर्वाह ही बाढ़ का सबसे बड़ा कारण बनता है। 2008 में तटबंध के टूटने के कारण से ही कोसी बाढ़ ने बिहार के करीब साढ़े तीन करोड़ लोगों को अपनी जगह से पलायन होने से मजबूर किया था। हर साल मानसून के वक्त कोसी कहर के कारण पहले से ही सात जिलों के गावों को खाली करा दिया जाता है।
बात सिर्फ कोसी की ही नहीं है, पिछले 30 वर्षों में मुजफ्फरपुर और सीतामढ़ी जैसे बाढ़ ग्रसित जिलों में तटबंधों का विस्तार लगातार बढ़ा है। नुपूर बोस के अनुसार, “कंक्रीट संरचना नदियों को बुरी तरह से बर्बाद कर रही हैं और जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव उन लोगों पर पड़ रहा है, जिनकी आजीविका नदी पर निर्भर करती है।”
फरक्का बैराज इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। हुगली नदी और कोलकाता नौगम्य बंदरगाह से गाद को दूर करने के लिए 40,000 हजार क्यूसेक पानी को हस्तांतरण करने की बात थी।
नुपूर बोस चेतावनी देते हुए कहती हैं “बैराज का उद्देश्य नाकाम ही रहा और इंजीनियरिंग की विफलता एक कब्रगाह बनकर रह गई और 2012 में कानून निर्माताओं के एक दल ने फरक्का बैराज पर पाबंदी लगा दी। अब हम अंदाजा लगा सकते हैं कि क्या होगा जब गंगा नदी पर 15 बैराज बनकर तैयार होंगे।”
राजीव रंजन का कहना है, “समझ में नहीं आ रहा कि प्रोजेक्ट कैसे काम करेगा, फिर भी बिहार के सभी मंत्री अभी भी इस योजना के खिलाफ खड़े है। हालांकि संसद द्वारा पारित इस बिल का पुरजोर विरोध करना इतना आसान भी नहीं। लेकिन हम इस परियोजना को रोकने की पूरी कोशिश करेंगे।”